पचपन की वय में बचपन बहुत याद आता है , मुझे इसके पहले ही आ रहा है ! हमारा बचपन जबलपुर में 'नेपियर टाऊन' में जहां हम रहते थे बीता । न...
पचपन की वय में बचपन बहुत याद आता है , मुझे इसके पहले ही आ रहा है ! हमारा बचपन जबलपुर में 'नेपियर टाऊन' में जहां हम रहते थे बीता । नाम से ही लगता है कि किसी अंग्रेज अधिकारी पर इसका नामकरण हुआ होगा । एक राईट टाऊन भी है जबलपुर में । काफी अंग्रेज यहां देश के आजाद होने के पहले रहते थे । बचपन में एंग्लो इंडियनस् बहुत इस इलाके में देखा करता था। जबलपुर की पांच आयुध निर्माणी द्वितीय विश्व युद्व के समय शुरू हुयी थी ।
नेपियर टाऊन में स्टेशन रोड पर एक बंगला हमारी दादी की जिद पर पिताजी व ताऊ ने एक अंग्रेज गार्ड से खरीदा था। हमारी दादी ने आगे और अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुये यहां पांच दुकानें सड़क की ओर के हिस्से में बनवा कर किराये पर उठा दी । इनमें एक दुकान 'रामचन्द्र टेलर' , एक 'भाईजान की सेलून', एक 'सफी टेलर्स , और एक जनरल स्टोर्स 'नवीन स्टोर्स' के नाम से तथा आखिरी में 'भूरेलाल रजक' प्रेस वाला था। भूरेलाल यों तो केवल कपड़े इस्त्री करता था वैसे उससे ज्यादा उसका यह काम उसकी स्त्री करती थी । उसे एक दूसरा शौक था बात करने का जिन घरों में वह कपड़े प्रेस के लेने जाता था वहां की महिलाओ से बहुत मुंह जबरई करता था ! इसमें उसे असीम आनंद मिलता था वह उनको भौजी , भाभी या मैडम कहकर जो जैसा उसे लगे संबोधित करता था । वैसे उसका मन बिल्कुल साफ रहता था , गले की खुजली दूर करना उसका उद्देश्य रहता था। लेकिन दुकान में भूरेलाल रजक ड्राय क्लीनर्स व डाइनर्स लिखा था ! इन पांच दुकानों के लघु बाजार में ही एक अलग तरह की दुनिया बसती थी। वैसे सेलून की दुकान ही हमारे देश में अकेले काफी है एक अलग दुनिया के लिये !
रामचन्द्र टेलर्स की दुकान हमारे घर के लोहे के सुंदर डिजाईन के गेट , जो कि सड़क को खुलता था से लगी पहली दुकान थी । रामचन्द्र चेन्नई का था उसके यहां तीन चार सिलाई मशीनों पर दक्षिण भारतीय टेलर्स काम करते थे । इनमें एक का नाम 'देवी' था , दूसरा 'लक्ष्मी' था व एक 'सेदुरत्नम' नाम का था। हम रामचन्द्र को मदा्रसी कहते थे। उस जमाने में आम लोग किसी भी दक्षिण भारतीय को ज्यादा करके मद्रासी के नाम से संबोधित करते थे । सेदुरत्नम सामान्य ऊंचाई का , गेंहुआ रंग व गोल चेहरे , घुंघराले बालो , अच्छी तंदरूस्ती वाला , एक लगनशील व मेहनती युवा कारीगर था। हम लोग बचपन में घर के गेट से बिल्कुल सटी होने के कारण रामचन्द्र की दुकान में अक्सर आते जाते रहते थे। इस दुकान के ठीक पीछे ही हमारा बैठक कक्ष था। यह घर एक सात हजार वर्ग फीट पर बना सुंदर व न्यारा बंगला था । एक सेवानिवृत अंग्रेज गार्ड से सन बासठ में बासठ हजार में क्रय किया गया था। दुकानों का किराया उस समय बमुश्किल तीस चालीस रूपये महीना था। बाद में बढा़कर इसे साठ रूपये जब किया गया तो दुकानदारों ने गहन आपत्ति दर्ज करवायी थी। एक दुकानदार तो दुकान छोड़ कर ही विरोधस्वरूप चला गया । पहले के दुकानदार इतने नैतिक बल वाले होते थे कि विरोध में स्थायी रूप से बर्हिगमन कर जाते थे !
'सेदुरत्नम' के हंसमुख स्वभाव के कारण हम भाई बहिन उससे काफी हिलमिल गये थे । वह कभी कभी हमें टॉफी , बिस्किट या आईसक्रीम के ठेले से आईसक्रीम खरीद कर भी दिलवाता रहता था , उससे हो गयी नजदीकी का यह भी एक कारण रहा होगा। गर्मी की छुटिटयो में प्रायः हमारी बुआ व उनके बच्चे बिलासपुर से हमारे घर आ जाते थे , तब घर का माहौल देखने लायक रहता था। दिनभर हम बच्चे धमाचौकड़ी मचाये रहते थे। हमारी बुआ की एक नन्ही प्यारी सी 'रीटा' नाम की बिटिया थी । बिल्कुल जापानी गुड़िया जैसी लगती थी । सफेद दूध सी फक्क मोटे मोटे गाल , पैरो में पहनी पायल जब चलते में छन छन कर बजती तो अजीब सा आकर्षण उसके प्रति हो जाता । हर कोई उसे गोद में उठाना चाहता , वह दिन भर हंसती मुस्कराती रहती । हमारे साथ ही वह सेदुरत्नम के पास भी आ जाया करती । सेदुरत्नम मशीन पर अपना काम करता जाता और रीटा को भी खिलाता प्यार करता जाता। हम किन्हीं भी भाई बहिनों से ज्यादा सेदुरत्नम को 'रीटा' प्यारी लगती । रीटा भी धीरे धीरे इतनी ज्यादा सेदुरत्नम से हिलमिल गयी कि उसके बिना एक पल भी नहीं रह पाती । सुबह से रात तक कई बार वह यहां आ जाती। धीरे धीरे बुआ व घर के अन्य लोग भी आश्वस्त हो गये कि यह एक परदेशी का स्नेह है एक नन्ही प्यारी सी गुड़िया के लिये।
अब तो सुबह होते ही रीटा सेदुरत्नम के यहां दौड़ लगाने उतावली हो उठती । उसे तो नहलाने या खाने के समय खींच कर सेदुरत्नम के पास से लाना पड़ता । रामचन्द्र जिसकी यह दुकान थी , वह भी इस बात को अन्यथा नहीं लेता था वैसे रामचन्द्र वास्तव में टेलर मास्टर था , वह दुकान ही बारह बजे आता , सात बजे तक चला भी जाता , दुकान कारीगरों के भरोसे ही रहती थी। ये सब बेचारे दूर दक्षिण से अपनी आजीविका के लिये जबलपुर जैसे शहर में अपने घर परिवार को छोड़कर आये थे। मैंने बचपन में एक बार रामचन्द्रन से यों ही भोलेपन में पूंछ लिया था कि तुम अपने घर से इतनी दूर हो ये काम वहीं क्यों नहीं करते ? तो उसका जवाब था कि उसके देश में दर्जी की दुकान नहीं चलती है। वहां तो दो लुंगी में लोग साल भर का काम चला लेते है।
हमारे ताऊ जी को शास्त्रीय संगीत का बहुत शौक था। वह प्रायः सुबह के समय चाहे जब बैठक कक्ष में हारमोनियम लेकर सुर लगाते। उनकी आवाज रामचन्द्रन की दुकान तक जाती । वह जब तुकबंदी सुनता तो उसे अजीब सा लगता , वह हम बच्चों से हंसते हुये कहता कि दादी मतलब ताऊ जी की मां उन्हें नाश्ता नहीं देती है , तो वे गा गाकर नाश्ता खाने की अर्ज करते है !
सेदुरत्नम का स्नेह महीने भर में रीटा के प्रति अंदर ही अंदर इतना ज्यादा बढ़ गया कि , वह रोज जब तक रीटा को दिन में दो तीन बार गोद में उठा कर प्यार दुलार न कर ले उसका मन ही नहीं भरता था। सुबह ,, दोपहर , शाम उसे बस रीटा की चुलबुली शरारतों का इंतजार रहता। वह रोज ही उसके लिये कुछ न कुछ बाजार से खरीद कर रख लेता कभी टॉफी , कभी बेकरी से बिस्किट , तो कभी आईसक्रीम हीरा आईसक्रीम वाले सरदार जी के ठेले से जो रोजीना कई बार जेठ की भरी दोपहरी में बार बार पसीना पोंछते हुये हमारे मोहल्ले के कई चक्कर लगाता था। उसने एक दिन रीटा के आने पर एक नयी गिफ्ट के रूप में फ्राक हाथ में थमा दी जो उसने पिछली रात देर तक जागकर अपना काम करने के बाद सिली थी । जब बुआ को पता चला तो बे खुश हुयी लेकिन नाराज भी और पैसे लेकर रामचन्द्रन की दुकान में पंहुच गयी । लेकिन सेदुरत्नम ने उस समय पैसे लेने से इंकार कर दिया। उसने कपड़े के पैसे अपनी तनख्वाह से रामचन्द्रन को काटने कहा। रामचन्द्रन को इस समय यह जरूर लगा था कि यह सेदुरत्नम का बच्चा उसके द्वारा दी गयी मशीन व कैंची उसी के पेट पर चला रहा है !
दो महीने की गर्मी की छुटिटयों में रीटा सेदुरत्नम से इतनी हिलमिल गयी कि उसके लिये सेदुरत्नम ने चार फ्राकें व सोलह रूमाल व कुछ बिब भी एक से एक सुंदर इस बीच बना डाले। रीटा के प्यार दुलार में उसके हुनर में भी गजब का निखार आ रहा था। रीटा मुश्किल से उस समय तीन साल की रही होगी । बुआ अपनी इस सबसे छोटी लड़की को सम्हालने के किसी भी काम से दो महीने के लिये बिल्कुल बेफिक्र रही थी। सेदुरत्नम जो कि उत्तर भारत की ओर पहली बार आया था तथा हिन्दी टूटी फूटी ही बोल पाता था लेकिन , रीटा की तोतली आवाज में सारी बाते तुरन्त समझ जाता था व रीटा उसके सारे इशारे व बातें। वह सेदुरत्नम को उस समय के प्रचलित फिल्मी गानों की चंद लाईनें तोतली आवाज में सुनाती।
ग्रीष्म की छुटटी कोई साल भर की कौन होती है , एक दिन ऐसा आ गया कि केवल दो दिन शेष थे , जब कि बुआ को वापिस बिलासपुर 'इंदौर बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस' से जाना था । सेदुरत्नम को जब यह पता चला तो वह मायूस हो गया उसका गला रूंध आया । उसने जाने के एक दिन पहले खाना ही ठीक से नहीं खाया। मुझे याद है कि जब मैं उसके पास यों ही गया था , तो उसकी आंखें गीली हो गयी थी । मेरे पूछने पर उसने बहाना बना दिया कि देश की याद आ रही है।
और दूसरे दिन सुबह सुबह बुआ बिलासपुर को रवाना हो गयी । सेदुरत्नम का बुरा हाल था। वह दो दिन तक काम करने ही नहीं आया , अपने कमरे में बंद रहा । मैने दोनों दिन जाकर पूछा तो पता चला कि वह बहुत दुखी है , दुकान के ही दूसरे देवी नाम के टेलर ने बताया कि वह बहुत याद कर रहा है रीटा की।
समय किसी के लिये नहीं रूकता , यह हमें कभी अच्छा तो कभी बुरा महसूस होता है। सेदुरत्नम मुश्किल से पन्द्रह दिन में सामान्य हुआ । लेकिन उसकी रीटा के प्रति चाहत रूकी नहीं , अब वह उसके लिये एक से एक सुंदर रूमाल बनाकर बारह बारह के बंडल में पैक कर पार्सल से बिलासपुर के पते पर भेजता । उसने पता हमारे घर से ले लिया था । वह रूमालों के बंडल के साथ प्रायः स्नेह भरी पाती भी भेजता। कई बार हम लोगों से हिन्दी में चिट्ठी लिखवाता और आखिरी में लिखवाता सेदु की ओर से बहुत बहुत प्यार अगली छुटटियों में रीटा जरूर आना । वह चाहे जब हमारे सामने रीटा की नकल कर उसकी याद कर लेता । कहता कि 'सेदु मुझे पान खिलाओ ' सेदु हमको आइसक्रीम खाना है'। सेुदरत्नम रूमाल वगैरह के लिये उस कपड़े का इस्तेमाल करता था जो कि दूसरे ग्राहकों के कपड़े सिलने से बच जाया करते थे । वह दुकान के अन्य कारीगरों से भी बचे कपड़े ले लेता था । यह सिलसिला काफी दिन तक चला कई बार सेदुरत्नम ने पार्सल से रीटा को रूमाल भेजे । एक बार किसी ने इसकी शिकायत रामचन्द्रन को कर दी। रामचन्द्रन सेदुरत्नम पर बहुत नाराज हुआ । दोनो में आधे घंटे तक तमिल में जोर शोर से बहस चलती रही , बाद में सेदुरत्नम उठ कर दुकान से 'सिल्वर ओक कंपाऊंड' में स्थित अपने कमरे को चला गया ।
वह दो दिन तक दुकान नहीं आया । बाद में हमें देवी ने बताया कि रामचन्द्रन ने उसका पूरा हिसाब कर दिया है , और अब वह देश चला गया है इधर को कभी न आने के लिये।
बाद में देवी ने ही मुझे बताया , कि सेदुरत्नम उसके गांव के पास के एक गांव का रहने वाला था , उसके दो छोटे लड़के थे , लेकिन उसे एक लड़की और होने की बहुत चाहत थी , और रीटा में वह अपने ख्वाहिशों की बिटिया रानी की तस्वीर देखा करता था !
मुझे याद है कि अगली गर्मी में सेदुरत्नम की चिट्ठी हमारे यहां आयी जिसमें उसने रीटा को ढेर सारा प्यार लिखा और रीटा को किसी गर्मी में जबलपुर आकर देखने की ख्वाहिश जाहिर की।
sudarshan kumar soni
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