४० कुंडलियाँ कुण्डलियाकार: महावीर उत्तरांचली (1.) ऐसी चली बयार मानव दानव बन गया, ऐसी चली बयार। चहूँ ओर आतंक की, मचती हाहाकार। मचती...
४० कुंडलियाँ
कुण्डलियाकार: महावीर उत्तरांचली
(1.) ऐसी चली बयार
मानव दानव बन गया, ऐसी चली बयार।
चहूँ ओर आतंक की, मचती हाहाकार।
मचती हाहाकार, धर्म, मजहब को भूले।
बम, गोला, बारूद, इसी के दम पर फूले।
महावीर कविराय, बन रहे मानव दानव।
चला यदि यही दौर, बचेगा कैसे मानव।
(2.) कैसा यह दस्तूर
कैसा यह दस्तूर है, कैसा खेल अजीब।
सीधे साधे लोग ही, चढ़ते यहाँ सलीब।
चदते यहाँ सलीब, जहर मिलता सच्चों को।
बुरे करें सब ऐश, कष्ट देते अच्छों को।
महावीर कविराय, बड़ा है सबसे पैसा।
इसके आगे टूट, चुका सच कैसा कैसा।
(3.) ममता ने संसार को
ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप।
माँ के आँचल में खिली, सदा नेह की धूप।
सदा नेह की धूप, प्यार का ढंग निराला।
भूखी रहती और, बाँटती सदा निवाला।
महावीर कविराय, दिया जब दुःख दुनिया ने।
सिर पर हाथ सदैव, रखा माँ की ममता ने।
(4.) ईश्वर का यह शाप
ईश्वर का यह शाप क्यों, अब तक अप-टू-डेट।
हर युग में खाली रहा, निर्धन का ही पेट।
निर्धन का ही पेट, राम की लीला न्यारी।
सोये पीकर नीर, सड़क पर क्यों खुद्दारी।
महावीर कविराय, घाट का रहा न घर का।
भूखे पेट गरीब, न पूजन हो ईश्वर का।
(5.) पहचानो इस सत्य को
पहचानो इस सत्य को, मिट जायेगी साख।
जीवन दर्शन बस यही, इक मुट्ठी भर राख।
इक मुट्ठी भर राख, कहें सब ज्ञानी ध्यानी।
मगर आज भी सत्य, नहीं समझे अज्ञानी।
महावीर कविराय, बात बेशक मत मानो।
निकट खड़ी है मृत्यु, सत्य कड़वा पहचानो।
(6.) राधा-रानी कृष्ण की
राधा-रानी कृष्ण की, थी बचपन की मीत
मीरा ने भी सुन लिया, बंसी का संगीत
बंसी का संगीत, हरे सुध-बुध तन-मन की
मुरलीधर गोपाल, खबर तो लो जोगन की
महावीर कविराय, अमर यह प्रेम कहानी
मीरा बनी मिसाल, सुनो ओ राधा-रानी
(7.) सावन के बदरा घिरे
सावन के बदरा घिरे, सखी बिछावे नैन
रूप सलोना देखकर, साजन हैं बेचैन
साजन हैं बेचैन, भीग न जाये सजनी
ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनी
महावीर कविराय, होश गुम हैं साजन के
मधुर मिलन के बीच, घिरे बदरा सावन के
(8.) मस्ती का त्यौहार
मस्ती का त्यौहार है, खिली बसंत बहार
फूलों की मकरंद से, सब पर चढ़ा ख़ुमार
सब पर चढ़ा ख़ुमार, आज है यारो होली
सब गाएं मधुमास, मित्रगण करें ठिठोली
महावीर कविराय, ख़ुशी तो दिल में बस्ती
निरोग जीवन हेतु, लाभदायक है मस्ती
(9.) आटा गीला हो गया
आटा गीला हो गया, क्या खाओगे लाल
बहुत तेज इस दौर में, महंगाई की चाल
महंगाई की चाल, सिसक रहे सभी निर्धन
कभी न भरता पेट, बना है शापित जीवन
महावीर कविराय, भूख बैरन ने काटा
जनमानस लाचार, हो गया गीला आटा
(10.) नेकी कर जूते मिलें
नेकी कर जूते मिलें, यह कलयुग की रीत
नफरत ही बाकी बची, भूल गए सब प्रीत
भूल गए सब प्रीत, गौण हैं रिश्ते-नाते
माया बनी प्रधान, उसे सब गले लगाते
महावीर कविराय, लाख कीजै अनदेखी
पर भूले से यार, कभी तो कर लो नेकी
(11.) कुण्डलिया के छंद में
कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
अंत समय तक ही चले, यह प्यारी सौगात
यह प्यारी सौगात, छंद यह सबसे न्यारा
दोहा-रौला एक, मिलाकर बनता प्यारा
महावीर कविराय, लगे सुर पायलिया के
अंतरमन में तार, बजे जब कुण्डलिया के
(12.) जिसमें सुर-लय-ताल है
जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
सबसे सहज-सरल यही, छह चरणों का बंद
छह चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
रौला का फिर रूप, चार चरणों को धोता
महावीर कविराय, गयेता अति है इसमें
हो अंतिम वह शब्द, शुरू करते हैं जिसमे
(13.) छह ऋतू बारह मास हैं
छह ऋतू बारह मास हैं, ग्रीष्म, शरद, बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात
सुबह-शाम, दिन-रात, न कोई करे प्रदूषण
वसुंधरा अनमोल, मिला सुन्दर आभूषण
जिसमे हो आनंद, सुधा समान है वह ऋतू
महावीर कविराय, मिले ऐसी अब छह ऋतू
(14.) नदिया में जीवन बहे
नदिया में जीवन बहे, जल से सकल जहान
मोती बने न जल बिना, जीवन रहे न धान
जीवन रहे न धान, रहीमदास बोले थे
अच्छी है यह बात, भेद सच्चा खोले थे
महावीर कविराय, न कचरा कर दरिया में
जल की कीमत जान, बहे जीवन नदिया में
(15.) घिन लागे उल्टी करे
घिन लागे उल्टी करे, ठीक न होवे पित्त
ज़ख़्म दिए आतंक ने, दुखी देश का चित्त
दुखी देश का चित्त, क़त्ल रिश्तों का करते
कभी धर्म के नाम, कभी जाति-ज़हर भरते
महावीर कविराय, बात कड़वी पिन लागे
सिस्टम ज़िम्मेदार, आचरण से घिन लागे
(16.) बूढ़ा पीपल गांव का
बूढ़ा पीपल गांव का, रोता है दिन, रैन
शहरों के विस्तार से, उजड़ गया सुख, चैन
उजड़ गया सुख, चैन, कंकरीटों के जंगल
मचती भागम-भाग, कारखानों के दंगल
महावीर कविराय, बना है सोना, पीतल
युवा हुआ बरबाद, तड़पता बूढ़ा, पीपल
(17.) मायामृग भटका किये
माया मृग भटका किये, जब-जब मेरे पास
इच्छाओं में डूबकर, तब-तब रहा हतास
तब-तब रहा हतास, मिटी न मिटे यह तृष्णा
आदिम युग की प्यास, राधिका बिन ज्यों कृष्णा
महावीर कविराय, लगी झुरने यह काया
बूढ़ा हुआ शरीर, पर न मिटी मोह माया
(18.) तू-तू, मैं-मैं हो गई
तू-तू, मैं-मैं हो गई, बात बनी गंभीर
चलने लगे विवेक पर, लोभ-मोह के तीर
लोभ-मोह के तीर, पहेली तब क्या बूझे
जब न बचे विवेक, विकल्प न कोई सूझे
महावीर कविराय, ज़रा भी मत कर टैं-टैं
वरना होगी व्यर्थ, करी जो तू-तू, मैं-मैं
(19.) रब तो है अहसास भर
रब तो है अहसास भर, नहीं धूप या छाँव
वो तो घट-घट में बसा, नहीं हाथ वा पाँव
नहीं हाथ वा पाँव, निराकार उसे जानो
कह गए दयानन्द, बात वेदों की मानो
महावीर कविराय, पता यह सच सबको है
लाख करों इंकार, मगर जग में रब तो है
(20.) काटा पेड़ हरा-भरा
काटा पेड़ हरा-भरा, आँगन में दीवार
भाई-भाई लड़ रहे, मांग रहे अधिकार
मांग रहे अधिकार, धर्म संकट है भारी
रिश्ते-नाते गौण, गई सबकी मति मारी
महावीर कविराय, हो रहा सबको घाटा
लेकिन क्या उपचार, पेड खुद ही जो काटा
(21.) जो भी देखे प्यार से
जो भी देखे प्यार से, दिल उस पर कुर्बान
जग में है यह प्रेम ही, सब खुशियों की खान
सब खुशियों की खान, करो दिलबर की पूजा
है प्रभु का वह रूप, नहीं प्रेमी-सम दूजा
महावीर कविराय, तनिक अब वो भी देखे
दे दो उस पर जान, प्यार से जो भी देखे
(22.) सारी भाषा बोलियाँ
सारी भाषा बोलियाँ, विद्या का है रूप
विश्व में चहूँ ओर ही, खिली ज्ञान की धूप
खिली ज्ञान की धूप, रूप है इसका न्यारा
अक्षर ने हर छोर, किया ऐसा उजियारा
महावीर कविराय, विज्ञानं नहीं तमाशा
एक जगह अब देख, यंत्र में सारी-भाषा
(23.) जीवन हो बस देश हित
जीवन हो बस देश हित, सबका हो कल्याण
"महावीर" चारों तरफ, चलें प्यार के वाण
चलें प्यार के वाण, बने अच्छे संस्कारी
उत्तम शासन-तंत्र, बने अच्छे नर-नारी
देश-भक्त की राय, फूल-सा मन उपवन हो
हर विधि हो कल्याण, देश हित हर जीवन हो
(24.) कूके कोकिल बाग़ में
कूके कोकिल बाग़ में, नाचे सम्मुख मोर
मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर
आज बना चितचोर, पवन शीतल मनभावन
मृत्युलोक में मित्र, स्वर्ग-सा लगता जीवन
महावीर कविराय, युगल प्रेमी मन बहके
काश! डाल पे आज, ह्रदय कोकिल बन कूके
(25.) रंगों का त्यौहार है
रंगों का त्यौहार है, उड़ने लगा अबीर
प्रेम रंग गहरा चढ़े, उतरे न महावीर
उतरे न महावीर, सजन मारे पिचकारी
सजनी लिए गुलाल, खड़ी कबसे बेचारी
प्रेम रंग के बीच, खेल चले उमंगों का
जग में ऐसा पर्व, नहीं दूजा रंगों का
(26.) होंठों पर है रागनी
होंठों पर है रागनी, मन गाये मल्हार
बरसे यूँ बरसों बरस, मधुरिम-मधुर-फुहार
मधुरिम-मधुर-फुहार, प्रीत के राग-सुनाती
बहते पानी संग, गीत नदिया भी गाती
महावीर कविराय, ताल बंधी सांसों पर
जीवन के सुर सात, गुनगुनाते होंठों पर
(27.) पोथी-पत्री बाँचकर
पोथी-पत्री बाँचकर, होवे कौन सुजान
शब्द प्रेम के जो कहे, उसको ज्ञानी मान
उसको ज्ञानी मान, दिलों में घर कर जाता
मानव की क्या बात, जानवर स्नेह लुटाता
महावीर कविराय, बात है सारी थोथी
हिया न उपजे प्रेम, व्यर्थ है पत्री-पोथी
(28.) आई जिम्मेदारियां
आई जिम्मेदारियां, काँप गए नादान
है यह टेड़ी खीर पर, जो खाए बलवान
जो खाए बलवान, शक्ति उसको मिलती है
माने कभी न हार, मुक्ति उसको मिलती है
महावीर कविराय, काम मुश्किल है भाई
भाग गया वो वीर, मुसीबत जिस पर आई
(29.) मन में हाहाकार
मन में हाहाकार है, जीना क्यों बेकार
कर पैदा सच्ची लगन, तो जीवन साकार
तो जीवन साकार, व्यर्थ न जलाओ जी को
प्रीतम अगर कठोर, भूल जा तू भी पी को
महावीर कविराय, प्यार मत ढूंढों तन में
रंग चढ़ेगा और, लगन सच्ची यदि मन में
(30.) मरते-खपते कट गए
मरते-खपते कट गए, दुविधा में दिन, रैन
जीवन के दो पल बचे, ले ले अब तो चैन
ले ले अब तो चैन, साँस जाने कब उखड़े
कर कुछ अच्छे काम, छोड़ दे लफड़े-झगड़े
महावीर कविराय, राम की माला जपते
बहुत जिए हम मित्र, कल तलक मरते-खपते
(31.) आज़ादी पाई कहाँ
आज़ादी पाई कहाँ, देश बना अँगरेज़
क्यों न रंग देशी चढ़े, रो रहे रंगरेज़
रो रहे रंगरेज़, न पूछे बाबू कोई
निज भाषा बिन ज्ञान, व्यर्थ में दुर्गति होई
महावीर कविराय, चार सू है बरबादी
भाषा का अपमान, मिली कैसी आज़ादी
(32.) बात न कोई मानता
बात न कोई मानता, झूठ झाड़ते लोग
बेशर्मी से रात-दिन, दाँत फाड़ते लोग
दाँत फाड़ते लोग, कष्ट देके खुश रहते
इन लोगों को यार, बोझ धरती का कहते
महावीर कविराय, रूह भी इनकी सोई
भले कहो तुम लाख, मानता बात न कोई
(33.) राजनीति में आ गई
राजनीति में आ गई, महावीर अब खोट
नोट की चोट पे सभी, माँग रहे हैं वोट
माँग रहे हैं वोट, गिरी सबकी खुद्दारी
व्यवस्था हुई भ्रष्ट, दादागिरी है सारी
महावीर कविराय, गिरावट अर्थनीति में
गलत चयन आधार, खोट यूँ राजनीति में
(34.) खेतों में ज्यों आप ही
खेतों में ज्यों आप ही, फैली खरपतवार
इस धरा में ग़रीब यूँ, मिलते हैं सरकार
मिलते हैं सरकार, कहूँ क्या किस्मत खोटी
मुश्किल से दो जून, मिले ग़रीब को रोटी
महावीर कविराय, मिली हमें यह देह क्यों
हम हैं खरपतवार, उगे खुद खेतों में ज्यों
(35.) गल रही ओजोन परत
गल रही ओजोन परत, प्रगति बनी अभिशाप
वक्त अभी है चेतिए, पछतायेंगे आप
पछतायेंगे आप, साँस घुट्टी जाएगी
पृथ्वी होगी नष्ट, जान क्या रह पाएगी
महावीर कविराय, समय पर जाओ संभल
कीजै कुछ उपचार, ओजोन परत रही गल
(36.) अनपढ़ सदा दुखी रहा
अनपढ़ सदा दुखी रहा, कहे कवि महावीर
पढा-लिखा इंसान ही, लिखता है तक़दीर
लिखता है तक़दीर, अलिफ, बे को पहचानो
क, ख, ग को रखो याद, विदेशी भाषा जानो
धरती से ब्रह्माण्ड, ज़मानां पहुंचा पढ़-पढ़
जागो बरखुरदार, रहो न आज से अनपढ़
(37.) उत्साहित हैं गोपियाँ
उत्साहित हैं गोपियाँ, नाचे मन में मोर
रूप-रंग श्रृंगार का, कौन सखी चितचोर
कौन सखी चितचोर, पूछ रही हैं गोपियाँ
करती है हुड़दंग, ग्वाल-बाल की टोलियाँ
महावीर कविराय, कृष्ण जहाँ समाहित हैं
देह अलौकिक गंध, सभी जन उत्साहित हैं
(38.) गोरी इतराकर कहे
गोरी इतराकर कहे, प्रीतम मेरा चाँद
अजर-अमर आभा रहे, कभी पड़े ना मांद
कभी पड़े ना मांद, नज़र न लगाओ कोई
प्रीतम है मासूम, करीब न आओ कोई
महावीर कविराय, न कोई कर ले चोरी
तुझे छिपा लूँ चाँद, कहे इतराकर गोरी
(39.) क्यों पगले डरता यहाँ
क्यों पगले डरता यहाँ, काल सभी को खाय
यह तो गीता सार है, जो आए सो जाय
जो आए सो जाय, बात है बिलकुल सच्ची
कहें सभी विद्वान, साँस की डोरी कच्ची
महावीर कविराय, समय से पहले मरता
मौत है कटू सत्य, बता क्यों पगले डरता
(40.) पंछी बेशक कैद है
पंछी बेशक कैद है, पाँव पड़ी ज़ंजीर
लेकिन मन को बांधकर, कब रखा महावीर
कब रखा महावीर, नाप लेता जग पल में
जब भी जिया उदास, घूमता बीते कल में
कहे कवि खरे बोल, ह्रदय करता है धक-धक
दिल तो है आज़ाद, कैद हो पंछी बेशक
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41 ग़ज़लें
ग़ज़लकार : महावीर उत्तरांचली
(1.)
ग़रीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो
है मुश्किल दौर, सूखी रोटियां भी दूर हैं हमसे
मज़े से तुम कभी काजू, कभी किशमिश चबाते हो
नज़र आती नहीं, मुफ़लिस की आँखों में तो खुशहाली
कहाँ तुम रात-दिन, झूठे उन्हें सपने दिखाते हो
अँधेरा करके बैठे हो, हमारी ज़िन्दगानी में
मगर अपनी हथेली पर, नया सूरज उगाते हो
व्यवस्था कष्टकारी क्यों न हो, किरदार ऐसा है
ये जनता जानती है सब, कहाँ तुम सर झुकाते हो
(2.)
जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
लोकशाही की नई, सूरत निकलनी चाहिए
मुफलिसों के हाल पर, आंसू बहाना व्यर्थ है
क्रोध की ज्वाला से अब, सत्ता बदलनी चाहिए
इंकलाबी दौर को, तेज़ाब दो जज़्बात का
आग यह बदलाव की, हर वक्त जलनी चाहिए
रोटियां ईमान की, खाएं सभी अब दोस्तो
दाल भ्रष्टाचार की, हरगिज न गलनी चाहिए
अम्न है नारा हमारा, लाल हैं हम विश्व के
बात यह हर शख़्स के, मुहं से निकलनी चाहिए
(3.)
बाज़ार मैं बैठे मगर बिकना नहीं सीखा
हालात के आगे कभी झुकना नहीं सीखा
तन्हाई मैं जब छू गई यादें मिरे दिल को
फिर आंसुओं ने आँख मैं रुकना नहीं सीखा
फिर आईने को बेवफा के रूबरू रक्खा
मैंने वफ़ा की लाश को ढकना नहीं सीखा
जब चल पड़े मंजिल की जानिब ये कदम मेरे
फिर आँधियों के सामने रुकना नहीं सीखा
(4.)
साधना कर यूँ सुरों की, सब कहें क्या सुर मिला
बज उठें सब साज दिल के, आज तू यूँ गुनगुना
हाय! दिलबर चुप न बैठो, राज़े-दिल अब खोल दो
बज़्मे-उल्फ़त में छिड़ा है, गुफ़्तगूं का सिलसिला
उसने हरदम कष्ट पाए, कामना जिसने भी की
व्यर्थ मत जी को जलाओ, सोच सब अच्छा हुआ
इश्क़ की दुनिया निराली, क्या कहूँ मैं दोस्तो
बिन पिए ही मय की प्याली, छा रहा मुझपर नशा
मीरो-ग़ालिब की ज़मीं पर, शेर जो मैंने कहे
कहकशां सजने लगा और लुत्फ़े-महफ़िल आ गया
(5.)
बड़ी तकलीफ देते हैं ये रिश्ते
यही उपहार देते रोज़ अपने
ज़मीं से आस्मां तक फ़ैल जाएँ
धनक में ख्वाहिशों के रंग बिखरे
नहीं टूटे कभी जो मुश्किलों से
बहुत खुद्दार हमने लोग देखे
ये कड़वा सच है यारों मुफलिसी का
यहाँ हर आँख में हैं टूटे सपने
कहाँ ले जायेगा मुझको ज़माना
बड़ी उलझन है, कोई हल तो निकले
(6.)
तीरो-तलवार से नहीं होता
काम हथियार से नहीं होता
घाव भरता है धीरे-धीरे ही
कुछ भी रफ़्तार से नहीं होता
खेल में भावना है ज़िंदा तो
फ़र्क कुछ हार से नहीं होता
सिर्फ़ नुक्सान होता है यारो
लाभ तकरार से नहीं होता
उसपे कल रोटियां लपेटे सब
कुछ भी अख़बार से नहीं होता
(7.)
यूँ जहाँ तक बने चुप ही मै रहता हूँ
कुछ जो कहना पड़े तो ग़ज़ल कहता हूँ
जो भी कहना हो काग़ज़ पे करके रक़म
फिर क़लम रखके ख़ामोश हो रहता हूँ
दोस्तो! जिन दिनों ज़िंदगी थी ग़ज़ल
ख़ुश था मै उन दिनों, अब नहीं रहता हूँ
ढूंढ़ते हो कहाँ मुझको ऐ दोस्तो
आबशारे-ग़ज़ल बनके मै बहता हूँ
(8.)
चढ़ा हूँ मै गुमनाम उन सीढियों तक
मिरा ज़िक्र होगा कई पीढ़ियों तक
ये बदनाम क़िस्से, मिरी ज़िंदगी को
नया रंग देंगे, कई पीढ़ियों तक
ज़मा शायरी उम्रभर की है पूंजी
ये दौलत ही रह जाएगी पीढ़ियों तक
"महावीर" क्यों मौत का है तुम्हे ग़म
ग़ज़ल बनके जीना है अब पीढ़ियों तक
(9.)
काश! होता मज़ा कहानी में
दिल मिरा बुझ गया जवानी में
फूल खिलते न अब चमेली पर
बात वो है न रातरानी में
उनकी उल्फ़त में ये मिला हमको
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
आओ दिखलायें एक अनहोनी
आग लगती है कैसे पानी में
तुम रहे पाक़-साफ़ दिल हरदम
मै रहा सिर्फ बदगुमानी में
(10.)
रेशा-रेशा, पत्ता-बूटा
शाखें चटकीं, दिल-सा टूटा
ग़ैरों से शिकवा क्या करते
गुलशन तो अपनों ने लूटा
ये इश्क़ है इल्ज़ाम अगर तो
दे इल्ज़ाम मुझे मत झूटा
तुम क्या यार गए दुनिया से
प्यारा-सा इक साथी छूटा
शिकवा क्या ऊपर वाले से
भाग मिरा खुद ही था फूटा
(11.)
जां से बढ़कर है आन भारत की
कुल जमा दास्तान भारत की
सोच ज़िंदा है और ताज़ादम
नौ'जवां है कमान भारत की
देश का ही नमक मिरे भीतर
बोलता हूँ ज़बान भारत की
क़द्र करता है सबकी हिन्दोस्तां
पीढियां हैं महान भारत की
सुर्खरू आज तक है दुनिया में
आन-बान और शान भारत की
(12.)
दिल मिरा जब किसी से मिलता है
तो लगे आप ही से मिलता है
लुत्फ़ वो अब कहीं नहीं मिलता
लुत्फ़ जो शा'इरी से मिलता है
दुश्मनी का भी मान रख लेना
जज़्बा ये दोस्ती से मिलता है
खेल यारो! नसीब का ही है
प्यार भी तो उसी से मिलता है
है "महावीर" जांनिसारी क्या
जज़्बा ये आशिक़ी से मिलता है
(13.)
फ़न क्या है फनकारी क्या
दिल क्या है दिलदारी क्या
जान रही है जनता सब
सर क्या है, सरकारी क्या
झांक ज़रा गुर्बत में तू
ज़र क्या है, ज़रदारी क्या
सोच फकीरों के आगे
दर क्या है, दरबारी क्या
(14.)
तलवारें दोधारी क्या
सुख-दुःख बारी-बारी क्या
क़त्ल ही मेरा ठहरा तो
फांसी, खंजर, आरी क्या
कौन किसी की सुनता है
मेरी और तुम्हारी क्या
चोट कज़ा की पड़नी है
बालक क्या, नर-नारी क्या
पूछ किसी से दीवाने
करमन की गति न्यारी क्या
(15.)
हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती
जीत मगर प्यारे हर बार नहीं होती
एक बिना दूजे का, अर्थ नहीं रहता
जीत कहाँ पाते, यदि हार नहीं होती
बैठा रहता मैं भी एक किनारे पर
राह अगर मेरी दुशवार नहीं होती
डर मत लह्रों से, आ पतवार उठा ले
बैठ किनारे, नैया पार नहीं होती
खाकर रूखी-सूखी, चैन से सोते सब
इच्छाएं यदि लाख उधार नहीं होती
(16.)
तसव्वुर का नशा गहरा हुआ है
दिवाना बिन पिए ही झूमता है
गुज़र अब साथ भी मुमकिन कहाँ था
मैं उसको वो मुझे पहचानता है
गिरी बिजली नशेमन पर हमारे
न रोया कोई कैसा हादिसा है
बलन्दी नाचती है सर पे चढ़के
कहाँ वो मेरी जानिब देखता है
जिसे कल ग़ैर समझे थे वही अब
रगे-जां में हमारी आ बसा है
(17.)
नज़र में रौशनी है
वफ़ा की ताज़गी है
जियूं चाहे मैं जैसे
ये मेरी ज़िंदगी है
ग़ज़ल की प्यास हरदम
लहू क्यों मांगती है
मिरी आवारगी में
फ़क़त तेरी कमी है
इसे दिल में बसा लो
ये मेरी शा'इरी है
(18.)
सोच का इक दायरा है, उससे मैं कैसे उठूँ
सालती तो हैं बहुत यादें, मगर मैं क्या करूँ
ज़िंदगी है तेज़ रौ, बह जायेगा सब कुछ यहाँ
कब तलक मैं आँधियों से, जूझता-लड़ता रहूँ
हादिसे इतने हुए हैं दोस्ती के नाम पर
इक तमाचा-सा लगे है, यार जब कहने लगूं
जा रहे हो छोड़कर इतना बता दो तुम मुझे
मैं तुम्हारी याद में तड़पूँ या फिर रोता फिरूँ
सच हों मेरे स्वप्न सारे, जी, तो चाहे काश मैं
पंछियों से पंख लेकर, आसमाँ छूने लगूं
(19.)
दिल से उसके जाने कैसा बैर निकला
जिससे अपनापन मिला वो ग़ैर निकला
था करम उस पर ख़ुदा का इसलिए ही
डूबता वो शख़्स कैसा तैर निकला
मौज-मस्ती में आख़िर खो गया क्यों
जो बशर करने चमन की सैर निकला
सभ्यता किस दौर में पहुँची है आख़िर
बंद बोरी से कटा इक पैर निकला
वो वफ़ादारी में निकला यूँ अब्बल
आंसुओं में धुलके सारा बैर निकला
(20.)
आपको मैं मना नहीं सकता
चीरकर दिल दिखा नहीं सकता
इतना पानी है मेरी आँखों में
बादलों में समा नहीं सकता
तू फरिश्ता है दिल से कहता हूँ
कोई तुझसा मैं ला नहीं सकता
हर तरफ़ एक शोर मचता है
सामने सबके आ नहीं सकता
कितनी ही शौहरत मिले लेकिन
क़र्ज़ माँ का चुका नहीं सकता
(21.)
राह उनकी देखता है
दिल दिवाना हो गया है
छा रही है बदहवासी
दर्द मुझको पी रहा है
कुछ रहम तो कीजिये अब
दिल हमारा आपका है
आप जबसे हमसफ़र हो
रास्ता कटने लगा है
ख़त्म हो जाने कहाँ अब
ज़िंदगी का क्या पता है
(22.)
नज़र को चीरता जाता है मंज़र
बला का खेल खेले है समन्दर
मुझे अब मार डालेगा यकीनन
लगा है हाथ फिर क़ातिल के खंजर
है मकसद एक सबका उसको पाना
मिल मस्जिद में या मंदिर में जाकर
पलक झपकें तो जीवन बीत जाये
ये मेला चार दिन रहता है अक्सर
नवाज़िश है तिरी मुझ पर तभी तो
मिरे मालिक खड़ा हूँ आज तनकर
(23.)
बीती बातें याद न कर
जी में चुभता है नश्तर
हासिल कब तक़रार यहाँ
टूट गए कितने ही घर
चाँद-सितारे साथी थे
नींद न आई एक पहर
तनहा हूँ मैं बरसों से
मुझ पर भी तो डाल नज़र
पीर न अपनी व्यक्त करो
यह उपकार करो मुझ पर
(24.)
छूने को आसमान काफ़ी है
पर अभी कुछ उड़ान बाक़ी है
कैसे ईमाँ बचाएं हम अपना
सामने खुशबयान साकी है
कैसे वो दर्द को ज़बां देगा
क़ैद में बेज़बान पाखी है
लक्ष्य पाकर भी क्यों कहे दुनिया
कुछ तिरा इम्तिहान बाक़ी है
कहने हैं कुछ नए फ़साने भी
इक नया आसमान बाक़ी है
(25.)
लहज़े में क्यों बेरूख़ी है
आपको भी कुछ कमी है
पढ़ लिया उनका भी चेहरा
बंद आँखों में नमी है
सच ज़रा छूके जो गुज़रा
दिल में अब तक सनसनी है
भूल बैठा हादिसों में
ग़म है क्या और क्या ख़ुशी है
दर्द काग़ज़ में जो उतरा
तब ये जाना शाइरी है
(26.)
धूप का लश्कर बढ़ा जाता है
छाँव का मंज़र लुटा जाता है
रौशनी में इस कदर पैनापन
आँख में सुइयां चुभा जाता है
चहचहाते पंछियों के कलरव में
प्यार का मौसम खिला जाता है
फूल-पत्तों पर लिखा कुदरत ने
वो करिश्मा कब पढ़ा जाता है
(27.)
ख़्वाब झूठे हैं
दर्द देते हैं
रंग रिश्तों के
रोज़ उड़ते हैं
कैसे-कैसे सच
लोग सहते हैं
प्यार सच्चा था
ज़ख़्म गहरे हैं
हाथ में सिग्रेट
तन्हा बैठे हैं
(28.)
मकड़ी-सा जाला बुनता है
ये इश्क़ तुम्हारा कैसा है
ऐसे तो न थे हालात कभी
क्यों ग़म से कलेजा फटता है
मैं शुक्रगुज़ार तुम्हारा हूँ
मेरा दर्द तुम्हें भी दिखता है
चारों तरफ़ तसव्वुर में भी
इक सन्नाटा-सा पसरा है
करता हूँ खुद से ही बातें
कोई हम सा तन्हा देखा है
(29.)
क्या अमीरी, क्या ग़रीबी
भेद खोले है फ़क़ीरी
ग़म से तेरा भर गया दिल
ग़म से मेरी आँख गीली
तीरगी में जी रहा था
तूने आ के रौशनी की
ख़ूब भाएं मेरे दिल को
मस्तियाँ फ़रहाद की सी
मौत आये तो सुकूँ हो
क्या रिहाई, क्या असीरी
(30.)
बदली ग़म की जब छायेगी
रात यहाँ गहरा जायेगी
गर इज़्ज़त बेचेगी ग़ुरबत
बच्चों की भूख मिटायेगी
साहिर ने जिसका ज़िक्र क्या
वो सुब्ह कभी तो आयेगी
बस क़त्ल यहाँ होंगे मुफ़लिस
आह तलक कुचली जायेगी
ख़ामोशी ओढ़ो ऐ शा' इर
कुछ बात न समझी जायेगी
(31.)
ज़िन्दगी हमको मिली है चन्द रोज़
मौज-मस्ती लाज़मी है चन्द रोज़
इश्क़ का मौसम जवाँ है दोस्तों
हुस्न की महफ़िल सजी है चन्द रोज़
लौट आएगा सुहाना दौर फिर
ख़ून की बहती नदी है चन्द रोज़
है अमावस निर्धनों का भाग्य ही
क्यों चमकती चाँदनी है चन्द रोज़
(32.)
ज़िंदगी से मौत बोली ख़ाक़ हस्ती एक दिन
जिस्म को रह जाएँगी रूहें तरसती एक दिन
मौत ही इक चीज़ है कॉमन सभी इक दोस्तो
देखिये क्या सर बलन्दी और पस्ती एक दिन
पास आने के लिए कुछ तो बहाना चाहिए
बस्ते-बस्ते ही बसेगी दिल की बस्ती एक दिन
रोज़ बनता और बिगड़ता हुस्न है बाज़ार का
दिल से ज़्यादा तो न होगी चीज़ सस्ती एक दिन
मुफ़लिसी है, शाइरी है, और है दीवानगी
"रंग लाएगी हमारी फाकामस्ती एक दिन"
(33.)
वो जब से ग़ज़ल गुनगुनाने लगे हैं
महब्बत के मंज़र सुहाने लगे हैं
मुझे हर पहर याद आने लगे हैं
वो दिल से जिगर में समाने लगे हैं
मिरे सब्र को आज़माने की ख़ातिर
वो हर बात पर मुस्कुराने लगे हैं
असम्भव को सम्भव बनाने की ख़ातिर
हथेली पे सरसों जमाने लगे हैं
नए दौर में भूख और प्यास लिखकर
मुझे बात हक़ की बताने लगे हैं
सुख़न में नई सोच की आँच लेकर
ग़ज़लकार हिंदी के आने लगे हैं
कि ढूंढों "महावीर" तुम अपनी शैली
तुम्हें मीरो-ग़ालिब बुलाने लगे हैं
(34.)*( कृपया ग़ज़ल के नीचे फुटनोट देखें)
"आपने क्या कभी ख़याल किया"
रोज़ मुझसे नया सवाल किया
ज़िन्दगी आपकी बदौलत थी
आपने कब मिरा ख़याल किया
राज़े-दिल कह न पाये हम लेकिन
दिल ने इसका बहुत मलाल किया
ज़ोर ग़ैरों पे जब चला न कोई
आपने मुझको ही हलाल किया
हैं "महावीर" शेर ख़ूब तिरे
लोग कहते हैं क्या कमाल किया
______________________
* "आपने क्या कभी ख़याल किया" यह मिसरा परम आदरणीय तुफ़ैल चतुर्वेदी जी (संपादक "लफ़्ज़") ने परीक्षा स्वरुप दिया था। जिसे ख़ाकसार ने पाँच शेर में तत्काल मौक़े पर कहा।
(35.)
सच हरदम कहना पगले
झूठ न अब सहना पगले
सजनी बोली साजन से
तू मेरा गहना पगले
घबराता हूँ तन्हा मैं
दूर न अब रहना पगले
दिल का दर्द उभारे जो
शेर वही कहना पगले
राखी का दिन आया है
याद करे बहना पगले
रुक मत जाना एक जगह
दरिया सा बहना पगले
(36.)
लहज़े में क्यों बेरुख़ी है
आपको भी कुछ कमी है
पढ़ लिया उनका भी चेहरा
बंद आँखों में नमी है
सच ज़रा छूके जो गुज़रा
दिल में अब तक सनसनी है
भूल बैठा हादिसों में
ग़म है क्या और क्या ख़ुशी है
दर्द काग़ज़ में जो उतरा
तब ये जाना शाइरी है
(37.)
आप खोये हैं किन नज़ारों में
लुत्फ़ मिलता नहीं बहारों में
आग काग़ज़ में जिससे लग जाये
काश! जज़्बा वो हो विचारों में
भीड़ के हिस्से हैं सभी जैसे
हम हैं गुमसुम खड़े कतारों में
इश्क़ उनको भी रास आया है
अब वो दिखने लगे हज़ारों में
झूठ को चार सू पनाह मिली
सच को चिनवा दिया दिवारों में
(38.)
"लौट आया समय हर्ष उल्लास का"
रंग ऐसा चढ़ा आज मधुमास का
नाचती राधिका, नाचती गोपियाँ
खेल अदभुत रचा है महारास का
पाठशाला यह जीवन बना आजकल
नित नया पाठ है भूख और प्यास का
अत्यधिक था भरोसा मुझे आपपर
आपने क्यों किया क़त्ल विश्वास का
देश संकट में है मत ठिठोली करो
आज अवसर नहीं हास-परिहास का
(39.)
बीती बातें बिसरा कर
अपने आज को अच्छा कर
कर दे दफ़्न बुराई को
अच्छाई की चर्चा कर
लोग तुझे बेहतर समझे
वो जज़्बा तू पैदा कर
हर शय में है नूरे-ख़ुदा
हर शय की तू पूजा कर
जब ग़म से जी घबराये
औरों के ग़म बाँटा कर
(40.)
घास के झुरमुट में बैठे देर तक सोचा किये
ज़िन्दगानी बीती जाए और हम कुछ ना किये
जोड़ ना पाए कभी हम चार पैसे ठीक से
पेट भरने के लिए हम उम्रभर भटका किये
हम दुखी हैं गीत खुशियों के भला कैसे रचें
आदमी का रूप लेकर ग़म ही ग़म झेला किये
फूल जैसे तन पे दो कपड़े नहीं हैं ठीक से
शबनमी अश्कों की चादर उम्रभर ओढ़ा किये
क्या अमीरी, क्या फ़क़ीरी, वक़्त का सब खेल है
भेष बदला, इक तमाशा, उम्रभर देखा किये
(41.)
तेरी तस्वीर को याद करते हुए
एक अरसा हुआ तुझको देखे हुए
एक दिन ख़्वाब में ज़िन्दगी मिल गई
मौत की शक्ल में खुद को जीते हुए
आह भरते रहे उम्रभर इश्क में
ज़िन्दगी जी गये तुझपे मरते हुए
कितनी उम्मीद तुमसे जुड़ी ख़ुद-ब-खुद
कितने अरमान हैं दिल में सिमटे हुए
फिर मुकम्मल बनी तेरी तस्वीर यों
खेल ही खेल में रंग भरते हुए
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