धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले दाल वो भी अरहर की दाल , इसे लेकर बाबा रामदेव ने बड़े पते की बात कही है. बाबा ने जो कुछ कहा है उसके बारे में खुद...
धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले
दाल वो भी अरहर की दाल , इसे लेकर बाबा रामदेव ने बड़े पते की बात कही है. बाबा ने जो कुछ कहा है उसके बारे में खुद योगाचार्य पतंजलि को कुछ पता नहीं था. बाबा बोले-दाल खाने से घुटनों का दर्द पैदा होता है. सचमुच हमें भी ये ब्रम्हज्ञान ब्राम्हण होने के बावजूद आज तक नहीं था. हमारे कृषि वैज्ञानिक ससुरे मोती-मोती तनख्वाहें लेकर भी इस हकीकत को नहीं जान पाये. कहते हैं की डालें प्रोटीन का बेहतर साधन हैं .
वो तो अच्छा हुआ की अच्छे दिनों की शुरूवात अरहर की दाल के माहन, या कहिये अभूतपूर्व संकट से हुयी. जब संकट गहराया और रियाया ने हल्ला मचाया तब कहीं बाबा रामदेव को दाल का ये गुण याद आया. उन्होंने फौरन अपने दाल महत्तम को जनता के बीच शेयर कर दिया . बाबा वैसे दो दशक से जनता से उठ्क -बैठक लगवा रहे हैं, लौकी , करेला का सत जनता को पिला रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी भी दाल के इस अवगुण की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की. उलटे जब मौक़ा मिलता था तब कहते थे-'लालच में न पड़ो, दाल-रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ'.
बाबा के ज्ञान से अज्ञानी जनता अगर दाल को लेकर शोर मचाना बंद कर देती तो ये राष्ट्र कितने महान संकट से आसानी से उबर सकता था . सरकार को जनता का शोर सुनकर विदेशों से आठ हजार मीट्रिक टन दाल खरीद कर मंगाना पड़ी, जब की ज़रा सी टेढ़ी ऊँगली करने पर घरेलू गोदामों में ही अस्सी हजार मीट्रिक टन दाल रखी मिल गयी. सरकार को मजबूरी में छपे मारना पड़े. अगर बाबा पहले ही अपना ज्ञान बघार देते तो कम से कम ये नौबत तो नहीं आती. सरकार भी चैन से रहती और जनता के घुटनों का दर्द भी कम होता.
मुझे लगता है की इस सरकार के पितृ-पुरुष रहे श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने ज्यादा दाल खा-खाकर ही अपने घुटने गँवा दिए. अगर वे बाबा से पहले ही मिल लिए होते तो आज उन्हें व्हील चेयर पर लेट कर अपनी केयर न करवाना पड़ती. खैर , देर आयद दुरुस्त आयद, हमारे पंत प्रधान को संसद के आगामी स्तर में दाल पर प्रतिबंध के लिए एक अध्यादेश ले आना चाहिए. देश के टखनों का सवाल है. देश की युवा पीढ़ी अगर दाल खायेगी तो अपने टखने गँवायेगी और इससे देश का कितना नुक्सान होगा? देश को २०२० तक विश्व गुरु बनना है, खराब घुटनों वाला देश विश्व गुरु कैसे बन सकता है भाई?
हम बाबा रामदेव के ह्रदय से आभारी हैं की उन्होंने दाल संकट के बहाने देश को एक दूसरे आसन्न संकट से दाल पर व्यंग्य बचा लिया. देश पर मंडरा रहे टखना संकट से देश को बचाने के लिए उन्हें अगले साल कम से कम एक पद्म सम्मान तो देना ही चाहिए. जो लोग बाबा की कृपा से अपने टखने बचने में कामयाब रहें वे भारत सरकार को इस बारे में एक पोस्ट कार्ड अवश्य लिखें.
@राकेश अचल
दाल वो भी अरहर की दाल , इसे लेकर बाबा रामदेव ने बड़े पते की बात कही है. बाबा ने जो कुछ कहा है उसके बारे में खुद योगाचार्य पतंजलि को कुछ पता नहीं था. बाबा बोले-दाल खाने से घुटनों का दर्द पैदा होता है. सचमुच हमें भी ये ब्रम्हज्ञान ब्राम्हण होने के बावजूद आज तक नहीं था. हमारे कृषि वैज्ञानिक ससुरे मोती-मोती तनख्वाहें लेकर भी इस हकीकत को नहीं जान पाये. कहते हैं की डालें प्रोटीन का बेहतर साधन हैं .
वो तो अच्छा हुआ की अच्छे दिनों की शुरूवात अरहर की दाल के माहन, या कहिये अभूतपूर्व संकट से हुयी. जब संकट गहराया और रियाया ने हल्ला मचाया तब कहीं बाबा रामदेव को दाल का ये गुण याद आया. उन्होंने फौरन अपने दाल महत्तम को जनता के बीच शेयर कर दिया . बाबा वैसे दो दशक से जनता से उठ्क -बैठक लगवा रहे हैं, लौकी , करेला का सत जनता को पिला रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी भी दाल के इस अवगुण की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की. उलटे जब मौक़ा मिलता था तब कहते थे-'लालच में न पड़ो, दाल-रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ'.
बाबा के ज्ञान से अज्ञानी जनता अगर दाल को लेकर शोर मचाना बंद कर देती तो ये राष्ट्र कितने महान संकट से आसानी से उबर सकता था . सरकार को जनता का शोर सुनकर विदेशों से आठ हजार मीट्रिक टन दाल खरीद कर मंगाना पड़ी, जब की ज़रा सी टेढ़ी ऊँगली करने पर घरेलू गोदामों में ही अस्सी हजार मीट्रिक टन दाल रखी मिल गयी. सरकार को मजबूरी में छपे मारना पड़े. अगर बाबा पहले ही अपना ज्ञान बघार देते तो कम से कम ये नौबत तो नहीं आती. सरकार भी चैन से रहती और जनता के घुटनों का दर्द भी कम होता.
मुझे लगता है की इस सरकार के पितृ-पुरुष रहे श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने ज्यादा दाल खा-खाकर ही अपने घुटने गँवा दिए. अगर वे बाबा से पहले ही मिल लिए होते तो आज उन्हें व्हील चेयर पर लेट कर अपनी केयर न करवाना पड़ती. खैर , देर आयद दुरुस्त आयद, हमारे पंत प्रधान को संसद के आगामी स्तर में दाल पर प्रतिबंध के लिए एक अध्यादेश ले आना चाहिए. देश के टखनों का सवाल है. देश की युवा पीढ़ी अगर दाल खायेगी तो अपने टखने गँवायेगी और इससे देश का कितना नुक्सान होगा? देश को २०२० तक विश्व गुरु बनना है, खराब घुटनों वाला देश विश्व गुरु कैसे बन सकता है भाई?
हम बाबा रामदेव के ह्रदय से आभारी हैं की उन्होंने दाल संकट के बहाने देश को एक दूसरे आसन्न संकट से दाल पर व्यंग्य बचा लिया. देश पर मंडरा रहे टखना संकट से देश को बचाने के लिए उन्हें अगले साल कम से कम एक पद्म सम्मान तो देना ही चाहिए. जो लोग बाबा की कृपा से अपने टखने बचने में कामयाब रहें वे भारत सरकार को इस बारे में एक पोस्ट कार्ड अवश्य लिखें.
@राकेश अचल
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