यों तो हम अपने आपको बहुत कुछ समझते हैं। अपने अहंकारों के आगे किसी को कुछ नहीं समझते हैं और दूसरों के बल पर बंदरिया उछलकूद करने से बाज नहीं ...
यों तो हम अपने आपको बहुत कुछ समझते हैं। अपने अहंकारों के आगे किसी को कुछ नहीं समझते हैं और दूसरों के बल पर बंदरिया उछलकूद करने से बाज नहीं आते। किसम-किसम के मदारी आते हैं, हमें नचाते हैं, हम बंदर-भालुओं और कुत्तों की तरह नाचते-लपकते और करतब दिखाते हैं।
हममें से ही कुछ लोग जमूरे बनकर मदारियों का साथ देते हैं और हमें नकल करना सिखाते हैं। मदारी, जमूरे और हम मजमा देखकर खुश होते हैं और मजमा हमें देख-देख कर अपना मनोरंजन करता है।
हमारी अपनी हस्ती कुछ नहीं, प्रतिभा और हुनर कुछ नहीं, खुद के बूते कुछ कर सकने की कुव्वत नहीं, और दिखते-दिखाते ऎसे हैं जैसे कि दुनिया हमारे ही दम पर चलती है, हमारे ही इशारों पर नाचती-कूदती है और वही सब कुछ होता है जैसा कि हम सोचते हैं, चाहते हैं। हमारी न शक्ल का ठिकाना है, न बॉडी लैंग्वेज का। न हम पूर्ण पुरुष दिखते हैं, न स्त्रैणत्व से भरपूर स्त्री।
हममें से अधिकांश लोगों की यही फितरत है। सब तरफ ऎसे लोगों की भरमार है जो अपने आप में कुछ भी नहीं हैं, लेकिन दूसरों के नाम पर कमा-खा रहे हैं, प्रतिष्ठा पा रहे हैं। हमें पैसा चाहिए, फिर चाहे कोई हमसे कुछ भी क्यों न करवाता रहे, हमें कुछ भी क्यों न करना पड़े, राजी-राजी करते रहते हैं।
फिर जहाँ पैसा है वहीं तो सब कुछ है। पैसे में इतनी ताकत होती है कि कोई भी खरीदा जा सकता है, किसी को भी बेचा जा सकता है। फिर हमारी तरह के कारोबारियों और कबाड़ियों की कहाँ कोई कमी है। पैसे के आगे इंसानियत भी पानी भरती है। उन लोगों की भी तो कोई कमी नहीं है जो पैसों के लिए ही पैदा हुए हैं और पैसा की भूख-प्यास के मामले में कुंभकण भी इनके बौने हैं।
कहीं अमरबेल बने हुए परजीवियों या जोंक की तरह हम किसी बड़ी हस्ती के साथ चिपक जाते हैं, कभी किसी के इर्द-गिर्द रहने और घूमने-फिरने का शातिराना हुनर पा जाते हैं, कभी किसी के आदमी होने का फायदा उठा लिया करते हैं और कभी अपने आपको पालतु श्वान या समर्पित सेवक के रूप में घोषित कर जमाने भर के लाभों से अपने आपको सँवारते रहते हैं।
कुल मिलाकर बहुत सारे लोगों की स्थिति ऎसी ही है कि दूसरों के भरोसे जिन्दगी की गाड़ी चला रहे हैं, कोई सिक्स और फोर लेन पर सरपट भागता हुआ भाग्य आजमा रहा है, कोई सर्कसिया करतब दिखाते हुए मजमा इकट्ठा कर अपनी चवन्नियां चला रहा है।
हालात सब तरफ ऎसे ही हैं। जिस इंसान को भगवान ने अपनी पहचान बनाने के लिए मनुष्य बनाकर भेजा है वह औरों के नाम और दम पर जाना-पहचाना जा रहा है। सब तरफ ऎसे शक्तिहीन, सामर्थ्य से वंचित और आत्महीन लोगों का जमावड़ा है जो पूरी की पूरी मानवी संस्कृति और सभ्यता का नीचा दिखा रहे हैं।
अपनी अस्मिता भुला चुकने या किसी के श्रीचरणों में गिरवी रख देने वालों को शक्तिहीन, निःशक्त और आत्महीन ही कहा जा सकता है। इसका मूल कारण यही है कि ऎसे लोग पुरातन संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से अलग-थलग हो गए हैं अथवा अपने वंशानुगत पारिवारिक संस्कारों को पाने से वंचित रह गए हैं।
इसके अलावा तीसरा कारण यही संभव है कि सिर्फ इनका शरीरी आवरण ही मनुष्य का है, बाकी सब कुछ आसुरी सम्प्रदाय से मेल खाता है इसलिए इंसानियत की गंध का अभाव महसूसा जा रहा है।
इन्हीं सब तरह के लोगों के लिए शक्ति उपासना जरूरी है ताकि ये लोग अपने आपको अच्छी तरह जी सकें, औरों को जीवन दे सकें, खुद को बिजूके या कठपुतलियों की तरह स्थापित करने की बजाय जमाने भर में अपने बूते हलचल पैदा करने की कोशिश कर सकें और अपना वजूद भी दिखा सकें।
शक्तिहीनता ही वह कारण है कि इन लोगों को खुद पर भरोसा नहीं है, अपने पुरखों, माँ-बाप, बंधुओं-भगिनियों व कुटुम्बियों की परंपरा निर्वाह में अक्षम हैं तथा उन सभी कर्मों से दूर हैं जो वंशानुगत संस्कारों के संवहन से हासिल होते हैं।
यही कारण है कि ये बौद्धिक निःशक्त और लुंज-पुंज लोग दूसरों के भरोसे अपने जीवन संचालन को विवश हैं। किसी न किसी के पीछे लगकर या कि चापलुसी और चरण वन्दना करते हुए अपने को प्रभावशाली होने के ताने-बाने बुनने वाले इन लोगों को भले ही प्रतिभाहीन, चापलुस और सर्वस्व समर्पण का प्रतीक माना जाए, पर ये औरों को भरमाने, उनके कान भरने, भ्रम फैलाने, कान फूँकने और खुदगर्जी का इस्तेमाल कर अपने आपको हमेशा महान सिद्ध करने की हरचंद कोशिश करने के लिए उन सारे कर्मों को अपनाने से कोई परहेज नहीं रखते जो किसी इंसान के लिए घृणित और त्याज्य माने गए हैं। इन्हीं में से कुछ तो ऎसे हैं कि जिन्हें इंसान कहने तक में शर्म आती है।
इन्हीं में बहुत सारे लोग अपनी प्रतिष्ठा और पैसों के लिए अपनी सारी इंसानियत को फेंक कर ऎसे-ऎसे काम करने लग जाते हैं, दिन-रात षड़यंत्रों की दुनिया में खोए रहते हैं और जमाने भर को तंग करते हुए पिशाचों और असुरों की तरह हो जाते हैं कि इन्हें देख हैरानी होती है कि आखिर भगवान ने क्या सोच कर इन लोगों को इंसानी खोल दिया होगा।
ये ही लोग हैं जिनकी वजह से समाज और क्षेत्र में आसुरी कर्मों को हवा मिलती है, नरपिशाचों और श्वान सम्प्रदायों को सम्बल प्राप्त होता है और सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और समस्त प्रकार की परिवेशीय धाराएं विकृत और प्रदूषित होने लगती हैं।
ये ही वे नाग हैं जिनके लिए जनमेजय को नागयज्ञ रचाना पड़ा था। ये ही वे शिशुपाल हैं जिनके संहार के लिए श्रीकृष्ण को उसके पापों का शतक बनने तक का इंतजार करना पड़ा था। और ये ही वे असुर हैं जिनके लिए देवी-देवताओं को बार-बार अवतार लेना पड़ता है।
नवरात्रि का यह दिन शक्ति उपासना के चरमोत्कर्ष का दिवस है। यह दिन इन्हीं तरह के असुरों से निर्णायक मुक्ति दिलाने का दिन है। हमारे आस-पास के तमाम असुरों को जानें-पहचानें और दैवी मैया से शक्ति का वरदान पाकर इन सभी को हर तरह से ठिकाने लगाएं, यही सच्ची दैवी उपासना है।
असुरों और आसुरी भावों भरी भावभूमि पर दैवी मैया का आवाहन नहीं किया जा सकता। इसलिए पहले इन असुरों का खात्मा करें, चाहे जिस विधि हो सके। इसमें न हिंसा का पाप लगता है, न और कोई दोष।
इसी प्रकार दूसरों के दम पर उछलकूद करने वालों के लिए भी यह मौका है जो उन्हें अपनी शक्तिहीनता दूर करने और अपने बूते जीने का माद्दा पैदा करने के लिए शक्ति आराधना का माध्यम प्रदान करता है।
फिर भी वे इसका सहारा न लेना चाहें तो ऎसे पराश्रित और गुलाम लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए, कहीं भी पेट भर सकते हैं। ईश्वर ने दुनिया के तमाम कुत्तों के लिए भी पेट भरने का प्रबन्ध किया हुआ है।
हम बहुत कुछ हों, मगर अच्छे इंसान न हों तो सब कुछ व्यर्थ है। आज के दिन भगवती पराम्बा से इंसानियत का वरदान मांगे। आज के संसार को इंसान की जरूरत है, इंसान के नाम पर धींगामस्ती करने वालों, खुदगर्जों, नालायकों और अहंकारियों की नहीं।
महाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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