हैसियत शाम का समय था। ठंडी-ठंडी हवा बह, रही थी। सेवानिवृत्त कामदेव अपने.. घर के सामने' आंगन में कुर्सी में बैठकर साहित्यिक पत्रिका के ...
हैसियत
शाम का समय था। ठंडी-ठंडी हवा बह, रही थी। सेवानिवृत्त कामदेव अपने.. घर के सामने' आंगन में कुर्सी में बैठकर साहित्यिक पत्रिका के पन्ने उलट-पलट कर रहे थे। कामदेव चुटिले, हंसमुख स्वभाव के व्यक्ति हैं जो अपने मित्र मण्डली और समाज मेँ -उदारवादी दृष्टिकोण के लिए चर्चित रहते हैं। आंगन में -करीब -1 ० फुट आगे एक बड़ी सी चटाई पर दादी के साथ, दो नन्हें बच्चे बैठकर खिलौने की छीना-झपटी कर रहे थे। उनसे थोड़ी दूर पर ही उनका बड़ा तथा छोटा पुत्र कुर्सी में बैठे अपने-अपने मोबाईल पर अंगुलियाँ चला रहे थे। तभी कमरे से बाहर उनकी बड़ी और मंझली बहू छोटे बच्चों के पास बैठ गई। उन्हें दुलार कर खिलौने उन तक पहुंचाने लगी। उनका मंझला बेटा भी कामदेव के पास खाली कुर्सी पर बैठ गया और पापा के हाथों की पत्रिका की तरफ देखने लगा। कामदेव ने एक पृष्ठ की एक पंक्ति -पर अंगुली रखते हुए उसे बताया कि यह कितनी
अच्छी पंक्ति है। ' अंधविश्वास और कुरीतियाँ, कैंसर की तरह होती है। जिससे घर, समाज, देश सब कुछ नष्ट हो जाता है। '' मंझले पुत्र को पत्रिका दे दिया। मंझला. पुत्र भी अपने पापा की तरह चुटीले और व्यंग्यात्मक वाक्य बोलने मेँ माहिर था। छोटी बहू ने ट्रे में पानी के भरे गिलासों को एक-एक कर सभी को दिया तथा लौट कर फिर से चाय के कप सभी को दिये और वह भी अपनी सास के पीछे चटाई पर बैठ गई। बच्चे किलकारियाँ भर रहे थे तथा बिस्किट थोड़ा-थोड़ा खा रहे थे। आंगन में भरा पूरा परिवार देख कर कामदेव मन ही मन आनन्दित हो रहे थे। वह सोच रहे थे कि समय देखते ही देखते बीत गया। पहले तीनों बच्चे छोटे थे। पहले महाविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। एनआईटी से कम्प्यूटर की शिक्षा पूर्ण की तथा बनियों के यहाँ दस-बारह हजार की नौकरियाँ करने लगे।n
पापा को सोचते देख मंझले बेटे ने कहा- पापा जी, अब तो छोटे का भी ब्याह हो गया, अब तो आपको खुश रहना चाहिए। किस्मत से आपके तीनों योग्य बेटों ने अपनी योग्यता से योग्य बहुएं ब्याह लाए। '' पिताजी ने बोला ' ''तुम ठीक कहते हो, तुम तीनों कितने योग्य हो और तुम में कितनी योग्यता है। मैं अच्छी तरह से जानता हूँ। मैं ईश्वर को प्रणाम करता हूँ कि हमें सचमुच में तीनों योग्य, पढ़ी-लिखी, सुशील और संस्कारिक बहुएं मिली है। मैं उनके माता पिता को धन्यवाद दूंगा जिनकी पैनी नजर यह जानती है कि बनिये की नौकरी आज है तो कल का क्या भरोसा। उन्होंने हमारा बढ़ा मकान तथा करोड़ों की पैतृक -सम्पत्ति देखी। बेटियों को रहने के लिए छत तथा सुनहरे भविष्य के लिए धन सम्पदा होना चाहिए। उन्होंने हमारी हैसियत देखी और बेटियों का ब्याह कर दिया। तभी दादा की ओर दोनों हाथ उठाया, दोनों बच्चों की हाँ हाँ. हाँ, हाँ की किलकारी -गूंजी। सभी खिलखिलाकर हंसने लगे।
उजला धन
हमारे ऐतिहासिक ग्रंथों में कुबेर का खजाना प्रसिद्ध है। प्राचीन काल से हमारे बुजुर्ग लक्ष्मी जी को धन की देवी मानते हैं तथा उनका वाहन उल्लू है, वह दीपावली पर्व में अपने वाहन में बैठकर मेहनतकश, उदार, सच्चरित्र, सहिष्णु मनुष्यों के घर में प्रवेश करती है। वह दिन दुगनी रात चौगुनी उसके धन में वृद्धि करती है। अगर कोई मनुष्य धन का संरक्षण ठीक से नहीं करता वह विलासिता, स्वार्थ, कुकर्म में लिप्त शोषण में लीन हो जाता है तो लक्ष्मी जी उसकी बुद्धि को भ्रष्ठ कर उसे कंगाल बना देती है। प्राचीन काल में भारतवर्ष प्राकृतिक धन-सम्पदा से परिपूर्ण क्षेत्र था। मनुष्य की जनसंख्या कम थी, वे छोटे-छोटे बस्तियों, कबीलों में निवास करते थे। घने वनों में, गुफाओं, कन्द्राओं तथा आश्रमों में ऋषि, मुनि और गुरू अपने ईष्ट देवी-देवताओं की साधना भक्ति करते थे। वनों में बस्तियों के मनुष्य जाकर ऋषि मुनियों से नीतियाँ, नैतिकता, जीवन जीने के नियम और शिष्य शिक्षा ग्रहण करते थे। मनुष्यों से भेंट, दान तथा प्राकृतिक वस्तुओं से अपने गुजर-बसर करते थे। कालान्तर में उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायी, भक्त और शिष्यों ने उनके स्थानों पर धार्मिक स्थल निर्मित कर लिये थे। उनके बाताए नियमों, आदर्शों चमत्कारों का बयान कर मनुष्यों से दान प्राप्त करते थे जो इनकी कडी मेहनत की कमाई का होता था। ऋषि मुनि, गुरू तथा उनके अनुयायी मनुष्यों से आवश्यकता से अधिक दान, भेंट प्राप्त होने पर उसमें से कुछ हिस्सा गरीबों, निःशक्तों, जरूरतमंदों के कल्याणकारी कार्यों में खर्च कर देते थे। कुछ हजार वर्ष पूर्व से भारत वर्ष में सैकडों धार्मिक स्थल दिनों-दिन विकसित होते रहे तथा उन संस्थाओं के रख-रखाव करने वालों ने दान भेंटस्वरूप प्राप्त सोने, चांदी, हीरे, मोती, मुद्राओं को संजोकर रख वे भारतीय संस्कृति की धरोहर और धन को बड़े-बड़े तहखानों, कमरों में संरक्षित करके रखते रहे। वे हमारे ईष्टों से हमें परिचित कराते रहे।
वर्तमान समय में आजादी के बाद सैकडों संस्थान पक्के तथा आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण होते आए हैं। हमें ड्न धार्मिक संस्थानों के समितियों, ट्रस्ट प्रबंधकों तथा उनके साथ संलग्न सहयोगियों को शत-शत नमन करते हैं जिन्होंने आज इन संस्थानों में कई लाख अरब रूपयों के सोने, चांदी हीरे, मोती जवाहरात, कीमती धातुओं, मुद्राओं को सुरक्षित रखा है। यह इतनी बडी धन सम्पदा है, उजला धन है इसकी मदद से भारत का कायाकल्प हो सकता है। हर गाँव में भूमि सुधार, देश की सभी नदियों का आपस में जुड़ाव, समस्त खेती में सिंचाई प्रत्येक गाँव को पक्की -सडकों से जुडाव, हर जिले तहसील कस्बों. में यांत्रिकी तकनीकी शिक्षा संस्थान, रेल का निर्माण बडे- बडे कारखाने, हर क्षेत्र में फार्म हाउस, भारत भूमि का दो बटे तीन हिस्सा पेड़, फलदार वृक्षों से आच्छादित, हर तरह की तकनीकी शिक्षा केन्द्र, विज्ञान के आधुनिकतम शोध संस्थान, बड़े-बडे मंजीला अस्पताल हर व्यक्ति को रोजगार प्राप्त हो सकता है। भारत देश सुपर विकसित राष्ट्र इस उजले धन के माध्यम से बन सकता है।
प्रत्येक धार्मिक स्थलों की समितियाँ संस्थान अपने संग्रहित धन सम्पदा को बैंक में परिवर्तित कर दे तथा शासकीय, अशासकीय, जनभागीदारी से ०. 1 प्रतिशत ब्याज दर पर सहकारिता के आधार पर भारत निर्माण में मदद करें। पूरे देश में एक साथ निर्माण होने से इस उजले धन से भारत देश सुपर विकसित देश बन जाएगा।
उजले धन की प्राप्ति में सरकार की पहल से इन ट्रस्टों के धन का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाए तथा उन संस्थानों की समिति प्रबंध सहयोगियों की आर्थिक दशा को भी ध्यान में रखा जाए। अगर हम इस उजले धन जो कि तहखानों में निष्क्रिय रखा है उसे सूझबूझ से, बैंक के माध्यम से गतिशील बना दे तो देश फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगा।
हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए, जब-जब विश्व में धन सम्पदा आर्थिक विसंगति, शोषण बढ़ जाता है तब उस देश में अराजकता, क्रांति का सूत्रपात हो जाता है। - 1889 में फ्रांस की क्रांति, समानता स्वतंत्रता, भाईचारा के नाम से तथा रूस में सा 1917 की मजदूर क्रांति तथा भारत की क्रांति इन्हीं विषयों को लेकर हुई। इतिहास साक्षी है कि विदेशियों ने पूर्व में पश्चिम से आकर मंदिरों की धन सम्पदा लूटकर ले गये। वहीं फिरंगियों ने इष्ट इंडिया कम्पनी के माध्यम से भारत में व्यापार करने आये बुद्धि, बल तथा कुचक्र से भारत देश को गुलाम बना लिया तथा वर्तमान समय में हम अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए विदेशी कम्पनियों को भारी छूट देकर भारत में कम्पनी लगाने का आग्रह कर रहे हैं। ये कम्पनियाँ अपनी शर्तों पर यहाँ आने को तत्पर हैं। हमें इन कम्पनियों की तलाशी लेने का हक की शर्त पर इन्हें इजाजत दें अन्यथा ये कम्पनियाँ आतंक, तस्कर
देश द्रोही, भारत को विभाजित करने की षड्यंत्रकारी कम्पनी न बन जाए। हमें -सतर्क रहने की आवश्यकता है। असार हमारी सरकार ने उजला धन का राष्ट्रीयकरण या उसके सहयोग से विकास का उपक्रम स्थापित नहीं किया तो सम्भव है कि इस देश में 8० से 9० करोड युवा जो कि रोजगार अपने भविष्य और देश की एकता अखण्डता के लिए चिंतित है। उनमें दो तीन वर्षों में लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता की भागीदारी पाने का प्रयास कर सकते हैं और उस उजले धन का राष्ट्रीयकरण करके देश में वैज्ञानिक सकारात्मक सोच, रचनात्मक कार्यों से देश को सुपर विकसित राष्ट्र बनाने का प्रयास कर सकते हैं।
लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया 'खामोश '
एम. ए. हिन्दी साहित्य, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान ,_ दर्शन शास्त्र
कवि, शायर, लेखक, रंगकर्मी
२३-२५४, गीताजंली कॉलोनी, छिंदवाड़ा (मप्र.) पिन कोड - ४८००१२, मो. 09407078631
COMMENTS