यथार्थ में जीना अपने आप में बड़ी ही कठिन साधना है जिसे हर कोई नहीं कर सकता। और इसीलिए दुनिया के अधिकांश लोग भ्रम में जीने के आदी हैं। दुन...
यथार्थ में जीना अपने आप में बड़ी ही कठिन साधना है जिसे हर कोई नहीं कर सकता। और इसीलिए दुनिया के अधिकांश लोग भ्रम में जीने के आदी हैं।
दुनिया की वास्तविकताओं के बारे में सब कुछ जानते-बूझते हुए भी हम लोग न यथार्थ को आदर देते हैं न सत्य को स्वीकार कर पाने का साहस कर पा रहे हैं।
हम सभी ने मुक्ताकाशी व्यक्तित्व और व्यापक सामथ्र्य से अनभिज्ञ होकर अपने आपको कैद कर लिया है कुछ संसाधनों, कुछ फीट के दायरों और चंद लोगों में, जो हमें हमेशा उन्हीं की बनाई परिधियों में नज़रबंद रखे रहते हैं।
हम इन अनुचरों और जयगान करने वाले लोगों के प्रभाव में जीने और उन पर आश्रित होने का ऎसा स्वभाव पाल लिया करते हैं कि उनके बिना हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। हमें वे चंद लोग ही सुहाते हैं, उनके अलावा दूसरे हमें कभी नहीं भाते, चाहे वे कितने ही अच्छे क्यों न हों। हमारी स्थिति गंदी नालियों के कीड़ों जैसी हो गई है जहां सडान्ध और गंदगी ही हमें अच्छी लगती है।
कोई कितना ही बड़ा इंसान हो या फिर मामूली, सारे के सारे किसी न किसी प्रकार के लोगों से घिरे हुए हैं। सामान्य आदमी तो आमतौर पर जमीन से जुड़ा होता है लेकिन जो इंसान जितना बड़ा होता है उसके लिए यह खतरा ज्यादा होता है।
हर कोई चाहता है कि बड़े-बड़े हाथी उनके कब्जे में रहें ताकि उनके नाम पर अपने स्वार्थ पूरे होते रहें, उनके साथ रहने का लाभ हमें प्राप्त होता रहे, दूसरे लोग भी उनके साथ हमें देखकर हमसे भय खाते रहें या प्रलोभन पूरे होने के भ्रमों में हमसे चिपके रहें, हमारी सेवा-चाकरी करते रहें।
और हाथियों को क्या चाहिए। लगता है हर हाथी पिछले जनम का कोई बड़ा मठाधीश ही रहा होगा जो पूरी की पूरी जमात को साथ रखकर अपनी प्रतिष्ठा के लिए दिन-रात मेहनत करने का आदी हो।
हाथियों को इस बात से ही सुकून मिलता है कि कितनी बड़ी जमात उनके आगे-पीछे रहा करती है। फिर जमात में शामिल अनुचरों की बातों पर विश्वास करते हुए अमल करना इनके लिए वह मजबूरी है जो जिन्दगी भर के लिए किसी लत या तलब से कम नहीं होती।
बहुत सारे लोग खुद भी भ्रम में जी रहे हैं और दूसरों को भी भ्रम में रहा करने को विवश करते रहे हैं। हर इंसान राजसी वैभव और प्रतिष्ठा से लेकर हर तरफ वीआईपी ट्रीटमेंट पाने को आतुर रहता है और दूसरों से अपने आपको अधिक महत्त्वपूर्ण, प्रतिष्ठित एवं प्रभावशाली सिद्ध करने के लिए कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखने लगा है।
सभी अपने-अपने अहंकारों के झण्डे गाड़कर डेरा जमाए बैठे हुए हैं। कोई सच सुनना या कहना नहीं चाहता। जो हमारी चापलूसी, स्तुतिगान और जयगान करता है, हमारा अंधानुकरण करता है, हमें भगवान और माई-बाप मानता है, सब कुछ स्वीकार करता है, हमारे लिए कुछ भी करने को सदैव तैयार रहता है, उसे हम अपना मानते हैं, बाकी सब को पराया।
हर तरफ हम कुछ न कुछ लोगों से घिरे रहने के आदी हैं। हमारे इर्द-गिर्द बने रहकर हमें नज़रबंद किए रखने की मंशा पाले हुए लोग हमें इस कदर भ्रमित करते रहते हैं कि हमें कुछ भी सूझ नहीं पड़ती। हम ज्ञान, विवेक और सत्यासत्य को भूल जाते हैं और इनकी बातों में आ जाते हैं। और ताजिन्दगी कुछ लोगों के इशारों पर कठपुतलियों की तरह नाचते रहते हैं।
हमारे आस-पास बने रहने वाले लोग हमें दूसरों से दूर रखने की हरचन्द कोशिश करते रहते हैं ताकि कोई निकट न आने पाए और उनकी मनमानियां बरकरार रहें। आजकल सब तरफ भ्रम का माहौल है।
कोई किसी के बारे में कुछ भी न कहे तब भी भ्रम फैलाने वाले मसालची और मशालची बिना किसी आधार के कुछ न कुछ बात बनाकर सलीके से परोसने में इतने अधिक माहिर हो गए हैं कि सामने वाले पूरी तरह स्वीकार भले न कर पाएं, सोचने को मजबूर जरूर हो जाते हैंं।
बातों के इन बावर्चियों की जमात में हम सभी शामिल हैं। किसी भी बात के सच और यथार्थ को जानने की कोशिश करना कोई नहीं चाहता। अफवाहों से लेकर भ्रमों तक में सिद्ध लोग कहीं भी कोई करिश्मा दिखा सकते हैं।
दुनिया के बड़े-बड़े रिश्ते, आत्मीय संबंध, मित्रता और कौटुम्बिक स्नेह को चंद क्षणों में भ्रम फैलाकर धराशायी कर देने वाले लोगों की अपार जनसंख्या का ही कमाल है कि समाज में इंसानियत का खात्मा हो रहा है, एक-दूसरे के प्रति इतनी कटुता भरी हुई है कि बिना किसी ठोस वजह के केवल भ्रमों में जीने वाले लोगों के बीच दूरियां बनी हुई हैं, यहां तक कि संवादहीनता के कारण सभी पक्षों का आनंद छीना हुआ है।
असल में समाज के दुश्मन कोई हैं तो वे ऎसे लोग हैं जो अपने स्वार्थ पूरे करते हुए आनंद पाने के लिए सर्वत्र भ्रम फैलाते हैं, अफवाहों के संवाहक हैं तथा अपनी नाकाबिलियत और नपुंसकता को छिपाने के लिए औरों पर दोष मढ़ते रहते हैं, अपनी छवि श्रेष्ठ न हो पाने का मलाल रखते हुए औरों की प्रतिष्ठा हनन के लिए षड़यंत्रों के ताने-बाने बुनने में व्यस्त रहा करते हैं, अपने आपको सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए दूसरे लोगों को नीचा गिराने के मौकों की तलाश में बेसब्र रहा करते हैं।
हर वर्ग और हर क्षेत्र में ऎसे नुगरों और बेशर्म लोग काफी संख्या में उपलब्ध हैं जो समाज में भ्रम फैलाकर अपने आपको महान सिद्ध करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। ये ही वे लोग हैं जो हम सभी के नम्बर एक शत्रु हैं और समाज तथा देश की तरक्की में बाधक हैं।
इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि इनमें ऎसे लोग भी शामिल हैं जो किसी न किसी ओहदे पर हैं अथवा उन स्थानों पर सुशोभित हैं जहां रहकर ये सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं लेकिन ऎसा नहीं करते हुए ये लोग नुगरापंथी कर रहे हैं। किसी के बहकावे में न आएं, बातों से भ्रमित न हों, सत्य और यथार्थ को जानने की कोशिश करें, तभी हम बचे रह सकते हैं भ्रम फैलाने वालों के षड़यंत्राें से।
इन असुरों के रहते हुए भारत कल्याण के स्वप्नों को साकार नहीं किया जा सकता। इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता इनका खात्मा होना चाहिए। तभी देश भ्रमों से मुक्त हो सकेगा। और यह सब हमीं को करना है। फिर देर किस बात की।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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