एक गांव में मास्टरजी अपने भरे परिवार के साथ निवास करते थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी सरस्वती देवी, और तीन बच्चों में एक पुत्र, दो पु...
एक गांव में मास्टरजी अपने भरे परिवार के साथ निवास करते थे, उनके परिवार में उनकी पत्नी सरस्वती देवी, और तीन बच्चों में एक पुत्र, दो पुत्री थी, मास्टर जी बड़े ही सरल स्वभाव के सामाजिक प्राणी थे, वो अपनी सीधी सादी जिंदगी गुजर बसर कर रहे थे, दुर्भाग्य से उनकी पत्नी सरस्वती देवी बड़ी ही चालाक और रूढ़ीवादी परंपरा को मानने वाली थी, उसके नियम कायदे कानून घर में रह रहे मासूम बच्चों पर भारी इसलिए पढ़ रहे थे, क्यों कि सरस्वती देवी छुआछूत को हर समय अपने सर पर उठाये रखती थी, मास्टर जी जब स्कूल से थके मांदे घर लौटते तो सरस्वती देवी, घर के बाहर ही चबूतरे पर नहाने के लिए पानी की बाल्टी रख देती थी, नहाने के बाद ही मास्टरजी को घर के अन्दर प्रवेश मिलता था। यही हाल बच्चों के साथ भी हर रोज घटित होता था, चाहे गर्मी का मौसम हो या ठण्डी का या बरसात का मौसम, सरस्वती देवी किसी को भी बगैर नहाये घर के अन्दर प्रवेश नहीं हेाने देती थी, पूरा परिवार मानो सरस्वती देवी के बस में था। कोई ची से चां तक नहीं कर सकता था।
मास्टर जी चूंकि सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति होने के नाते अपनी पत्नी द्वारा दी जा रहीं यातनाऐं झेलने की आदत डाल लिए थे, धीरे-धीरे समय गुजरता चला गया, बच्चे बडे बडे हुऐ और पुत्रियों की शादी हो गई पुत्र की भी शादी हो गई बहू के घर में आने के बाद भी सरस्वती देवी के छुआछूत के व्यवहार में परिवर्तन नहीं हुआ। बेटियां जब भी अपने पति के साथ माइके आतीं तो वही पुराना दस्तूर घर के बाहर पानी से भरी बाल्टी रखी मिलती थी और दामाद को भी उसी हालात से गुजरना पढ़ता था। परिवार का भारी विरोध भी सरस्वती देवी को बदल नहीं पाया । पूजा पाठ पाखण्ड में अंधी सरस्वती देवी यह भूल चुकी थी कि उसके द्वारा जो छुआछूत का व्यवहार अपनों के साथ किया जा रहा है वह ठीक नहीं है, हर बात पर बहू से तकरार, बेटियों से तकरार उसकी आदतों में शुमार हो चुका था, चिड़़चिड़ा स्वाभाव सरस्वती देवी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका चुका था। गांव के हर गली चौराहे पर सरस्वती देवी के पूजा पाठ और पाखण्ड, छुआछूत की चर्चा हुआ करती थी। इस बीच वेचारे मास्टर साहब को भी गा्ंव वालों के तंज झेलने पढ़ते थे, पर मास्टर जी के सरल स्वभाव पर गांव वालों के तंज बौने हो जाते थे।
समय गुजरता गया एक दिन सरस्वती देवी जब सीढ़ियों से उतर रही थी, उसी समय उसका पैर सीडि़यों से फिसल गया और सीड़ियों पर फिसलने से सरस्वती देवी का सर फट गया, काफी खून बह चुका था, सरस्वती देवी का दायां पैर भी फैक्चर हो गया। सरस्वती देवी के चीखने की तेज आवाज सुन बहू रसोई से दौड़कर सासू मां के पास आई ओर अपने पति ससुर एवं बेटियों को फोन पर सूचना दी। मास्टर जी खबर पाते ही स्कूल से घर की ओर दौड़ पडे़ पर घर के सामने पानी की रखी बाल्टी की ओर देख मास्टर जी फिर वही क्रिया करने के लिए मजबूर हो उठे और नहाने में पन्द्रह मिनट लगा लिए। घर के अन्दर आने वाला हर शक्स बगैर नहाये घर के अन्दर प्रवेश नहीं हो रहे थे, समय की सुई आगे बढ रहीं थी, और लगभग एक धण्टे बाद मास्टर जी एवं उसके बेटे और बेटियां दामाद घर के अन्दर प्रवेश हुऐ, सरस्वती देवी के सर में चोट होने से खून काफी बह चुका,था, और सरस्वती देवी वेहोश हो चुकी थी। आनन- फानन में फौरन सरस्वती देवी को अस्पताल ले जाया गया, अस्पताल पहुंचते ही सरस्वती देवी को आई सी यू में भर्ती कराया गया, घर के सभी सदस्य अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर के बाहर सरस्वती देवी के बचने की दुआ भगवान से मांग रहे थे, इतने में डॉक्टर बाहर आया और उसने सरस्वती देवी का ज्यादा खून बहने से खून की कमी होने की जानकारी के साथ शीध्र खून की व्यवस्था करने की सलाह दी।
सरस्वती देवी के घरवालों की परेशानियां और बड गई सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरों ने डेरा जमा लिया था। एक के बाद एक खून देने के लिए तैयार हो गये, पर घर के किसी सदस्य के खून का ग्रु्प सरस्वती देवी के खून से नहीं मिला, घर वालों के सामने परेसानियों का पहाड़ टूट चुका था। सभी के चेहरे के भाव पर सरस्ती देवी की छाया झलक रही थी। वेदनाओं के बवन्डर के खेल में घर वाले पूरी तरह से डूब चुके थे, डॉक्टर के द्वारा बार-बार खून की व्यवस्था हेतु आगाह किया जा रहा था, मास्टर जी ने डॉक्टर साहब से पूछा कि खून की व्यवस्था किसी अन्य से करवा दी जावे। डॉक्टर वाहब ने तुरन्त वहीं पास में बैठे खून देने वालों में से एक व्यक्ति को बुलाया और उस व्यक्ति के खून का ग्रुफ सरस्वती देवी के खून के ग्रुफ से मिल गया। फौरन उस व्यक्ति को अन्दर आई सी यू में ले जाकर खून डोनेट कर सरस्वती देवी पर खून चढाया गया। सरस्वती देवी को खून की पूर्ति होते ही होश आ गया और अन्य व्यक्ति का खून चढ़ते देख सरस्वती देवी अचंभित हो उठीं । और सवाल दाग दिया यह व्यक्ति कौन है और किस जाति से संबंध रखता है, पास में ही बैठी नर्स ने जवाब दिया कि खून डोनेट करने वाला व्यक्ति पास के दलित बस्ती से है।
सरस्वती देवी नर्स की बातें सुनकर भौचक्की रह गईं। और सरस्वती देवी की जुबान हलक में अटक गई, धीरे धीरे उपचार होने पर सरस्वती देवी ठीक हो चुकी थी । उपचार पश्चात सरस्वती देवी को घर लाया गया। घर में पहले से मौजूद बहू ने सास की परंपरा अनुसार घर के बाहर सभी के नहाने हेतु अलग-अलग बाल्टी में पानी रख दिया, ठण्डी का समय था, कडाके की ठण्ड में सभी घर के सामने रखी पानी की बाल्टी को देख घबरा रहे थे, सरस्वती देवी के मन और मस्तिष्क में भावनाओं और विचारों के गुब्बारे फूट रहे थे, सरस्वती देवी को फिर अस्पताल की बात याद आई कि उसकी जान बचाने वाला व्यक्ति बगैर नहाये ही खून दे रहा था, अब घर के अन्दर प्रवेश हेतु नहाने की कोई जरूरत नहीं है।
मास्टर जी इतने में दरवाजे पर कपडे उतारने लगे तो सरस्वती देवी फूट-फूट कर रोने लगी और कहने लगी कि मास्टर जी मुझे माफ कर दो मैनें घर के सभी लोगों केा बडा कष्ट दिया है। में माफी के योग्य नहीं हूं मुझे मेरे कर्मों की सजा भगवान दे दी है। मुझे अपनी गलतियों का एहसाह अब हो गया है। मास्टर जी सरस्वती देवी की यह बातें सुनकर भाव विभोर होकर रोने लगे और कहने लगे कि आडंबर के खेल के परिणाम शीघ्र ही मिल जाते हैं। पाखण्ड की आंख मिचौली ज्याद दिन चलती भगवान जैसे को तैसा कर देता है। और इस प्रकार पूरे परिवार में छुआछूत की बीमारी का अंत हो गया। मास्टर जी फिर से अपना सादा जीवन जीने लगे गांव में चर्चाओं का बाजार कुछ दिन गर्म रहा और समय गुजरते ही शांत हो गया। बेटा वेटी और बहू और दामाद को भी पाखण्ड की परंपरा से छुटकारा मिल गया। सभी लोग छुआछूत भूलकर गांव के सुख दुख में हाथ बंटाने लगे। और गांव में खुशहाली फिर से लौट आई, सरस्वती देवी को छुआछूत की बाल्टी से छुटकारा मिल गया। सभी लोग हंसी खुशी से अपना जीवन जीने लगे। ,
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कुमार अनिल पारा
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