नवरात्रि मूलतः शक्ति उपासना का वार्षिक पर्व है जो शक्ति प्रति आदर-सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व शक्ति उपासना का सीधा और स्पष्ट सं...
नवरात्रि मूलतः शक्ति उपासना का वार्षिक पर्व है जो शक्ति प्रति आदर-सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक है। यह पर्व शक्ति उपासना का सीधा और स्पष्ट संदेश भी देता है, घनीभूत शक्ति साधना का विशिष्ट अवसर भी देता है और इस शाश्वत संदेश का प्राकट्य करता है कि शक्ति उपासना और श्रद्धा सहित स्वीकार्यता की यह परंपरा सनातन रूप से बरकरार रहे।
पूरी दुनिया चन्द्र-सूर्यात्मक और शिव-शक्ति आधारित है। इन्हीं के विभिन्न स्वरूप जगत में विद्यमान हैं। शिव और शक्ति के बिना सृष्टि की कल्पना नहीं की जा सकती। इनमें भी सर्वत्र शक्ति के ही प्रभाव से जीवन्तता विद्यमान है और शक्ति के बिना सब कुछ जड़त्व को प्राप्त हो जाता है।
यहाँ तक कि शिव भी शक्ति के बिना शव ही है। इसीलिए कहा गया है - शक्ति विना महेशानि सदाहं शवरूपकः, शिवः शक्त्यायुक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितु ....। ई कार तत्व शक्ति का प्रतीक है और इसके अभाव में शक्तिहीनता, जड़ता और उदासीनता स्वाभाविक ही है।
शक्ति उपासना की दृष्टि से नवरात्रि सर्वोपरि वार्षिक उत्सव है जिसमें शक्ति आराधना के बहुविध स्वरूप हमें देखने को मिलते हैं। नवरात्रि सदियों से चली आ रही है जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार से दैवी उपासना का क्रम विद्यमान रहा है।
सभी लोग चाहते हैं कि उन पर दैवी कृपा बनी रहे और किसी भी प्रकार की कहीं कोई कमी नहीं रहे। नवरात्रि के दिनों में सभी स्थानों पर दैवी मन्दिरों में खूब भीड़ छायी रहती है, लाखों की संख्या में साधक दिन-रात साधनाएँ करते हैं, असंख्य लोग जप, अनुष्ठान, पदयात्राओं, यज्ञों, गरबा नृत्यों और जाने किन-किन उपासनाओं के माध्यम से दैवी उपासना में रमे हुए रहते हैं।
इन सभी प्रकार की हलचलों के बावजूद नवरात्रि साधना का न कहीं कोई प्रभाव क्षेत्र या देश में दिख पा रहा है, न दुनिया में। सभी प्रकार की मानवीय, क्षेत्रीय और प्राकृतिक आपदाओं से लेकर राक्षसी प्रभाव बरकरार है, दैवी मैया इतना सब कुछ करने के बाद भी खुश नहीं हैं, और न ही हम दिली सुकून या आत्मतोष का अहसास कर पा रहे हैं।
इसका मूल कारण क्या है, इसे समझने को न हम तैयार हैं, न किसी ने कोशिश की है। हम सभी लोग शक्ति उपासना को स्थूल रूप में लेकर मूर्तियों और कर्मकाण्ड में देवी मैया को तलाशने के लिए सारे जतन करते रहे हैं।
हमने शक्ति तत्व के जीवन्त व साक्षात स्वरूप को जानने-पहचानने और समझने की कभी कोई कोशिश नहीं की। इस मामले में हम सारे के सारे लोग नासमझ और निरे मूर्ख कहे जा सकते हैं।
शक्ति उपासना का अर्थ यह है कि देवियों की आराधना के माध्यम से हम स्त्री तत्व का आदर-सम्मान करें, उन्हें महत्त्व दें और उनके मनोनुकूल बर्ताव करते हुए उन्हें प्रसन्न रखते हुए उनके भीतर विद्यमान दैवी तत्व को जागृत करें और उसके माध्यम से जीवन को सहज, सुन्दर और सुनहरा स्वरूप प्रदान करते हुए आनंद भाव से रहें तथा पूरे जगत को भी आनंद ही आनंद प्रदान करें।
एक ओर हम शक्ति उपासना और नवरात्रि के नाम पर बहुत कुछ धूमधामी संस्कृति और उत्सव मनाते रहे हैं, दूसरी तरफ उनका अपमान करते हैं जिन्हें दैवी का मानवी अवतार माना जाता है।
हम कैसे देवी उपासक हैं जो कन्याओं को गर्भ में ही मार डालते हैं, स्त्रियों पर अत्याचार करते हैं, प्रताड़ित करते हैं, उनके जीवनयापन में रुकावटें पैदा करते हैं और स्त्रियों को दूसरे दर्जे का नागरिक मानने जैसे घृणित कर्म करते हैं।
इससे सिद्ध होता है कि नवरात्रि के नाम पर हम जो कुछ करते हैं वह सिवाय ढोंग और पाखण्ड के कुछ नहीं है। नवरात्रि साधना में देवी के आत्मीय एवं संबंध सूचक स्वरूपों को लेकर हम गला फाड़-फाड़ कर दुर्गापाठ और दूसरी प्रकार की स्तुतियों का गान करते हैं लेकिन यथार्थ में हम देवी के मानवी स्वरूप क कितना ख्याल रख रहे हैं, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है।
संसार की समस्त स्त्रियों में मातृभाव का उद्घोष करते हुए हम यहां तक कह जाते हैं - मातृवत् परदारेषु , ........ स्ति्रयः समस्ताः सकला जगत्सु। आदि- आदि। लेकिन यथार्थ में आज भी हम इसके परिपालन से कोसों दूर हैं।
सच में देखा जाए तो उन लोगों को नवरात्रि या देवी उपासना का कतई अधिकार नहीं है जो स्त्रियों के प्रति हीनता भरा बर्ताव करते हैं, उन्हें भला-बुरा कहकर प्रताड़ित और दुःखी करते हैं, स्त्रियों को लेकर ताने कसते हैं, बुरी और अश्लील बातें करते हैं, स्त्रियों को बदनाम करने के लिए षड़यंत्र रचते रहते हैं, स्त्रियों के विरूद्ध व्यवहार करते हुए स्त्रियों के बारे में शिकायतें करते रहते हैं, नीचा दिखाते हैं और स्त्रियों पर हाथ उठाते हैं।
ऎसे लोगों को दैवी पूजा का कोई अधिकार नहीं है बल्कि यथार्थ यह भी है कि ऎसे लोग देवी पूजा या नवरात्रि के नाम पर जो कुछ नाटक करते हैं उसे देवी कभी स्वीकार नहीं करती बल्कि ऎसे लोगों पर कुपित होकर दण्ड देती है।
स्त्री मात्र में देवी की भावना रखते हुए जो लोग नवरात्रि पूजा करते हैं, स्त्रियों के प्रति हमेशा आदर-सम्मान और माधुर्यपूर्ण व्यवहार रखते हैं उन्हीं की देवी साधना फलीभूत होती है।
इससे भी आगे बढ़कर बात यह है कि स्त्री सम्मान का भाव रखने वाले साधकों को अत्यल्प साधना और बहुत कम परिश्रम से ही देवी की कृपा और वरदान प्राप्त होता है और वह भी शाश्वत और स्थायी आनंद एवं आत्मतोष देने वाला।
स्त्री को दूसरे दर्जे की मानते हुए अपने अहंकार दर्शाने और अपने आपको पुरुष कहलाने वाले लोग वास्तव में पुरुष हो ही नहीं सकते क्योंकि असली पुरुष न स्त्रियों का कभी अनादर करते हैं, न स्त्रियों को कभी प्रताड़ित या दुःखी होते देख सकते हैं।
स्त्री का अनादर करने वाले तथाकथित पुरुषों के प्रति सभी प्रकार के देवी-देवता भी नाराज रहते हैं क्योंकि हरेक देव साधना तभी सफल हो सकती है जबकि उनकी शक्ति को भी यथोचित सम्मान मिले। नवरात्रि में देवी पूजा तभी सफल हो सकती है जबकि हम संसार की सभी स्त्रियों के प्रति अन्तर्मन से सम्मान का भाव रखें।
बात केवल पुरुष मात्र के लिए ही लागू नहीं है बल्कि उन स्त्रियों के लिए भी उतनी ही लागू होती है जो दूसरी स्त्रियों से ईर्ष्या-द्वेष और शत्रुता के भाव रखती हैं। उनके प्रेम और दाम्पत्य का क्षरण करती हैं, दूसरों के प्रेमियों या पतियों को छीनकर प्यार की छीन-झपटी में विश्वास रखती हैं।
ऎसी स्त्रियों द्वारा की जाने वाली दैवी उपासना का भी कोई फल प्राप्त नहीं होता अपितु देवी मैया इनसे रुष्ट होकर इनके जीवन को अभिशप्त बना डालती हैं।
दैवी पूजा के नाम पर हम चाहे कुछ न करें, स्त्री मात्र के प्रति सम्मान रखें, स्त्रियों की समस्याओं के निराकरण और स्त्रियों को सहज, आसान, बेहतर एवं स्वाभिमानी जिन्दगी मुहैया कराने, विधवाओं और परित्यक्ताओं, निराश्रित और जरूरतमन्द स्त्रियों की हरसंभव मदद करने आदि के लिए प्रत्यक्ष कुछ करें, इससे दैवी बिना किसी साधना के प्रसन्न हो जाती है।
स्त्री के भीतर विद्यमान दैवी तत्व को जानें तथा समस्त स्त्रियों का आदर-सम्मान करें, तभी हमारी नवरात्रि साधना सफल है, अन्यथा हम जो कुछ कर रहे हैं वह पाखण्ड के सिवाय कुछ नहीं है।
यह ध्यान रखें कि जो स्त्री का अपमान करता है उसे देवी महिषासुर, शुंभ, निशुंभ, चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज जैसे असुरों के बराबर ही मानती है और उसके संहार के सारे इंतजाम कर देती है, चाहे ऎसे लोग कितनी ही देवी साधना क्यों न कर लें।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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