देश को आजाद करने का संकल्प लेते हुए इंदौर में एक अगस्त, 1939 को लोकमान्य तिलक की पुण्य तिथि पर कुछ जांबाज स्कूली और कॉलेजी छात्र-छात्राओं न...
देश को आजाद करने का संकल्प लेते हुए इंदौर में एक अगस्त, 1939 को लोकमान्य तिलक की पुण्य तिथि पर कुछ जांबाज स्कूली और कॉलेजी छात्र-छात्राओं ने एक संगठन बनाया| छात्र संगठन के नाम से प्रसिद्ध इस संगठन के संयोजक श्री आनंदसिंह मेहता थे| इसके अलावा कार्यकारिणी में जिन युवकों को शामिल किया गया था उनमें प्रमुख थे- परुख धोतीवाला, जौहरीलाल झांझरिया, एम॰ जी॰ वैद्य, इब्राहिम लोदी, इंदु पाटकर आदि|
उन दिनों "वंदे मातरम्" की गीत चारों ओर पूरे उफान पर था| देश के प्रत्येक मोहल्ले और गलियों में इस गीत की गूंज थी| ब्रिटिश शासन ने इस पर एक तरह से बंदिश लगा दी थी| इस छात्र संगठन ने 1940 में होल्कर कॉलेज में चले "वंदे मातरम्" प्रकरण में मध्यस्थता कर अपना महत्व बढ़ाया| इसके साथ ही इंदौर के इन हिम्मती छात्र-छात्राओं ने सन् 1941-42 में क्रांतिकारियों के निर्देश पर अंग्रेजों द्वारा स्थापित "वार पुट" कार्यालय में चपरासी और कर्मचारी बनकर कार्य किया तथा अंग्रेजी शासन से प्राप्त गोपनीय रिपोर्ट और जानकारी प्रमुख क्रांतिकारियों भाई नारायण सिंह, प्रो॰ के॰ एल॰ बोर्डिया, प्रो॰ वर्मा आदि को देने लगे|
महात्मा गांधी आजादी आंदोलन के जिक्र के साथ ही याद आने वाला पहला नाम है| उन्होंने अंग्रेजों को 'भारत छोड़ो' का आदेश दिया था| यह आदेश संपूर्ण देश में "भारत छोड़ो" आंदोलन बन गया| इंदौर के विद्यार्थियों के संगठन का इस आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा| उन्होंने महात्मा गांधी के नारे "करो या मरो" को कंठस्थ कर लिया था| अपने जीवन की सार्थकता को वे आजादी से तौलने लगे थे| इन उत्साही छात्रों ने 9 अगस्त 1942 को अपने-अपने स्कूलों में हड़ताल करवा दी| 11 अगस्त 42 को इंदौर लाइब्रेरी में संगठन ने अपनी बैठक बुलाई| बैठक में मतभेद हुए किन्तु अंत में बहुमत के आधार पर संघर्ष का प्रस्ताव पास किया गया|
11 अगस्त को छात्र नेता श्री इंद्रनारायण पुराणिक को छत्रीपुरा पुलिस ने गिरफ्तार किया| इसके दो दिन बाद ही मालिनी सर्वटे इंदु पाटकर तथा जौहरीलाल झांझरिया को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था|
गिरफ्तारियाँ होने के बावजूद छात्रों के जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं आई| शायद गिरफ्तार होने वाला प्रत्येक व्यक्ति संगठन को एक अप्रत्यक्ष प्रेरणा शक्ति दे रहा था| इस तरह इंदौर का छात्र संगठन और मजबूत होता गया और इसके साथ ही आंदोलन और तेज होता गया|
ये छात्र आंदोलन के साथ-साथ आजादी पाने के लिए संघर्ष की अमर ज्योति को लिए प्रदेश के विभिन्न भागों में दौरा करने लगे| इन्होंने गरोठ, निमाड़, रामपुरा, नारायणगढ़, कुकड़ेश्वर आदि स्थानों पर अपने आंदोलन की ज्वाला फैलाई| ये छात्र टेलीफोन के तार काटते या पुलिस से नजर बचाकर रेलवे लाइन पर डायनामाइट लगाते| इस तरह कहीं पटरियाँ उड़ाकर तो कहीं बम बनाकर इन्होंने विद्रोह की ज्वाला को भड़काया| राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के कारण छात्रों को अपने शिक्षण संस्थाओं से निष्कासित होना पड़ा| अपने यौवन के पड़ाव पर जब आम व्यक्ति अपने भविष्य की कल्पनाओं का महल बनाने के लिए अपने व्यक्तित्व लाभों पर सोचता है, तब आंदोलनकारी छात्रों ने देश के भविष्य का गगन चुम्बी महल तैयार करने के लिए स्वयं को नींव के अंदर का एक पत्थर बनाया था|
बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में इंदौर में "ज्ञान प्रसारक मण्डल" बना| "ज्ञान प्रसारक मण्डल" का निर्माण भी नवयुवकों की देन था| यह नासिक के "अभिनव भारत" संस्था की प्रेरणा का परिणाम था| किन्तु इसका कार्य अलग था| "वाद-विवाद" द्वारा नगर में राष्ट्रीय चेतना जागृत करना इसका एक उद्देश्य था| इस मंच के माध्यम से प्रश्नों, चर्चाओं और सभाओं द्वारा राष्ट्रीय जागृति का प्रचार प्रसार किया गया| यह संस्था अल्पकाल में ही अपने प्रसिद्धि के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई और नवयुवकों द्वारा निर्मित इस संस्था में विद्यार्थियों को अपनी ओर आकर्षित किया तथा अल्प समय में ही इसके सदस्यों की संख्या 300 से अधिक हो गई| यह मण्डल क्रांतिकारियों द्वारा तैयार पत्र-पत्रिकाएँ मँगवा कर सदस्यों और नागरिकों को उपलब्ध करवाने लगे| "कर्मयोगी", "केसरी", "तलवार", "वंदे मातरम्", "फ्री इंडिया" जैसे पत्र पत्रिका का प्राप्ति स्थल ज्ञान प्रसारक मण्डल हो गया था| इस मण्डल ने गणेश उत्सव, शिवाजी उत्सव आदि को भी अपने जन जागृति का माध्यम बनाया था|
इस तरह इंदौर के नवयुवकों ने भी आजादी के आंदोलन को अपना कंधा लगाया और एक स्तम्भ बन उसे ऊंचा उठाया था| इन युवकों को कोई सत्ता प्राप्ति का लोभ नहीं था| इन्होंने तो भारत की स्वतंत्रता को लाने के लिए संघर्ष किया था| ऐसे अनेकानेक नवयुवक आजादी आंदोलन से जुड़े थे शायद इतिहास के पन्नों में उनके नाम भी नहीं हों, पर वे नींव के पत्थर जरूर रहे हैं|
भारत का हृदयस्थल मालवा न केवल अपने लोक संस्कृति के लिए ही प्रसिद्ध है वरन् यह इतिहास के उन सुनहरे पन्नों पर भी अंकित है जो इस देश की आजादी से लिखे गए हैं| भारत के अन्य स्थानों की तरह मालवा में भी सन् 1857 की प्रथम क्रांति के बाद लगातार 90 वर्षों तक स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी सुलगती रही थी| यह चिंगारी धीरे-धीरे पूरे मालवा के नवयुवकों में चेत गई थी और राष्ट्रीय आंदोलन का जोश इन युवकों को अपनी ओर आकर्षित कर चुका था|
स्वाति तिवारी
ई॰ एन॰ 1/9,
आई॰ ए॰ एस॰ गेस्ट हाउस के सामने,
चार इमली,
भोपाल-462016
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