एम. मुबीन की कहानी - टूटे छत वाला मकान

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  घर में आकुल और बेजार बैठा था वह। कभी कभी अकेले रहना भी कितना यातनादायक होता है। अकेले बैठे निरुद्देश्य घर की एक एक चीज को घूरते रहो। सोच...

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घर में आकुल और बेजार बैठा था वह।


कभी कभी अकेले रहना भी कितना यातनादायक होता है। अकेले बैठे निरुद्देश्य घर की एक एक चीज को घूरते रहो। सोचने के लिए कोई विचार और विषय भी तो पास नहीं होता है कि उसी के बारे में सोचा जाए।


अजीब अजीब से विचार और विषय मस्तिष्क में आते है। जिनपर सोचकर कुछ भी हासिल नहीं होती है। उसने अपना सिर झटककर उन निरुद्देश्य मस्तिष्क में आनेवाले विचारों को मस्तिष्क से निकाल और छत को घूरने लगा


सफेद दूध सी छत बेदाग जिस के चार कोनों पर चार दुधिया बल्ब और बीच में एक झूमर लटक रहा था।
गत दिनों वह झूमर उसने मद्रास से लाया था। पूरे तीस हजार रुपये का था।
‘‘एक झूमर तीस हजार रुपये का’’ सोचकर वह हंस पड़ा। घर में ऐसी कई चीजें है जिनकी कीमत लाखों रुपये तक होगी और पूरा मकान। एक करोड़ का नहीं तो चालीस-पचास लाख का जरूर होगा। चालीस-पचास लाख के मकान वाली छत जिसे वह उस समय घूर रहा था।
दस बीस साल पहले उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके सिर के ऊपर चालीस-पचास लाख रुपयों की छत होगी।
आज यह हालत है।
कभी यह स्थिति थी कि टूटी छत के मकान में रहना पड़ता था।
टूटे छत का मकान।


क़्या कभी वह उसे भूल सकता है ? नहीं कभी नहीं ! इन्सान को जिस तरह अच्छे दिन हमेशा याद रहते है, वैसे ही वह अपने बुरे दिन भी कभी नहीं भूल पाता है और उसने तो उस टूटी छत के मकान में पूरे दो साल गुजारे थे तब कहीं जाकर वह छत बनी थी। उस टूटी छत के नीचे उसने उसके परिवार वालों ने कितने कळ उठाए थे ! उन कष्टों को वह कभी नहीं भूल सकता।
मकान, मकानों की छत किस लिए होती है ? सर्दी, धूप, वर्षा, गर्मी, हवा से इन्सान की रश करने के लिए मकान में रहने का यही अर्थ तो होता है।
परंतु जिस मकान का छत ही टूटा हो उसमें रहना क़्या मानी ?


वर्षा के दिनों में वर्षा का पानी घर में आकर पूरे घर को जलथल करता इस तरह बहता है जैसे सड़क पर पानी बह रहा हो।
धूप सात बजे से ही घर में घुसकर शरीर में सुईयां सी चुभोने लगती है। दिन हो या रात सर्दी शरीर में कंपकंपी पैदा करती रहती है।


खुली सड़क पर रहना कभी कभी अच्छा लगता है। टूटी छत के मकान में रहने से। छत टूट गई थी। छत के टूटने पर उनका कोई बस नहीं था। मकान काफी पुराना हो चुका था। दादाजी कहते थे मेरे दादा ने मकान बनाया है। घर की छत और जिन लकड़ियों पर छत टिकी थी वह सैकड़ों, गर्मी, सर्दी, बारिशें देख चुकी थी। आंत उसकी सहनशीलता जवाब दे गई। एक दिन जब घर में कोई नहीं था सब किसी ना किसी काम से घर के बाहर गए थे। छत ढह गई। कोई जानी नुकसान तो नहीं हुआ परंतु उनका सारा संसार मिट्टी तले दब गया। बड़ी मुश्किल और मेहनत से मैं, पिताजी और सब बहन भाइयों ने उस संसार की एक एक चीज को मिट्टी से बाहर निकाल था।
सारी मिट्टी निकालकर आंगन में ढेर की थी। सड़ गल गई लकड़ियों को एक ओर जम किया था और घर की साफ़  सफाई करके मकान के फर्श को रहने योग्य बनाया था।
उसके बाद दो वर्ष तक उस मकान की छत नहीं बन सकी।


छत की मिट्टी वर्षा में बहती गई, गरमी, सर्दी से दबकर जमीन के समतल हो गई, सारी लकड़ियां ईंधन के तौर पर इस्तेमाल हो गई और घर में उनके परिवार के साथ गरमी, सर्दी, वर्षा का बसेरा हो गया। पिताजी की इतनी आमदनी नहीं थी कि छत बनाई जा सके। जो कुछ कमाते तो मुश्किल से उससे उनका घर चलता था और खर्च पूरा होता था।
यह जानकर ही घर के हर सदस्य ने उस टूटी छत के मकान से समझौता किया था। और चार दीवारी में रहकर भी बेघर होने की हर पीड़ा को चुपचाप सह रहे थे।
उसके बाद घर की छत उस समय बनी जब पिताजी ने जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया।


आज सोचता है तो अनुभव होता है जैसे भागवान ने उस टूटी छत के नीचे इतने संयम से रहने, कोई शिकायत ना करने सब्र करने का इनाम उसे उस घर के रूप में दिया है। यदि वह शहर के किसी भी व्यक्ति को यह बता दे कि वह शहर के किस बाग में और किस इमारत में रहता है तो वह उस के भाग्य से ईर्ष्या करने लगे।
उस क्षेत्र में, उस क्षेत्र में बनी इमारतों में रहने का लोग सिर्फ सपना देखा करते है।


परंतु वह वहां पर वास्तविक जीवन जी रहा था। एक ऐसी छत के नीचे जिस का नाम सुनकर ही हर कोई उसकी हैसियत और भाग्य का अनुमान लगा लेता है।
वह छत जो उसे उसके परिवार वालों को गर्मी, सर्दी, वर्षा से बचाती है। बचाती क़्या है, ऋतुएं उसके मकान ने प्रवेश करने का सपना भी नहीं देख सकती है।
उसके घर की अपनी ऋतुएं हैं। जिन पर उसका उसके घर वालों का बस है। वे मौसम उनके बस में है। मौसमों का उस घर पर कोई बस नहीं है।
बाहर गर्मी पड़ रही है। ए.सी. चालू कर दिया। भीतर काश्मीर का मौसम छा गया। बाहर सर्दी है, परंतु पूरा मकान अपने भीतर मीठी मीठी तपिश समाए हुए है।
हवाएं अपनी बस में है।
हर चीज पर अपना राज है।


दरवाजे का ताला आटोमैटिक है। घर के सदस्यों के स्पर्श के बिना नहीं खुल सकता। फर्श पर पुरानी कालीन बिछा है। ड्राईंग रूम एक मिनी थिएटर सा है। हां डिस्कवरी चैनल 7 फीट के पर्दे पर दिखाई देता है। पूरी बिल्डिंग में उसकी हैसियत के लोग सहते है। बल्कि कुछ तो उससे बढ़कर हैसियत के मालिक है।


गुप्ताजी का एक़्सपोर्ट बिजनेस है। मित्तल जी एक छोटे से उद्योग  समूह के स्वामी है। शाह शहर का नामी फाइनान्सर है। निकम एक बडा सरकारी अफसर है। हर कोई एक दूसरे से बढ़कर है। यह अलग बात है कि वे एक दूसरे से कितने परिचित है। या एक दूसरे के लिए कितने अजनबी हैं . यह तो वे भी नहीं बता सकते हैं।


जब एक दूसरे के घर किसी मौके, बे मौके पार्टी हो तो वे एक दूसरे से मिलते है और एक दूसरे का घर देखकर जानते है कि उस के ङर क़्या नई चीज आई है जो अब तक उनके घर में नहीं है और फिर वह चीज सबसे पहले लेने की होड़ लग जाती है और कुछ दिनों के बाद हर घर के लिए वह वस्तु एक सामान्य सी चीज बन जाती है।
सीढ़ियां उतरते हुए या सीढ़ियां चढ़ते कोई मिल जाता है तो वे एक दूसरे से औपचारिक बातें भी कर लेते हैं।


उनकी खुशियां तो सामूहिक होती है। एक दूसरे की खुशियों में सभी शामिल होते है। परंतु उनके दु:ख उनके अपने होते है। गम में कोई भी किसी को सांत्वना देने नहीं जाता।
अपने दु:ख उन्हें स्वयं को ही भोगने पड़ते है। तभी तो जब शाह पर दिल का दौरा पड़ा और वह दस दिनों तक अस्पताल में रह आया भी तो किसी को पता नहीं चल। ना तो उसके घर वालों ने किसी को बताया कि शाह कहा है, ना इतने दिनों तक उन्हें शाह की कभी अनुभव हुई।


मालूम पड़ भी जाता तो क़्या कर लेते ? अस्पताल जाकर शाह की खैरियत पूछ आते और जाने में जो बहुमूल्य समय भंग होता उसके लिए शाह को कोसते।
इस बात को हर कोई समझना था कि वह किसी का समय कीमती था इसलिए वे एक दूसरे को अपनी ऐसी खबर, या बात का पता चलने ही नहीं देते थी जिनसे दूसरों का बहुमूल्य समय भंग हो। मित्तल पर हमला करके गुंडों ने उसका सूटकेस छीन लिया। जिसमें दस लख रुपये थे। यह खबर भी उन्हें दो दिन बाद मालूम पड़ी जब उन्होंने अखबारों में पढ़ी।
दो दिन तक मित्तल ने भी किसी को यह बताने की जरूरत अनुभव नहीं की।


गुप्ता जी की कार का एक्सीडेंट हो गया उन्हें काफी चोटें आई दस दिनों तक वे अस्पताल में रहे उन्हें पांच दिनों बाद गुप्ता के साथ हुई दुर्घटना का पता चल।
दस मंजिल ऊंची इमारत थी हर मंजिल पर एक परिवार का कब्जा था। कहीं कहीं दो तीन परिवार आबाद थे। परंतु बरसों बाद पता चल था कि पांचवीं मंजिल पर कोई नया आदमी रहने आया है। पांचवीं मंजिल वाले सिन्हा कब छोड़ गया पता ही नहीं चला।


हर किसी का जीवन उसका मकान, उसका परिवार और ज्यादा से ज्यादा अपने फ्लोर तक सीमित था उसके बाद अपना व्यवसाय। हर किसी की दुनिया बस इन्हीं  दो नुक़्तों तक सीमित थी। बाहर की दुनिया से उन्हें कुछ लेना देना नहीं था।


अचानक वह घटना हो गई।


शाह के घर डाका पडा। लुटेरे शाह का बहुत कुछ लूट ले गए। उसकी पत्नी और बेटी की हत्या कर दी। शाह को मार मार के अधमरा कर दिया। जिससे वह कोमा में चला गया। दो नौकरो को मर डाल। वाचमेन को घायल कर दिया। लिफ्टमैन के सिर को ऐसी चोट लगी कि वह पागल हो गया।
इतना सब हो गया परंतु फिर भी किसी को पता नहीं चल सका।


सवेरे जब वाचमैन को होश आया तो उसने शोर मचाया कि रात कुछ लुटेरे आए थे उन्होंने उसे मरकर अचेत कर दिया था। लिफ्टमेन लिफ्ट में बेहोश मिला और शाह का घर खुल मिला।
भीतर गए तो भीतर घायल शाह और लाशें उनकी राह देख रही थी।


जांच पड़ताल के लिए पुलिस की एक पूरी बटालियन आई और उसने पूरी बिल्डिंग को अपने घेरे में ले लिया। पहले हर घर प्रमुख को बुला बुलाकर पूछताछ की जाने लगी।
घटना जब घट रही थी आप क़्या कर रहे थे ? घटना का आपको पता कब चल ? आपके पड़ोस में आपकी बिल्डिंग में इतनी बड़ी घटना हो गई और आपको पता तक नहीं चल सका ? आपके शाह से कैसे संबंध थे ? क़्या किसी ने शाह के घर की मुखबिरी की है ? बिना मुखबिरी के लुटेरे घर में घुसकर लूटने चोरी करने का साहस नहीं कर सकते। घर प्रमुख से पूछताछ से भी पुलिस की तसल्ली नहीं हुई तो हर घर में घुसकर घर के हर सदस्य, छोटे बड़े बच्चे, बूढ़े से पूछताछ करने लगी। उसके बाद रोजाना एक दो को पुलिस चौकी बुलाकर उन्हें घंटों पुलिस चौकी में बिठाया  जाता और उनसे अजीब अजीब सवाल किए जाते और पूछ ताछ की जाती।


कभी अजीब से चोर बदमाशों के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया जाता और पूछा जाता -
क़्या इन्हें पहचानते हो ? इन्हें कभी बिल्डिंग के आसपास देखा था ? तो कभी उन बदमाशों को लेकर पुलिस स्वयं घर पहुंच जाती और घर की स्त्रियों, बच्चों को उन बदमाशों को बताकर उलटे सीधे प्रश्न करने लगती।


जब वे रात ऑफिस से घर आते थे तो भयभीत स्त्रियां और बच्चे उन्हें पुलिस के आगमन की भयानक कहानियां सुनाती।
एक दिन पुलिस की एक पुरी टुकड़ी दनदनाती हुई बिल्डिंग में घुस आई और हर घर की तलाशी लेने लगी।
कुछ लोगों ने आपत्ति की तो साफ़  कह दिया “हमें शक है कि इस वारदात में इसी इमारत में रहने वाले किसी आदमी का हाथ है और चोरी गया सामान इसी इमारत में है इसलिए हम पूरी इमारत के घरों की तलाशी का वारंट ले आए हैं ?”


पुलिस के पास सर्च वारंट था हर कोई विवश था। पुलिस सर्च के नाम पर उनके कीमती समान की तोड़फोड़  कर रही थी और हर चीज के बारे में तरह तरह के सवालात कर रही थी।
तलाशी के बाद भी पूरी तरह पुलिस का मन नहीं भरा। हर मंजिल के एक दो घर प्रमुख को बयान लेने के मन पर पुलिस स्टेशन ले गई और बिना वजह चार पांच घंटे बिताने के बाद छोड़ा।
क़्या क़्या चोरी गया अब तक यह तो पोलिस भी निश्चित नहीं कर सकी थी।
इस बारे में जानकारी देने वाला शाह कोमा में था। उसकी पत्नी, बेटी और नौकर मर चुके थे। दो बेटे जो अलग रहते थे इस बारे में कुछ बता नहीं पाए थे।
इमारत के बाहर पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया। चार सिपाही हमेशा ड्यूटी पर रहते। रात को कभी भी बेल बजाते और दरवाजा खोलने पर केवल इतना पूछते -
“सब ठीक है ना ?”
“हां ठीक है” उत्तर सुनकर आतंकित करके, रात की मीठी नींद खराब करके वे आगे बढ़ जाते। कोई कुछ नहीं बोल पाता। विवशता से सबकुछ सह लेते।


पुलिस अपने कर्तव्य का पालन जो कर रही थी।
हर कोई इस नई मुसीबत से परेशान था।
हर कोई इज्जतदार आदमी था।
यह तह किया गया कि एक डेलीगेशन के रूप में जाकर पुलिस कमिश्नर से बात करें कि वे पुलिस का पहरा वहां से हटा ले और पुलिस को निर्देश दें कि इस प्रकार उन्हें वक़्त बे वक़्त तंग न करें थाने न बुलाएं न घर आएं।
सभी इसके लिए तैयार हो गए।


क़्योंकि इन घटनाओं की वजह से हर कोई परेशान था। कमिश्नर से मिलना इतना आसान नहीं था। परंतु मित्तल ने किसी तरह प्रबंध कर ही लिया। उन्होंने अपनी समस्या कमिश्नर के सामने रखी। वह चुपचाप सबकी बातें सुनता रहा जब सब अपनी सुना चुके और उसकी बारी आई तो भड़क उठा।
आप शहर के इज्जतदार, शरीफ धनी लोग मुझसे कह रहे है कि मैं पुलिस के कामों में दखल दूं ! आप मामले की संगीनी को समझते है ? पूरे चार कत्ल हुए हैं चार ! और लुटेरे क़्या क़्या चुरा कर ले गए है अभी तक पता नहीं चल सका चारों ओर से पुलिस की थू थू हो रही है। हर ऐरा गैरा आकर पूछता है कि शाह डकैती के संबंध में पुलिस ने क़्या किया ? हर किसी को जवाब देना पड़ता है अखबारों ने तो मामला इतना उछाल है कि प्रधानमंत्री तक पूछ रहे है कि मामला कहा तक पहुंचा। ऐसे में पुलिस अपनी तौर पर जो कर रही है और आप कह रहे है मैं पुलिस को अपना काम करने से रोकूं  ? आप देश के सभ्य नागरिक है पुलिस की सहायता करना आपका कर्तव्य है। सोचिए ! क़्या यह दुरूस्त है ? मेरा आपको परामर्श है आप जाइए पुलिस की सहायता कीजिए। पुलिस को अपनी तौरे पर काम करने दीजिए।
सब अपना सा मुंह लेकर आ गए।


शाम को फिर बिल्डिंग में पुलिस आई। इन्स्पेक्टर  का पारा सातवें आसमान पर था।
“हमारी शिकायत लेकर कमिश्नर साहब के पास गए थे। क़्या किया है हमने जो हमारी शिकायत की ? तुम लोगों को शरीफ समझकर हम शराफत से पेश आ रहे हैं। वरना अगर पुलिस का असली रूप बताया तो नानी याद आ जाएगी। इस मामले में सब को अंदर कर सकता हूं। कानून के हाथ बहुत लंबे है।” वे इंस्पेक्टर की बातों का क़्या उत्तर दे सकते थे। चुपचाप सुनते रहे।
पुलिस की अपनी तौर पर जांच आरंभ हुई। इस बार वे पूछताछ इस तरह कर रहे थे जैसे आदी मुजरिमों के साथ करते हैं। खून का घूंट फिर विवशता से वह उनका दुर्व्यवहार सहन करते रहे। जहां उनसे कोई गलती होती पुलिस वाले  भद्दी  गालियां देने लगते।


रात के बारह बज रहे थे। पुलिस चली गई थी परंतु फिर भी उसकी आंखों में नींद नहीं थी। उसे अनुमान था हर घर कोई न कोई आदमी उसकी तरह जाग रहा होगा। सबकी स्थिति उसकी जैसी होगी। बार बार उसकी नजर छत की ओर उठा जाती थी। क़्या इस छत के नीचे वह सुरक्षित है ? शाह का परिवार कहा सुरक्षित रह सका ? फिर आंखों के सामने अपना टूटे छत का मकान घूम जाता था। उस छत के नीचे सर्दी में ठिठुरकर, वर्षा में भीगकर, हवाओं के थपेड़े सहकर भी वे अपने घर वालों के साथ मीठी नींद सो जाते थे।


परंतु इस छत के नीचे …………

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एम मुबीन
303 क्लासिक प्लाजा़, तीन बत्ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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रचनाकार: एम. मुबीन की कहानी - टूटे छत वाला मकान
एम. मुबीन की कहानी - टूटे छत वाला मकान
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