प्राची - सितम्बर 2015 - कविताएँ, ग़ज़लें और दोहे

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काव्य जगत   राकेश भ्रमर तुमने मुझे छुआ कि बदन जगमगा गया. कोई जला चराग, सहन जगमगा गया. ये फूल कौन-सा तेरे माथे पे खिल गया, गुजरे इधर से त...

काव्य जगत

 

राकेश भ्रमर

तुमने मुझे छुआ कि बदन जगमगा गया.

कोई जला चराग, सहन जगमगा गया.

ये फूल कौन-सा तेरे माथे पे खिल गया,

गुजरे इधर से तुम जो, चमन महमहा गया.

इस दर पे तेरा नाम हवाओं ने लिखा था,

खुशबू के बोझ से ये बदन थरथरा गया.

इतनी थी आरजू कि मेरे दर पे वो रुकें,

आए जो मुक़ाबिल तो कदम डगमगा गया.

चलते हो धूप में कभी साए में बैठ लो,

देखो तो किस तरह ये बदन तमतमा गया.

हमने तो उस परी से कोई बात भी न की,

किसके ये बोल थे कि बदन गुनगुना गया.

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शहर और सड़क

राजेश माहेश्वरी

शहर की सड़क पर

उड़ते हुए धूल के गुबार ने

अट्टहास करते हुए मुझसे कहा-

मैं हूं तुम्हारी ही भूल का परिणाम

पहले मैं दबी रहती थी

तुम्हारे पैरों के नीचे सड़कों पर

पर आज मुस्कुरा रही हूं

तुम्हारे माथे पर बैठकर

पहले तुम चला करते थे

निश्चिंतता के भाव से

शहर की प्यारी-प्यारी

सुन्दर व स्वच्छ सड़कों पर

पर आज तुम चल रहे हो

गड्ढों में सड़कों को ढूंढ़ते हुए

कदम-दर-कदम संभलकर

तुमने भूतकाल में

किया है मेरा बहुत तिरस्कार

मुझ पर किए हैं अनगिनत अत्याचार

अब मैं उन सबका बदला लूंगी

और तुम्हारी सांसों के साथ

तुम्हारे फेफड़ों में जाकर बैठूंगी

तुम्हें उपहार में दूंगी

टी.बी., दमा और श्वास रोग

तुम सारा जीवन रहोगे परेशान

और खोजते रहोगे

अपने शहर की पुरानी

स्वच्छ और सुन्दर सड़कों को!

सम्पर्कः 106, नयागांव, रामपुर, जबलपुर (म.प्र.)

......

 

दो गजलें : कुमार नयन

1

मैं पैदा हुआ कर्जदारों में था.

बड़ा हो के बेरोज़गारों में था.

मिरी मां ने दम तोड़ा जब भूख से,

मैं राशन की लम्बी कतारों में था.

मिरी बदनसीबी को मत कोसना,

मुकद्दर मिरा बेकरारों में था.

तू दरिया था जब तो मिला क्यों नहीं,

समन्दर तो अपने किनारों में था.

न पूछो मैं जिन्दा रहा किस तरह,

किसी अजनबी के सहारों में था.

मैं खुशबू कहां से लुटा पाऊंगा,

खुदा की कसम मैं तो खारों में था.

 

2

रगों में चीखते नारे लहू सा चलते हैं.

मिरे जिगर में हजारों जुलूस पलते हैं.

सदी की आग का अन्दाज क्या लगाओगे,

कि सिर्फ जिस्म नहीं साये भी पिघलते हैं.

बहार भी न गुलों को खिला सके शायद,

यहां दरख्त फजां में धुआं उगलते हैं.

उठा है दर्द तो होने दो जिन्दगी रौशन,

चिरागे जख्म कहां रोज-रोज जलते हैं.

कोई नहीं है नया कुछ भी सोचने वाला,

यहां ढले हुए सांचे में लोग ढलते हैं.

पता न था कि जमाने का रंग यूं होगा,

हमारे खून के रिश्ते भी अब बदलते हैं.

लगा के दांव सियासत ठठा के हंसती है,

घरों से खौफजदा लोग जब निकलते हैं.

 

सम्पर्कः खलासी मुहल्ला

बक्सर-802101 (बिहार)

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कविता

पन्ने पलट रही हूं

पूजाश्री

धरती की शुच्छाओं ने,

युगों तक पुकारा मुझे.

स्तत् आश्वासन देकर के,

आकाश से उतारा मुझे.

मेरी तपिश से जगमगाकर,

सूर्य ने आकार लिया.

मेरे अंतर मन ने सब,

नक्षत्रों का विस्तार दिया.

मैं आदि-अनंता, अरुणाई,

ब्रह्माण्ड की तरुणाई.

स्नेह देने की इच्छा ही,

मुझे धरा पर ले आई.

मैंने आनंदित होकर के,

मन से आशीर्वाद दिया

अंतर की सुधा पिला कर के,

तनमन सब, कुछ वार दिया.

सबकी इच्छा पर बनी-ठनी,

मां, बेटी, बहन, पत्नी बनी.

किन्तु काल की इच्छाएं क्यों,

ढूंढ़े मुझ में नागमणि?

इसलिए इस धरती पर मुझे,

युगों तक सताया गया.

नीलम घरों में सजा कर के,

दांव पे लगाया गया.

मैं! इस संसार में केवल,

मातृत्व से हूं हारी.

मैं क्षमाशील होकर भी,

कहलाई अबला नारी.

किन्तु रहो अब सावधान!

अब, करवट बदल रही हूं

युगों की काली कुटिलता के,

सब पन्ने पलट रही हूं

संपर्कः बंगला नं. 1, इन्द्रलोक, स्वामी समर्थ नगर, लोखण्डवाला, अंधेरी पश्चिम, मुंबई-400053

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आत्मपथ की पिपासा

यशोधरा यादव ‘यशो’

आज मन पूछता है, समय की परिभाषा,

अनवरत चलना है, इसकी अभिलाषा.

खोजकर देखा था, पकड़ नहीं पाई,

जागृत हो उठी थी, कोई नई आशा.

कदम तो बढ़ाया था, चलने की खातिर,

कदमों की ठिठकन देती है निराशा.

समय की मार तो झेलता है मानव,

फिर भी न शब्द हैं, न कोई भाषा.

समय ऐसा मानव जो, पीछे से गंजा है,

आगे से पकड़ो तो, देगा दिलासा.

सुख-दुख की औषधि, समय में निहित है,

चिन्मय निरन्तर है, हर पल नया सा

‘यशो’ कर्मपथ का, बने सत्य सहचर,

जगेगी अगर आत्मपथ की पिपासा.

 

संपर्कः डी. 963/21 कालिंदी विहार

आवास विकास कॉलोनी, आगरा (उ.प्र.)

 

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दोहे

डॉ. अशोक गुलशन

कहना है मुश्किल बहुत, अब चूल्हे का हाल.

चावल भी मंहगा हुआ, सस्ती रही न दाल.

सूखे-सूखे गाल हैं, उलझे-उलझे केश.

महंगाई की मार से, जनता है बेहाल.

मंजिल तक जाना लगे, वैसे ही दुश्वार.

घिसट-घिसट जैसे चले, कछुआ अपनी चाल.

तुमको जब भाता नहीं, मेरा कुछ शृंगार.

ऐसे में फिर क्या कहें, तुमसे दिल का हाल.

पीला अब चेहरा हुआ, लाल हो गयी आंख.

गुलशन मुश्किल है बहुत, कटना अबकी साल.

 

संपर्कः उत्तरी कानूनगोपुरा,

बहराइच-271801 (उ.प्र.)

 

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दोहे

सनातन कुमार वाजपेयी ‘सनातन’

आजादी के गांव में, बबार्दी की रेल.

खेती भ्रष्टाचार की, होती रेलमपेल.

रोज घुटाले हो रहे, होती है नित जांच.

पर इसके तन पर कभी, तनिक न आती आंच.

संसद बौनी हो गई, केवल चीख-पुकार.

गांव तमाशा देखता, मौसम है बीमार.

अच्छे दिन की चाह में, नयन बिछे सब ओर.

किन्तु निशा घनघोर है, दूर बहुत है भोर.

सभी अंग बीमार हैं, किन्तु चिकित्सक मौन.

कैसे हो उपचार अब, इसे सुझाये कौन.

शान्ति शान्ति चिल्ला रहे, बनते रोज शिकार.

सभी ओर घुसपैठिये, करते बम की मार.

बस, आटो, रेलें सभी, नहीं निरापद यान.

सभी जगह ही नारियां, झेल रहीं अपमान.

घोर अराजकता बनी, नियम धरम अहसान.

छीना-झपटी, चोरियां, बनीं गांव की आन.

पूर्ण व्यवस्था पंगु है, धरे हाथ पर हाथ.

भोले भाले लोग अब, पीट रहे हैं माथ.

चोटी पर बैठे हुए, आज बने सिरमौर.

घर भरने में व्यस्त हैं, छीन सभी के कौर.

कैसा परिवर्तन हुआ, कैसा है यह सोच.

बाह्य रूप मोहक सुघर, घर अंदर से पोच.

किससे निज विपदा कहें, नहीं किसी से आस.

बना चरोखर गांव अब, जी भर चरते घास.

 

सम्पर्कः पुराना कछपुरा स्कूल, गढ़ा,

जबलपुर (म. प्र.)-482002

 

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गजल

अरविन्द अवस्थी

अंधेरे में रहने की आदत बुरी है.

दिखावा भरी ये इबादत बुरी है.

कि ले नाम मजहब का जो जान देते,

असल में तो उनकी शहादत बुरी है.

नहीं साथ जाता है धन और वैभव,

तो इसके लिए फिर अदावत बुरी है.

अगर न्याय मंदिर में चढ़ता चढ़ावा,

तो समझो कि ऐसी अदालत बुरी है.

पता ही नहीं ऊंट कब लेगा करवट,

जख़म खाके उनकी तो हालत बुरी है.

मिला ही नहीं प्रेम से द्वार पर जो,

तो उसके यहां जश्ने-दावत बुरी है.

भरी है अगर गंदगी मन के अंदर,

तो बाहर से तन की मलासत बुरी है.

अलग कर रही आदमी आदमी को,

तरक्की नहीं तो विरासत बुरी है.

नहीं खींच लेती है खुशबू अगर तो,

खिले फूल की फिर नफासत बुरी है.

संपर्कः पाण्डे सदन, मीरजापुर (उ.प्र.

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दो कविताएं

अभिनव अरुण

एक

हमें चाहिए सौ-सौ हाथों वाले

हजार आंख वाले

सशक्त सतर्क योद्धा

लाखों-लाख

क्योंकि करोड़ों-करोड़ हो गए हैं

सफेदपोश

परजीवी

जो हमारी ही देह से लिपट

हमारा ही खून चूस रहे हैं.

 

दो

हर सुबह हाथ में सत्य की हथौड़ी ले

निकल पड़ेगी हमारी फौज

काटने उन चट्टानों को

जो सदियों से

हमारी राह रोके खड़ी हैं

यही चट्टानें

नहीं आने देतीं निरपेक्ष हवाओं को

हमारे खेतों तक

रोकती हैं ऊर्जावान रोशनी

और अमृतमय बारिश भी

और सदियों से हमारी नस्लें

इनकी गुलामी को ही मानती

आई हैं अपनी नियति

अब हमें बोने होंगे इरादे

उगाने होंगे दशरथ मांझी.

 

संपर्कः बी-12, शीतल कुंज, लेन-10,

निराला नगर, महमूरगंज,

वाराणसी-221010 (उ.प्र.)

 

...

 

दोहे

संजीव कुमार अग्रवाल

अपनी किस्मत को कहे, अक्सर वही खराब

जिसको जीने की कला, आती नहीं जनाब!

बंट जाती हैं बेटियां, शादी करके हाय

तन जाता ससुराल पर, मन मैके रह जाय!

दिन भर जल कर सूर्य जब, घर जाता है शाम

दे जाता है दीप को, अपना बाकी काम!

छुप कर बैठे हो कहां, ऐ मेरे हमराज

देखो कब से दे रहा, मैं तुमको आवाज!

अंधियारा जब आ गया, मन के बहुत समीप

मैंने तेरी याद का, जला दिया इक दीप!

सुख के पढ़ना चाहते, अगर पाठ दो-चार

तो दुख के स्कूल में, नाम लिखा ले यार!

चोरी करता हो भले, घर में पहरेदार

मिलती है लेकिन सजा, नौकर को हर बार!

आए जब भी क्रोध तो, कर लेना इक काम

केवल इतना सोचना, क्या होगा परिणाम!

दोष रहा मुझमें कहीं, खाई दिल पे चोट

वरना तेरे प्यार में, हो नहिं सकता खोट!

जीवन भी आखिर करे, कैसे उसको तंग

दुख में भी दिखता जिसे, किसी खुशी का रंग.

संपर्कः गर्ग स्टोर्स, पुस्तकालय रोड,

बक्सर-802101(बिहार)

 

....

 

क्षणिकाएं

अविनाश ब्यौहार

 

1. चुगली खाना

भैया जी

छोटी सी

छोटी बात भी

पचा नहीं

पाते हैं...!

क्योंकि

वे चुगली

खाते हैं...!!

 

2. हेरा-फेरी

यदि लेखाकार

सरकारी खजाने में

हेराफेरी करे तो

उस पर लानत है...!

क्योंकि यही तो

अमानत में

खयानत है...!!

 

3. ट्यूशन

वर्तमान

शिक्षा प्रणाली

छात्रों के

भविष्य को

छल रही है...!

स्कूल जाना

तो औपचारिकता है,

दरअसल यह

ट्यूशन की

बदौलत चल

रही है...!!

संपर्कः 86,रायल एस्टेट कालोनी,

माढ़ोताल, कटंगी रोड, जबलपुर-482002

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: प्राची - सितम्बर 2015 - कविताएँ, ग़ज़लें और दोहे
प्राची - सितम्बर 2015 - कविताएँ, ग़ज़लें और दोहे
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