सुदर्शन कुमार सोनी 'जेबी कफ़न' है सी सी कर इसे 'जेसीबी कफ़न' कृपया न समझे ? कि कस्बे कस्बे गांव गांव इस मशीन के कारण हता...
सुदर्शन कुमार सोनी
'जेबी कफ़न' है सी सी कर इसे 'जेसीबी कफ़न' कृपया न समझे ? कि कस्बे कस्बे गांव गांव इस मशीन के कारण हताश परेशान मजदूरों ने कफ़न में लपेटकर इसे जलाकर खाक कर दिया । मार्क्स के समय यदि इस मशीन का आविष्कार हो गया होता तो इसका हर जगह यही हश्र होता ! नहीं मैं तो एक कहानी सुना रहा हूं , कफ़न बेचकर रातोंरात अरबपति बनने वाले एक गंगू नाम के व्यापारी की। यह एक आम व्यापारी था , छोटे मोटे काम करके अपना पेट पालता था और मन ही मन सालता रहता था कि उसकी स्थिति आखिर बदलती क्यों नहीं है ? वह क्यों नहीं कार मेन्टेन कर सकता ? एक अच्छा बंगला उसका न्यारा क्यों नहीं हो सकता जिसमें उसके आने पर उसकी पत्नि या माशूका उसका पलक पावड़े बिछाकर इंतजार करती मिले। वह हवाई जहाज में विदेश की सैर करे आदि और इत्यादि ! लेकिन उसके दिन नहीं बदलते थे अच्छे दिन आने की उम्मीद तो वह कई सालों से कर रहा था अभी और ज्यादा ख्वाहिश शायद हो गयी थी।
यह गंगू नाम का व्यापारी किसी चिंतक से कम नहीं था , दिन भर दुकान में बैठे बैठे खाली समय में किताबें , अखबार पढ़ता रहता था। आजकल अखबारों में निगेटिव के साथ ही पाजीटिव समाचार भी आने लगे है ! और इनमें ज्यादातर ऐसे रहते कि कैसे किसी गरीब अभावग्रस्त व्यक्ति ने अपने एक काम को थोड़ी सी पूंजी से शुरू कर करोड़ों अरबों की संपत्ति बना ली । नेम फेम के साथ दौलत भी मिली , कोई कोई ऐप बना कर अरबपति बना था , तो कोई लाटरी जीत कर , तो कोई कोई छोटे मोटे उत्पाद की बदौलत ही दौलत व शौहरत दोनों हासिल कर चुका था। खाकपति से अरबपति बनने की कहानियां पढ़पढ़ कर उसके मन में भी एक ऐसे ही किसी आयडिया के बलबूते अपनी चिरस्थायी स्टेटस को बदलने की इच्छा बलवती होने लगी। लेकिन कुछ क्रेक हो नहीं रहा था । सोते जागते टीवी देखते हमेशा वह यही सोचता कि किसी दिन उसके भी दिन बदलेंगे ? और शायद वह अभी तक अड़ी घड़ी जल्दी ही आने वाली थी ।
मौका तो किसी को यदि कफ़न ओढा़या जा रहा हो तो भी मिल सकता है नहीं तो चिता में रोटी सेंकने की कहावत कहां से प्रचलन में आयी होती। यही उसके साथ हुआ था उसके पड़ोस में रहने वाले लालाराम सेठ ने आत्महत्या कर ली थी । बेशुमार दौलत थी उसके पास , कहते है कि रोज रात को नोट गिनते ही उसे सुबह के चार बज जाते थे ! शायद इसी तनाव व अनिद्रा के कारण उसने आत्महत्या करी होगी। गंगू ने इस सेठ से कई बार उधार लिया था । वैसे अब वह खुश था कि लालाराम गयाराम हो गया है तो उससे तकाजा करने कोई नहीं आयेगा , लेकिन दूसरे ही पल वह सोचता कि नहीं किसी का पैसा खाना हराम है ! यह सोचते सोचते वह इस सेठ के द्वारे आ पहुंचा आखिर वह इस सूदखोर का देनदार तो था ही। सेठानी पछाड़े ले लेकर रो रही थी क्योंकि सेठ को कफ़न ओढ़ाया जा रहा था और गंगू को इसी समय एक आयडिया क्लिक कर गया कि इतनी बेशुमार दौलत का मालिक साथ में कुछ भी नहीं ले जा रहा है ! वैसे किसी की शव यात्रा में शामिल होने पर हम हिंदुस्तानियों को तरह तरह के विचार जरूर आते है सबसे पहले तो गीता याद आती है कि तेरा क्या था जो तू लाया था , क्या ले जा रहा है जो लिया यही से लिया जो दिया यही दिया आदि । कारण केवल एक ही है कि कफ़न में कोई जेब नहीं रहता है ! नहीं तो कहो वह सब साथ में ले जाता कि स्वर्ग में भी ऐशो आराम में कोई कमी न हो ? और शायद इसी कारण मिस्त्र में राजा महाराजाओं की ममी के साथ उनके दास दासियां धन दौलत सोना जवाहरात भी दफना दिये जाते थे।
गंगू ने सेठ की शव यात्रा चुपके से बीच से ही छोड़ दी और सीधे घर आकर अपने इस आयडिया को धांसू बनाने में लग गया हमारे यहां ऐसे ही मौका परस्त लोग होते है तभी तो चिता में रोटी सेंकने की कहावत बनी होगी ! उसके झर झर आंसू भी बह रहे थे। उसने चार दिन बाद ही अपनी किराने की दुकान बंद की और नये मिले फन से उत्साहित होकर एक कफ़न बेचने की दुकान शुरू कर दी। वैसे भी रामचन्द्र सिया से कह ही गये थे कि 'ऐसा कलजुग आयेगा कौआ मोती खायेगा और हंस दाना चुगेगा'। इस शहर में पाप इतने बढ़ गये थे कि काफी लोग अल्लाह को रोज प्यारे हो रहे थे।
कफ़न की दुकान चल निकली इतनी कि अब उसे किताब व अखबार पढ़ने का भी समय नहीं रहता था । उसके कफ़न में क्या खास बात थी ? कफ़न तो बस एक सफेद कपड़े का टुकडा़ होता है और कुछ खास नहीं रहता इसमें । उसने 'जेबी कफ़न' के नाम से अपने उत्पाद का पेटेंट करा लिया था । उसके पास ऐसे ऐसे डिजाईन के कफ़न थे , कि मरने वाला खुश हो जाये , जेब देखकर , दो जेब वाला , चार जेब वाला , खुफिया जेब वाला , आगे जेब वाला , पीछे जेब वाला । जिप के जेब वाला , बटन के जेब वाला , लम्बे जेब वाला , छोटे जेब वाला साथ में बटुआ लटका हुआ वाला । छोटे सी कपड़े की सेल्फ वाला , उसकी दुकान में दिन भर भीड़ लगी रहती तिल रखने को भी जगह नहीं रहती ! एक कफ़न तो ऐसा था कि उसमें हर स्थान पर जेब ही जेब थे । अब वह लाखों कमा रहा था उसके जेबी कफ़न एक्सपोर्ट भी होना शुरू हो गये थे। वह कुछ ही दिनो में शहर का सबसे बडा़ 'कफ़न एक्सपोर्टर' बन गया था।
उसने अब जेबी के साथ ही 'डिजायनर कफ़न' का भी काम शुरू कर दिया था । वह पांच सालों में ही शहर का एक अरब पति व्यापारी हो गया था। लोग उसके 'जेबी कफ़न' को बहुत पसंद कर रहे थे ।
लेकिन कभी कभी उसके मन में एक विचार आता था कि उसे अपने लिये जेबी कफ़न रखना चाहिये कि नहीं । वह उहापोह में था , निर्णय नहीं कर पा रहा था कि पूरी दुनिया में जेबी कफ़न की सप्लाई करने वाला खुद जेबी कफ़न अपने लिये रखे कि नहीं।
लेकिन जब भी वह ऐसा सोचता , तो उसे गीता की वो लाईने याद आ जाती कि तू क्यों दुखी होता है , क्या लाया था , क्या ले जायेगा , जो लिया यही से लिया जो दिया यहीं दिया । आत्मा अजर अमर है । और वह सोचता कि भले ही वह सबके लिये जेबी कफ़न का इंतजाम करता है लेकिन खुद बिना जेब वाला ही ओढ़ेगा।
सुदर्शन कुमार सोनी
भोपाल
COMMENTS