आयोजन आज देश आजाद हो गया लेकिन लोग गुलाम हो गए। भोज शोध संस्थान धार ने किया पत्रिका यशधारा का विमोचन कला और साहित्य की प्राचीन धारा नगरी ...
आयोजन
आज देश आजाद हो गया लेकिन लोग गुलाम हो गए।
भोज शोध संस्थान धार ने किया पत्रिका यशधारा का विमोचन
कला और साहित्य की प्राचीन धारा नगरी में सारस्वत अतिथिगणों ने भोज शोध संस्थान की पत्रिका यशधारा के नवें वार्षिक अंक का विमोचन कर भाषायी सरोकार को पुनर्स्थापित किया। कवि और आलोचक तथा शब्दोत्सव के मुख्य अतिथि वक्ता श्री विजय बहादुर सिंह ने जब अपने मुखारविंद से भाषा, संस्कार और साहित्य का काव्यात्मक एवं गरिमामय गुणानुवाद किया तो ठहाकों और तालियों से सभागार गूंजता रहा। उन्होंने कहा कि कवि और कविता कर्म समाज में सदैव याद रखे जाते है। समाज के अन्य क्षेत्रों से बड़े-बड़े लोग होते है लेकिन समाज उन्हे लम्बे समय याद नहीं रखता। हजारों वर्ष पूर्व हुए कवि और रचनाकारों तथा इस दशक के रचनाकारों को समाज एक साथ स्मृतियों में स्थान देता है , क्योंकि इनका सरोकार समाज की पीड़ा से है। कविता कर्म आसान नहीं हैं। यह सुविधा भोग का भी विषय नहीं है। शब्दों के अर्थो को उनके भावों के साथ विस्तार से समझना होता है। कवि की भाषा और भाव विज्ञान से पृथक होते है। कविता में हृदय से देखने का भी काम लिया जा सकता है जबकि विज्ञान में सिर्फ ऑखें देख सकती है। इस बात के समर्थन में उन्होनें धनानंद और निराला के काव्यांश प्रस्तुत किए। कविता अवचेतन धरातल से लिखी जाती है। चेतना से परे उसका अवतरण होता है। तुलसीदास जी के उदाहरण से उन्होंने बताया की तुलसीदास ने रामचरित मानस न धन के लिए लिखी न यश के लिए। उन्होंने तो अपने आपको कवि कहलवाना भी नहीं चाहा। हम भाषणों और नारों में शब्दों का प्रयोग बिना समझे करते रहते है। कविता मे यह संम्भव नहीं है। उन्होंने कहा कि आजादी का अर्थ केवल सत्ता का परिवर्तन नहीं है। 15 अगस्त 1947 के पहले देश गुलाम था लेकिन हम आजाद थे। आज देश आजाद हो गया लेकिन लोग गुलाम हो गए।
समारोह की विशेष अतिथि कहानीकार श्रीमती स्वाती तिवारी ने संस्थान की कार्य विधि की सराहना की। उन्होनें धार नगर से अपने आत्मीय लगाव और रिश्तों को भावुकता के साथ प्रस्तुत किया। श्रीमती तिवारी ने लेखन के साथ -साथ पठन पाठन के महत्व को भी रेखांकित किया। कार्यक्रम के शीर्षक "शब्दोत्सव" का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि शब्दों का उच्चारण या शब्दों का प्रयोग तो सामान्य बात है लेकिन शब्द अगर उत्सव मनाने लगें तो यह विलक्षण बात होती है। वर्तमान सामाजिक संदर्भों में साहित्य में नारी के कम होते सहकार को समाज और संस्कृति के लिए चिंतनीय बताया। नारी शक्ति का आव्हान करते हुए उन्होंने कहा कि स्त्री को लेखन के क्षैत्र में अपनी पहचान बनानी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व एवं दण्डाधिकारी श्री नीरज सिह ने सारगर्भित उद्बोधन दिया। साहित्यकार विलक्षण और दैवीय शक्ति प्राप्त होता है वह हृदय तक अपनी बात पहुचाने की सामर्थ्य रखता है। साहित्यकारों द्वारा कही गई बातें सबको लम्बें समय तक विचार करतें रहने के लिए विवश करती है। चिन्तन की इस प्रक्रिया से समाज के लिए लाभकारी अवधारणाऐं प्राप्त होती है। उन्होंने नई पीढ़ी को भाषा, संस्कृति और विरासतीय सोच से जोड़ने की आवश्यकता बतायी। प्रतिस्पर्धा के लिए अध्ययन के अतिरिक्त नई पीढ़ी को साहित्य से भी संपर्क रखना चाहिए।
संपादकीय उद्बोधन देते हुए डा. दीपेन्द्र शर्मा ने संस्थान और यशधारा पत्रिका में साहित्यकारों और समाज के योगदान का आभारित उल्लेख किया। यशधारा पत्रिका के रचनाधर्मी क्षैत्र का विस्तार करते हुए इसे राष्ट्रीय स्तर देने की सूचना दी। यशधारा को आगामी सत्र से त्रैमासिक किए जाने की घोषणा भी डॉ. शर्मा ने की। लगातार किसी वार्षिक साहित्यिक पत्रिका के 9 अंक प्रकाशित होने को धारा नगरी का गौरव निरूपित किया। उन्होंने कहा कि यह मध्यम आकार के शहर में देश में किये जाने वाला एक अनूठा प्रयास है। सुधी पाठकों और लेखको की मांग पर उन्होंने संस्थान के पत्रिका परिवार की चार स्तरीय सदस्यता आरंभ भी की।
शब्दोत्सव में वाग्देवी सरस्वती की वंदना श्री बाबूलाल परमार ने सस्वर प्रस्तुत की। अतिथियों का परिचय श्री प्रदीप जोशी ने दिया। साहित्यिक और सारगर्भित स्वागत भाषण डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने व्यक्त किया। अतिथियों का स्वागत कृष्ण कुमार दुबे, वाहिद खान पठान और सीमा मिश्र "असीम" ने किया। अतिथियों का सम्मान शाल श्रीफल प्रतीक चिन्ह देकर कवि प्रबोध मिश्र बड़वानी, गोविद सेन मनावर , अनिता मण्डलोई इन्दौर विभा जैन धार , दीपक शर्मा कुक्षी और अर्जुन सिंह "अंतिम" धामनोद ने किया। यशधारा के इस अंक 101 रचनाकारों की हिन्दी और उर्दू की विविध विधाओं की रचनाएं समाहित हैं। समारोह का समापन सामूहिक राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम का आभार प्रदर्शन वरिष्ठ गीतकार श्रीवल्लभ विजयवर्गीय ने किया। समारोह में अनूठे ढंग से काव्यात्मक संचालन सम्पादक मंडल के प्रदीप नवीन इन्दौर ने किया।
इस साहित्यकार सम्मेलन में भोपाल इन्दौर, धार, मनावर, बडवानी, कुक्षी, धामनोद, रतलाम, सरदारपुर, राजगढ़ , अमझेरा , बाग आदि स्थानों से बड़ी संख्या में लेखक , लेखिकाओं और पाठकों ने सहभागिता की ।
भोज शोध संस्थान, धार
मो 09425967598
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