सृष्टि का विस्तार असीम है. जितनी भी जानकारियाँ अब तक मिल पायी हैं, वे इतनी अल्प है कि उनके आधार पर सब कुछ जान लिया जा सका है, यह दावा नहीं ...
सृष्टि का विस्तार असीम है. जितनी भी जानकारियाँ अब तक मिल पायी हैं, वे इतनी अल्प है कि उनके आधार पर सब कुछ जान लिया जा सका है, यह दावा नहीं किया जा सकता. हम भले ही अपनी प्रतिभा, योग्यता एवं वर्चस्व का कितना ही गुणगान कर लें, पर सर्वज्ञ कदापि नहीं हो सकते. कितने ही तथ्य एवं रहस्य ऎसे है जिनके संदर्भ में मनुष्य अब भी कुछ जान नहीं सका है. बल, बुद्धि, विज्ञान भी उनको समझ सकने में असमर्थ रहा है. अपनी सभ्यता के लिए भी वह यह अभिमान नहीं कर सकता और न ही इस बात की घोषणा की जा सकती है कि चेतन प्राणियों का अस्तित्व मात्र पृथ्वी तक ही सीमित है. अब तक जो भी परिणाम मिले हैं, उनसे पता लगा है कि अन्यान्य ग्रहों पर भी जीवन विद्यमान है. ब्रह्माण्ड में पृथ्वी से अधिक विकसित सभ्यताओं की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है. हाँ, इतना अनुमान अवश्य लगाया जा सकता है कि अन्य ग्रहों के जीवों का आकार-प्रकार, जीवन-यापन, का तरीका हम पृथ्वीवासियों से सर्वथा भिन्न हो. और यह भी जरूरी नहीं है कि वहाँ की परिस्थितियाँ जीवित रहने के लिए पृथ्वी जैसी ही हो. पृथ्वी पर जीवित रहने के लिए आक्सीजन जरूरी है. पर अन्य ग्रहों पर स्थिति इससे उलट भी हो सकती है. यह जरूरी भी नहीं है कि वे इन्हीं आँखों से हमें दिखाई दे. त्रिआयामिक दृष्य जगत से उनकी स्थिति अलग भी हो सकती है. सम्भव है कि वे सशरीर अन्य ग्रहों में पृथ्वी आदि के टोह लेने के लिए उतरते भी हों. हमारी आँखें उनको देख पाने में असमर्थ हों.
यह मात्रा एक कल्पना नहीं वरन एक तथ्य है. समय-समय पर दिखाई पडने वाली उडनतश्तरियों के प्रमाण उस तथ्य की पुष्टि करते हैं. उडनतश्तरियों की बनावट, अचानक प्रकट होकर लुप्त हो जाना कुशल वैज्ञानिक मस्तिष्क एवं विकसित सभ्यता का प्रमाण देती हैं. सैकडॊं वर्षों से वैज्ञानिक यह जानने का प्रयत्न कर रहे है के ये अचानक कहाँ से प्रकट होती हैं तथा कहाँ चली जाती हैं पर उनके ये प्रयत्न असफ़ल ही सिद्ध हुए हैं. मात्र अनुमान लगाया गया है कि जहाँ से ये उडनतश्तरियाँ आती हैं, वहाँ की सभ्यता पृथ्वी की तुलना में कहीं ज्यादा अधिक विकसित है.
अनेकों बार तश्तरियाँ देखी गई हैं तथा अपने रहस्यों को साथ समेटे देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गई हैं. सन १९४७ में अमेरिका के पश्चिमी तट राकोमा के निकट मोटर बोट में बैठे दो रक्षक एच.ए.डहल एवं फ़ैड के. क्रैसवेल समुद्र तट की निगरानी कर रहे थे. अचानक डहल ने दो हजार फ़ीट की ऊँचाई पर आकाश में छः फ़ुटबाल की तरह गोल आकृति की मशीनों को घूमते हुए देखा, पाँच मशीनें एक के चारों ओर घूम रही थीं. वे क्रमशः नीचे उतरने लगीं और सागर से मात्र ५०० फ़ुट की उँचाई पर आकर रुक गईं. तट के रक्षक डहल ने अपने साथी की सहायता से अपने कैमरे से एक फ़ोटॊ खींचने का प्रयत्न किया. अभी कैमरे का स्विच दबाया ही था कि आकाश में जोर का धमाका हुआ. आकाश में उडने वाली मशीनों में से बीच की मशीन फ़ट गई. मोटर बोट में सवार अंगरक्षक छलाँग लगाकर पास की एक गुफ़ा में घुस गए. पर उनके साथ का कुत्ता वहीं मर गया. कुछ देर बाद जब बाहर निकले तो देखा आकाश में उडने वाली वस्तुओं का नामोनिशान नहीं है. विस्फ़ोट से फ़टी मशीन के टुकडॆ तट पर बिखरे पडॆ थे जो चमकीले एवं गरम थे. दुर्घटना की सूचना तट रक्षकों ने मोटरबोट में लगे ट्रान्समीटर द्वारा देनी चाही पर उन्हें यह देखकर आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा कि किसी ने रेडियोलाजिकल मशीन से मोटर बोट में लगे द्रान्समीटर को जाम कर दिया है. निरीक्षण को आये अनुसन्धान दल ने वाशिंगटन के उक्त टापू मरे पर लगभग २० टन धातु के टुकडॊं को एकत्रित किया. परीक्षा पर मालूम हुआ कि धातु के टुकडॊं में अन्य सोलह धातुओं का सम्मिश्रण हैं तथा उनके ऊपर केलसियम की मोटी चादर चढी है. वैज्ञानिकों को यह जानकर विशेष आश्चर्य हुआ कि इन धातुओं में से एक भी पृथ्वी पर नहीं पायी जाती. वे उनके नाम तक बता पाने में असमर्थ रहे. उन्होंने सम्भावना व्यक्त की कि अन्तरिक्ष यान विशेष शक्तिशाली आण्विक यन्त्रों से संचालित था.
लेकन हीथ ( इंग्लैण्ड) १३ अगस्त १९५६ को रात्रि तीन बजे रायलफ़ोर्स के दो राडार स्टेशनों से तेज गति से उडती हुई उडनतश्तरियों को देखा. पृथ्वी से मात्र ११०० मीटर की ऊँचाई पर साढे तीन हजार किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से ये विचित्र संरचनाएँ पश्चिम दिशा की ओर उड रही थीं. रायल एअरफ़ोर्स के एक लडाकू विमान ने इनका पीछा किया किन्तु देखते-देखते वे अदृष्य हो गईं.
१० अक्टूबर १९६६ को सायं ५ बजकर २० मिनट पर “न्यूटन इलिनाय़”( अमेरिका) में पृथ्वी से मात्र १५ मीटर की ऊँचाई पर एक यान जैसी वस्तु उडती दिखाई दी. देखने वालों ने बताया कि वह मात्र ६ मीटर लम्बी, २ मीटर व्यास वाली, सिगार की शक्ल जैसी थी. जो एल्म्युनियम जैसी किसी चमकीली धातु से बनी प्रतीत होती थी. अग्रभाग का छिद्र प्रवेश द्वार जैसा लगता था, उडती हुई वस्तु के चारों ओर हलकी नीली रंग की धुंध छाई थी. यान से किसी प्रकार की ध्वनि तो सुनाई नहीं पड रही थी पर वातावरण में एक विचित्र प्रकार के कंपन का आभास मिल रहा था. कुछ मिनटॊं के बाद वह वस्तु गायब हो गई.
पिछले दिनों भारत में भी उडनतश्तरियाँ देखी गईं. ३ अप्रैल १९७८ को अहमदाबाद में उदयपुर विश्व-विद्यालय के प्रोफ़ेसर दिनेश भारद्वाज ने रात्रि नौ बजे तश्तरी जैसी चीजों को उडते देखा. वे प्रकाश पुन्ज जैसी समानान्तर एक साथ उडती रही थीं. पर अचानक एक- दूसरे के विपरीत दिशा की ओर मुड रही थीं तथा कुछ देर बाद लुप्त हो गईं. वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें उल्का पिण्ड नहीं माना जा सकता क्योंकि उल्का पिण्ड अपनी इच्छानुसार दिशा नहीं बदल सकते. उन्हें किसी कुशल मस्तिष्क द्वारा संचालित माना जाना चाहिए. अपने अन्दर अनेकों रहस्य छिपाये हुए वैज्ञानिकों को चुनौती देती ये उडनतश्तरियाँ समय-समय पर दिखाई पडती है.
पृथ्वीवासियों की वैज्ञानिक क्षमता, बुद्धि का उपहास करते हुए आँखों से ओझल हो जाती हैं. उनकी शक्ति, सामर्थ्य का अनुमान इस बात से लगता है अनेकों बार प्रयत्न किए जाने के बाद भी मनुष्य उनके सम्बन्ध में कुछ भी नहीं जान सका है. पीछा करने वाले यान असमर्थ रहे हैं. इन विचित्र आकृतियों के साथ सुरक्षा की भी पूरी व्यवस्था है. यही नहीं खतरे की सम्भावना भी उन्हें तुरन्त मिल जाती है.
कितनी ही बार तो पीछा करने वाले यानों के चालकों को जीवन से हाथ धोना पडा है. उनकी वैज्ञानिक क्षमता बडी-चढी है इसका अनुमान इस घटना से लगता है. “मेलबोर्न” २४ अक्टूबर,७८ को एक विमान चालक सहित एक उडनतश्तरी जैसी धातु को देखने के बाद लापता हो गया. बीस वर्षीय युवा चालक श्री “फ़्रेडरिक वाकेटिच” ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया के बीच चाटर्ड उडान भरी. चालक फ़्रेडरिक ने हवाई अड्डॆ के ऊपर से चाटर्ड रेडियो सन्देश द्वारा अधिकारियों से पूछा कि १५२४ मीटर ऊँचाई पर उसी क्षेत्र में कोई दूसरा विमान तो नहीं उड रहा है. फ़्लाइट सर्विस ने नकारात्मक उत्तर दिया. फ़्रेडरिक ने अधिकारियों को बताया कि वह १८२ मील दूर १३७ मीटर की ऊँचाई पर किंग आइसलैंड के पास से उड रहा है. उसे एक लम्बी आकार की वस्तु तेज गति से उडती दिखाई पड रही है. वह मेरे विमान के ऊपर चक्कर काट रही है. तभी धातु के टकराने जैसा शोर सुनाई पडा तथा विमान का सम्पर्क नियन्त्रण कक्ष से टूट गया. मेलबोर्न हवाई अड्डॆ से अनेकों जहाजों ने खोज के लिए उडान भरी किन्तु चालक और यान का कुछ पता भी न चल सका. न ही दुर्घटना का कोई चिन्ह ही मिला. पृथ्वी के वैज्ञानिक अन्यान्य ग्रहों की स्थिति का पता लगाने के लिए प्रयत्नशील हैं. समय-समय पर वैज्ञानिकों के दल अन्तरिक्ष में खोज के लिए जाते हैं. अन्य ग्रहों की स्थिति के खोज का कार्य मात्र मनुष्य द्वारा नहीं किया जा रहा है वरन जो प्रमाण मिले हैं उनसे पता चलता है कि अन्य ग्रहों पर पृथ्वी की तुलना में अधिक विकसित सभ्यताएँ हैं. वे भी खोज के लिए पृथ्वी पर आते रहते हैं. “इन्डियन एक्सप्रेस” ५ जनवरी १९७९ में प्रकाशित समाचार के अनुसार दक्षिण अफ़्रीका जोहान्सबर्ग के निकट एक महिला एवं उसके पुत्र ने अपने घर के निकट एक उडनतश्तरी को उतरता हुआ देखा. उड्नतश्तरी की अन्य घटनाऒ से इसमें भिन्नता यह थी कि श्रीमती की गन क्वीगेट ने यान जैसी आकृति के निकट पाँच मनुष्य की शक्ल से मिलते जीवों को खडॆ देखा.
अलग-अलग इन्टरव्यू लेने पर उसके पुत्र ने भी यही बात बताई. श्रीमती क्वीगेट ने बताया कि जैसे ही उसने अपने पुत्र से कहा कि, “अपने पिता को बुलाओ” यान के निकट खडॆ सभी व्यक्ति उडनतश्तरी में बैठ गए और कुछ ही क्षणॊं में वह यान हवा में विलीन हो गया. पूरी घटना में ५ या ६ मिनट लगे होंगे. अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने भी उडनतश्तरी देखी. अमेरिका के वैज्ञानिकों ने उडनतश्तरियों को अपने शोध का विषय बनाया. इसका नाम उन्होंने यू.एफ़.ओ.( अनाइडेन्टीफ़ाइड फ़्लाइंग आब्जेक्टस), “जे एल.हाइनेक” ने नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में यू.एफ़.ओ. अध्ययन केन्द्र की स्थापना की है. इस शोध संस्थान का कार्य रहस्यमय उडने वाली वस्तुओं के सन्दर्भ में तथ्य एवं जानकारी इकत्रित करना है.
अब वैज्ञानिकों में भी यह मान्यता परिपुष्ट हो रही है कि सभ्यता पृथ्वी तक ही सीमित नहीं है. डा. फ़्रेडमैन जैसे वैज्ञानिकों का विश्वास है कि जीवन और सभ्यता अन्य ग्रहों पर भी है जो पृथ्वी की तुलना में कहीं अधिक विकसित है. इसका प्रमाण है कुशल वैज्ञानिक यन्त्रों से सुसज्जित रहस्यमय उडतश्तरियाँ. जिनका रहस्योद्घाटन कर सकना वैज्ञानिकों द्वारा अब तक सम्भव नहीं हो सका है. डा. फ़ैडमैन ने सम्भावना व्यक्त करते हुए कहा कि पृथ्वी ऊर्जा का स्त्रोत है. सम्भव है अन्य ग्रहों के निवासी पृथ्वी पर ऊर्जा संग्रह करने आते हैं और इस कार्य के लिए उन्होंने वैज्ञानिक तकनीकी का विकास कर लिया हो. बहुत समय पूर्व सन १९५९ में रूसी वैज्ञानिक एलेक्जेंडर काजन्तसेव ने अपने अनुसंधान कार्यों के उपरान्त घोषणा की थी कि जिस प्रकार हम चन्द्रमा और अन्य ग्रहों की जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार से यानों का प्रयोग कर रहे हैं, उसी प्रकार की खोजबीन अन्य ग्रहों के निवासियों द्वारा भी की जा रही है. जर्मन वैज्ञानिक “एरिकबन डेनिकेन” के अपनी पुस्तकें “ चैरियट्स आफ़ गाड” और रिटर्नमद स्टार्स” में भी इस तथ्य का उद्घाटन किया है कि अन्य ग्रहों के निवासी पृथ्वीवासियों की टोह लेने के लिए समय-समय पर उतरते हैं. यहाँ के वैज्ञानिकों की तुलना में विज्ञान के क्षेत्र में उनकी पहुँच अधिक है.
बुद्धिमता एवं सभ्यता के क्षेत्र में मनुष्य ही सबसे अग्रणी नहीं है. पृथ्वी की तुलना में विकसित सभ्यताएँ भी ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं. मनुष्य को अपनी तुच्छता समझानी चाहिए. मिथ्या गर्व की अपेक्षा ईश्वर प्रदत्त क्षमता का उपयोग मानवोचित रीति-नीति में करना ही श्रेयस्कर है.
-- १०३, कावेरी नगर, छिन्दवाडा(म.प्र.) ४८०-००१ गोवर्धन यादव ०९४२४३५६४००
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(संपादकीय टीप – उड़न तश्तरियाँ देखे जाने आदि के प्रमाण आमतौर पर सत्य कम काल्पनिक अधिक हैं, मगर यह भी वैज्ञानिक सत्य है कि कई खरब वर्ष की उम्र के, अनंत विस्तार लिए ब्रह्मांड में कोई एक दो नहीं, बल्कि अनेकों जीव सभ्यता के मौजूद होने के पुख्ता गणितीय कारक हैं. यह दीगर बात है कि उन तक हमारी पहुँच या उनकी हम तक पहुँच सदा सर्वदा के लिए असंभव ही बनी रहेगी)
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