डॉ0 दीपक आचार्य अध्ययन, अनुसंधान, विश्लेषण, शोध और निष्कर्ष तलाशने का काम किसी ऎसे व्यक्ति का नहीं हो सकता जो अनपढ़, कम पढ़ा-लिखा, नासम...
डॉ0 दीपक आचार्य
अध्ययन, अनुसंधान, विश्लेषण, शोध और निष्कर्ष तलाशने का काम किसी ऎसे व्यक्ति का नहीं हो सकता जो अनपढ़, कम पढ़ा-लिखा, नासमझ, भौंदू, दुराचारी, झूठा, मक्कार, धूर्त, औरों के टुकड़ों पर पलने वाला, दूसरों के तलवे चाट-चाट कर इतराने वाला, कुत्ते-बिल्लियों की तरह जीवन गुजारते हुए दूसरों का पालतू कहा जाने वाला, परायी दौलत और संसाधनों पर ऎश करने वाला, हराम और पाप की कमाई करने वाला, धर्म, सत्य और न्याय से दूर रहकर अधर्म, शोषण और आसुरी वृत्तियों में रमे रहने वाला, तम्बाकू और गुटखे खाने का आदी, अभक्ष्य भक्षण और अपेय का पान करने वाला, पुरुषार्थहीन, कामचोर, पेटू, निंदक और सारे राक्षसी अवगुणों से युक्त हो।
हमारे दुर्भाग्य से आजकल इन्हीं किस्मों के लोग उपदेशक, निंदक, मार्गदर्शक और मूल्यांकन करने वाले हो गए हैं। समाज-जीवन और परिवेश में जो कुछ घटित होता है, उसके बारे में स्वस्थ मूल्यांकन तभी संभव है जबकि मूल्यांकन करने वाले पूर्वाग्रह-दुराग्रह और दूसरे तमाम प्रकार के पक्षपात, वाद और मलीनताओं से परे होकर रहें तभी वे निरपेक्ष,स्वस्थ और पक्षपातरहित मूल्यांकन कर सकेंगे।
समाज वर्तमान में जिन दिशाओं और दशाओं में जी रहा है, भाग रहा है उसमें अब न स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रही है, न श्रेष्ठीजनों और हुनरमंदों के प्रति कोई आदर-सम्मान या श्रद्धा के भाव। सब तरफ अपना ही अपना राग अलापने वालों की भरमार है और ये लोग सारे कर्तव्य कर्म, निष्ठाओं, वफादारी और ईमानदारी को खूँटी पर टाँग कर निकल पड़े हैं अपनी-अपनी टकसाल स्थापित करने।
इन्हें न किसी की परवाह है, न किसी से कोई भय। एक तरफ अच्छे लोग भी हैं तो दूसरी तरफ ऎसे भी हैं जिनकी शक्लों और हरकतों को देख लगता है जाने कितनी पीढ़ियों से भूखे और प्यासे हैं जो हर क्षण ललचायी नज़रों और लपलपायी जीभों से जमाने भर को ऎसे देख रहे हैं जैसे कि ये कुंभकर्ण अभी-अभी उठे हैं और जो सामने दिखेगा उसे खा जाएंगे।
आज के इन भूखों-प्यासों ने कुंभकर्ण तक को पीछे छोड़ दिया है। वह तो बेचारा एक ही था, आज तो जाने कितने सारे सब जगह हैं, कोई गिनती ही संभव नहीं है। वह तो खान-पान का ही आदी था। आज के ये कुंभकर्ण तो खान-पान से लेकर हर तरह के उपयोगों और निचोड़ लेने तक में माहिर हैं।
इन सभी हालातों का खामियाजा वे लोग उठा रहे हैं जो कर्म के प्रति निष्ठावान, ईमानदार और सच्चे दिल के हैं। जिन्हें अपने काम से ही मतलब है, और किसी से नहीं। ये लोग सारी सज्जनताओं के होते हुए भी उन लोगों के शिकार होते रहे हैं जो लोग दुराचारी और घृणा से भरे हुए हैं।
बहुत सारे लोग सभी जगह देखने को मिल जाएंगे जो खुद कुछ नहीं करते, न इनमें कुछ कर पाने का कोई माद्दा ही होता है। इनका एक ही काम है और वह है आदमी से लेकर जमाने भर को भ्रमित करते हुए अपनी चवन्नियां चलाना, मुफतिया माल उड़ाना और परायी धन-दौलत पर हाथ साफ करना।
पहले लोग चोरी और डकैती करते थे। अब हाईटेक जमाना आ गया है, बुद्धि का हर तरह से उपयोग कर औरों को उल्लू बनाते हुए अपने उल्लू सीधे करने की तमाम खुराफातें अपने पास हैं। करना कुछ नहीं है, सारी मर्यादाएं छोड़ कर नंगे हो जाओ, बेशर्म बनकर जीते रहो और पराये माल पर अपना कब्जा जमाते रहो।
कलियुग अपना भरपूर असर दिखा रहा है। बुरे काम करने वाले सारे के सारे बुरे लोगों से कोई सा अच्छा काम पूरी जिन्दगी कभी संभव नहीं है और यही कारण है कि ये निकम्मे और नालायक लोग हमेशा यह प्रयास करते रहते हैं कि कोई दूसरा भी वे काम नहीं कर पाए ताकि उसे श्रेय न मिल पाए और जमाने की नज़रों में बुरे लोगों की कृत्रिम रूप से निर्मित छवि पर कोई असर भी न पड़ पाए।
इस कारण से बुरे लोग अच्छे कर्म करने वाले लोगों के पीछे हाथ धोकर पड़े होते हैं और हमेशा सज्जनों की छवि खराब करने के षड़यंत्रों में रमे रहते हैं। जिनका बीज शुद्ध नहीं होता, संस्कारों से उपचारित नहीं होता, ऎसे वर्णसंकर और मिलावटी लोग समाज के लिए कभी उपादेय साबित नहीं हो सकते।
ये लोग सब तरफ बिगाड़ा ही करने में लगे रहते हैं। इनके जीवन का एकमात्र ध्येय आसुरी वृत्तियों और अंधकार को प्रश्रय देना है। ये लोग जिनके साथ होते हैं उनका चरित्र और व्यवहार अपने आप सारी बातें साफ-साफ कह डालने को काफी है।
इनकी दुर्जनता, स्वेच्छाचारिता और भय के मारे कोई स्वीकार करे या न करे मगर इतना तो तय है कि ये लोग अपने घर-परिवार, समाज, क्षेत्र, देश और पृथ्वी पर नाजायज भार से अधिक कुछ नहीं होते। अक्सर सज्जनों को इन लोगों से शिकायत रहती ही रहती है।
इस मामले में थोड़ा गंभीरता से सोच लें तो हमारी कई शंकाओं का समाधान अपने आप हो जाए। किसी भी अच्छे इंसान के बारे में कुछ कहने-सुनाने और लिखने-लिखवाने का अधिकार उसी का है जो उसी की तरह या उससे अधिक सज्जन और कर्मवीर है। पहाड़ों के बारे में चिन्तन केवल पहाड़ ही कर सकते हैं, घाटियों का क्या लेना-देना।
अपने बारे में कोई भी दूसरा या तीसरा पक्ष कुछ भी कहे, चाहे वह कितना बड़ा, प्रभावशाली और लोकमान्य-सर्वपूज्य क्यों न हो, यदि व्यभिचारी, आसुरी, भ्रष्ट, बेईमान और चरित्रहीन है तो उसके द्वारा कही या सुनायी अथवा लिखी गई किसी बात का कोई असर नहीं होना चाहिए।
सिर्फ उन्हीं लोगों की बातों और उलाहनों पर गौर करना चाहिए जो लोग श्रेष्ठ, सज्जन और चरित्रवान हैं। हर सज्जन व्यक्ति ईश्वर का प्रतिनिधि होने के कारण आत्मसम्मानित है और उसे किसी और से अपनी श्रेष्ठता के प्रमाण चाहने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। फिर आजकल ऎसे लोग भी नहीं रहे जो धर्म, सत्य और ईमान को अपनाते हुए सच और यथार्थ में जीते भी थे और अमल भी करते थे।
कोई व्यक्ति हमारे लिए किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी करे, पहले यह देखें कि वह कितना चरित्रवान, नैष्ठिक कर्मयोगी और सदाचारी है। इसके बाद कुछ सोचें। उन लोगों की परवाह छोड़ें जो खुद काजल की कोठरी या हीरे की खदान में रहकर हीरे चुराने में लगे हुए हैं।
चोर-उचक्कों, बेईमानों, हरामखोरों, रिश्वतखोरों, शराबियों, व्यभिचारियों और हिंसक लोगों द्वारा जो कुछ कहा जाता है उसका कोई वजूद नहीं होता है। ये लोग पूर्वजन्म के क्रूर श्वान ही होते हैं जिन्हें भौंकने, काटने और पीछे लपकने के लिए किसी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती, हर पल वे इसके लिए तैयार रहते हैं।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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