कहानी - द लिटिल गॉड

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क़ैस जौनपुरी   आठ साल के रिशू के दिमाग में एक भयंकर योजना बन रही है. योजना है अपने माँ-बाप को सबक सिखाना. जिन्होंने उसे पैदा तो कर दिया है....

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क़ैस जौनपुरी

 

आठ साल के रिशू के दिमाग में एक भयंकर योजना बन रही है. योजना है अपने माँ-बाप को सबक सिखाना. जिन्होंने उसे पैदा तो कर दिया है. मगर पैदा करने के बाद जैसे उसकी उन्हें कोई ज़रूरत ही नहीं है. उसके पापा सुबह-सुबह अख़बार लेकर बैठ जाते हैं. मम्मी को किचन में काम रहता है. फिर पापा और मम्मी दोनों तैयार होके ऑफ़िस चले जाते हैं. रिशू को स्कूल कभी घर में काम करने वाली नौकरानी छोड़ती है. तो कभी-कभी गलती से अगर उसके मम्मी-पापा को फ़ुर्सत मिल जाए तो वो लोग. लेकिन ऐसा कम ही होता है.

रिशू का दिमाग कई सालों से भन्नाया हुआ है. अब उसकी बर्दाश्त के बाहर हो रहा है. सुबह तो ऐसे बीत जाती है. और शाम को पापा को फ़ोन से ही फ़ुर्सत नहीं रहती. मम्मी को हमेशा की तरह थोड़ा सा किचन, थोड़ा सा ऑफ़िस. और इस थोड़े-थोड़े में बेचारा रिशू हमेशा अधूरा ही रह जाता है.

एक बार उसने एक पेन्टिंग बनाई थी. और अपनी मम्मी को दिखाना चाहता था. उसकी मम्मी ऑफ़िस जाने के लिए तैयार हो रही थीं. रिशू उनसे ज़िद करता है कि, “एक बार देख लो मम्मा. कुछ गलत है तो बता दो. मैं ठीक कर लूँगा.” उसकी मम्मी ने कहा, “शाम को दिखाना. अभी टाइम नहीं है.” रिशू को गुस्सा आ जाता है. वो कहता है, “आपके पास तो मेरे लिए कभी टाइम नहीं रहता है.” उसकी मम्मी झुँझला जाती हैं. कहती हैं, “तो क्या करूँ? ऑफ़िस न जाऊँ? अगर तुम कहो, तो भी मेरे लिए ऑफ़िस जाना ज्यादा ज़रूरी है. तुम्हें दिखाना है तो शाम तक इन्तज़ार करो.”

मम्मी की तेज़ आवाज़ और डाँट से छोटे से बच्चे का दिल दुखी हो जाता है और उसका दुख उसकी आँखों से छलक जाता है. और आँसू उसके गालों से ढ़लकते हुए उसकी पेन्टिंग पे गिर जाता है. वो अपनी पेन्टिंग को देखता है. उसने एक शहर बनाया था. और उस शहर में एक छोटा सा बच्‍चा है जो अपने मम्मी-पापा का हाथ पकड़े हुए खड़ा है. आँसू उस बच्‍चे के ऊपर गिरता है और बच्‍चा मिट जाता है. अब पेन्टिंग में एक शहर है. और उस बच्चे के मम्मी-पापा भी हैं लेकिन दूर-दूर. बस वो बच्‍चा नहीं है. रिशू को लगता है कि, “ये तो मेरी ही हक़ीकत हो गई. वो भी अपने मम्मी-पापा के बीच से एकदम गायब ही हो गया है.

स्कूल में भी वो खोया-खोया सा रहता है. शाम को पापा आते हैं तो दौड़के उनकी टाँगों से चिपक जाता है कि वो उसके साथ खेलेंगे. मगर उसके अपने पापा उसे इस तरह झिड़क देते हैं जैसे वो उनका अपना बच्चा न हो, बल्कि कहीं से पड़ा हुआ उठा लाए हों. पापा कहते हैं, “अभी-अभी ऑफ़िस से आ रहा हूँ. थोड़ा फ़्रेश हो लूँ. फ़िर आना.” और थोड़ा सा फ़्रेश होने के बाद पापा को रिशू की याद भी नहीं आती है. और तब तक रिशू का सारा उत्साह भी ख़तम हो जाता है.

सण्डे को पापा शेअर बाज़ार के आने वाले हालात की जाँच-पड़ताल में बिज़ी हो जाते हैं. और मम्मी को अगले हफ़्ते के लिए अपने हाथों और पैरों के नाखूनों की चिन्ता सताने लगती है कि, “कैसे हो गये हैं?” फिर वो उनका पुराना पॉलिश पहले रगड़-रगड़ के छुड़ाती हैं. फिर उनके औरतों के ग्रुप में जिनके साथ वो किटी पार्टी में जाती हैं, “सबसे अच्छे नाखून उनके ही दिखने चाहिएँ” इस कोशिश में लग जाती हैं. और इधर-उधर और कई तरफ़ से अपने नाखूनों को बड़े ध्यान से काटती हैं. ताकि वो कटे भी दिखें और छोटे भी न हों.

रिशू जब शिकायत करता है कि, “आज सण्डे है. कम से कम आज तो कोई मेरे साथ खेल ले.” तब मम्मी-पापा एक-दूसरे का मुँह देखते हैं. और, “मैं ये कर रहा हूँ, तुम देख लो.”, “मैं ये कर रही हूँ. तुम देख लो.” और फिर बेमन से कोई आके थोड़ी देर खानापूर्ति कर देता है.

एक दिन तो हद ही हो गई. रिशू के पापा उसके साथ खेल रहे थे. रिशू सोफ़े के पीछे छुप गया. और पापा को उसे ढ़ूँढ़ना था. रिशू सोफ़े के पीछे छुपा हुआ है कि, “अब पापा आयेंगे और मुझे ढूँढ़ लेंगे और जैसे ही वो मुझे देखेंगे मैं जोर चिल्ला दूँगा.” मगर तभी पापा का फ़ोन आ जाता है और पापा फ़ोन पे बिज़ी हो जाते हैं. फ़ोन शेअर मार्केट से था. कोई उन्हें बता रहा था कि, “इस कम्पनी का शेअर ले लीजिए. अच्छा मुनाफ़ा होगा.” और पापा उस आदमी से कह रहे थे, “हाँ, हाँ. इस कम्पनी के इतने शेअर ले लो.”

उधर रिशू सोफ़े के पीछे छुपा हुआ इन्तज़ार ही करता रह गया. पापा का फ़ोन ख़तम हुआ तो उन्होंने एक बार फिर अख़बार उठा लिया. मम्मी किचन में चली गईं. रिशू बस रो के रह गया. लेकिन वो दिन था और आज का दिन है. उसने फिर कभी भी अपने मम्मी-पापा से खेलने के लिए नहीं कहा.

रिशू चाहता है कि अपने मम्मी-पापा को ऐसा सबक सिखाए जिससे उनके ये सारे शेअर मार्केट, रोज़ सुबह का अख़बार. रोज़ शाम के न्यूज़ चैनल्स. मम्मी की किटी पार्टीज़, सब के सब धरे के धरे रह जाएँ और उस दिन उनके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ रिशू ज़रूरी हो.

एक छोटे से बच्चे का दिमाग अब इसी उधेड़बुन में रहने लगा है. पढ़ने में भी बहुत अच्छा नहीं है वो. अपने अन्दर का सारा गुस्सा वो अपनी पढ़ाई पे निकालता है और इस तरह उसकी पढ़ाई भी अच्छी नहीं चल रही है. उसके मन में एक तूफ़ान चल रहा है जो शान्त नहीं हो रहा है. एक बार ये तूफ़ान शान्त हो तो शायद उसका मन पढ़ाई पे भी लगे.

उसके घर एक शुक्ला अंकल आते हैं. वो एक अख़बार के एडीटर हैं. रिशू के घर उनका ही अख़बार आता है. जिसे उसके पापा बड़े चाव से पढ़ते हैं. शुक्ला अंकल के साथ रिशू थोड़ा खुला हुआ है. उनके साथ खेलता है. वो भी उसके साथ खेलते हैं. वो जब भी रिशू के घर आते हैं. रिशू पूरा वक़्त उन्हीं के पास रहता है. रिशू की मम्मी फ़ैशन की दुनिया में काम करती हैं. और रोज़ नए-नए आर्टिकल आते रहते हैं जिनमें रिशू की मम्मी अपनी एक्स्पर्ट राय देती हैं. शुक्ला अंकल इसी सिलसिले में आते हैं.

कभी-कभी रिशू अपनी मम्मी के साथ शुक्ला अंकल के दफ़्तर भी जाता है. वहाँ भी वो शुक्ला अंकल के साथ खूब मस्ती करता है. शुक्ला अंकल समझ जाते हैं कि रिशू के साथ उसके मम्मी-पापा उतना वक़्त नहीं बिताते हैं. इसलिए वो इतना अकेलापन महसूस करता है कि किसी भी बाहर के आदमी के साथ खेलने लग जाता है. शुक्ला अंकल रिशू के मम्मी-पापा को समझाते हैं कि, “बच्‍चे पे ध्यान दो. इस तरह बचपन में नज़रअन्दाज़ करोगे तो बड़े होकर उसके अन्दर उतना अपनापन नहीं रहेगा.

फिर रिशू के मम्मी-पापा कहते हैं, “हम जो भी कर रहे हैं, रिशू के लिए ही तो कर रहे हैं.” और बात आई-गई हो जाती है. रिशू खीझ के रह जाता है कि, “जब कोई बाहर वाला समझा रहा है तब भी मेरे मम्मी-पापा की आँख नहीं खुल रही है.”

और फिर एक दिन रिशू के दिमाग में पता नहीं कहाँ से ये बात आ जाती है कि, “जिस दिन मैं नहीं रहूँगा. उस दिन मम्मी-पापा को मेरी अहमियत पता चलेगी.”

और फिर एक रोज़ रिशू के मम्मी-पापा को देर रात तक किसी पार्टी में जाना था तो उन्होंने रिशू से कह दिया कि, “खाना खा के सो जाना. हमें आने में देर हो जाएगी.” तब रिशू ने भीगी हुई आँखों से कहा, “हाँ पापा, मैं सो जाऊँगा. क्यूँकि आप लोगों को आने में देर हो जाएगी.” उसकी आवाज़ में एक अज़ीब सा अहसास था जैसे वो कहना कुछ और चाह रहा था मगर कह कुछ और गया.

उसकी आँखों में एक साँत्वना के भाव थे जैसे उसने कुछ तय कर रखा हो. और जब उसके मम्मी-पापा घर से निकले. तो थोड़ी देर रिशू अपने कमरे में बैठा रोता रहा. फिर खड़ा होता है और अपने बड़े से घर को देखता है और रात ही में घर से बाहर निकल जाता है.

उस रात उसके मम्मी-पापा काफ़ी रात हो जाने के बाद आते हैं. दोनों नशे में होते हैं. शायद पार्टी में उन्होंने पी रखी थी. उसकी मम्मी कमरे में जाती हैं और सीधा बिस्तर पे लुढ़क जाती हैं. रिशू के पापा जूते उतार के सोफ़े पे थोड़ी देर सुस्ताते हैं और उन्हें सोफ़े पे ही नींद आ जाती है.

सुबह सण्डे का दिन था. हमेशा की तरह दोनों देर से सो के उठते थे. रिशू के पापा की आँख तब खुली जब धूप उनके चेहरे पे पड़ने लगी. और आँख खुलते ही उन्होंने अख़बार उठाया और फिर सोफ़े पे अख़बार पढ़ने के लिए बैठ गए. और अख़बार की हेडलाईन पढ़ते ही उनकी आँखें चकरा गईं. हेडलाईन थी, “अकेलेपन के शिकार एक मासूम ने की आत्महत्या” और ख़बर के साथ रिशू की फ़ोटो छपी थी.

रिशू के पापा हैरानी में अपनी आँखें मलते हैं. मगर जो छपा है वो वही है कि एक मासूम बच्‍चे ने अकेलेपन से तंग आकर ख़ुदकुशी कर ली थी और वो उनका अपना बच्चा था. अब वो दौड़के रिशू के कमरे में जाते हैं. कमरा खाली था. रिशू वहाँ नहीं था. फिर वो दौड़के रिशू की मम्मी के कमरे में जाते हैं. रिशू की मम्मी अभी भी सो रही थीं. रिशू के पापा रिशू की मम्मी को जगाते हैं और अख़बार देकर वहीं गिर जाते हैं.

रिशू की मम्मी अख़बार पढ़ती हैं और दहाड़ें मार-मार के रोने लगती हैं, “हाय मेरा बच्चा....हाय मेरा बच्चा...”. रिशू के मम्मी-पापा को पहली बार अहसास होता है कि, “रिशू भी उनकी ज़िन्दगी का एक ज़रूरी हिस्सा था. जिसका अहसास उन्हें तब हुआ जब रिशू उनकी ज़िन्दगी से चला गया.”

रिशू के मम्मी-पापा एक दूसरे को कोसने लगते हैं कि, “हमने पैसे कमाने के चक्कर में अपना बच्‍चा खो दिया.” आज उन्हें रिशू की बहुत याद आ रही थी. दोनों एक दूसरे को साँत्वना देते हैं कि, “हम रिशू के लिए ही तो सबकुछ कर रहे थे. फिर रिशू को ये सब करने की क्या ज़रूरत थी?” मगर उनके इस सवाल का जवाब देने के लिए अब रिशू नहीं था. और अगर वो होता भी तो उन्हें बहुत अच्छा जवाब देता. वो उन्हें बताता कि क्यूँ उसने ऐसा करने के लिए सोचा? क्यूँ एक छोटे से बच्चे को अपनी ज़िन्दगी बेकार लगने लगी. क्यूँ उसने इतना बड़ा कदम उठाया?

रिशू होता तो उन्हें बताता कि, “याद करो वो दिन, जब मैं सोफ़े के पीछे छुपा इन्तज़ार ही करता रह गया था और आपका फ़ोन आ गया था. और आप मुझे भूल गए थे. आपके लिए तो शेअर मार्केट ही ज्यादा ज़रूरी था. तो अब खुश रहिए अपने शेअर मार्केट के साथ. जब मेरी ज़रूरत ही नहीं आपको तो फिर मेरे रहने का क्या फ़ायदा?”

रिशू के मम्मी-पापा को अपनी गलतियों का आज अहसास हो रहा था. मगर अब देर हो चुकी थी. उनके आँसू देखने के लिए रिशू अब उनके पास नहीं है.

जब रो-धो के दोनों थक जाते हैं तो पूरी ख़बर को ध्यान से पढ़ते हैं. और फिर उन्हें होश आता है कि ये अख़बार तो शुक्ला जी छापते हैं तो उन्हें तो पता होगा कि रिशू की लाश कहाँ है? और फिर जब उन्हें पता चला था तो उन्होंने हमें तुरन्त क्यूँ नहीं बताया?

रिशू के मम्मी-पापा हड़बड़ी में शुक्ला जी को फ़ोन लगाते हैं. शुक्ला जी फ़ोन उठाके चुपचाप सुनते हैं. फ़ोन पे रिशू की मम्मी चीख-चीख के रोती हैं... “शुक्ला जी...मेरा बच्चा...मुझे मेरा बच्चा दिखा दीजिए...हाय मेरा बच्चा....” रिशू के पापा अपनी सारी गलतियों का अहसास करते हैं. दोनों अपने किए पे बहुत शर्मिन्दा हैं.

फिर शुक्ला जी अपनी बात कहना शुरू करते हैं, “मैंने तुम दोनों को बहुत पहले चेताया था. मगर तुम्हें अपनी सोसाईटी की चमक-दमक में अपने ही बच्चे का मुर्झाता हुआ चेहरा नहीं दिखा.” रिशू के मम्मी-पापा अपनी सफ़ाई में कहते हैं, “मगर शुक्ला जी...हम अपने बच्चे के लिए ही तो कर रहे थे सब कुछ...”

शुक्ला जी उन्हें फिर डाँटते हैं, “पैसे कमाना और बच्चा पालना दोनों अलग-अलग बातें हैं. तुम दोनों पैसा कमा रहे थे. अपना बच्चा भी पालना है, ये होश तुम्हें कहाँ था...? रिशू ने तो कभी नहीं कहा कि तुम उसे अकेला छोड़के पैसे कमाओ. उसे भी तो थोड़ा वक़्त चाहिए था कि नहीं...? ख़ुद तो पार्टियों मे देर रात तक मजे करते रहते हो तुम दोनों... अकेला रिशू क्या करता....? कुछ तो करता ही ना...? ताकि तुम दोनों की आँख खुले....वो तो शुकर मनाओ कि ये ख़बर झूठी है.” इतना कहके शुक्ला जी रूक जाते हैं.

रिशू के मम्मी-पापा एक साथ कहते हैं, “मतलब...???” फिर शुक्ला जी मुस्कुरा के कहते हैं, “भई...मेरा अख़बार है. कुछ भी छाप सकता हूँ. ये एक कॉपी तुम्हारे लिए स्पेशल छपी थी....रिशू के कहने पे...”

अब जब रिशू के मम्मी-पापा को पता चल जाता है कि, “हमारा रिशू ज़िन्दा है.” फिर तो उनके अन्दर जैसे ममता का समन्दर फूट पड़ता है. दोनों ने रोते-रोते पूछा, “हमारा रिशू कहाँ है...?” शुक्ला जी मुस्कुराते हुए रिशू की ओर देखते हैं जो खिड़की के पास खड़ा बाहर सड़क पे दौड़ती हुई गाड़ियों को चुपचाप देख रहा है. शुक्ला जी फ़ोन रिशू के कान के पास लगाते हैं और रिशू के मम्मी-पापा फ़ोन पे ही अपना सारा प्यार उड़ेल देते हैं, “....रिशू...? मेरे बच्चे...? तुम कहाँ हो...? हमें माफ़ कर दो...! हमसे भूल हो गई.... बस हमारे पास आ जाओ...! हम तुम्हें वो सब कुछ देंगे जो तुम्हें चाहिए...”

रिशू की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं. उसके मुँह से बस इतना ही निकल पाता है, “....मम्मी.....पापा.....”

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क़ैस जौनपुरी

qaisjaunpuri@gmail.com

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रचनाकार: कहानी - द लिटिल गॉड
कहानी - द लिटिल गॉड
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