सोशल मीडिया ने रचनाकारों की लेखनी को नए आयाम दिए हैं . ब्लॉगों से आरंभ यह सिलसिला फ़ेसबुक पर जाकर जम सा गया है और वहाँ अपनी बहुरंगी छटाएँ ब...
सोशल मीडिया ने रचनाकारों की लेखनी को नए आयाम दिए हैं. ब्लॉगों से आरंभ यह सिलसिला फ़ेसबुक पर जाकर जम सा गया है और वहाँ अपनी बहुरंगी छटाएँ बिखेर रहा है. पिछले दिनों कुछ से चर्चित, मौलिक और नायाब किस्म की फ़ेसबुकिया पोस्टों को यहाँ साभार संकलित करने का सिलसिला प्रारंभ किया गया है. यदि आपकी जानकारी में ऐसी पोस्टें हो तो कृपया हमें लिंक अवश्य भेजें.
इस बार आपके लिए # भारत नामा श्रृंखला की कविताएँ. कृष्ण कल्पित {कल्बे कबीर} (https://www.facebook.com/krishna.kalpit) की वाल से, साभार.
वह काहे का देश
किस बात का महादेश
जहाँ ग़रीब की न हो समाई
हा हा
भारत-दुर्दशा देखी न जाई !
#भारतनामा_18.
एक महादेश का महाकाव्य.
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एक महादेश था
बिखरा हुआ मलबे का ढ़ेर
एक महाकाव्य था
जला हुआ
जिसकी राख चारों दिशाओं में उड़ती थी !
#भारतनामा_17.
एक महादेश का महाकाव्य.
======.
भारत एक खोया हुआ देश है
सबको अपना-अपना
भारत खोजना पड़ता है
मैं भी इस भू-भाग पर भटकता हुआ
अपना भारत खोज रहा हूँ !
#भारतनामा_16.
एक महादेश का महाकाव्य.
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कितने जलाशय थे कितने जलाधार
कुछ तो अथाह जल वाले ह्रद:
आहाव: और निपानम् नामक हौज़ थे
अंधु: प्रहि: कूप: उद्पानम् नामक कुएँ थे जिनके जगत को हम वीनाह: कहते थे और जिस रस्सी से पानी निकालते थे उस यन्त्र या गडारी को नेमि: या त्रिका कहा जाता था
पुष्करिणी और खातम् जैसे छोटे-छोटे पोखर थे और जो पोखर देवालय के समीप होते थे उन्हें अखातम् देवखातकम् कहते थे और जिन अगाध जलाशयों में कमल खिलते थे वे पद्माकर और तड़ाग थे
वैशंत: पल्लवम् अल्पसर जैसे पानी के गढे क़दम-क़दम पर थे
वापी और दीर्घिका जैसी बावलियाँ थीं
पानी को बांधने के आधार थे
असंख्य नदियाँ थीं और नदियों को भी हम नदी सरित: तरंगिणी शैवलिनी तटिनी ह्रदनी धुनी स्रोतवती द्वीपवती स्रवंती निम्नगा आपगा जैसे कई नामों से पुकारते थे
गंगा यमुना नर्मदा सतलज देविका सरयू विपाशा शरावती वेत्रवती चन्द्रभागा सरस्वती कावेरी गोदावरी जैसी अनगिन नदियाँ थीं और उनके अनगिन नाम थे
इस महादेश में असंख्य जलस्रोत थे !
#भारतनामा_15.
एक महादेश का महाकाव्य.
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कोई मगध का था
कोई श्रावस्ती कोई अवन्ती
कोई मरकत-द्वीप का था
कोई आया उज्जयिनी से
कोई पाटलिपुत्र कोई अंग-देश
कोई दूर समरकंद से आया
कोई नहीं था भारत का
कोई नहीं आया भारत से
भारत कल्पना में एक देश था
एक मुसव्विर का ख़्वाब
एक कवि की कल्पना
किसी ध्रुपद-गायक की नाभि से उठा दीर्घ-आलाप
मैं एक काल्पनिक देश की
काल्पनिक कहानी लिखता हूँ !
#भारतनामा_14.
एक महादेश का महाकाव्य.
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विंध्य और हिमालय के मध्य स्थित देश को
आर्यावर्त कहा जाता था
जिसे पुण्यभूमि भी कहा गया
शरावती नदी के पूर्व और दक्षिण में स्थित यह देश भारतवर्ष कहलाया
जो सम्पूर्ण जम्बूद्वीप का नवमांश है
भू भूमि अचला अनन्ता रसा विश्वम्भरा स्थिरा धरा धरित्री थरणी क्षोणि ज्या काश्यपी क्षिति सर्वसहा वसुमती वसुधा उर्वी वसुंधरा गोत्रा कु: पृथिवी पृथ्वी क्षमा अवनि मेदिनी और मही
हम इस पृथ्वी को 27 नामों से पुकारते थे
विपुला गह्वरी धात्री गौ: इला कुम्भिनी भूतधात्री रत्नगर्भा जगती सागराम्बरा भी इसी पृथ्वी के नाम हैं
पर प्रक्षिप्त
इस महादेश में अन्न और शब्दों की कभी कमी नहीं रही !
#भारतनामा_13.
एक महादेश का महाकाव्य.
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सुबह-ए-बनारस थी
शाम-ए-अवध थी
सांय-सांय करती शब-ए-सहरा थी
और इस देश की दोपहरें
पसीने और ख़ून से लथपथ
और कोलतार की तरह पिघली हुयीं थीं !
#भारतनामा_12.
एक महादेश का महाकाव्य.
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अधिकतर तो यहीं पर बस गये
जो आये थे तलवारें चमकाते
अरबी घोड़ों पर सवार
दर्रों घाटियों मैदानों पहाड़ों नदियों रेगिस्तानों और जंगलों को पार करते हुये
गये नहीं वापस
हिन्द की मिट्टी रास आयी उनको
अंततः यहीं पर हुये सुपुर्द-ए-ख़ाक !
#भारतनामा_11.
एक महादेश का महाकाव्य.
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शक आये कुषाण आये हूण आये यवन आये
क़ातिल आये
लुटेरे आये
फ़क़ीर आये
दरवेश आये
कोई जल-मार्ग से आया
कोई थल-मार्ग से
इस द्वार से कोई निराश नहीं लौटा
कोई नहीं लौटा
यहाँ से ख़ाली हाथ !
#भारतनामा_10.
एक नयी कविता श्रृंखला.
=====.
कभी हम नदियों के लिये लड़े
राज्य और भूमि के लिये किये युद्ध
स्वर्ण और स्त्री के लिये हमने बहाया ख़ून
उत्तर से दक्षिण
पूर्व से पश्चिम
इस भूमि का कण-कण हमारे रक्त से सिंचित है !
#भारतनामा_9.
एक नयी कविता श्रृंखला.
====.
हम हिन्दू नहीं थे
उन्होंने हमें हिन्दू कहा
हिन्दू कोई धर्म नहीं है
यह एक स्थान-वाचक संज्ञा है
जन्म-भूमि ही हमारा धर्म है !
#भारतनामा_8.
एक नयी कविता श्रृंखला.
=====.
मुसलमान आये तलवार लेकर
यहूदी आये बाज़ार लेकर
क्रिस्तान आये चमत्कार लेकर
लेकिन इस महादेश में
पौराणिक काल से ही
बन्दर समुद्र लांघते रहे हैं !
#भारतनामा_7.
एक नयी कविता श्रृंखला.
====.
धर्म हो या नहीं
पर अधर्म न हो
रौशनी हो या न हो
अंधेरा न हो
प्यार हो या नहीं
नफ़रत नहीं हो
न्याय हो या नहीं
अन्याय न हो
यह आर्यावर्त की नई प्रार्थना थी
नयी आयत नयी ऋचा नया राष्ट्र-गीत
नया आर्त्तनाद !
#भारतनामा_6.
एक नयी कविता श्रृंखला.
====.
इस दरिया से उस दरिया तक
इस सहरा से उस सहरा तक
फैला हुआ था हिन्दुस्तान
ईरान हमारा पड़ोस था
बगदाद हमारे सपनों का नगर
फ़ारसी जैसे हमारी ज़बान थी !
#भारतनामा_5.
एक नयी कविता श्रृंखला.
====.
यमुना जो एक नदी थी
आज है भिखारन
मैली-कुचैली तार-तार-वस्त्र
कल लोहे के पुल से गुज़रते हुये
मैंनें भी डाला एक सिक्का
उसके कटोरे में !
#भारतनामा_4.
एक नयी कविता श्रृंखला.
===.
फ़िरदौसी ने लिखा था शाहनामा
मैं लिखता हूँ भारतनामा
मेरे लिये भी कोई सज़ा मुक़र्रर रखना
कोई कारागार तैयार
नीम और अश्वत्थ के दरख़्तों से घिरा हुआ कारागार !
#भारतनामा_3.
आज से शुरु नयी कविता श्रृंखला.
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व्यर्थ ही समय बरबाद किया
भारत-भवन के बाहर था
भारत !
#भारतनामा_2.
आज से शुरु नयी कविताश्रृं खला.
====.
ऐसा भी समय आयेगा
किसने सोचा था
देखना पड़ेगा यह नग्न-नृत्य
ख़ून के धब्बे
अँधेरी सीढियाँ
इस वेश्यालय से भी आख़िर हमें गुज़रना था !
#भारतनामा_1.
विजया और सारासव के मिश्र पेय की ख़ुमारी में आज से #भारतनामा कविता श्रृंखला का प्रारम्भ करता हूँ.
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