( पिछले दिनों रचनाकार में मीना जांगड़े की कुछ कविताएँ प्रकाशित की गई थीं . पाठकों के विशेष आग्रह पर मीना जांगड़े के दो कविता संग्रह में स...
( पिछले दिनों रचनाकार में मीना जांगड़े की कुछ कविताएँ प्रकाशित की गई थीं. पाठकों के विशेष आग्रह पर मीना जांगड़े के दो कविता संग्रह में से एक माँ नाम मैं भी रखूंगी यहाँ प्रस्तुत है. सहयोग के लिए श्री संजीव तिवारी का विशेष आभार)
माँ नाम मैं भी रखूंगी
कु. मीना जांगड़े
अपनी बात
मैं लड़की हूं ये मानती हूं, कमजोर हूं और अबला हूं। ये नहीं कि पढ़ाई में कमजोर, वह लड़की हूं जो याद किया सभी कुछ?दो पल में भूल जाती हूं। लेकिन ये कभी नहीं भूलती कि मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना हैं। मैं बड़ों के साये में और अपने दम पर जीना चाहती हूं, उड़ना चाहती हूं। मुझे हमेशा आसमान को देखकर ऐसा लगता था, जैसे उसमें मेरा नाम सुनहरों रंगों से लिखा हो और मुझे सिर्फ दुनिया को दिखाना है कि ये मेरा नाम है। मैं जब दसवीं गणित में दो बार फेल हुई?तब मुझे अपनी कमजोरी और अजीब सी हार का महसूस हुआ। मुझे ऐसा लगा मेरे कदम रूक गये हों और अब कभी चल नहीं पाऊंगी। लेकिन मेरे पास अपने प्राचार्य जी का मार्गदर्शन था। जिनके कारण मैंने फिर से कदम बढ़ाया और अपने हुनर को अपना ढाल बनाया।
कई बार हारी, कई बार गिरी और उठती गई, क्योंकि मुझे मंजिल पानी थी। अगर मैं न उठती तो मैं उसी रास्ते पर गुमनाम कहीं खो जाती। ऐसे लोग भी हैं जो हार कर मर जाते हैं, मुझे भी ऐसा लगा कि मर जाना चाहिए। पर मेरी सोंच घर और प्रकृति से मिली सीख सभ्यता मुझे मरने नहीं देती। कहती हार वह दण्ड है जिसे मनुष्य न हारकर भी हार जाता है। उसके पास जीवन तो होता है पर वह सोचता है कि वह अब कोशिश ही नहीं कर सकता। एक मनुष्य की हार तब मानी जाती है जब वह काम पूरा किए बगैर हार जाता है। अभी तक मरी नहीं, लड़ सकती है उस वक्त तक जब तक सांसें टूट नहीं जाती क्योंकि आत्महत्या कायरता है।?जब मुझे ऐसी अनमोल सीख मिलती गई तब मैंने समझा और जाना। एक दृढ़ निश्चय किया मैंने कभी हार नहीं मानूंगी। एक साल तक दीनदयाल साहू भईया के मार्गदर्शन पर किताब के लिए?कविताएं लिखी और इनकी ही मेहनत और मदद से छपवाया।
ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो दूसरों की इतनी मदद करते हैं। इन्होंने मुझे कई बार समझाया, मेरी कविताओं में कम ज्ञान होने के कारण कई?गलतियां होती थी जिन्हें इन्होंने सुधारना सिखाया। यह मेरे लिए?स्मरणीय-आदरणीय और एक अच्छे इंसान है। मैं एक गरीब और बुजुर्ग मां-बाप की सबसे छोटी बेटी हूं। अपने मां-बाप का उज्जवल भविष्य बनाना चाहा है और मैं बना कर रहूंगी। इतिहास रचना चाहती हूं और मैं रचूंगी। यह हमारी आवाज है जो एक आवाज ही है लड़ने की, जीने की, हंसने की। बेटी होना कोई?गुनाह नहीं है बल्कि इसे माना गया है और खुद के माने गये भ्रम में न जाने क्या-क्या करते हैं। यह अत्याचार नवजात बच्ची से शुरू होकर उस वृद्ध महिला तक जाकर खत्म होती है। कहीं बेटियों को पैदा होते ही मारा जाता है तो कहीं दहेज के लिए?जिन्दा जलाया जाता है, कहीं किसी का बचपन छीना जाता है तो कहीं बाल विवाह कर उसे नर्क में धकेला जाता है।
कहीं किसी लड़की पर अनाचार होता है तो कहीं इसी डर से उसकी आजादी छीनी जाती है, बचपन से ही लड़की-लड़का का भेद भाव सहती है और कहीं सती, विधवा प्रथा का अंधविश्वास का। आखिर क्यों दुनिया का दण्ड सहे औरत, घर का दण्ड सहे लड़की, मर्द?का अत्याचार सहे महिला और बेटी होने का दण्ड सहे जन्म लेती बच्ची। दुनिया आखिर क्यों यह समझाना चाहती है कि दर्द सहना हमारी प्रवृति है। हम कमजोर नहीं बल्कि करूणा से भरी है, इसीलिए तो अत्याचार सहते हैं और इस सहन को दुनिया यह भूल गई?कि वह जिस देवी दुर्गा रूप को पूजते हैं वह मैं ही तो हूं, जिस काली माता से त्राहिमाम करते फिरते हैं वह मैं ही तो हूं।
जिस दिन करूणा से काली बनी, खत्म कर दूंगी धरती। मां अम्बा को मानते हो तो बेटी को क्यां नहीं। मां दुर्गा भी बेटी है, मां सरस्वती भी बेटी है, मां लक्ष्मी भी बेटी है, इस सत्य को जानकर भी क्यों मुझे परीक्षायें देनी पड़ती है, फर्क का भेदभाव झेलनी पड़ती है, क्यों अपनी आजादी त्यागनी पड़ती है, क्यों बंद कमरे में कैद होकर जीवन जीना पड़ता है। मैं भी तो इंसान हूं, मुझे जिन्दगी दो, आजादी दो, सम्मान दो, मैं पाप नहीं हूं, आप शर्मिन्दा हो ऐसा कोई?अपराध नहीं हूं। मेरे सामने में जब कोई?लड़का-लड़की में भेद या लड़की होने पर अफसोस जताता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मैं झांसी की रानी हूं और वो मेरे दुश्मन अंग्रेज और उसी वक्त मैं उनसे लड़ पड़ती हूं।
ये पूछती हूं जिस बेटी को आप पराई?कहती हैं वही बेटी आप भी तो हैं बेटियों को समझिये इनकी लड़ाई में सम्मिलित होईये। मैंने अपनी किताब में अपने देश का गर्वगान किया है और कुछ जिन्दगी की परेशानी पहेलियों को समझाना चाहा है इसके बाद सारी कविताएं लड़कियों के बारे में है उनमें भेदभाव, पाबंदी, दर्द?और मजबूरी सहने में कैसा लगता है। कई?ऐसी भी बात हैं जिसमें मैंने उकसाया भी है, कुछ करने के लिए, जीने के लिए, दर्द सहकर भी हंसने के लिए। अपनी बात कहने में संकोच और डर लग रहा है। आज तक ऐसा ही हुआ?है कि अपनी बात निडर होकर कह नहीं पाती, लेकिन कागज और कलम मेरे लिए जैसे मेरे दिल और दिमाग हो, सारी बातें अपने पन्ने में उतार लेती हूं। कागज और कलम के जरिया से मुझे सारी दुनिया जानेगी। आप सभी पाठकों से कहना चाहती हूं कि अगर मुझसे भूलवश किसी प्रकार की गलती होती है तो आप सब सुधारकर पढ़िएगा और साथ-साथ क्षमा भी करिएगा।
कु. मीना जांगड़े
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जीवन परिचय
मीना जांगड़े आत्मज रामबगस जांगड़े आत्मजा जगाना बाई जांगड़े का जन्म 20 सितम्बर 1995 को ग्राम खुटेरी तहसील आरंग जिला रायपुर (छ.ग.) में हुआ। यह पांच भाई-चार बहनों में आठवें नम्बर की है।?प्राथमिक शिक्षा गांव से तथा माध्यमिक शिक्षा गांव में न होने के कारण?उमरिया से ली, हायर सेकेंडरी के लिए?परसदा जाना पड़ा, जहां गणित में कमजोर होने के कारण?दो साल दसवीं गणित में फेल हुई,?न चाहते हुए?भी फिर स्कूल छोड़ना पड़ा। 2008 में जब किसी गलती पर इनके बड़े भाई ने इनको थप्पड़ मारा उस वक्त बचपना और सही गलत की समझ न होने के कारण?गलती नहीं मानी। अपने भाई?को कुछ बनकर दिखाने और अपने पांव में खड़े होने की जीत और शर्त?रख दी। इस घटना के बाद इनमें पागलपन या आत्मनिर्भर बनने का जुनून सवार हो गया। पर गणित में कमजोर होने के कारण?दसवीं पास नहीं कर पाई। जिसका जिम्मेदार खुद को समझकर वह किसी से नजरें नहीं मिला पाती थी।
जिसके बाद यह हार की दुनिया में जीने लगी। अपने स्कूल के प्राचार्य की कुछ ऐसी बातें थी, जिनसे इन्हें बहुत शिक्षा मिली जिनकी कुछ-कुछ?बातें इन्हें आज भी याद है, जैसे कोई इंसान किसी चीज में कमजोर है, तो ऐसा नहीं कि वह कुछ?कर नहीं सकता हममें और भी ऐसे गुण?होते हैं, जिससे हम हर ऊंचाई?को छू सकते हैं, अगर मेहनत और लगन से करे। यह बात मन में घर बना गई?थी। सोचती थी कहीं से कमजोर तो नहीं। यही बातें प्रेरणा और हथियार बनी।
बचपन से ही कविता लिखती और फेंक देती थी एक दिन समाचार पत्र में इन्होंने एक कविता पढ़ी तब इन्हें लगा कि ऐसा तो मैं भी लिखती हूं। इसे मैं भी छपवाने के लिए समाचार पत्र में भेजूंगी, ऐसा सोचकर पता ले लिया उस समय इन्हें रायपुर डाक्टर के यहां आना पड़ता था। जब एक दिन डाक्टर नहीं मिले तो अपनी कुछ कविताएं लेकर उस पते में अपनी मां के साथ चली गई जहां एक मैडम ने दीनदयाल साहू भईया से मिलवाया उस वक्त इनके शब्दों में मात्राओं की बहुत गलतियां होती थी जिस कारण?वह कविताएं छपी नहीं पर हार नहीं मानी और कविताएं लिखकर किताब छपवाने की सोची और साहू भईया के मार्गदर्शन में एक साल तक अपनी उलझनों को कविता के माध्यम से लिखा जिसका पूरा श्रेय दीनदयाल साहू भईया को जाता है। जिन्होंने गलतियों को सुधारकर कई?शिक्षा, दी जिससे मैं अच्छे ढंग से कविताएं लिखने लगी।
पर इनके घर में ज्यादा पढ़ी-लिखी, पहुंच और गरीब होने के कारण जल्द नहीं छप पाई किताब, तीन साल का लम्बा सफर तय करना पड़ा। इसके बाद साहू भईया और कुछ आदरणियों के कहने पर इन्होंने 2015 में दसवीं ओपन में पेपर दिलवाया और आगे पढ़ने लगी।?यह बात सबसे पहले आनी चाहिए कि इनकी मां का इनके उज्जवल भविष्य में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनना कि जिन्होंने अपनी हर मजबूरी, अपनी पुरानी सोच से टकराकर अपनी बेटी के लिए?उसके सपने, खुशियां देने उनकी ममता घर कर गई। इनके परिवार के हर एक लोगों ने इनकी मदद की। मां-पापा, भईया-भाभी, दीदी-जीजाजी और गांव, गांव के लोगों ने जिन्होंने हिम्मत जगाई, जिसके लिए इन सभी की आभारी है।
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भंवर
समझ न आये
मेरा ही जीवन
दुजे का क्या कहूं
जब खुद ही उलझा जीवन।
मोती जैसे
चमक तो रहा है
आँखों देखे तो
मन मोह भी रहा है।
लहरो की दे दुहाई
तो भंवर है जैसे
गुनगुना लो, संवार लो
फिर भी न सुलझे जीवन।
अब करूं
क्या करूं
सुलझाये न सुलझे
मेरी पहेली भरा जीवन।
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वक्त
वक्त ने सजा दिया मुझको
हां वक्त ने
मेरी जिन्दगी की खुशियां ली है वक्त ने
हां वक्त ने
संभल न पाये
इस कदर गिरा दिया वक्त ने
हां वक्त ने
अंधेरे के बाद
सबेरा तो आया
पर मेरी जिन्दगी में
न लाया सबेरा वक्त ने
हां वक्त ने
धीरे-धीरे मैं टूट जाऊंगी
ज़िन्दगी नामक समन्दर में डूब जाऊंगी
ऐसा वक्त लाया है वक्त ने
हां वक्त ने
मन का दिया
जैसे बुझ गया है
गहरे नदी में डूब गया है
आज गहरा तो कल किनारा
मिल ही जायेगा।
हिम्मत न हारने की है बात
और न मन हारेगा
बीत गया सारा वक्त
तो बीता वक्त कहेगा
जिन्दगी सवार दी वक्त ने
हां वक्त ने।
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धरती माता
कन-कन की नईया
मंझधार में हिलती
अन्धकार में डूबती
तारा, चन्द्रमा, सूर्य , किरण से
पृथ्वी को प्रकाशित करती
अपना सीना फाड़
सबका पेट पालती
तकलीफ होने पर उफ न करती
सारे जहाँ की करूण पुकार सुनती
बस मेरी धरती मईया।
बन्धन मैं ऐसा मानूं
राखी के दिन
भाई को राखी बांधूं
जीवन भर रक्षा करने का
वचन हो जैसे
ममता आ आंचल दे
पेट पालने का तोहफा भी दे
तभी तो मैं मानूं
तुमको अपनी भईया।
सांसों की डोर
नदियों की छोर
भक्ति का मोल
मेरे लिए तो तुम ही
राम रहीम और किसन कन्हैया।
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भारत माता
आन दूँ - मान दूँ
तेरे लिए मैं जान दूँ।
तेरा लाल हूँ
सम्मान पे तेरे,
अपना शीश कटाकर,
उपहार दूँ।
सर पर मुकुट सूर्य का
चाँद का श्वेत माला दूँ।
जितने भी है,
आसमान पे तारे
तेरे कदमों में वार दूँ।
जितने भी है मुझमें
खून के कतरे,
तिलक के लिए निकाल दूँ।
मैं हूं कलम का सिपाही
बेटा हूँ तेरा, भारतवासी।
नजर गड़ाये जो तुझ पर
उसकी आँखें मैं निकाल लॅू,
उंगली उठाये जो तुझ पर
उसका सर
तेरे कदमों में बलिदान दूँ।
सम्मान पे तेरे
कई जनम मैं वार दूँ।
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सोच बदलनी है
सोच बदलनी है माँ
जो जानती हो आप मुझे
जो मानती हो आप मुझे
वो सोच बदलनी है माँ।
घर से न निकलो बेटी
हो जाओगी गुम कहीं
इस पापी दुनिया में
सिमट जाओगी तुम कहीं।
माँ मैं, मैं हूँ
कोई पुतला नहीं
इस जहां की
खरीदने बेचने वाली गुड़ियाँ नहीं।
टूट जाऊँ वो शीशा नहीं
छूट जाऊँ वो फिसला नहीं
तुम भी लड़की हो ये सुनो
सारी माँओं से ये कहा।
सोच बदलती है माँ
जो जानती हो आप मुझे
जो मानती हो आप मुझे
वो सोच बदलती है माँ।
तारों को छू लिया किसी ने
मैं हूँ ओ बदकिस्मत
बदहाल लड़की
जो बैठी रहूँ घर में।
दिल ने जो चाहा
मन ने न अपनाया
कभी डर अपने बड़ों का
तो कभी अपने का।
दिल तो चाहता आजादी
दिमाग न चाहता बर्बादी
आपके रिश्तों के जंजीरों ने रोका
ओ माँ मेरे पापा।
कैसी ये दुनिया है
जिसमें मैं हूँ बंधक बनी
न पांवों में बेड़ियां
न हाथों से जंजीर
फिर भी एक कोने पर सजी।
फिर भी न जाने
दिल क्यूं
आवाज करता है माँ मेरी माँ
बस यही गीता है।
सोच बदलनी है माँ
जो जानती हो आप मुझे
जो मानती हो आप मुझे
वो सोच बदलनी है माँ।
मेरी बीती हुई कल हो तुम
मेरा साथ देती जाओ
मर न जाऊँ इस अंधेरे में
इस जंजीर में।
ऐ बीता हुआ कल मेरे
मुझमें न वो बीतवाओ
आईना हो मेरी तुम
मुझको रास्ता दिखाओ।
हर घड़ी सोचती हूँ
तुमसे ये कहती हूँ
पतंग उड़ाओ तो उड़ पायेगी
पकड़े रहो तो न पंख फैलायेगी।
इसीलिए माँ इसीलिए
सोच बदलनी है माँ
जो जानती हो आप मुझे
जो मानती हो आप मुझे
वो सोच बदलती है माँ।
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बचपन
रिश्ते न्यारी लगती है,
जहां प्यारी लगती है
ऐ मेरे बचपन
तू ही तो है वह वक्त
जिसमें ज़िन्दगी-ज़िन्दगी लगती है।
न दुनिया का डर होता है,
ना ही खौफ रात का
न उलझन रिश्तों का
और ना ही डर मेरे अपनों और आपका
तभी तो न्यारी लगती है
जिसमें ज़िन्दगी-ज़िन्दगी लगती है।
कोरा दिमाग जो लिखो
पेंसिल से लिखी जैसी लगती है,
बीतता वक्त-रबड़ हो जैसे मिट जाता है
फिर बड़े हो जाने पर
इनकी कमी खलती है
कुछ याद आ जाये ,हंसी पल
तो जैसे जिन्दगी-जिन्दगी लगती है।
सच है बचपन
एक मस्ती शरारत
और सबसे प्यारी उमर
जिसमें जिन्दगी-जिन्दगी लगती है।
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मॉ नाम मैं भी रखूँगी
माँ न जाने कहां से आई,
ममता की रूहानी ताकत
तू कहां से पाई,
हर जनम में -हर कदम में
हर योनि में प्रेम का बंधन
माँ और बच्चे का संबंध
मैंने किससे-कैसे चुनवाई।
ये बंधन न जाने कैसी है,
दर्द सहकर खुशी होती है
ऐसी माँ की तड़पन है।
मेरे लिए दुनिया छोड़ दे
सबसे - रिश्ता तोड़ दे,
ऐसी ममता-तेरा मुझपे
अर्पण है।
जो कर्ज तुमने मुझपे किया है,
मैं भी करूँगी
माँ बनके किसी बच्चे का
माँ नाम मैं भी रखूँगी
और सबक आजादी की
फिर से उसको सिखाई।
तू नहीं होती
तो मैं कहां से आती
लड़की समझकर मारती तो
लड़का कहां से देती।
ये तो नियम है उसका-हम क्यों तोड़े
दो तरफ चल रही जिन्दगियों का
तीसरी ओर क्यों मोड़े
ऐसा कभी नहीं करने की
आज है मैंने कसम खाई।
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ऐ परिन्दे
ऐ परिन्दे
ऐ परिन्दे
मुझको भी पंछी बना दे
तेरी तरह ही उड़ सकूं
ऐसी जाती में
मुझको भी अपना दें।
न हो मुझको डर किसी का
ना ही खौफ जिन्दगी का
अपने दम पर चलती रहूँ
फुर-फुर उड़ के घमंड करती हूँ
ऐसी आजादी भरी जिन्दगी में
मुझको भी पंछी नाम लिखवा दें।
दाने के लिए सहीं
बाहर निकलूं
अपनी मुसीबत से मैं खुद लड़ूँ
न रहूँ मोहताज किसी की
और ना ही बंधक किसी का
ऐसी जिन्दगी का मुझको भी पैगाम दे दें।
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ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
समझ न आये जिन्दगी
कोई ऊँची पहाड़ है
या है कोई गहरी खाई
भंवर की तरह उलझा जाए
समझ ने आए
मोड़ कहा आए
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
हर वक्त सुलझाऊं
हर समय गुनगुनाऊं
फिर भी
मैं इसको क्यों समझ न पाऊं
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
ऐसा कभी न हो पायेगा
सूरज उग के
ढल पायेगा
मुड़ के कभी न समय आयेगा
बिखरे पल याद आये
फिर न समेटा जाए
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
कितनी कली है आई
कितने फूल खिले
ये भी उदाहरण देखो
एक दिन खिल के सूख जाये
आईना सच दिखाये
ठोकर खा के चुर-चुर हो जाती
फिर कभी न जड़ पाती
ऐसा ही है मुझको लगता
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
कैसे है, क्या है
ये दुनिया
सवाल के बाद-सवाल आये
जवाब न कोई पाये
बस ज़िन्दगी जीता जाये
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
मन्नत मांगूं
या नास्तिक बन जाऊं
ये प्रभु क्या मैं मरती जाऊं
ये जीवन-तुम्हारी ही देन है
ये सबको सिखलाऊं
ठोकर क्या खाऊं मैं
हार या जीत, ज़िन्दगी में लाऊं मैं
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
चंचल मन देखे दुनिया
चाहे बस आगे बढ़ना
हर खुशी-हर गम
हर हार-हर जीत से
कभी नहीं डरना
ज़िन्दगी है ज़िन्दगी।
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मैं बड़ी पागल
मैं बड़ी पागल हूँ
सबसे जुदा
सबसे अलग लायक हूँ
ऊपर जो कहूँ
अन्दर वैसी न रहूँ
ऐसी लड़की पागल हूँ।
गुस्से में न होश रखूँ
जो बोलूं मैं न कहूँ
ऐसी बददिमाग पागल हूँ
सिरफिरी लेकिन फिर भी मासूम
एक लड़की भोली
पागल हूँ।
गुस्से से जो बोल दूँ
बुरा लगा उसे
तो प्यार भरा दिल
तुरंत अपना खोल दूँ
गुस्से से भरी मैं
एक लड़की पागल हूँ।
नालायक नहीं
लायक हूँ
चाहूँ अगर
तो जिम्मेदारी उठा लूँ
अपनी कला के आगे
सबको झुका दूँ
ऐसी लड़की मैं पागल हूँ।
हंसी आये न तुमको
तो गलती करके हंसा दूँ
पागल ये लड़की
तुम्हारे मुँह से कहलवा दूँ
याद आऊँ तो हंसी बन के छाऊँ।
मेल नहीं
मैं अनमोल हूँ
अजीबोगरीब हीरा
या सोना, चाँदी, मोती
न कोई परंतु
एक लड़की
हसीन बड़ी पागल हूँ।
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नारी की महानता
नारी है नारी
क्यूँ है तू सबसे प्यारी।
इतना कोमल
इतना निर्मल
और इतनी करूणामयी उज्जल
तुम पर भाये श्रृंगार
माथे पे बिन्दियां
हाथों में चूड़ियां
और रंग-बिरंगी साड़ी और शाल
नारी है नारी
क्यूँ है तू सबसे प्यारी।
इतने दर्द सहती
जुबां से उफ न करती
दुख पाकर दूसरों को सुख देती
नारी है नारी
क्यूँ है तू सबसे प्यारी।
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आशा
किसी महल की शहजादी नहीं
शहजादी मैं बन जाऊँ
हकीकत में नहीं सपनों में सही
राज सब पर कर जाऊँ।
बहुत अपनी
थोड़ी उनकी चलाऊँ
ऐसा आराम और सुन्दरता
अपने जीवन में मैं भी
राजकुमारी कहलाऊँ।
उड़ने के लिए पंख नहीं
फिर भी उड़ जाऊँ
तितली के जैसे
फूलों पर अपना
सिंहासन बनाऊं।
झरनों सा अचल
कल-कल का शोर लगाऊं
हाथों में चूड़ियां पाव में पाजेब
श्रृंगार नाम की बेड़ियां
न पहनने की , न लगाने की
एक धीमी सी डरती हुई आवाज लगाऊं
अपने हक के लिए
उनका विरोध मैं करती जाऊं।
जंजीर की जगह खुला जहान मैं पाऊं
जंगल में शेर फूलों में भंवरा
आसमान में पंछी सा उड़ना चाहूँ।
उड़ती चिड़िया मैं
तीरंदाज का निशाना न बन जाऊँ
अपने धुन में मगन घूमती
घात लगाए शिकारी के हाथ न आऊं।
कुछ बुद्धि, कुछ काम, ताकत पहलवान सा
जोर लगाऊं मैं भी अपने दम पर
किन्हों को हराकर
शाबासी पाऊं।
अपने भरोसे
भविष्य में अपना नाम
सम्मान के साथ लिखवाऊं
शायद हो सके जो
सोच के ही मन बहलाऊं।
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एक मेरी सीख
बच्चों बचपना
जंग है प्यारा
जिसको तुम जितना
कभी-कभी हंसोगे राहों में
कभी रोओगे यादों में
कभी दुखी होकर तुम जाओगे
लेकिन कभी न गलती से
बचपन को हार के हवाले न करना।
बचपन में
कई सबक होता है
जिन्हें सीख कर
तुम मेरे आगे
गर्व से सर उठाना।
कुछ चीजें तारीफ की करके
मेरे हाथों से इनाम ले जाना।
मंदिर का दिया बुझ गया हो तो
जलाते तुम आना।
भारत का दूजा नाम ही है
भगवान पर विश्वास
जिसे तुम भविष्य में
चलाते आना।
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घर
घर मिट गया
मन के घर को भी
मिटाना पड़ेगा
इतने सालो से
सपने के रूप में
बनाया है जहां पर
उसे दिल से हटाना पड़ेगा।
आज सच लगती है
दुनिया
जो हकीकत कहती है
़ उड़ो मत इतना
की गिर जाओ
ये असलियत कहती है।
दुनिया से उठकर
दिल से लगाया
टूटते पर हम कभी
संभल न पाये
इस कदर आँखों में समाया।
आज टूट गया
कांच के टुकड़े की तरह
चुभे मत जिन्दगी में कभी
इसलिए
ज़िन्दगी से फेंकना पड़ेगा।
हकीकत है जो
उसे अपनाना पड़ेगा
जीने के लिए
जीवनचर्या फिर से
अपनाना पड़ेगा।
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जीने दो मुझे
मैंने है अब सोचा
कुछ करने की
परदे में रहकर
आगे बढ़ने की
मूर्ति नहीं हूँ मैं
घर में सजाने की
मुझमें भी है, जीवनचर्या
खामोश नहीं हूँ
मैं मुर्दा
कुछ तो करने दो मुझे
आगे बढ़ने की।
अपने धून में मगन
मस्त गुनगुनाने की
समन्दर की गहराईयों में
खो जाने की
सूर्य की तेज से
अपना तेज दिखाने की
कुछ तो करने दो मुझे
ज़िन्दगी जीना सीख जाने की।
इस पापी दुनिया में
दुनिया नामक स्कूल में
आगे चलकर चल सकूं
इसलिए
मुझे दाखिला पाने की
कुछ तो करने दो मुझे
ज़िन्दगी को सभ्य बनाने की।
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उड़ेंगे एक दिन
मेरे सपने
उड़ेंगे एक दिन
बाग में फूल
खिलते हैं जैसे
मेरे सपने में
खिलेंगे एक दिन।
न है ज्ञान इतना
कि मैं टाप कर जाऊँ
न है ज्ञात इतना की
रसोई की
मास्टर कुक बन जाऊँ।
फिर भी मुझको
विश्वास है
मेरे सपने उड़ेंगे
एक दिन
ये ज्ञात है।
तारों के टीम -टीम
भंवरे में भी कुछ बात है
ज्ञान न होकर भी
बिना रौशनी के चमके
स्वार्थ के लिए सही
लेकिन फूलों पर भटके जो
ऐसी उनको चमत्कारी बुद्धि प्राप्त है।
भगवान की उन पर कृपा है
ज्ञानी होकर उड़ता है
ज्ञान और हुनर के बीच में हूँ
तो क्या हुआ
मेरे सपने भी-उड़ेंगे एक दिन
आसमान की तरह
ऊँचे उठेंगे एक दिन।
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मेरी आवाज
चूल्हे पर हमारे सपनों का अगन जलता है,
हमारे अरमानों का ढ़ेर भीड़ में कुचलता है
हमारे आँखों से आंसू नहीं,
अन्दर ही अन्दर प्राण मरता है।।
आसमान में उड़ता पंछी,
चीं-चीं का आवाज करता है
कौन जान के उड़ने का राज या,
बर्बादी की बात करता है।।
भंवरें तो अपने धुन में मगन रहता है
फूलों पर जाकर
फूलों का रस चूसता है
कौन जाने के
इसी कारण फूल भंवरें से नाराज रहता है।
हमें ही उत्तर रहकर,
हम पर ही प्रश्न उठता है
जिसके लिए इनका उदाहरण
हम पर
खूब बैठता है।
चूल्हे की आग में बैठे-बैठे
हमारा जीवन तप करता है
तपस्या भंग होने पर कई बार
आग की खामोशी,
हमारा प्राण?लिया करता हैं।
लपटों की चिंगारी न
खुशहाली की उमंग न खड़ी
आजादी की आवाज न मिली
तो पिंजरे में कैद
हमारी ज़िन्दगी ढ़लती हैं।
समय के साथ किसी का आंसू सूखता है
तो किसी का खून
समय किसी का इतिहास रचता है
तो किसी की जंग भरी जिन्दगी का बल,
समय भी हमारी खामोशी कमजोरी की,
फिक्र किया करता है,
इन सब की जीत से
यह बात दोहराया करता है,
हमें न हारने न टूटने ,
अपना हक मिलने तक,
लड़ते रहने की सीख दिया करता है।
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इबादत कर खुदा
इबादत,
इबादत कर ख़ुदा
मैं दुनिया में
कुछ कर दिखाऊँ
ऐसी दे दुआ।
इबादत,
इबादत करके ख़ुदा
पत्थर-पत्थर हो जहां
मुझको पत्थर में जान डालने की
दे दुआ।
श्रृष्टि तेरी न हो
जहां मेरी न हो
इसको अपनाऊँ
न मैं न ठुकराऊँ
ऐसी दे मुझको
सहन क्षमता।
इबादत,
इबादत करके ख़ुदा
मैं दुनिया में
कुछ कर दिखाऊँ
ऐसी दे दुआ।
तमन्ना हो ऐसी
किसी की ना हो जैसी
अगर गलत हो तो
दिखा मुझको सही दिशा।
कोई ना हो
लेकिन तुम हो
ऐ ख़ुदा मेरे सब कुछ हो
मुझको ऐसी
हिम्मत दे जरा।
इबादत,
इबादत करके खुदा
मैं दुनिया में
कुछ कर दिखाऊँ
ऐसी दे हुआ।
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गलत शिक्षा ही हमें गलत बनाती
चंचल चितवन मैं सुन्दर
खुशियां पाकर,
नाचती मैं मृततण्ड़
पेड़ो में फूलो में पंख फैलाती,
तुमसे भी सुन्दर हूँ ये बताती।
बारिश की बूंद पाकर
अपनी खुशियां बिखराती,
कोयल की आवाज कर
दूसरों तक अपना तरंग फैलाती।
सागर का वेग
झरनों की छनकी बूदें,
लहरो की कल-कल
बारिश की टप-टप
ये अहसास दिलाती,
अपने अन्दर उत्साह की उमंग होने की
बात जताती।
पवन का वेग
जमकर पेड़ पौधे को हिलाता
मेरे बीना किसी के प्राण नहीं
प्राण तो प्राण, मेरे बिना कोई जंगल,
मनुष्य का आधार नहीं
ये बात जताकर ,सबके मन में,
घमंड का बीच बुआती।
यहां की रीत है
कच्चे होकर फल पकेंगे
कड़वे होकर मीठे बनेंगे
बुराई में रहकर, बुराई ही बुरा कराती
हम बच्चे नहीं,
गलत शिक्षा ही हमें गलत बनाती
जैसी शिक्षा देंगे, वैसी ही हमारे कोरे दिमाग
फिर से दोहराती।
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बेड़ियां
कैसी बेड़ियां
मेरे अपनों ने डाली
दिल पे न होते भी
लबों ने, ह ही साजी।
डर से नहीं
अनजाना प्यार ही सही
न चाहकर भी
अंधेरे में आई।
टूटती सांसो को
धागे से जोड़ लाई
बेजान शरीर में जान
अपने लिए नहीं
अपनी खुशियां मांग कर ही
दर्द में ही जीती आई।
क्या रीत मैं
खुदगर्ज सा चलाऊं
अपनी ज़िन्दगी में
अपनी खुशी के लिए
थोड़ा मन उनका दुखाऊं
ये न सोचकर
कि उपकार है मुझ पर
उनका कर्ज चुकाऊं
अपनी चाहत को मारकर
छोटी-छोटी बातों में,
ह में ह मिलाऊं।
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आतंकवादी भाई - भाई
इस जहां ने तुमको
माना है अपना
अपना ही बनाना
आये रहो तुम
कहीं से भी
इस मातृभूमि को
माँ ही कहना।
तुम नहीं जानते
माँ क्या होती है
मातृभूमि को समझकर देखो
ये तुम्हारे लिए
क्या-क्या करती है।
तुम हो हिंसा
तो ये अहिंसा कहती है
मत लड़ो मेरे लाडलों
ये संबोधित कर
अपना बेटा कहती है।
कभी नहीं कहा सौतेला
तो सौतेला जैसे क्यों करते हो
भाई -भाई पर वार करके
भारत माता की कोख को
गंदा क्यों करते हो।
क्यों करते हो ऐसा
तुम भी तो भाई हो
इस मातृभूमि की
बेटी - बहन और भाई हो।
मार के न तुमको
कुछ मिलेगा
बस माथे पर
आतंकवादी नाम चढ़ेगा।
बन्दूक नहीं
माथे पर रंग लगाओ
भाई बहन तुम हमारे
हम तुम्हारे
तो आओ
हिंसा न करने की
कसमें खाओ।
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दर्द सहकर
परी -परी होती है
जाने न जाने कैसी होती है
मेरे जैसी अभागन
या खुशनसीब हसीन होती है।
जहां में मैं,
दुख भरी कहानी रचती हूँ
सारे दर्द सहकर
अपनी ऐतिहासिक बीमारी कहती हूँ।
पति को परमेश्वर
सास को मां जैसी पूजती हूँ
फिर भी वो न जाने क्यों मुझे
खिलौना समझकर काटो से खेलते हैं
आदि काल से सती बन गई
बीच में ज्ञान देने वाली सरस्वती
अब न जाने क्या नौबत है आई
बनने की है बारी दुर्गा, काली।
करूणामयी होकर
लड़ भिड़ी थी,
अपने और दूसरों के खातिर
सर कलम कर पड़ी थी।
ऐसा ही है आज मुझे करना
जो हम पर अत्याचार करे
उनका शीश कलम कर
अपनी चरणों पर रखना।
हम किसी पर बोझ नहीं
यह उनको सिखाकर
हमें नीचा दिखाने वाले उन सबसे
है आगे बढ़ना।।
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मेरी उड़ान
पक्षियों को देखती हूँ
उड़ने के लिए
पंख फैलाकर
पेड़ की डालियों में
घूमने के लिए।
मोती जैसी बारिश में
चोंच लगाकर घोंसले में
जा उड़ने के लिए
सच है देखती हूँ मैं पंछी
पंख फैलाकर उड़ने के लिए।
सारे आसमान में
गली-गली के जैसे
फिरने के लिए
सोचती हूँ मैं पंख पक्षी
उड़ने के लिए।
क्या गांव, क्या शहर
और क्या जिला पार कर
फिरने के लिए
देखती हूँ मैं पक्षी
उड़ने के लिए।
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बढ़ने लगी
छोटी कहां मैं बढ़ने लगी
शायद सहन क्षमता उभर गई
इसलिए उन अत्याचारों को
मैं आज पंक्ति के रूप में लिखने लगी।
तारो को देखा करती थी
मन ही मन सोचा करती थी
क्या मैं भी ऐसी बनूंगी
इनकी तरह अत्याचारों को सहूंगी।
दुनिया से डर के मैं
डरती हुई लड़की बनूंगी
अपने कांपते पैर,
हिम्मत करके अकेले
रास्ते पर नहीं चलूंगी।
क्यों आखिर क्यों मैं
डरने लगी
उनको सबक सिखाये बगैर
खुद मैं डर कर मरने लगी।
फूल की तरह कोमल रहती हूँ
रंग- बिरंगी हसीन
ये भूल जाया करती हूँ
फूल में भी कांटे होते है
और कांटे हाथ लगाने पर चुभते हैं
ऐसी भगवान की रीति को
ठुकराया करती हूँ।
एक बार हार के
दोबारा खुद अपने आप में
हराया करती हूँ
मुझ पर जो बीता
वही अपनी बेटी पर जताया करती हूँ।
अपने सपनों को टूटता देखकर
अपनी बेटी के सपनों को तोड़ जाया करती हूँ
ये सब लिखकर ठेस पहुंचाना नहीं
ये जताया करती हूँ
जो अपने साथ हुआ
बेटी के साथ न करना
ये बताया करती हूँ।
--------- -
नारी
वीरांगनाओं की धरती की।
मैं कैसी नारी हूँ
जिस मिट्टी की शान उँची
कैसी अभागी मारी हूँ।
फूल की तरह सुन्दर
कोमल-निर्मल मैं
छत्तीसगढ़ की अनपढ़
अहिंसा कारी हूँ।
हार में हार मान जाया करूँ
ज़िन्दगी की सच्चाई
को न जाना करूँ
ऐसी सिरदर्द बीमारी हूँ।
जन्म से पहले
समझे बोझ
हे भगवान
क्या मैं ऐसी उधारी हूँ।
क्यूँ मैं हूँ ऐसी
क्या लड़ नहीं सकती
अपने अधिकारों के खातिर
कुछ कर नहीं सकती।
फूल नहीं कांटा बनती
लड़कों की तरह कुछ तो करती
बनूं तो बनूं वीरांगना
जैसे कुछ कर भिड़ी थी
अधिकार की खातिर मर मिटी थी
वैसे ही मर जाती
अमर अपनी कहानी कह जाती।
---------- --
गुनाह
कभी लगता है
गुनाह किया होगा कैसा
ज़िन्दगी में मर -मर के
जीने को
दुश्वार किया है
हे प्रभु
तभी तो ऐसा।
चाहे मार डालते हमें
उफ न करते
हर घड़ी जहर देते
तो भी
झाग न उगलते
लेकिन आपने तो
जुल्म किया है
जो ही पंसद है
उसे कई बार दिया है।
आगे बढ़ने रास्ते पर
पत्थर है फेंका कैसा
एक नहीं कई बार
उठाने की कोशिश की
पर नहीं उठा पत्थर ऐसा
सोचता है मन
क्यों है ऐसा
हार हो जैसे
ज़िन्दगी मौत के जैसा।
फिर भी नहीं हारूँगी
मैं लड़ते रहूँगी
अपने पैर में, खड़े होने तक
सब कुछ सहूँगी।
--------- --
सपना
आंखों के नीचे सपने दबाएं
नीदों को हमने सपने में उड़ाए
डर लगता है
कही झपकी गुम न हो जाए।
छोटी नहीं बड़ी नहीं
आंखें समान होती है
तभी तो
देखा जाने वाला सपना
एक से बढ़कर
एक महान होता है।
सपना मेरा झूठा नहीं
हकीकत से भी ऊंचा नहीं
तो फिर क्यों मन
सपनों की यादों में डूब जाए
मुझे अपने आप में
होश नहीं
ये हर कोई से कहलवाए।
शायद इसलिए मेरा मन
सच करने के लिए
कठिन से कठिन
कदम उठाए।
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नहीं हारना
हमें कभी नहीं हारनी
और न हम हारेंगे
अपनी इस जंग में
जीत को ही अपना
नाम बनायेंगे।
तकदीर उलट कर रख दे
जीवन सारा
हम न हारेंगे
हार गये तो
फिर आगे कदम बढ़ायेंगे।
कितने दिखा लो हार का मुँह
हम न हारेंगे
जीवन के इस जंग में
हारे हुए चाल
फिर से चलायेंगे।
लेकिन जिन्दगी को कभी
हार का मुँह नहीं दिखायेंगे
एक बार नहीं
दस बार हार जाये
फिर भी आगे बढ़ेंगे।
असफलता को सफलता के आगे
घुटने टेकायेंगे
हर कदम , हर घड़ी
आँसू आँख से आये अगर
तो उसे पोंछ के
कदम आगे बढ़ायेंगे।
हमें कभी नहीं हारना
और न हम हारेंगे
अपनी इस जंग में
जीत को ही अपना
नाम बनायेंगे।
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बदला
जब मैं थी
खोई-खोई कहीं
सोचती रहती थी
बस वहीं।
कुदरत ने भी
ठीक किया है
गरम का बदला
ठण्ड से दिया है।
आज करले तू जितना
कल मैं करूंगा
खत्म करके श्रृष्टि
मैं फिर से जड़ूंगा।
मानव की दो जाति
जीवों की कई प्रजातियां बनाई
इनमें तू श्रेष्ठ कहाया
बुद्धि का सरोवर तू पाया
शायद इसलिए
अहंकारी पापी कहाया।
बदले की आग में
आपस में लड भिड़ाया
दौलत की खातिर
अपनों को मार गिराया।
इससे भी था ऊंचा
फर्ज अपना
जिसे तूने
अंधेरे में डुबाया।
अब तो होश में आ
शांत पत्थर
पत्थर होता है
उन पर गिरने पर मौत
ये दुश्मन को दिखा।
---------- -
माँ
हमने माँ को वादा है किया
पिता को भी है वचन दिया
बोझ नहीं जिम्मेदार बनेंगे
आपकी जिम्मेदारी फर्क से लेगें
उनके सामने
बस है अपने आप से वादा किया।
सुनहरा पल छीन लेंगे
बस आपके लिए
ज़िन्दगी जीत लेंगे
जन्नत से ज्यादा जहां न मिले
बस माँ बाप का प्यार मिले।
प्यार में हम श्रवण बन जायें
माँ से पहले न प्रभु के सामने शीश झुकायें
जननी से पहले न दुनिया देख पायें
जननी ने जगत जाना
फिर भी प्रभू का नाम लिया
प्रभु ने भी माँ को नमन किया
भोग न पाये माँ का सुख
इस कारण धरती पर
कई रूप में जनम लिया।
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हकीकत
मैं उस पंछी की तरह उड़ रही
जो शायद पंख के सहारे लड़ रही
मैं हकीकत में नहीं
सपनों में ही जी रही।
मेरे सपने मोरनी की तरह नाच रही
कोयल की तरह गा रही,
भंवरों की तरह गुनगुना रही
समन्दर की तरह लहरा रही
लेकिन हकीकत में बंद कमरे में
अपना दम तोड़ती जा रही।
सोचने में भी लगी
टूटते सपने को देख
ब्लेड से अपना खून बहाने लगी
पंखे के नीचे सर झुलाने लगी।
दम तोड़ते बच गई तो
सोचने फिर मैं लग गई
किसी ने धुतकारा, किसी ने कोसा,
किसी ने ठुकराया, किसी ने भगोड़ी कहा
इन सब की बातों में
मैं कुछ सोच रही
ज़िन्दगी साहस का सबक है
ये शिक्षा मैं ले रही।
आज फिर मैं
एक कदम बढ़ा रही
माता-पिता का सर ऊंचा करने के लिए
एक बात उनकी ठुकरा रही
रिश्तों का जंजीर तोड़ के
कुछ अपने सपनों का
पंख फैला रही।
कुछ-कुछ गर्व होने लगा
मुझ पर विश्वास करना पड़ा
मेरे साहस के आगे
जमाने को घुटने टेकना पड़ा।
मैं कभी गलत नहीं थी
न गलत बनना चाहती थी
मुझे तो उड़ना था
और बस उड़ना चाहती थी।
आज चुप्पी में ही
बहुत मां लाड़ करती है
पापा गुस्से में ही सही
लेकिन अच्छी बात करते हैं
मेरे आगे नहीं
दूसरे के सामने सही
गर्व से मेरी बेटी कहते हैं।
मां की चुप्पी
पिता का गुस्सा सहन कर लूंगी
भगोड़ी का नाम नहीं
अब अपने अधिकार के लिए
हर मुश्किल मोड़ पर
जमाने से लड़ लूंगी।
--------- --
बेबसी
कुदरत तू ही बता
मैं क्या करूँ
जिन्दगी से लडूँ
या हार मान जाया करूँ।
मुश्किल डगर में
कांटों के सफर में
दुख को पीठ दिखाकर
आगे कैसे चलूँ।
पलकों पर तो है
सपने दबाएं
आजादी से जीने की आशा
अपने उन नींदों के सपनों में बनाएं।
ए कुदरत तू ही बता
मैं कैसे सच करूँ
सारी जिन्दगी
कैसे मैं लडूँ।
------ --
सुबह
सुबह का उजाला जिन्दगी का काम है
शाम का अंधेरा जिन्दगी की नींद है
प्रकृति के हैं ये नियम
और सूर्य का खेल।
कितने बीते कल हैं
कितना चलता आज
वैसे ही आएगा, आने वाला कल
बीते कल में रामायण, महाभारत
बीत गया द्वारपाल, कृष्ण का राज
चलता आज भी बीत जाएगा
हमारे आलसीपन में डूब जाएगा
फिर आया आने वाला कल
उनमें तुम सबक सीखना।
आलसीपन छोड़कर
आगे तुम बढ़ना
दुनिया को चलाना
देश निरंतर उन्नति, प्रगति कराकर
सर्व श्रेष्ठ बनना।
------ --
खुशियां
नाचना नहीं आता
फिर भी नाच रही
गाना नहीं आता
फिर भी कौवे सा
कांव-कांव गा रही
खुशी है अपनी ऐसी कि
मैं खुद ही गुनगुना रही।
पानी की खामोशी
पसंद नहीं
फिर भी तालाब के जल को देख रही
कुछ खुशियों में
कुछ गमों में
कुछ परेशानियों में
हल ढूंढते -ढूंढते
जल की एकाग्रता में खो रही।
मेरा मन फूलों ने लुभाया
फूलों का रस चुसता देख
भंवरे से मैं चिड़चिड़ा गई
मन ही मन उदास
डसका गुस्सा दूसरों पर निकाल रही
आज का फल आया,
गम की जगह खुशियां पायी
तो मैं खुद ही भंवरों के जैसे
अपनी धुन में मस्त गुनगुना रही।।
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दुनिया
ज्ञान की बात आज मैं सोच रही
ज्ञानी के जैसे बोल रही
कहां से आई होगी ममता
कहां से क्या
कहां से आई दुनिया
कहां से क्या बोलो
ह--ह--बोलो क्या।
पहले आई होगी माँ
पिता भी है जरूरी
श्रृष्टि की रचना
कहीं तक थी अधूरी।
ऐसे -तैसे भीड़ बढ़ा
पालन-पोषण के लिए
पृथ्वी श्रृष्टि के नाम से बना
पृथ्वी के संग कई आये जीव
जंगल भी आया, खुले आसमान की नींव
बहने लगी नीर की धारा
गाने लगे गीत यहां प्यारा
गीतों के संग
सात सुरों की प्यारी धुन
धुन के संग सुरों का प्यारा गुन।
लगने लगी अब भूख की मारा
मरने लगे जीव-जन्तु सारा
एक ने कुल्हाड़ी थामी
अन्न उगाने की अब ठानी
एक के संग सब जूझ गये
अन्न उगाके सबको बूझ गये।
धीरे-धीरे बढ़ा नगर
काल का हुआ
लम्बा सफर
समय का आधार ,सूर्य को बनाया
समय से सारे काम निपटाया।
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भारत
मोर, तितली, फूल, बाग बगीचे
मिलते हैं यहां सुनहरे -सुनहरे
अनमोल हैं भारत
अनमोल इनकी दुनिया।
एक पहचान इनका तिरंगा
दूजी इसकी भूमि
मिट्टी में सोंधी-सोंधी खुशबू
हर पल जैसे खींचे
रंगीन है मौसम यहां का
आसमान पर भी इन्द्रधनुष दिखे।
तीन रंगो का अपना झण्डा
सुरों के संग गुनगुनाये
शांति, प्रगति, हरियाली, खुशहाली
का गीत प्यारा गाये।
रंगो की जगह
गिरे हो खून जहां
ऐसी मातृभूमि को
वीर जवान, शहीद, जिन्दगी
न्यौछावर कर
बस वन्दे मातरम् कहते जाये
और उनकी बहादुरी, कुर्बानी से
हमारे देश का झण्डा
शान से लहराये।।
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आजादी में बदलना
खुशी जाहिर नहीं कर सकती
तनहाइयों में जाकर बदल सी जाती हूँ
जिसे मैं बेकार नहीं कह सकती ।
झूमने का मन करता है
नाचने को दिल कहता है
जिसे मैं, अनसुना नहीं कर सकती।
घर में, न गली मोहल्ले में
न मुझे चैन आता है
मुझे डर नहीं गुस्सा दिमाग मे छाता है
और उसी गुस्से को किसी के कहने पर
खुशी नहीं कह सकती।
मेरे होठों पे मुस्कान
खूबसूरत नजारे से आता है
मेरे चेहरे पे चंचलता
चिड़ियों की चहक से छाता है
इसमें मैं क्या करूं
मेरा दिला सबसे अलग है
जिसे मैं सब जैसा नहीं कह सकती।
कोई जो मुझे
मेरी सोच को
मेरी तनहाइयों की हंसी को
गलत कहता है
मेरे चेहरे की मासूमियत वो देखें
मेरे मन की सच्चाई वो देखें
और उसके सामने अच्छा बनने के लिए
पाबंदी का ढोंग
मैं नहीं कर सकती।।
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