पखवाड़े की कविताएँ

SHARE:

  महेंद्रभटनागर गाओ      गाओ कि जीवन गीत बन जाए!   हर क़दम पर आदमी मजबूर है, हर रुपहला प्यार-सपना चूर है, आँसुओं के सिन्धु में डूबा हुआ आस...

image

 

महेंद्रभटनागर



गाओ    
गाओ कि जीवन गीत बन जाए!
 
हर क़दम पर आदमी मजबूर है,
हर रुपहला प्यार-सपना चूर है,
आँसुओं के सिन्धु में डूबा हुआ
आस-सूरज दूर, बेहद दूर है,
      गाओ कि कण-कण मीत बन जाए!
     
हर तरफ़ छाया अँधेरा है घना,
हर हृदय हत, वेदना से है सना,
संकटों का मूक साया उम्र भर
क्या रहेगा शीश पर यों ही बना?
      गाओ, पराजयजीत बन जाए!
     
साँस पर छायी विवशता की घुटन,
जल रही है ज़िन्दगी भर कर जलन,
विष भरे घन-रज कणों से है भरा
आदमी की चाहनाओं का गगन,
      गाओ कि दुख संगीत बन जाए!
-----------------------------------
110, बलवंतनगर, गाँधी रोड, ग्वालियर - 474002 (म. प्र.)
फ़ोन : 81 097 300 48
ई-मेल drmahendra02@gmail.com
 
 
 
*महेंद्रभटनागर*
DR. MAHENDRA BHATNAGAR
Retd. Professor
110, BalwantNagar, Gandhi Road,
GWALIOR — 474 002 [M.P.] INDIA


E-Mail : drmahendra02@gmail.com

----------.

मनु वैरागी

तीन कविताएँ...


माँ, मैं शून्य था।
तुम्हारी कोख में आने से पहले
शून्य आकार था। एकदम शून्य
आपने जीवन दिया मुझे...
अंश बना तुम्हारा...
अनेक उपकार हैं तुम्हारे
मैं आहवान करता हूँ माँ तुम्हारा!
..............................................


लिखी रेत पे कविता
लिखा नाम तुम्हारा
लिखा क़लमा...
परवाज़ रूह हो गयी
जुगनू की रोशनी में...

...............................
हाँथो से तस्वीर उतरी
उंगुलियों ने रंग पहना
दिल के कैनवास पर
ज़िन्दगी एक नई दौड़ी

 

manuvairagi@gmail.com

http://manuvairagi.blogspot.in

---------.

रमेश शर्मा


दोहे  रमेश के

हिंदी दिवस पर
--------------------------------

हिंदी मेरे देश की,..... मोहक मधुर जुबान !
इसका होना चाहिए, और अधिक उत्थान !!

किया उन्होंने आज फिर, हिंदी पर अहसान !
दिया साल के बाद फिर, हिंदी में व्याख्यान !!

हो जाएगी  एक दिन ,दिया नहीं गर ध्यान !
भावी पीढ़ी देश की,....... हिंदी से अनजान !!

हिंदी का समझें बड़ा, खुद को खिदमतगार !
बच्चे जिनके पढ़ रहे,..... अँग्रेजी अखबार !!

अँग्रेजी में लिख रहे, हिन्दी का अनुवाद !
संसद में भरपूर है ,..... ऐसों की तादाद  !!

रमेश शर्मा (मुंबई)
rameshsharma_123@yahoo.com

---------.

सुरेन्द्र बोथरा ’मनु’


बंसी वाला चला गया


गीता के गायक का यह दिन आया आकर चला गया
धरती गूँजी] अम्बर गूँजा] पर हमने सब भुला दिया।
 
तीन लोक का स्वामी आया ग्वालों का जी बहलाने
अंबर छोड़ धरा पर उतरा जी कर जीना सिखलाने।
हम घर से बस मंदिर पहुँचे] युग आया युग चला गया।
 
लोक लाज मीरा ने छोड़ी] साँवरिए रंग राचीं
नटनागर की धुन पर खुलकर सहज उमंगें नाचीं
पंडित कितने अर्थ दे गया] जोगी उनको सुला गया।
 
वह उन्मुक्त पवन बन डोला साँस-साँस में बसने
हमने उसको बाँध दिया है बंधन खोले जिसने
जिसको सब छलिया कहते हैं वही अन्त में छला गया।
 
उसका दर्द सुना ही किसने] बंसी वाला चला गया।
&&&&&
सुरेन्द्र बोथरा email— surendrabothra@gmail.com
---------.

राजेन्द्र नागदेव


      नावें
          -

एक दिन मैं उस नदी तक चला जाऊँगा 
जिसमे कागज की कितनी ही नावें तिराई थीं मैने
नदी ही थी किसी पहाड़ या झरने से यद्यपि नहीं निकली
उसकी कहानी जंग लगे नालीदार छप्पर से आरंभ होती थी
जहाँ से सावन-भादो में पानी धार धार झरता
और आंगन में नदी बन बह जाता,
मेरी कागज़ की नावें तिर रही हैं वहाँ
नदी अबतक सूखी नहीं है मेरे अंदर

कितने ही भयानक ग्रीष्मों से गुजरा
लू के तप्त थपेड़े सहे
नदी का जल भाप नहीं बना

नदी बचपन का झुनझुना थी
बजती रही
कभी सुना मैंने
कभी नहीं भी

कापियों-किताबों में गत्ते ही शेष थे उन दिनों
बहुत नावें छोड़ी होंगीं

मेरा बचपन नावों में अब भी तिर रहा है
मैं लौटना चाहता हूँ नदी किनारे
देखना चाहता हूँ पुरातन चेहरा अपना
जो जारी सफ़र में
प्रस्थान-बिंदु सा उभरता है कभी
कभी ओझल होता

याद है, आँखों में भविष्य के कुछ स्वप्न तब भी थे
मैं परखना चाहता हूँ
आज के अपने अक्षांस-देशांतर एक बार उन्हीं आँखों से

--

अकेली
          -

वह जो बैठी है वहाँ
टूटे हत्थे वाली कुर्सी पर
अभी-अभी लौटी है एक समुद्र की नमकीन यात्रा से अपने घर
कंधे पर पर्स
और पूरे तन पर आफिस की थकान सम्हाले,
कोइ फ़र्क नहीं पड़ता
इस जग़ह को आप घर कहें या रेगिस्तान
कब्रिस्तान या फिर गिलास
जिसे भरा होना था पानी से इस समय
पर खाली है

स्त्री अपने को सात-पच्चीस की लोकल में ढोकर
छोड़ आती है समुद्र की हिलोरों पर
और डूबती-उतराती है
जबतक कि उसकी पावडर-सुवासित देह पर
चिनचिनाती नमकीन पर्त न चढ़ जाए
स्त्री चिनचिनाहट में बैठी है
नल में है केवल हवा का सरसराना

सहज नहीं होता होगा
किसी स्त्री का
अपने लिये मरुभूमि चुन लेना
फिर जलती रेत पर
फफोलों वाले पाँव रखते चले जाना,
मैं सफ़र का मात्र अनुमान कर सकता हूँ
जानता हूँ अनुमान कभी सही नहीं होते

स्त्री, पता नहीं किन सुरंगों से गुज़र कर पहुँची है
बोरिवली की चाल के इस घोंसले में
जहाँ तिनकों के सिवा और कुछ नहीं
कोई घोंसला केवल तिनकों से नहीं बनता,
स्त्री शायद यह भी नहीं जानती
लौटने के लिए कोई सुरंग अब खुली है कि नहीं

स्त्री देर तक बैठी रहेगी यूँ ही
फिर उठा लेगी रिमोट्कंट्रोल
और रख देगी वापस
कि टीवी सीरियल का जाने कौनसा रंग
अतीत के किसी चिथड़े के रंग से मेल खा जाए
और समान तरंगों वाली ध्वनियों के मिलन की तरह
अकस्मात विस्फोट हो जाए
जी उठे कोई दबी हुई आग,
स्त्री जानती है
उसके मेमोरीकार्ड में किसी फ़ायरब्रिगेड का नम्बर नहीं
बल्कि सच यह है कि उसकी दुनिया में
कोई फ़ायरब्रिगेड है ही नहीं

कितनी अकेली हो सकती है एक अकेली स्त्री
स्वयं नहीं जानती
जबतक वह अकेली नहीं होती।
*                    *                   *
                          राजेन्द्र नागदेव
                          डी के 2 – 166/18 , दानिशकुंज
                          कोलार रोड
                          भोपाल- 462042

---------.


 

बीना रौतेला


‌‌‌तेरे सितम
हसरतों की चाह में, तू मुझे भुलाता चला गया।
खबर तुझे यह न थी कि तू मुझे मिटाता चला गया॥
-------------------------------------------------------------------------------
वक्त का यह फरमान था या तेरी सज़ा।
तू जगमगाती रातों में अंधकार फैलाता चला गया॥
------------------------------------------------------------------------------
बुत बनी मैं तेरी सुरत देखती रही।
तू मेरे होठों पर खामोशी लाता चला गया॥
------------------------------------------------------------------------------
जिन आंखों ने देखे न थे कभी मंजर तबाही के।
तू अपनी कवायदों से एहसास उसे कराता चला गया॥
-----------------------------------------------------------------------
दिन बने हफ्ते, साल बनते चले गये।
हम तेरी साजिशों के गवाह बनते चले गये॥
--------------------------------------------------------------------
तेरी मेहरबानियों के करम हम पर कम न थे।
तू हर रोज सितम की तारीख ब‌ढाता चला गया॥
--------------------------------------------------------------------

परिचय: बीना रौतेला, दिल्ली 
हिंदी भाषा की कविताए लिख रही हैं।

----------.

अनिल उपहार


भरोसा ।
------
हर बार की तरह इस बार भी
आ ही गई राखी ।
न जाने कितने भाई देते है वचन
अपनी बहन की रक्षा का ।
और
कितने निभा पाते है इस वचन की
लाज ।
शहर के नुक्कड़ पर खड़े शोहदे
क्यों ताकते है ?
हर आने जाने वाली बहन कों ।
क्यों भूल जाते है वो कि -
उनकी अपनी बहन भी गुज़र रही होगी
ऐसे ही रास्तों से
और सुन रही होगी फब्तियां ।
काश! इस राखी पर ऐसा हो जाये
और सच मुच कोई भाई
अपना वचन निभा जाये ।
--
हर बार तुमने मेरी सूनी कलाई पर
अपने स्नेह के हस्ताक्षर कर
अपनी दुआओ के तमाम दस्तावेज
मेरे नाम कर दिए ।
और मैने भी रवायतो के खाली प्रष्ठ पर
अपनी जेब के कुछ पल
तुम्हारी हथेली पर रख
अपने फर्ज़ की इति श्री करली ।
क्या सही अर्थों में
निभा पाया हूँ तुम्हारे स्नेह के मूल्य कों ?
आज के इस पवित्र दिन मेरे हाथों में बंधे
इस धागे की कसम
मेरा वचन है तुमको
कि अब कोई बहन अपने भाई से
नही मांगेगी रक्षा का वचन ।
हर भाई ठीक मेरी ही तरह
निभाएगा हर वो फर्ज़
जिस पर सिर्फ बस सिर्फ बहन
तुम्हारा ही हक होगा ।
और फिर
तुम कर सकोगी बैखोफ विचरण
हजारो की भीड़ में और -
हर वक़्त खड़ा पाओगी किसी भाई को अपने साथ ।।।।।।
--

------ ------

---------.

स्मृति उपहार


-----------------------------
हर वक़्त क्यों दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है ?
मै आत्म निर्भर हूँ ये काफी नहीं ।
हर वक़्त क्यों खुद कों साबित करना पड़ता है ?
क्या मै एक लड़की हूँ काफी नहीं ।
हर वक़्त क्यों दबाया जाता है ?
मै खुलना चाहती हूँ काफी नहीं ।
हर वक़्त क्यों पर काटे जाते है ?
मै उड़ना चाहती हूँ काफी नहीं ।
हर वक़्त क्यों जीने की वजह पूछी जाती है ?
मै जीना चाहती हूँ यह काफी नहीं ।
हर वक़्त क्यों दूसरों की पहचान दी जाती है ?
मै खुद की पहचान बनाना चाहती हूँ यह काफी नही ।
अनुत्तरित है बहुत से प्रश्न जो चाहते है तुमसे समाधान
आप दोगे न जवाब ???????
----------स्मृति उपहार
द्वारा अनिल उपहार काव्यांजलि पिडावा जिला झालावाड राजस्थान

----------.

रचना -पीयू 'प्रीत'

लगी आज घोटालों की फिर वो झड़ी है
वही भांग कुएँ में फिर घुल पड़ी है ।


दौर वो भी था जब वो दर-दर घूमे थे
सुन-सुनके उनके इरादे हम भी तो झूमे थे ।
वही तो है वतन मगर, मुखौटे नये हैं
हकीकत से रु-ब-रु होकर जनता फिर रो पड़ी हैं।

लगी आज घोटालों की फिर वो झड़ी है
वही भांग कुएँ में फिर घुल पड़ी है ।


कहीं व्यापमं की चीखें, किसी ने हड़पी धरा है
खेलों, खनिजों को नीलाम कर, कहां पेट उनका भरा है?
पाक कारनामों की परदेसों तक जुड़ी कड़ी से कड़ी है
नए नालंदाओं की करतूते सीसों में जड़ी हैं ।

लगी आज घोटालों की फिर वो झड़ी है
वही भांग कुएँ में फिर घुल पड़ी है ।

☆रचना -पीयू 'प्रीत'
अलवर (राज. )

----------.

मनीष  जैन अज़ल

दर्द   छुपा   लूँ    ऐसा   कलाकार  नहीं   हूँ
दुनिया  में  हूँ  पर  दुनियादार   नहीं  हूँ
बहते   जाना  ही   मुकद्दर  हो गया अब
किसी  साहिल  का  तलबगार  नहीं  हूँ
फरेब  झूठ   बेवफाई  से  हारा  हूँ बेशक
खुद  की  नज़रों  में  तो  शर्मसार  नहीं  हूँ
हर बार  शख्ससियत  बदलता  है  मेरी
किसी  किस्से  का  मैं  किरदार  नहीं  हूँ
गर्दिशों  में  भी  खुद्दारी  कायम  है  मेरी
शुक्र    है  इमाँ   का  गुनहगार  नहीं  हूँ
जबाँ  से  कहूँगा  करके  भी दिखाऊंगा
मैं   कोई   ढुल मूल  सी  सरकार  नहीं  हूँ
हर  वक़्त  तो  मुझसे  रूठा  ना  कर
सिर्फ  तेरा  ही   खिदमतगार  नहीं  हूँ
रुबरु  ना    मिल  सके  तू  ना  सही
अज़ल  तेरे ख्यालों   का  भी हकदार  नहीं  हूँ

----------.

डॉ नन्द लाल भारती

दर्द
दर्द दांत का अकेला नहीं होता
सिर्फ दांत में
कैद कर लेता है पूरा बदन
दर्द दांत का, छेद डालता है
खूनी खंजर के  जख्म जैसे
नाक ,कान ,आँख
ऐठन डाल देता है
गर्दन में …………
झूठ नहीं सच है
दर्द भोगने वाले जानते है 
काया काँप उठती है
अतड़िया तड़प उठती है
दांत के दर्द में …………
छीन जाता है सकून
पेट में भूख का
झोंका उठता रहता है
दांत इजाजत नहीं देते
जब होता है दर्द दांत में ……
होती है तो बस जदोजहद
ज़िन्दगी पतझड़ हो जाती
बसंत में भी
पलके  रिसने लगती  है
जब जब उठता है
दर्द दांत  में …………
सच ऐसे ही दर्द का ,
जीवन हो गया है
हाशिये के आदमी का
स्नेह का झोंका तनिक
सकून दे जाता है
दर्द में कैद  आदमी को …………
उपचार जब  मिल जाता है
बेपटरी ज़िंदगी
पटरी पर दौड़ पड़ती है
काश
भारतीय समाज में
जातिवाद से उपजे
भयावह दर्द का
पुख्ता इलाज हो जाता …………
हाशिये के आदमी का
जीवन हो जाता सफल-समान
दौड़ पड़ता अदना भी
विकास के पथ पर सरपट
जातिवाद रूपी
दांत के दर्द की कैद से छूटकर 
सदियों से जो दर्द
पालथी मार बैठा है
भारतीय समाज में …………
------------.

सुधीर पटेल


आरजू नहीं थी कदमी डूब कर मरने की,
मुझे तो सिर्फ समंदर की गहराईयाँ पूछना था.
टूट सा गया हूँ जीवन की नाकामियों से
तुझसे तेरे जीने का सलीका सीखना था.
चिराग जलाने की तमाम कोशिशें नाकाम रही मेरी
ऐ हवा! मुझे तुझसे कौन सा गले लगना था
किसी ने मिन्नतें तो किसी ने खुशमिजाजी माँगी,
मेरे खुदा मुझे अपने गुनाहों का हिसाब पूछना था...
मुनासिफ था डूबना मेरा इश्क के दरियाँ में
अक्सर उनका हमारी गलियों से जो गुजरना था.
चादरें मजार पर बेहिसाब चढ़ती रही
बाहर किसी बदनसीब शख्स को ठंड से मरना था.
काश थम जाए यही नुमाइश इन सितारों की,
मुझे चाँद को कुछ देर और तकना था.

कांटों के नसीब में कभी गुलाब नहीं आते,
कमबख्त ये अश्क भी बहने से बाज नहीं आते ।
अब कौन समझाए इन नादान ऑखों को,
इनके बहने से पतझड़ में सावन नहीं आते ।
कदमों की आहट से ही जान जाते थे वो कभी,
आज उन्हें दिन के उजालो में हम नजर नहीं आते
मेरे दुश्मनों से मिलती है कुछ फितरत तुम्हारी,
वो भी वार करने सरेआम नहीं आते।
किसी की बख्शीश पर कब तक करोगे गुजारा,
पत्थर उछाले बिना पेड़ो से आम नहीं आते ।
मैं भी गुनाहगार हूँ इश्क में तबाही की,
क्योंकि बन्द घरों में कभी मेहमान नहीं आते।
कुछ कम लोग नहीं इश्क में तबाह यही
न जाने क्यों सबक कोई सीख नहीं पाते।
बेहद खूबसूरत तरीके से लिखा है जज्वातों को,
पर आप मेरे किरदार को कभी निभा नहीं पाते।
ये तो अपने अपने हुनर की बात है मेरे दोस्त,
कुछ गजल तो कुछ शायर को समझ नहीं पाते।

-----------.

अंजली अग्रवाल

जिन्‍दगी उस घड़े का नाम है ॰॰॰॰॰॰
जिसमें डेरो पत्‍थर डालने के बाद पानी ऊपर आता है ॰॰॰॰॰॰
और हम वो पंछी हैं जो आकाश में उड़ते वक्‍त तक तो बड़े खुश रहते है‚
पर प्‍यास लगने पर ये पत्‍थर डालना हमारी परेशानी बन जाती है ॰॰॰॰॰॰

बस थोड़ी सी मेहनत करना है॰॰॰॰॰॰


हम अपने हाथ का सही उपयोग तब कर पाते है‚
जब हमें पता होता है कि हमें इस समान उठाना हैं॰॰॰॰
ठीक उसी प्रकार हम अपने दिमाग का सही उपयोग तब कर पाते है‚
जब हमें यह पता होता है कि हमें क्‍या करना हैं।


एक पंछी के उड़ने में उसकी सबसे बड़ी बाधा हवा हैं ‚
पर सच यह भी है कि हवा के बिना एक पंछी ढंग से उड़ नहीं सकता॰॰॰॰
ठीक उसी तरह मनुष्‍य के जीवन की सबसे बड़ी बाधा ये परेशानियाँ है ‚
पर सच यह भी है कि इन परेशानियों के बिना मनुष्‍य जी भी नहीं सकता॰॰॰॰

जिन्‍दगी की राह में चलते — चलते जब लगे कि थक गयें हैं आप ‚
और थोड़ा रूकने का मन करे‚
तो समझ लेना कि अभी तक तो सिर्फ जिन्‍दा थे आप‚
और अब जीना चाहते हैं आप।

मंजिल उसी को मिलती हैं‚
जिसे रास्‍तों से प्‍यार होता हैं‚
जो दर्द को भी मरहम बना ले‚
कारवां उसी का होता है।
-------------.

मुकेश कुमार


लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


गाथा गायी तेरी अग्नि ने
समन्दर की रेत पर
योंही चलते रहना अब्बा की नाव की तरह
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


बनकर एक नया जन्म लेना तुम
माँ के त्याग का गुणगान करना
रहकर अब्बा संग तुम परछाई बनना
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


कलम के कलाम हों तुम
प्रकृति के रखवाले हो तुम
जूही के फूल हो तुम
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


इंसान के रूप में भगवान हो
कौन कहता हैं भगवान नहीं होते
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


बताते जाओ मुझे मैं कहा मिलूँ तुम्हें
तुमने कहा था रातों के सपनों में नहीं
दिन के उजाले खुली आँखों के सपनों में
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


यही इंतज़ार करुँ रामेश्वरम के तट पर
मस्जिद की चादर पर या मन्दिर की गेट पर
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


कहते हैं की बंज़र जमी में पेड़ नहीं होते
गलत हैं कहने वाले मैंने तो तुम्हें फूल उगाते देखा।
एक आदर्श हों
जो तुम्हारे बताये  पथ पर चलें।
एक शिक्षक हो
जिनसे ये दुनिया सीखी हैं।
लिखना चाहता हूँ कागज़ पर
कलाम तुम्हारे बारे में...
शब्द नहीं हैं मेरे पास


तुम आत्मा हो परमात्मा की
तुम जीवन हो शून्य धरा की
कलम के कलाम हो तुम


मुकेश कुमार
राधाकिशन पुरा, सीकर,
राजस्थान,भारत

---------------.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पखवाड़े की कविताएँ
पखवाड़े की कविताएँ
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjx04Pzw1DDBXaqEgWaAJ-yjqq5I3Xf4X0638McOMNd6rRc2dQ_0H5WgNSkAou2s64ra0tZh_RsBmk1waK1aof3ozalhuKUh27MppOA2r8M_jg-3ZEWd48dgnxM1BIg0JsBxb10/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjx04Pzw1DDBXaqEgWaAJ-yjqq5I3Xf4X0638McOMNd6rRc2dQ_0H5WgNSkAou2s64ra0tZh_RsBmk1waK1aof3ozalhuKUh27MppOA2r8M_jg-3ZEWd48dgnxM1BIg0JsBxb10/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/09/blog-post_48.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/09/blog-post_48.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content