( पिछले दिनों रचनाकार में मीना जांगड़े की कुछ कविताएँ प्रकाशित की गई थीं . पाठकों के विशेष आग्रह पर मीना जांगड़े के दो कविता संग्रह में स...
( पिछले दिनों रचनाकार में मीना जांगड़े की कुछ कविताएँ प्रकाशित की गई थीं. पाठकों के विशेष आग्रह पर मीना जांगड़े के दो कविता संग्रह में से एक माँ नाम मैं भी रखूंगी यहाँ प्रस्तुत की जा चुकी है. प्रस्तुत है उनका दूसरा संग्रह सोच बदलनी है. सहयोग के लिए श्री संजीव तिवारी का विशेष आभार)
सोच बदलनी है
कु. मीना जांगड़े
जीवन परिचय
मीना जांगड़े आत्मज रामबगस जांगड़े आत्मजा जगाना बाई जांगड़े का जन्म 20 सितम्बर 1995 को ग्राम खुटेरी तहसील आरंग जिला रायपुर (छ.ग.) में हुआ। यह पांच भाई-चार बहनों में आठवें नम्बर की है। प्राथमिक शिक्षा गांव से तथा माध्यमिक शिक्षा गांव में न होने के कारण उमरिया से ली, हायर सेकेंडरी के लिए परसदा जाना पड़ा, जहां गणित में कमजोर होने के कारण दो साल दसवीं गणित में फेल हुई, न चाहते हुए भी फिर स्कूल छोड़ना पड़ा। 2008 में जब किसी गलती पर इनके बड़े भाई ने इनको थप्पड़ मारा उस वक्त बचपना और सही गलत की समझ न होने के कारण गलती नहीं मानी। अपने भाई को कुछ बनकर दिखाने और अपने पांव में खड़े होने की जीत और शर्त रख दी। इस घटना के बाद इनमें पागलपन या आत्मनिर्भर बनने का जुनून सवार हो गया।
पर गणित में कमजोर होने के कारण दसवीं पास नहीं कर पाई। जिसका जिम्मेदार खुद को समझकर वह किसी से नजरें नहीं मिला पाती थी। जिसके बाद यह हार की दुनिया में जीने लगी। अपने स्कूल के प्राचार्य की कुछ ऐसी बातें थी, जिनसे इन्हें बहुत शिक्षा मिली जिनकी कुछ-कुछ बातें इन्हें आज भी याद है, जैसे कोई इंसान किसी चीज में कमजोर है, तो ऐसा नहीं कि वह कुछ कर नहीं सकता हममें और भी ऐसे गुण होते हैं, जिससे हम हर ऊंचाई को छू सकते हैं, अगर मेहनत और लगन से करे। यह बात मन में घर बना गई थी।
सोचती थी कहीं से कमजोर तो नहीं। यही बातें प्रेरणा और हथियार बनी। बचपन से ही कविता लिखती और फेंक देती थी एक दिन समाचार पत्र में इन्होंने एक कविता पढ़ी तब इन्हें लगा कि ऐसा तो मैं भी लिखती हूं। इसे मैं भी छपवाने के लिए समाचार पत्र में भेजूंगी, ऐसा सोचकर पता ले लिया उस समय इन्हें रायपुर डाक्टर के यहां आना पड़ता था। जब एक दिन डाक्टर नहीं मिले तो अपनी कुछ कविताएं लेकर उस पते में अपनी मां के साथ चली गई जहां एक मैडम ने दीनदयाल साहू भईया से मिलवाया उस वक्त इनके शब्दों में मात्राओं की बहुत गलतियां होती थी जिस कारण वह कविताएं छपी नहीं पर हार नहीं मानी और कविताएं लिखकर किताब छपवाने की सोची और साहू भईया के मार्गदर्शन में एक साल तक अपनी उलझनों को कविता के माध्यम से लिखा जिसका पूरा श्रेय दीनदयाल साहू भईया को जाता है। जिन्होंने गलतियों को सुधारकर कई शिक्षा, दी जिससे मैं अच्छे ढंग से कविताएं लिखने लगी।
पर इनके घर में ज्यादा पढ़ी-लिखी, पहुंच और गरीब होने के कारण जल्द नहीं छप पाई किताब, तीन साल का लम्बा सफर तय करना पड़ा। इसके बाद साहू भईया और कुछ आदरणियों के कहने पर इन्होंने 2015 में दसवीं ओपन में पेपर दिलवाया और आगे पढ़ने लगी। यह बात सबसे पहले आनी चाहिए कि इनकी मां का इनके उज्जवल भविष्य में एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनना कि जिन्होंने अपनी हर मजबूरी, अपनी पुरानी सोच से टकराकर अपनी बेटी के लिए उसके सपने, खुशियां देने उनकी ममता घर कर गई। इनके परिवार के हर एक लोगों ने इनकी मदद की। मां-पापा, भईया-भाभी, दीदी-जीजाजी और गांव, गांव के लोगों ने जिन्होंने हिम्मत जगाई, जिसके लिए इन सभी की आभारी है।
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मेरी दास्तां
बेटी हूं
इसलिए घर में
कैद रहूंगी
मैं तो
अपनों का तोहफा लेकर
जन्म लेते ही
अपनी मां और बाप
के हाथों ही
मर मिटूंगी।
कैसी किम्मत है मेरी
जिसे मैं
किसे कहूंगी
बेटी बनी
बहन बनी
बीवी बनी
और फिर एक मां बनकर
बेटी बोझ है
ये नाम रखूंगी।
कोई बाप जंगली होगा
तो मैं शायद गाय रहूंगी
तभी तो भेद-भाव लालच
हवस, नफरत, दरिन्दगी
सीधी-साधी होने के कारण
सूली चढ़ूंगी।
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सीमा
जीना चाहूं खुलकर
पर बेड़ियां
सोच ने बांधी है
हर घड़ी आजादी से
हंसना चाहूं मैं
पर मुस्कान
गम ने छीनी है।
मयूरी की तरह
नाचना चाहूं
कोयल की तरह मैं
गाना चाहूं
पर मेरी खुशियां
ज़िन्दगी में हथकड़ियां
शर्म ने बांधी है।
दिल में जीने की चाहत
मन में सीमा की आहत
क्यूं आपने
मेरी दुनिया में
मेरे सपने में
मेरी हर एक चीजों में
मेरे घर में
आपने मेरी सीमा
तय कर डाली है।
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ऐ भारत
ऐ भारत, ऐ भारत मेरे
आसमान से ऊंची,
ज़िन्दगी से महान मेरे।
ऊँचे - ऊँचे पर्वत है जहां
नीले - नीले आसमान की छाया
हर कदम पर
मिले हरियाली जहां।
उड़ते मयूर जमीं पर
नाचे जहां
वहां है खूबसूरत शमां
झूमे मन नाचे तन,
बोले ये मनमोहनी जुबां।
ऐ भारत, ऐ भारत मेरे
आसमान से ऊंची,
ज़िन्दगी से महान मेरे।
पतझड़ भी अपने आपको
खूबसूरत बताये
मैं इसी देश का हूँ
ये घमंड जताये।
ये घमंड आम नहीं
मैं यही बताऊँ
इतना सुन्दर है मेरा देश
की इसकी सुन्दरता दर्शाऊं
मीठी जुबां न खुद को पाए
इसकी सुन्दरता में
चार चाँद लगाए
और बोलता जाएं,
ऐ भारत , ऐ भारत मेरे
आसमान से ऊंची,
ज़िन्दगी से महान मेरे।
पानी की तरह बहाऊँ
अपनी जिन्दगी नामक
फूलों को हार बनाकर
तुमको पहनाऊँ,
ये भी मुझको कम लगे तो
हर जनम तुझपे वार जाऊं
मन रोके, दिल ना रोक पाएं
दिल की सच्चाई
आईने की तरह दिखे
और जुँबा
बस बोलता जाये
ऐ भारत ,ऐ भारत मेरे
आसमान से ऊँची,
ज़िन्दगी से महान मेरे।
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डर
सपना टूटे मत
वरना मैं टूट जाऊंगी
शरीर तो रहेगा लेकिन
जिन्दा लाश बन जाऊंगी।
दूजे को हिम्मत देती हूं। लेकिन
मैं खुद हिम्मत हार जाऊंगी
अपनी सांसो को मैं
अपनी बातों को मैं
अपने साथ ही लेकर
अपने दिल को थाम जाऊंगी।
मैंने देखा है बहुत हार जिन्दगी में
कि अब न मैं
हार सहन कर पाऊंगी
राहों पे मैं चली थी
लेकिन काटे थे बहुत उनमें
मंजिल तो दूर थी
लेकिन मंजिल की
कोई महक न थी उनमें
के अब न मैं चल पाऊंगी।
चलते-चलते चल रही हूं
के गिर न जाऊं
दुनिया के डर से
कई बार गिर कर उठी हूं। लेकिन
अब गिरी तो मैं न उठ पाऊंगी।
अपनी सांसो को
अपने साथ ही लेकर
अपनी यादों को
अपने साथ लेकर
मैं मर जाऊंगी।
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सबसे अलग
सब जैसी नहीं
सबसे अलग बनूंगी
मैं इस दुनिया में
इतिहास रचूंगी।
सब जानते है मुझे
पर सबसे अलग है
ये कहलाऊंगी
मैं अपने भविष्य को
ज़िन्दगी को भव्य बनाऊंगी।
आसमान का तारा
मेरा नाम नहीं
और न होगा
क्योंकि मैं तो
चांद कहलाऊंगी।
मेरा भूत नहीं था रौशन
लेकिन भविष्य बनाऊंगी
हर कदम पर अपना रूप
हर लड़की,
हर औरत पर बिखराऊंगी।
मेरा रूप पाकर
कोई औरत जुल्म न सहेगी
इसीलिए तो हर नारी के मन में
हिम्मत और विरोध जगाऊंगी।
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जिन्दगी
जिन्दगी मेरी,
खत्म होती जाये
हर तरफ अंधेरा
बस अंधेरा नजर आये।
समन्दर में न कोई किनारा
सड़क में न मोड़ आये
जिन्दगी का वक्त ही
रेत की तरह फिसला जाये।
रौशनी देखती आंखें
अंधेरे से डर जाये
वह भी प्रकृति की देन है,
फिर मेरा दिल क्यों घबराये।।
क्यों आती है ऐसी यादें
ऐसी बाते,
दुखाया मन,
सोच के भी और दुखाये
ज़िन्दगी ऐसी लगे
बस खत्म होती जायं।।
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जगाना
किसका विरोध जगाऊं
कौन है सोया
मेरी तो सोच है
और मेरे सोचने पर
हर एक इंसान
अपनी-अपनी दुनिया
जीने में ही खोया।
़ मैं क्या सुना सकती हूं
मैं क्या कह सकती हूं
इन सबको
जब ये अपनी-अपनी आंखों में
अपने-अपने को संजोया।
किसी के सपने पर्वत होते हैं
पर उन्हें
चढ़ने के लिए
रास्ता नहीं मिलता
मैं क्या उन्हें जगाऊंगी
जब वो खुद ही
एक बार हार जाने के बाद
हार को ही,
ज़िन्दगी में अपनाया।
हार मान गये ज़िन्दगी में
तो कुछ चीजें देखा कीजिए
वो हार कर
हार न माना करते
उनसे थोड़ा सबक लिया कीजिए
सच में वही है
ज़िन्दगी के हमसाया।
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कर्म
पैसा जो जीवन चलाये
हर मुश्किल डगर में
सबके साथ छोड़ देने
साथ निभाये
जिसके आने से
हमारी ज़िन्दगी सुखमयी बन जाये
वह ज़िन्दगी में आता है काम से।
नजर झुकने से पहले
फर्क से उठ जाये
शर्म न इसके आगे आये
जहां जाओ जहां आओ
स्वागत के लिए नजरे
सम्मान बिछाये
ऐसी ज़िन्दगी मिलती है
वीरता भरे नाम से।
उनके जैसी क्षमता
उनके जैसी वीरता
उनके जैसी क्षमा और प्रेम
की सद्बुद्धि चाहूं मैं
हर जीवन में मिले जो
उनका आशीर्वाद
यही मांगूं मैं
भगवान राम से।
पर्वत में शिखर में हो
आकाश, गगन में हो
भू-अंबर जल में हो
तो भी याचना कर आऊं
तीर्थ जाने में जो पुण्य है
बस तुम्हारे धाम से।
हरे राम हरे राम
भज लिया प्रभु बहुत
भज के देखूं माता-पिता को
जो ज्ञान मिला तुमसे
जो नाम मिला तुमसे
जो वरदान मिला तुमसे
उससे भी बढ़कर मिल जायेगा
मेरा जीवन सफल हो पायेगा
माता-पिता को प्रणाम से।
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मेहनत मेरी रंग लाये
भगवान करे मेरी
ये मेहनत रंग लाये
ज़िन्दगी से मेरे
मां बाप के
गरीबी भाग जाये।
जो किल्लत उठाते हैं
पैसो के लिए
दूसरों के सामने
सर झुकाते है
पैसो के लिए
वो किल्लत मेरी मेहनत से
दूर भाग जाये।
काम करना चाहती थी मैं
पर उनके लिए
दुनिया का डर मेरे आगे है
मेरे साथ कुछ
हो न जाये
यही एक बात है जो मेरे पांवों में
बेड़ियां बनकर
उनके हाथों बंधवाये।
देखती थी मैं उनको सोचते
पैसो के लिए
अपना एक-एक आंसू
पसीने के रूप में बहाते
मैंने भी सोच लिया था
कि ऐसा क्या करूं
जिससे घर से निकले बिना
इनकी परेशानी, गरीबी
और ऐसी सोच बदल जाये
करते -करते कर लिया मेहनत
नाम देना बाकी है
कामयाबी की इस मोड़ पर
शिखर पाना बाकी है
जो कामयाब होने के बाद
मुझे अपने पैरो पर खड़ी
ये अच्छी इंसान बना जाये।
भगवान करे मेरी
ख्वाहिश पूरी हो
ज़िन्दगी में चाहा था
अपने माता-पिता को
अपनी जिम्मेदारी पर रख सकूं
ऐसा भगवान से
वरदान मांगा था
ये मेहनत जल्द ही
रंग लाये..............
गरीबी और बदहाली
मेरे हाथों
हमारी जिन्दगी से
दूर चली जाये।
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अपना
नाम बड़ा करूंगी अपना
उस जहान में
इस दुनिया में
सबसे आगे कदम बढ़ाऊंगी अपना।
जो आपने है मांगा
जो आपने है चाहा
वो न मैं करूंगी।
जीवन में अपना।
श्वेत है घर आपका तो
क्या में श्वेत रहूं
आपके घर की चार दीवारों में
घुट-घुट कर जीती रहूं जीवन अपना।
सुख हो तो हमसे आयेंगे
दुख हो तो रो रो रो कर जायेंगे
लेकिन न ज़िन्दगी में जगह
ले पाओगी मेरा अपना।
मैं कोई माला नहीं
जो चमक से ही पहचानी जाऊं
दुनिया के बेनाम डगर में
चुपचाप चलती जाऊं।
मेरी भी कोई सुनलो
हर दम सोने के पिंजरे
नहीं होते मेरा घर
ये बनलो और
मुझ पर हक नहीं आपका अपना।
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हक
फूल के बाग में जाने से
फूल नहीं मिलता
सच में
माली जो पाले उसे
उसे तोड़ने का
हक नहीं रहता।
सींच कर
एक-एक पत्ती
पेड़ बना देता है
फिर उसी को जाने क्यूं
हक जताने का
हक नहीं रहता।
फूलों पर मन्डराते
एक-एक भंवरे को
फूलो के पास जाने से
भगा देता है
पर खुद के घर से
बदकिस्मती भगाने का
वक्त नहीं रहता।
साया बनकर पाले उसे
क्या धूप क्या गरमी से
बचाये उसे
जिसे खुद ही
छूने का अधिकार
नहीं रहता।
ऐसा क्यूं, क्यूं ऐसा
कि उन्हें
अपनी ही ज़िन्दगी जीने का
अधिकार नहीं रहता।
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नासमझ
जानूं न ये क्या
हो रहा है
इस कच्ची उमर में
क्या पक रहा है
बहुत भोली हूं मैं
नहीं नासमझ हूं मैं
जो यह कर बैठी हूं।
न हूं मैं इतनी बड़ी
कि समझदार बन जाऊं
छोटी हूं छोटी
हर एक को समझाऊं
फिर भी मैं नासमझ
उनकी बात मान बैठी हूं।
मैं तो भोली मासूम परी हूं
इस जहां की
आपके घर आंगन की
मैं छवि हूं
हर बात को जो तुम कहो
मैं भी कहती जाऊं
ऐसी मैं गधी बन बैठी हूं।
बड़ी नहीं
छोटी हूं मैं
माता-पिता का अर्थ भी
नहीं समझती
अपने पैरो पर न खड़ी
मैं ऐसी बचपन पहेली बन बैठी हूं।
आपने जो कहा
वही मैं आज कर रही
जिम्मेदार नहीं हूं
जिम्मेदार बनने का ढोंग कर रही
शरारत में बचपन का
बोझ नहीं उठता था अपना
जिसे मजबूरन उठा बैठी हूं।
मजबूरन उठाया है
बीना सीखे समझे चूल्हे को अपनाया
मासूम हूं इसकी सजा
भुगतनी पड़ेगी
आग की भूख
मुझे अपनी जान से भरनी पड़ेगी
आपकी गलती का खामियाजा
चार दीवारों में कैद
मरकर जान दे बैठी हूं।
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पैसा
कल दान मिलता था
मंदिर में जाने से
फल-फूल और माथा
प्रभु के आगे टिकाने से
आज क्या हो गया
भगवान की जगह
पैसे ने ले लिया।
मंदिर में खड़े कोई भूखे को
ज़िन्दगी से हार चुके
कोई लूले लंगड़े को
दया और दवा मिलती थी
आज न भूखे को दिया
लूले लंगड़े को न दवा मिलती है
सच में आज क्या हो गया
भगवान की जगह
पैसे ने ले लिया।
काल से पहले न
मौत आती थी
वही मौत आज
कहकर आने लगी
काल नहीं
पैसे के लिए
काल बनकर मनुष्य ही
मनुष्य को उठाने लगा
हाय राम
आज क्या हो गया
भगवान की जगह पैसे ने ले लिया
मां-बाप में क्लेश
भाई-भाई में दुश्मनी
कराने लगा
ये पैसा ही है रावण
जो हर सीता को
बिकवाने लगा
हे प्रभु।
आज क्या हो गया
भगवान की जगह
पैसे ने ले लिया
हर सीता का रावण
हर नारी का दुश्मन है
पैसा ही है पैसा
और पैसा ने ले लिया।
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विश्वास
किसी को देख के
किसी को सुन के
किसी के कहने पर
मेरी जिन्दगी का
फैसला न करना।
एक हो गयी गलत
मेरी भी हो जायेगी
इस गंदगी में
सिमट जायेगी
ये न कहना।
ज़िन्दगी हूं मैं
एक मासूम जिसे
अपने ही डर से
रिश्ते का ढोंग करके
न बेचना।
समन्दर एक है
पानी भी एक
जाति भी एक
लेकिन मछली अनेक
जिनका रंग, रूप, आकार अलग
तो इसी उदाहरण को अपनाकर
मुझे अपने मन में
एक जैसा न करना।
आप की ही परवरिश की मैं बिटिया हूं
संस्कारों से सजी , सादगी से भरी
मैं गुड़िया हूं
तो इसे हमेशा गर्व भरी
नजरों से ही देखना।
आप की ही देन
खुशियां सारी
ज़िन्दगी मेरी
तो बस यही प्यार और विश्वास
मुझ पर बनाये रखना।
दिखाये कोई तो
उस जगह से चल देना
कहे कोई तो
उसी वक्त अनसुना कर देना
बेटी से पूछे बिना
किसी के कहने, दिखाने पर
सिर से मेरे
विश्वास भरा हाथ न उठाना।
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जिन्दगी की चाहत
जमीं में हूं
लेकिन
आसमां में
घर बनाना चाहती हूं
मैं अपनी ज़िन्दगी में
बहुत ज्यादा नाम कमाना
चाहती हूं।
शिखर पर्वत का
या फिर
महासमुंद्र बनना चाहती हूं
जमीं में हूं
लेकिन आसमां में
घर बनवाना चाहती हूं।
नटखट भंवरे को
मैं मजा चखाना चाहती हूं
फूलो से उसे हटाकर
खुद तितली बनकर
फूल पर बैठना चाहती हूं
सफेद तारो को
मैं रंगीन बनाना चाहती हूं।
चांद जो ऊपर बैठा होता है
उसे अपनी आंखों में
मैं सजाना चाहती हूं
सच में मैं
जमी में हूं
लेकिन
आसमां में घर बनाना चाहती हूं।
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सोच बदलो
सोच मेरी है
आदत मेरी है
ख्वाहिश मेरी है
कोई जानेगा क्या।
मैं सीख नहीं दे रही हूं
जीने की
जीने देने की
कोई मानेगा क्या।
दुनिया का विस्तार हुआ
बदलने को ही
सो बदल रहा
ये जानेगा क्या।
बदल गई दुनिया है
बदल गई शमा है
बदल गये लोग है
फिर मुझको ही बदलने नहीं दिया
ये जानेगा क्या।
दुनिया बदली तो
खूबसूरत शमा बन गयी
भविष्य बदला तो
इतिहास बन गया
ये हकीकत बयां करके
समझाऊं क्या।
किस-किस की बात बताऊं
अपने दिल के राज सामने लाऊं
वो न समझे है
वो न समझेंगे
और न कभी समझ पायेंगे
ये बात मैं सुनाऊंगी क्या।
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जिद
मैं हार गयी हूं
लेकिन न हारने की
ज़िद है बाकी
अंदर ही अंदर टूट रही हूं
लेकिन अभी
हिम्मत है बाकी।
दिल तो मेरा
बस यही कहता है
हार गयी तू
लेकिन मन की
जिद है क्यूं
हिम्मत तो कर
सारा समय है बाकी।
गिरने के डर से
चले ही न
तो चल कब पायेंगे
घुटना के बल रहे तो
सर उठा कब पायेंगे
इसीलिए हिम्मत तो कर
सारी जिन्दगी है बाकी।
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मन दुखता है
सोच के ही
मन दुखता है
मेरे घर
हर एक घर
यही है वही पुरानी रीत के
काटे के जैसे दिल चुभता है।
हर मोड़ पर
हर गली पर
फिरता पक्षी कहता है
हे पाबंदी से बंधी
हे बदकिस्मती से सजी
अन्न दात्री मुझे कुछ दे दें
यही फेर वो मुझसे करता है।
सच ही तो है
जन्म से मृत्यु तक झेलूं
ऐसा साया हूं मैं
मनुष्य होकर मूरत की तरह जीयूं
ऐसी काया भरी
छाया हूं मैं
इसीलिए मुझमें
अन्दरूनी चोट हुआ करता है।
चार चांद लगा दिया
घर के रौनक में
अब मुझे मन से
सजने भी दो
जो मन से सजा बैठा है सपना
उसे सचकर उड़ने भी दो
इसी से तो
मन जिया करता है।
जन्म ली जब
बोझ मान-मान पाले है वो
मुझे प्यार नहीं मिलता
फर्क मिलता है
क्यों वही जाने है वो
शादी कर दिया तो मुझको
चार दीवारों की रानी
घर की नौकरानी बना देते है
क्यों जाने है वो
इसीलिए दुनिया पर से
विश्वास मेरा उठता है।
मेरे भी कुछ
सपने होते है या नहीं
मेरी भी कोई दुनिया
होती है या नहीं
मैं भी कोई इंसान
हूं या नहीं।
बस और बस
वही जाने है वो
इसी कारण मेरी जान
शरीर से छुटकारा किया करता है।
लेकिन मैं कहती हूं
वह हर लड़की हर नारी भगोड़ी है
जो पिंजरे को तोड़ न सकी
अपने सपनों को खुला छोड़ न सकी
वो अनबूझ न कही न
मेरी सहेली है, हिम्मत ऐसी सोच है
जो हार को भी हिम्मत दिया करता है।
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दर्द
दुख
बहुत दुख होता है
मेरी ही जिन्दगी ऐसी
के दिल
फूट-फूट कर
रोता है।
किस्मत को दोष दूं
या उपरवाले को
दोषी ठहराऊं
लेकिन इससे
आंसू नहीं रूकता है।
पलकें बन्द करके
आंसू को रोकने की
बहुत कोशिश की
पर यह धारा की तरह
बहता ही बहता है।
मैं जानती हूं
दूसरों के लिए
ये आंसू है
मेरे लिए
जख्म खाकर निकला खून
जो किसी को नहीं कभी दिखता है।
कोशिश की थी बहुत मैंने
पर क्या
दूसरों को दिखता है
कैसे ठोकर खाके
जी रहा दिल
क्या किसी को कभी
दिखता है।
हंसी में हंसने से
जख्म न मेरा भरा है
और न कभी भरेगा
किसी के कह देने पर
किसी के दिखा देने पर
मेरा समय वही पे जा
रूकता है।
समझाऊंगी मैं क्या
किसी को
अपने दिल की बात
दर्द मेरे दिल का
और दिमाग का राज
जब कोई नहीं मेरी
सुनता है।
कभी मेरा
मरने का दिल करता है
खामोशी ही मेरी
सहेली बनके मेरी बात
सुनता है।
भीड़ में मैं
भूल नहीं पाती
कि मैं मैं हूं
कोई दूजी नहीं
और न मुझ जैसी कोई हो
हे भगवान
तुमसे बार-बार बिनती
मेरी हर एक टूटती सांसे
करता है।
मैं कभी
खुद में नहीं होती
न दिमाग भी मेरा
मुझमें नहीं होता
जख्म है इतने
दिल में
कि दवा जख्म भरकर भी
नहीं भरता है
किसको कहूं
कि मैं टूट रही हूं
अन्दर ही अन्दर
अपनी सांसे शरीर से
छुड़ा रही हूं
ऐसा बाले देने पर
मेरा विश्वास कोई नहीं
करता है।
मरने से नहीं
मेरा दिल डरता
बस खौफ है
दिल में
जो मेरी सांसे
थम जाने के बाद
मेरी ही अंश
मेरी ही जाति
मेरी ही बहन बेटी पर
ये दर्द न कभी मुड़ पाये
ये कभी न मुड़ता है।
क्यों मेरी ज़िन्दगी ऐसी
चोट न होकर
चोट लगी जैसी
सांसे चल-चल कर
थमी ऐसी
कि भगवान तुमसे
ऐसी ज़िन्दगी
न मांगने का दिल कभी
न सोचते है।
दर्द
दर्द होता है
मेरा क्या कोई समझेगा
जब मैं ही
अपने आप में नहीं तो
जीने की
मरने की
ऐसी जिन्दगी पाने की
कभी न तुमसे दिल
ये दुआ
करता है।
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मेहनत का फल
मेहनत किया है
बहुत ही बहुत
ज़िन्दगी हार से
लड़ी है
बहुत ही बहुत।
बेशर्म हो रही आंखें
रूक-रूक के चल रही सांसे
ज़िन्दगी में मेरी ज़िन्दगी
खामोश बस कह रही है
बहुत ही बहुत।
इतनी दुनिया है
इतने लोग
इतना पैसा है इतने रोग
कमाने की बजाय
गुम न हो जाऊं
बहुत ही बहुत।
मैंने बनाई है छवि
रंग तो चढ़ानी पढ़ेगी
नाम मिले उसको
इसलिए किन्हीं के
दरवाजे खटखटानी पड़ेगी
बहुत ही बहुत।
पूरा हो जाये मेहनत
पूरी हो जाये मेरी दुनिया
पूरा मेरा नाम
उस दिन खुशी होगी मुझे
बहुत ही बहुत।
झूमूंगी, झूमूंगी
और कहूंगी
ऐ जिन्दगी मेरे
ऐ खुशी मेरी
मुझे अपने आप में खुशी है
बहुत ही बहुत।
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गम
वक्त है आधा मुश्किल
ज़िन्दगी में मेरे
चारों तरफ गम है
जैसे छाया जिन्दगी में मेरे
आंखें आंसू से भरी
मन उलझन में उलझी
ज़िन्दगी गम में डुबी लगती है
मुझको ज़िन्दगी ये मेरी।
रूला ले
आज जितना रूलाना है
मार से नहीं
कड़वे बोल से तड़पाले
जितना तड़पाना है
ये समय मेरा तेरा है
जिन्दगी ये मेरी ।
काटे चुभे अगर मुझको
तो दर्द तो होगा
दुखो के इस मोड़ पर
कही न कही
खुशी तो होगी
उसी खुशी के लिए जी रही
जिन्दगी ये मेरी।
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तू ही बता
रब्बा मेरे रब्बा
मैंने क्या किया
कोई डाका या है कोई खून किया
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
रब्बा मेरे रब्बा
जीवन की मैं हूं
करूणामयी खिलाड़ी
इसलिए मुझको समझा
अबला नारी
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
माथे पें नहीं लिखा पापन है
ना ही हाथों की लकीरों में लिखा
पागल है
फिर क्यूं
बोझ कहलवा दिया
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
मैंने माना मैं लड़की हूं
कोई बोझ नहीं
तुम जैसा समझते हो
वैसा अफसोस नहीं।
फिर क्यों है बंदिश
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
हाथों में जंजीर नहीं
न पांव में बेड़ियां
फिर क्यों दर्द होता है
जीने के लिए जीवन
मन मछली की तरह तड़पता है
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
शरीर में तो मेरे
श्रृंगार सजा है
फिर मुझको क्यों लगता
चारों तरफ मेरे
दीवार लगा है
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
फूल तो खामोश है
उसमें कोई जान नहीं बसती
इसलिए न उनको होश है
पर मैं नहीं हूं फूल
जो मुझे फूल समझो।
फूल की तरह रखो
रब्बा मेरे रब्बा
मुझमें जान की तरह मैं मनुष्य हूं
तू ही बता।
तारो की टिम-टिम नहीं
जो एक जगह रहकर रौशनी दूं
खंभे की तरह खड़ा
कोई पेड़ नहीं
जो अपनी सारी ज़िन्दगी
खड़े-खड़े खत्म कर दूं
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
कुदरत के नाम पर ही
जीने दो मुझे
प्रभु के नाम पर ही
बोझ नहीं
बेटा कह दो मुझे
ऐसा करने को हर कोई को
रब्बा मेरे रब्बा
तू ही बता।
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पाबन्दी एक मौत
ऐसा क्या करूं
जिससे बदलोगे आप
वही पुरानी सोच में
जीने की बजाय
इस पुरानी सोच को
आग में जलाओगे आप।
बोल नहीं सकती
ऊंची आवाज में
डाट नहीं सकती
फर्क की हर एक बात में
क्योंकि मुझसे बड़े मेरे बाप मेरे भाई
हो आप।
फर्क डालते समय
थोड़ा हिचकिचाया कीजिए
मुझे रोना आता है
उसे देखकर ही सही
प्यार के साथ इज्जत
बरसाया कीजिए आप।
हर मंजिल में मेरे
रास्ता कई है
मेरी दुनिया पूरी टेढ़ी है
इसलिए आंखें होकर भी
मेरी आंखों में
पट्टी न बांधा कीजिए आप।
सोच बदलना चाहती थी
लेकिन सोच से आपकी
भड़कने लगी सोच ये मेरा
मुझे जलन की के बजाय
मेरी हिम्मत में
हिम्मत बना कीजिए आप।
मुझे भ्रम नहीं
कि आप मेरे पिता भाई है
मुझे जीवन दे के
मुझे पाले ऐसे
दुश्मन नहीं
मेरे प्यारे वीर है आप।
हजारों तस्वीरों में
जीना चाहती थी
आप मेरे अपने
एक मिनट में फर्क डाल के
पराया न
बना कीजिए आप।
सोच बदलनी थी मुझे आपकी
आप ही मुझे बदलने लगे
मेरी ज़िन्दगी में
पति नाम की बेड़ियां
मुझे ही
पहनाने लगे आप।
जिन्दगी आजादियों में
जीना चाहती थी में
अपनी हर खुशियां
तन्हाइयों में वादियों में
बांटना चाहती थी मैं
जिसे ससुराल नाम के जेल में
बन्द करना चाहते है आप।
मुझे ये बिलकुल नहीं पसंद
जिसे पसंद कहलवाना चाहते है
मुझे आजादी से जीने की इजाजत नहीं
लेकिन मरने की पाबन्दी नहीं
इसीलिए मुझे मरने पर
मजबूर न किया कीजिए आप।
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घर बंटने का दर्द
बेटे मेरे सुनो
बेटे मेरे सुनो
दर्द नहीं हुआ मुझे
जब मैं कुएं में गिरा
इतने गहरे कुएं में
सांप देख रोया।
मुझे याद है
जब मैंने अपनी मां को खोया
रोया तो था बहुत
लेकिन ये प्रकृति के नियम है
ये सोच के
मैं फिर से रात को
खाना खा कर सोया।
गरीबी में बहुत
मेहनत और खून पसीना
ये करके
दिन में पत्थर पर
कुदाल चलाकर, थका मादा
रात को भूखे पेट मैं सोया।
बेटे मेरे सुना
बेटे मेरे सुना
दर्द नहीं हुआ मुझे इतना
जितना आज हुआ
दो तीन हिस्सों में बंटने से घर
दिल मेरा कई हिस्सों में
चूर-चूर होकर बट गया।
मैंने न किया था बेटा
जो तूने किया
मैं तो छूता था पांव उनका
राम से पहले भजता था नाम उनका
लेकिन तुमने तो, अलग सब भाई हुए
बुढ़ापे में मां-बाप को भी
अलग कर दिया।
कलेजा फटने लगा बेटा
इन हिस्सों को देखकर
मुझे मौत दे दे
मर न जाऊं अलग-अलग चारपाई पर
इसीलिए सब मुझको अमृत पिला दे
अपने स्वार्थ के लिए सही
इस आखिरी शब्द का उपयोग मैंने किया।
दूजे के घर का सुने तो
दिल था दुखता
फिर तो ये अपना घर है
अलग होने के बाद
दिल का नमो निशान नहीं बचता
इसी कारण कई बार
मैं सोचता हूं
तुम्हें जीवन देके
ये मैंने क्या किया।
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अंदर से टूटना
जिन्दा रहकर
क्यों लगता है
मर गई
सांसें चल रही
मगर क्यों लगता
थम गई।
हर घड़ी ज़िन्दगी
मैंने मांगा था कहीं
ऊँचाईयों की लड़ी
खुशियां की घड़ी
ये हकीकत मेरी
मुझी से झूठ कई।
दुखों का पहाड़ आया
हार की हार
ज़िन्दगी में छाया
तनहाईयों से घिरी
जीते जी लगता
मैं मर गई।
जवाब न मिले
गोल-गोल ही घिरे
सुधारने पे वो
वहीं पे जा मुड़े
इसी तरह की मैं
पहेली बन गई।
चलती जा रही थी
मैं अनजान रास्ते पे
कई मोड़ था उनमें
लेकिन ढोंगी भरे रास्ते पे
सजा तो भुगतना था
रास्ते पे कहीं रूकना
सो रूक गई।
टूट गई सड़क मंजिल से पहल
सीढ़ी तो बनानी पड़ेगी
उस पार जाने के लिए
मुझे अपनी कला आजमानी पड़ेगी
पूरी हुई हाथों की कला तो मैं सीधे
ऊँचाईयों की शिखर पहुँच गई।
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शर्म भी एक बंधन
शर्मीली मैं लड़की हूं
लेकिन
शर्म आज मैं छोड़ गई
जिन्दगी में मेरे खुशी आई तो
मैं अपने सारे दर्द
पल में भूल गई।
कुछ कहने की बजाय
मैं जाती थी डर
सबका सामना करने से पहले
भाग जाती थी घर
लेकिन
आज क्या से क्या हो गई
मैं तो सच में
परियों के जैसे अपने सपनों में खो गई।
संध्या सूर्य की लाली में
भूल गई घरमन लाली को
नाचते -नाचते हो गई रात
जाने क्या कहेंगे घर न आई तो
अब न
सच में लेकिन
आज मैं पंछी आजाद हो गई
मुश्किल पिंजरे को ताड़ गई।
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अफसोस
कुछ तो
कुछ होता है
जलन कहे या दर्द
दिल में काटे जैसा
है चुभता।
जो आंखों से
गुजरकर निकला
जो हाथों से
है फिसला
किसी के हाथों में वही देखे तो
है दिल दुखता।
अफसोस करने पे
नहीं वो मिलता
अपने पांवों में
मारी है जो कुल्हाड़ी
वही बार-बार सामने आने पे
बहुत है दुखता।
इसे जलन न कहूंगी
क्योंकि आईना है
हर किसी में मेरी
वो करे इस सपने को पूरा
या मैं
एक ही मतलब है होता।
ऐसा दिलासा दिल मन को देता है
ताकि टूट न जाये मन
सर नीचा कर बैठ न जाये तन
मान लूं ये बात
लेकिन फिर भी
दिल है रोता।
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माँ खोने का डर
किसी रोज
किसी दिन
धड़कन थम जाये
गम नहीं मेरी
ये बात
तुमसे न बन आये।
डर लगता है
तुम्हारे बिना
जीने की कैसे
सोच लूं तुम्हारे बिना
ओ हिम्मत मेरे
तुम बिन मुझको दुनिया डरवाये।
बेबसी की नजर से
जहर लिए कहर से
देखे ऐसा लगता है
ये दुनिया बड़ी बेरहम है
मुझी से डरवाये।
ओ साया मेरे
ओ छाया मेरे
मेरे संग ये न करना
वरना घूंट-घूंट के
तुम बिन जान भरे जाये।
देखती थी नजरे उनको
माँ नहीं होती जिनकी
आंखें बहुत रोती है
दिल चूर-चूर होता है
डरता है मन ऊपर वाला
मेरे साथ न वो करवाये।
न उनको नसीब होती ममता
ना ही कोई प्यार है
जिन्दगी है फूटी-फूटी उनकी
फूटा बस उनकी
बिना सिगनल की रेल की तरह
चलता जाये।
माँ नाम लो तो चुप हो जाते है
ममता का नाम लो तो
आंसू बहा जाते है
पुछे अगर क्या हुआ
तो बस किस्मत को ही
दोषी ठहराये।
कुदरत से बड़ी
विनती है मेरी
राम से, अल्ला से,
वाहे गुरू से, सांई से
सारी दुनिया के देवताओं से
यही,
बस दुआ है मेरी।
रूठ जाये चिलमन
छूट जाये जीवन
दुनिया का हर एक तारा टूट जाये
लेकिन जीवन से मेरे
माँ का साया न
मुझसे छूट जाये।
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जिम्मेदारी
सारी दुनिया
मुझको ये बताये
बेटी जिसे वंश कहते हो आप
वो खुद ही
क्यों अलग हो जाये।
जिन्दगी भर आप
दूजे के घर की
जिम्मेदारी बनाकर पलाते है
बेटी-बेटा में जमीन और
आसमान का फर्क डालते है
तो वही फिर आपको
क्यों धोखा दे जाये।
बचपन से
बेटे को आंखों से लगाकर रखते थे
और मुझे गले से
शास्त्रों का ज्ञान है
और भगवान का लिखा
इसलिए शायद मुझे
पराया समझ जाये।
पेट काटकर कपड़े पहनकर
जिन्दगी बदहाल बनाकर
क्यों अच्छी शिक्षा देते है
इन्हें आप
जो अपना परिवार आने के बाद
आपको ही भूल जाये।
नहीं, नहीं
न तुलना कर रहीं हूं इनसे अपना
और न कभी करूंगी
क्योंकि मैं ठण्ड हूं
ओैर ये गरम
जो घी में और भड़क जाये।
कभी सोचा कीजिए
अपना भी कुछ
बिना सहारे के
आप बुढ़ापे में नहीं कुछ
इसीलिए अपना सहारा
अपनी जवानी को ही बनाये।
मैं मानती हूं
कि आप बहुत वीर है
सारे कष्टों को सहकर
हमें पाले ऐसे बलवीर है
लेकिन ये भी तो सच है
कि जितना कष्ट न तोड़ जाये
उतना कड़वा जुबां तोड़ जाये
ये भी तो दुनिया के जितना
सच कहलाये।
क्यों आखिर क्यों
ऐसा करते है
अपनी जिम्मेदारी है उसे बोझ कहते
बोझ समझकर बूढ़े कांपते शरीर को
क्यों आखिर क्यों
अकेला छोड़ जाये।
खुशी होती है मुझको
कि मैं बेटा नहीं
दुख होता है मुझको
कि जिम्मेदारी उठाने के
लायक समझा नहीं
इसी कारण मेरी आंखें
कभी खुशी कभी गम के
आंसू बहाये।
विनती है मेरी
हर भाईयों से
जो हर मां-बाप के आंखों में
तुम्हें पाने के बाद जो गर्व होता है
उसे न बेच खाना
ज़िन्दगी है इनकी देन
तो इसे थोड़ी सी इनके लिए
जिया करे और जिया, करवाये।
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नाम मेरा
कभी लगता है
नाम नहीं मेरा
बेनाम हूं ज़िन्दगी में
करने के लिए
कुछ काम नहीं मेरा।
सांसे है मेरी
पर दुनिया नहीं मेरी
हर खुशी में
मुस्कुराती हूं
लेकिन वो हंसी नहीं मेरी।
तन्हाइयों में हो तो
जीती हूं मैं
न जाने भीड़ से क्यों
डरती हूं मैं
शायद इसीलिए
क्योंकि कोई पहचान नहीं मेरी।
सब की तरह जी सकूं
मैं क्यों नहीं इन जैसी
इनकी तरह
आइने को ही अस्तित्व समझूं
सोच ऐसा क्यों नहीं मेरा।
टूटते तारे को देखकर
क्यों नाम मांगती हूं
अपने दम पर जीयूं
ऐसा वरदान मांगती हूं
हमेशा जिन्दगी में मेरी।
शायद मंजर नहीं
दूसरों पर आश्रित रहना
मजबूर लड़की, अबला कहाना
इसीलिए तो जिन्दगी में
कुछ कर दिखाना मकसद है मेरा।
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