सुशील यादव वे प्रबुद्ध हैं ।उन्हें देश की चिंता रहती है। वैसे आजकल प्रबुद्ध कहाने का शार्टकट भी यही है कि, एक स्वस्थ आदमी देश के बारे म...
सुशील यादव
वे प्रबुद्ध हैं ।उन्हें देश की चिंता रहती है।
वैसे आजकल प्रबुद्ध कहाने का शार्टकट भी यही है कि, एक स्वस्थ आदमी देश के बारे में सोचें ।
वैसे तो पर्यावरण वाले भी देश के मौसम ,मिजाज ,हरारत ,सर्दी की दिनरात सोचते रहते हैं,अनुमान लगाते रहते हैं , मगर उन्हें प्रबुद्ध की श्रेणी में इसलिए नहीं रख सकते कि वे ‘पेड़’ इम्प्लाई हैं ।इसकी, नजर-खबर रखने की , वे तनखा पाते हैं ।
बिना तनखा कमाए, जो देश की सोचे सो प्रबुद्ध .....।
पुराने जमाने में जनहित की सोच रखने वाले विरले मिलते थे ।मगर जो मिलते थे वो एकदम सॉलिड .....।आंधी-तूफान से टक्कर लेने वाले......।
वे अधिक माथा-पच्ची नहीं करते थे ।उनका ‘सब्जेक्ट- टार्गेट’ आजादी के इर्द-गिर्द घूमता था ।उन महान लोगों को इस लेख परिधि से अलग रखते हुए, श्रधा सुमन अर्पित है ।
अब आइये ,आजकल के चिंतन-मनन करने वालों की तरफ रुख करें ।
इनकी तादात देखते-देखते इन दिनों करोड़ों से ऊपर की हो गई है। इनकी आबादी दिनों दिन बढ़ने-बढाने के पीछे, शोध पर पाया गया की ये सब मीडिया की नई उपज हैं ।वार्तालाप की मंडी में, जगह-जगह उतर रहे हैं ।
मार्निग वाक् वाले बुजुर्ग ,धोबी ,नाइ ,मोची ,ड्राइवर ,भिस्ती ,बावर्ची सभी करंट राजनीति के विश्लेषक बन गए हैं ।
सरकारी मुहकमों में, एक चौथाई समय सरकार के कार्यकलापो और पिछली रात, इडियट बाक्स में दिखाए छम्मक छल्लो माँ ,कथित हत्यारिन माँ ,और पी एम ,सी एम संवाद में निकल जाता है ।
जिसके पास बखान करने का ज्यादा मसाला होता है उसकी दिन भर के चाय-समोसे का इन्तिजाम पक्का हो जाता है ।प्रवचन सुनाने वाला,श्रोता जमात और जजमान को देखकर गदगद रहता है ।पूरे स्टाफ में प्रबुद्ध का खिताब धारी होना अलग मायने रखता है ।
कुछ वे लोग भी हैं जो ,देश में गिरती अर्थ व्यवस्था पर मनन कर अपना वजन घटाए रहते हैं ।सेंसेक्स नीचे चला जाता है तो रात भर बेचारे सो नहीं पाते। बच्ची,लड़की या बुजुर्ग महिला पर अमानुष कृत्य हो जाए तो खुद को अपराधी महसूस करते हैं ।
झांसा देकर कोई राजनीतिक दल मतदाताओं से वोट ऐठ लेता है, तो लुटा हुआ महसूस करते हैं ।
भ्रस्टाचार उन्मूलन की मुहीम में उन्हें सबसे आगे रहने वाले जीव होने का दावा करते देखा जा सकता हैं ।
वे महज निगेटिव सोच पालते तो, मुहाल्ले पडौस से उखड़ गए होते ।उन्हें समय सापेक्ष पाला बदलने का भी खासा तजुर्बा रहता है ।उनके किसी क्रियाकलापों से आप कांग्रेसी या संघी की मुहर नहीं लगा सकते ।सफाई अभियान की बात हो तो चार झाड़ू के पैसे अपनी जेब से ढीली कर देते हैं ।कलफदार कुरते-पैजामे में उनको देक्खकर लगता है, पूरे दिन की सफाई का श्रेय वही लूट ले जायेंगे ।’आप’ की सीट दिल्ली में बढती है तो बांछें खिल जाती है ।उन्हें प्रजातंत्र का अवतार पुरुष कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
उनका मत है कि,कोई प्रबुद्ध हो और देश के प्रति चिंता न रखे, ऐसे प्रबुद्धों को लानत है। वे दिन में ‘अमरवाणी’ बनाने लायक कई सूक्ति वाक्य बोल चुके होते हैं ,उनको मलाल रहता है कि कोई इन्हें नोट करने वाला आसपास नहीं रहता ।
उनकी ‘चिंतामणी’ छवि मोहल्ला पड़ोस के स्तर पर भी गौर करने लायक है। किसी की भैंस गुम जाए तो बाकायदा पडौस के गाव तक खोजने निकल पड़ते हैं,वहां के पञ्च सरपंच को आगाह करना ,इत्तिला देना पहली फुरसत का काम जानते हैं।बदले में उधर, चाय ,और राजनीतिक घुसपैठ की गुजाइश पैदा हो जाती है ।
किसी परिचित की, कम दूध देती गाय का इलाज जब तक किसी वेटनरी डाक्टर से न करवा दे,वे अघोषित, अन्न जल त्यागे की श्रेणी में होते हैं ।
वे अखबार में छपी, छोटी-छोटी खबरों से भी चिंता उठा लेते हैं। इसे उनका अखबार प्रेम कहें ,निठल्लापन कहे,काम-काजी बेटे-बहुओं द्वारा उपेक्षित बुढापा कहें या देश के प्रति बुझते दिए की टिमटिमाहट कहे ....?समझ नहीं आता ....बहरहाल वे छोटी-छोटी चिंताओं को लिए मन ही मन तलवार भांजते रहते हैं । कोफ्त में दीखते हैं .....।
मैंने एक दिन उनसे यू ही पूछ लिया ,ताऊ जी ये मोहल्ले भर का झमेला क्यूँ लिए रहते हैं ?
वे बोले ,सुकून मिलता है। दिल से बोझ उतरा हुआ सा महसूस होता है ।
अगर मुहल्ले की न सोचूं तो देश हाबी हो जाता है ,और तुम तो जानते हो देश के बारे में इन दिनों सोचना कितना भयंकर सा काम है ।अच्छा खासा आदमी अनिद्रा-रोगी बन जाए ...?
ताऊ जी को नये-नये हाबी बदलते भी देखा गया है। उसे ब्यान करने में लगता है की वे सठियाने लग गये हैं ।एक दिन मार्निग वाक् के दौरान देखा कि गय्या की रस्सी पकड़े आ रहे हैं ...?हमने पूछा सुबह सुबह गौ माता को कहा लिए जा रहे हैं ....? वेटनरी अस्पताल तो अभी खुला न होगा ।वे संजीदा हो के मेरी तरफ देखे ......तुम लोगों की नजर संकीर्ण क्यों हो गई है,वो जो सामने श्रीवास्तव जी अपने कुत्ते का पट्टा पकड़े हैं उन्हें माडर्न समझोगे ,हम जो अपनी गाय को चराने निकल गये तो आफत आन पड़ी ....?
मुझे बगलें झांकने, और जल्दी खिसक लेने में एकबारगी बुद्धिमानी लगी । मेरे कदम वाक् से जागिंग केटेगरी के कब हो गए ,पता न चला ।
वे हाई-बी-पी वाले डिटेक्ट हो गए हैं ,उनके हित में डाक्टरों ने अनर्गल टी वी में प्रसारित समाचारों और आजकल दिखाए जा रहे बेकार की मुद्दों पर बहस से बचने की सख्त हिदायत दे रखी है ।
वे मानने वालो में से हों मुझे नहीं लगता ......?
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com ०९४०८८०७४२०
२.९.१५
COMMENTS