मूल संपूर्ण गांधी वांगमय की अक्षुण्ण बनाए रखने की चुनौती हमेशा बरकरार रहेगी सीडब्लूएमजे के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध संपूर्ण गांधी वांगमय ...
मूल संपूर्ण गांधी वांगमय की अक्षुण्ण बनाए रखने की चुनौती हमेशा बरकरार रहेगी
सीडब्लूएमजे के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध संपूर्ण गांधी वांगमय के बिगाड़ दिए गए स्वरूप को सुधारा गया
प्रसून लतांत
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और संदेश पर आधारित सौ खंडों का ‘संपूर्ण गांधी वांगमय’ दुनिया में उपलब्ध महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में है, जो दुनिया भर में ‘सीडब्लूएमजे’(कलैक्टेड वर्क्स आफ महात्मा गांधी) के नाम से प्रसिद्ध है। सौ खंडों और पचास हजार पन्नों में फैला संपूर्ण गांधी वांगमय की मांग आज भी नहीं घटी है, उलटेऔर बढ़ ही रही है। गांधीजी के जीवन और संदेशों को उनके मौलिक रूप में जानने-समझने के लिए इससे ज्यादा कोई प्रामाणिक दस्तावेज आज और कोई नहीं है। अब अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह राष्ट्रीय घरोहर नए रूप में सभी के सामने आ रहा है। नई सीडी में संपूर्ण गांधी वांगमय को ढाल दिया गया है।
गांधी जी की अक्षर देह के रूप में चर्चित इस वांगमय को करीब डेढ़ दशक पहले भी सीडी-रॉम में ढालने की कोशिश में क्षत-विक्षत कर दिया गया था। अनजाने या जानबूझ कर की गई इस कोशिश की काफी आलोचना हुई तो तत्कालीन सरकार ने करोड़ों की लागत से तैयार ऐसी सीडियों को रातों-रात नष्ट करवाया और अब उसकी जगह मूल वांगमय के अनुरूप नई सीडी तैयार कराया गया है। संपूर्ण गांधी वांगमय को सीडी-रॉम में ढालने के दौरान हुई हजारों गलतियों को यों ही छोड़ दिया जाता तो लोग गांधी जी के जीवन और संदेशों को उसके मूल स्वरूप के बारे में जान ही नहीं पाते। हालांकि सुधार के लिए सरकार ने गांधीवादियों सहित अन्य लोगों की एक समिति भी बना दी थी पर सुधार के काम को कड़ी मेहनत कर अंजाम तक पहुंचाया डीना पटेल ने। डीना पटेल के पिता सीएम पटेल मूल वांगमय के अंग्रेजी संस्करण के संपादक मंडल में थे। डीना जीवन बीमा में नौकरी करती थीं और उनका गांधी जी से कोई खास लेना-देना नहीं था पर उन्हें जब सीडी-रॉम संस्करण में गलतियां दिखाई पड़ीं तो वे उसमें सुधार के लिए बेचैन हो उठीं। प्रकाशन विभाग ने डीना पटेल की मदद से वांगमय के नए संस्करण में उन गलतियों को दूर कर दिया है, जो इसके पहले के संशोधित संस्करण में थीं।
वांगमय के संशोधित संस्करण की गलतियों को लेकर प्रकाशन विभाग की आलोचना तेज होने लगी तो तत्कालीन यूपीए सरकार के सूचना प्रसारण मंत्री जयपाल रेड्डी ने सुधार के लिए समिति गठित की, जिसके अध्यक्ष महात्मा गांधी के सचिव और सहायक महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई बनाए गए और पर्यावरणविद् और ‘गांधी मार्ग’ के संपादक अनुपम मिश्र सचिव बनाए गए। इसके अलावा समिति में प्रसिद्ध लेखक और गांधीजी के जीवनी लेखक बीआर नंदा, ईएस रेड्डी और मूल गांधी वांगमय में काम कर चुके जेपी उनियाल आदि सदस्य बनाए गए। समिति के सदस्यों ने संशोधित संस्करण का आकलन के बाद कहा कि सीडी-रॉम और संशोधित संस्करण में इतनी गलतियां हैं कि इसे प्रामाणिक संपूर्ण गांधी वांगमय के नाम से चलने नहीं दिया जा सकता। समिति के गठित होते ही वांगमय के संशोधित संस्करण और सीडी-रॉम की बिक्री पर रोक लगा दी गई। संशोधित संस्करण की उपलब्ध प्रतियों को नष्ट कर दिया गया।
जब देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। तब सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन प्रकाशन विभाग की तत्कालीन निदेशक ने बगैर किसी से सलाह किए अपनी मनमर्जी से संपूर्ण गांधी वांगमय को लापरवाही से सीडी-रॉम में ढाला कि इसमें न केवल हजारों गलतियां रह गईं बल्कि तथ्य भी इधर से उधर हो गए। हांलांकि प्रकाशन विभाग द्वारा गांधी वांगमय के सौ खंडों का संशोधित संस्करण जब सीडी -रॉम के रूप में सामने आया तो उस समय इसका स्वागत करने वाले लोंगों की भी कमी नहीं थी, जो चाहते थे कि उन्हें गांधी की बातें कंप्यूटर पर माउस दबाते ही मिल जाए लेकिन उनकी निगाह हैंड कंपोजिग कर साफ-सुथरे तरीके से छपे पचास हजार पन्नों वाले इस वांगमय के मूल संस्करण को जब कंप्यूटर टाइपिंग में बदला गया तो रह गई हजारों गलतियों पर नहीं गई। लेकिन वांगमय के मूल संस्करण को तैयार करने के समय के लोगों सहित कुछ अध्येता इसे सहन नहीं कर सके। गांदी मार्ग के संपादक अनुपम मिश्र ने सुधार के लिए सरकार जागे, इसके लिए प्रयास करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उन्होंने इसके विरोध में न केवल आवाज उठाई बल्कि यह इंतजाम करने पर जोर दिया कि भविष्य में फिर कभी कोई वांगमय के साथ ऐसा अक्षम्य अपराध न कर सके। तब जनसत्ता ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और आवाज बुलंद की। इसके संस्थापक संपादक प्रभाष जोशी ने इस मुद्दे को न केवल अपने स्तंभ कागद कारे में उठाया बल्कि सरकार को पूरी तरह से जगाने के लिए पहले पेज के लिए खबरें भी लिखीं। इसी का नतीजा था कि सरकार जागी और वांगमय के संशोधित संस्करण की गलतियों को ठीक करने की दिशा में काम शुरू हो सका।
वांगमय के संशोधित संस्करण पर काम 1998 में शुरू हो गया था लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह संशोधन क्यों और किन कारणों से किया गया। इन खंडों पर संशोधन करने वाले संपादकों और करवाने वाले सलाहकारों के नाम नहीं थे। कोई नहीं जानता था और न कोई बताता था कि यह संशोधन किसके आदेश या सलाह या सिफारिश पर किया गया। न इसमें बताया गया था कि इस संशोधन में किस पद्धति और किन तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया गया। संशोधित संस्करण में डेढ़ पेज के प्रकाशकीय में तीन बातें थीं कि हर खंड पांच सौ पेज का है, तैथिक क्रम का सख्ती से पालन करने के लिए मूल संस्करण के 91 से 97 खंडों को 1 से 90 खंडों में मिला दिया गया और उन भाषणों, संवादों और मुलाकातों आदि को निकाल दिया गया है, जो प्रामाणिक रूप से गांधीजी के नहीं लगते थे। संशोधित संस्करण में कहीं नहीं बताया गया था कि ऐसी सामग्री की प्रामाणिकता तय करने वाले कौन थे और वह किसके आदेश से हटाई गई। वांगमय के संशोधित संस्करण में मूल संस्करण के गांधीजी के ही कोई पांच सौ पत्र बाहर हो गए या निकाल दिए गए। मूल संस्करण के हर खंड में वांगमय के प्रधान संपादक स्वामीनाथन की जो भूमिका थी, वे सब भी संशोधित संस्करण से निकाल दी गईं। स्वामीनाथन की ये भूमिकाएं हरेक खंड में क्या है, केवल यही नहीं बताती थीं, वे उस काल खंड में गांधीजी के कार्य, उसके महत्त्व और असर आदि का भी उद्धरणों के जरिए वर्णन करती थींं। मूल संस्करण के सौवें खंड में सभी खंडों की भूमिकाएं और प्रस्तावना आदि संग्रहित थे। यह पूरा का पूरा खंड ही हटा दिया गया था। मूल संस्करण में खंड 91 से 97 तक परिशिष्ट बनाए गए थे। विषयों की अमुक्रमिका खंड 98 और नामों की अनुक्रमिका खंड 99 में थी। चूंकि खंड 91 से 97 मूल ग्रंथ में प्रक्षेपित किए गए थे इसलिए संशोधित संस्करण में अनुक्रमिकाएं भी गड़बड़ हो गई थीं और कई प्रविष्टियां निकल गईं और अक्षरों, उच्चारणों और प्रूफ की गलतियों का कोई हिसाब-किताब ही नहीं था।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने तब जनसत्ता में सवाल उठाया था कि वांगमय के संशोधित संस्करण दरअसल किसी आदेश, आवश्यकता और पद्धति के तैयार किया गया। गांधी जी के मूल्यों पर चलते हुए तब की सरकार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय और प्रकाशन विभाग की नीयत में खोट न देखी जाए तो भी हुआ वह भारत की अंतरराष्ट्रीय धरोहर के साथ हुआ घनघोर अत्याचार और तिरस्कार है। संपूर्ण गांधी वांगमय को गुजराती में बापू की अक्षर देह कहा गया है। इस अक्षर देह को क्षत-विक्षत करने का प्रयास किया गया। नवजीवन ट्रस्ट के पास गांधीजी के लेखन का कॉपीराइट है। संपूर्ण गांधी वांगमय के लिए भारत सरकार और नवजीवन ट्रस्ट में सन 1956 में करार हुआ था। इस करार के मुताबिक गांधी वांगमय की सामग्री में उनसे पूछे बिना कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। संशोधित संस्करण में प्रकाशन विभाग ने जो भी किया, उसकी अनुमति लेना तो दूर उसे सूचित तक नहीं किया गया। ट्रस्ट ने इस पर विरोध जताते हुए मांग की कि संशोधित संस्करण और सीडी-रॉम की बिक्री रोक कर उन्हें वापस लिया जाए। जिसने यह संशोधन करवाया और किया, उनके नाम मालूम किए जाएं और जो मूल संस्करण तैयार करने में स्वामीनाथन के सहयोगी थे। उनकी सलाह से अनिवार्य सुधारों के साथ वांगमय के मूल संस्करण को फिर से छापा जाए।
वांगमय के साथ हुए खिलवाड़ का नतीजा यह हुआ कि लोग यह मांग भी करने लगे कि संसोधित संस्करण रद्द करके नष्ट किया जाए और उसकी जगह मूल संस्करण को ही छापा जाए। मूल संस्करण को राष्ट्रीय अभिलेख का दर्जा दिया जाए ताकि संशोधन के नाम पर उसके साथ ऐसा खेल फिर दोबारा न हो। इसकी भी व्यवस्था की जाए कि संशोधन-परिवर्तन के लिए खुला न रखा जाए ताकि आने वाली कोई सरकार गांधी वांगमय को अपनी इच्छानुसार संशोधित कर सके। यह अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की राष्ट्रीय धरोहर है और इसे नष्ट करने और बदलने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। गांधी की प्रामाणिकता के पावित्र्य को सुरक्षित रखा जाए।
संपूर्ण गांधी वांगमय की योजना प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बनवाई थी। उसके सलाहकार मंडल में मोरारजी देसाई, काका साहेब कालेलकर, देवदास गांधी, प्यारेलाल नैयर, मगन भाई देसाई, जी रामचंद्रन, श्रीमन्नारायण, जीवनजी देसाई और पीएम लाड जैसे लोग थे, जो जीवन भर गांधीजी के साथ काम कर चुके थे। भारतन कुमारप्पा और प्रोफेसर स्वामीनाथन जैसे प्रधान संपादकों और शोधकर्ताओं का शोध मंडल था जो न सिर्फ गांधी के लिखे और तौर-तरीकों को जानता था बल्कि हरेक प्रामाणिकता के साथ समर्पित मेहनत और पूजा भाव से प्रेरित था। प्रकाशन विभाग और सूचना प्रसारण मंत्रालय का वांगमय पर कोई अधिकार नहीं था। अपने संपादकीय कार्य में वे सलाहकार मंडल के प्रति उत्तरदायी थे। करीब चार दशकों तक चले इस प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध अनुष्ठान से राष्ट्रपिता की अक्षर देह सुरक्षित हुई थी। अब यह अक्षर देह नए रूप में सामने आया है लेकिन इसे पूरी तरह मूल में सुरक्षित बनाए रखने के लिए के लिए चुनौती आगे भी बरकरार रहेगी।
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kumar krishnan (journalist)
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