-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी महिला सशक्तीकरण को लेकर महिलाएँ भले ही न चिन्तित हों, लेकिन पुरूषों का ध्यान इस तरफ कुछ ज्यादा होने लगा है। जि...
-भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
महिला सशक्तीकरण को लेकर महिलाएँ भले ही न चिन्तित हों, लेकिन पुरूषों का ध्यान इस तरफ कुछ ज्यादा होने लगा है। जिसे मैं अच्छी तरह महसूस करता हूँ। मुझे देश-दुनिया की अधिक जानकारी तो नहीं है, कि ‘वुमेन इम्पावरमेन्ट’ को लेकर कौन-कौन से मुल्क और उसके वासिन्दे ‘कम्पेन’ चला रहे हैं, फिर भी मुझे अपने परिवार की हालत देखकर प्रतीत होने लगा है कि अब वह दिन कत्तई दूर नहीं जब महिलाएँ सशक्त हो जाएँ।
मेरे अपने परिवार की महिलाएँ हर मामले में सशक्त हैं। मसलन बुजुर्ग सदस्यों की अनदेखी करना, अपना-पराया का ज्ञान रखना इनके नेचर में शामिल है। साथ ही दिन-रात जब भी जागती हैं पौष्टिक आहार लेते हुए सेहत विकास हेतु मुँह में हमेशा सुखे ‘मावा’ डालकर भैंस की तरह जुगाली करती रहती हैं। नतीजतन इन घरेलू महिलाओं (गृहणियों/हाउस लेडीज) की सेहत दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बनने लगी है फिर भी इनके पतिदेवों को यह शिकायत रहती है कि मेवा, फल एवं विटामिन्स की गोलियों का अपेक्षानुरूप असर नहीं हो रहा है और इनकी पत्नियों के शरीर पर अपेक्षाकृत कम चर्बी चढ़ रही है। यह तो आदर्श पति की निशानी है, मुझे आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यद्यपि मैंने सुन रखा था कि सिनेमा जगत और समाज की महिलाएँ अपने शरीर के भूगोल का ज्यादा ख्याल रखती हैं, इसीलिए वह जीरो फिगर की बॉडी मेनटेन रखने में विश्वास रखती हैं। यह तो रही फिल्मी और कमाऊ महिलाओं की बात।
मेरे परिवार/फेमिली/कुनबे की बात ही दीगर है। पतियों की सेहत को तो घुन लगा है और उनकी बीबियाँ हैं कि ‘टुनटुन’ सी नजर आती हैं। परिवार के सदस्य जो पतियों का दर्जा हासिल कर चुके हैं। वह बेचारे प्रख्यात फिल्मी गीतकार मरहूम गुलशन बावरा की शक्ल अख्तियार करने लगे हैं। और उनके सापेक्ष महिलाओं का शरीर इतना हेल्दी होने लगा है जिसे ‘मोटापा’ (ओबेसिटी) कहते हैं। यानि मियाँ-बीबी दोनों के शरीर का भूगोल देखकर पति-पत्नी नहीं माँ-बेटा जैसा लगता है। यह तो रही मेरे परिवार की बात। सच मानिए मैं काफी चिन्तित होने लगा हूँ। वह इसलिए कि 30-35 वर्ष की ये महिलाएँ बेडौल शरीर की हो रही हैं, और इनके पतिदेवों को उनके मोटे थुलथुल शरीर की परवाह ही नहीं।
मैं चिन्तित हूँ इसलिए इस बात को अपने डियर फ्रेन्ड सुलेमान भाई से शेयर करना चाहता हूँ। यही सब सोच रहा था तभी मियाँ सुलेमान आ ही टपके। मुझे देखते ही वह बोल पड़े मियाँ कलमघसीट आज किस सब्जेक्ट पर डीप थिंकिंग कर रहे हो। कहना पड़ा डियर फ्रेन्ड कीप पेशेंस यानि ठण्ड रख बैठो अभी बताऊँगा। मुझे तेरी ही याद आ रही थी और तुम आ गए। सुलेमान कहते हैं कि चलो अच्छा रहा वरना मैं डर रहा था कि कहीं यह न कह बैठो कि शैतान को याद किया और शैतान हाजिर हो गया। अल्लाह का शुक्र है कि तुम्हारी जिह्वा ने इस मुहावरे का प्रयोग नहीं किया। ठीक है मैं तब तक हलक से पानी उतार लूँ और खैनी खा लूँ तुम अपनी प्रॉब्लम का जिक्र करना। मैंने कहा ओ.के. डियर।
कुछ क्षणोपरान्त मियाँ सुलेमान मेरे सामने की कुर्सी पर विराजते हुए बोले- हाँ तो कलमघसीट अब बताओ आज कौन सी बात मुझसे शेयर करने के मूड में हो? मैंने कहा डियर सुलेमान वो क्या है कि मेरे घर की महिलाएँ काफी सेहतमन्द होने लगी हैं, जब कि इनकी उम्र कोई ज्यादा नहीं है और ‘हम दो हमारे दो’ सिद्धान्त पर भी चल रही हैं। यही नहीं ये सेहतमन्द-बेडौल वीमेन बच्चों को लेकर आपस में विवाद उत्पन्न करके वाकयुद्ध से शुरू होकर मल्लयुद्ध करने लगती हैं। तब मुझे कोफ्त होती है कि ऐसी फेमिली का वरिष्ठ पुरूष सदस्य मैं क्यों हूँ। न लाज न लिहाज। शर्म हया ताक पर रखकर चश्माधारी की माता जी जैसी तेज आवाज में शुरू हो जाती हैं।
डिन्डू को ही देखो खुद तो सींकिया पहलवान बनते जा रहे हैं, और उनकी बीवी जो अभी दो बच्चों की माँ ही है शरीर के भूगोल का नित्य निश-दिन परिसीमम करके क्षेत्रफल ही बढ़ाने पर तुली है। मैंने कहा सिन्धी मिठाई वाले की लुगाई को देखो आधा दर्जन 5 माह से 15 वर्ष तक के बच्चों की माँ है लेकिन बॉडी फिगर जीरो है। एकदम ‘लपचा मछली’ तो उन्होंने यानि डिन्डू ने किसी से बात करते हुए मुझे सुनाया कि उन्होंने अपना आदर्श पुराने पड़ोसी वकील अंकल को माना है। अंकल स्लिम हैं और आन्टी मोटी हैं। भले ही चल फिर पाने में तकलीफ होती हो, लेकिन हमारे लिए यह दम्पत्ति आदर्श है।
मैं कुछ और बोलता सुलेमान ने जोरदार आवाज में कहा बस करो यार। तुम्हारी यह बात मुझे कत्तई पसन्द नहीं है। आगे कुछ और भी जुबान से निकला तो मेरा भेजा फट जाएगा। मैंने अपनी वाणी पर विराम लगाया तो सुलेमान फिर बोल उठा डियर कलमघसीट बुरा मत मानना। मेरी फेमिली के हालात भी ठीक उसी तरह हैं जैसा कि तुमने अपने बारे में जिक्र किया था। मैं तो आजिज होकर रह गया हूँ। इस उम्र में तुम्हारे जैसे मित्रों के साथ ‘टाइम पास’ कर रहा हूँ। कहने का मतलब यह कि ‘जवन गति तोहरी, उहै गति हमरी’’ यानि....।
डियर कलमघसीट अब फिरंगी भाषा में लो सुनो। इतना कहकर सुलेमान भाई ने कहा डियर मिस्टर कलमघसीट डोन्ट थिंक मच मोर बिकाज द कंडीशन ऑफ बोथ आवर फेमिलीज इज सेम। नाव लीव दिस चैप्टर कमऑन एण्ड टेक इट इजी। आँग्ल भाषा प्रयोग उपरान्त वह बोले चलो उठो राम भरोस चाय पिलाने के लिए बेताब है। तुम्हारे यहाँ आते वक्त ही मैंने कहा था कि वह आज सेपरेटा (सेपरेटेड मिल्क) की नहीं बल्कि दूध की चाय वह भी मलाई मार के पिलाए। मैं और मियाँ सुलेमान राम भरोस चाय वाले की दुकान की तरफ चल पड़ते हैं। लावारिस फिल्म में अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया गाना दूर कहीं सुनाई पड़ता है कि- ‘‘जिस की बीवी मोटी उसका भी बड़ा नाम है, बिस्तर पर लिटा दो गद्दे का क्या काम है।’’
भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
आत्मकत्थ्य
उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जनपद अन्तर्गत ग्राम- अहलादे (थाना बेवाना) में 26 जून 1952 को एक मझले किसान परिवार में जन्म। गंवई परिवेश में पला-बढ़ा और ग्रामीण स्तर तक के स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। विगत 45 वर्षों से लेखन कार्य।
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