क़ैस जौनपुरी मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा आज बक़रीद है सुबह सुबह किसी ने टोका ईद मुबारक़ हो ईद मुबारक़ हो नमाज़ पढ़ने नहीं गए लेकिन स्वीमिंग करने जा...
क़ैस जौनपुरी
मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा
आज बक़रीद है
सुबह सुबह किसी ने टोका
ईद मुबारक़ हो
ईद मुबारक़ हो
नमाज़ पढ़ने नहीं गए
लेकिन स्वीमिंग करने जा रहे हो
हाँ मैं नहीं गया
क्यूँकि मैं नाराज़ हूँ उस ख़ुदा से
जो ये दुनिया बना के भूल गया है
कहीं खो गया है या शायद सो गया है
या जिसकी आँखें फूट गयी हैं
जिसे कुछ दिखाई नहीं देता
कि उसकी बनाई इस दुनिया में क्या क्या हो रहा है
हाँ मैं नाराज़ हूँ
और तब तक मस्ज़िद में क़दम न रखूँगा
जब तक आयलन कुर्दी फिर से ज़िन्दा नहीं होता
जब तक दिल्ली की वो दो लड़कियाँ
सही सलामत वापस नहीं आतीं
जिन्हें जलते हुए तारकोल के ड्रम में
सिर्फ़ इसलिए डाला गया था
क्यूँकि वो मुसलमान थीं
और हाँ मुझे उनके चेहरे पे कोई दाग़ नहीं चाहिए
मैं नाराज़ हूँ
और तब तक मस्ज़िद में क़दम न रखूँगा
जब तक हरप्रीत कौर और हर पंजाबन औरत और बच्ची
बिना खंजर लिए सुकून से नहीं सोती
जब तक दंगों में ग़ुम मंटो की शरीफन
अपने बाप क़ासिम को मिल नहीं जाती
तब तक मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा
मुझे तुम्हारे क़ुरआन पे पूरा भरोसा है
बस उसमें से ये जहन्नुम का डर निकाल दो
डर की इबादत भी भला कोई इबादत है
कैसा होता कि मैं अपनी ख़ुशी से
जब चाहे मस्ज़िद में आता
और एक रक़ात में ही गहरी नींद
और तेरी गोद में सो जाता
मुझे तुमसे शिकायत है
एक सेब खाने की आदम को इतनी बड़ी सजा
तुम्हें शरम नहीं आती
तुम्हारा कलेजा नहीं पसीजता
यहाँ तुम्हारे मौलवी
मस्ज़िद की तामीर के लिए
कमीशन पे चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं
जहाँ ग़रीबों को दो रोटी नसीब नहीं
वहाँ मूर्तियों पे करोड़ों रुपये पानी की तरह बह रहे हैं
तुम्हारे नाम पे यहाँ रोज़ जाने कितने मर रहे हैं
तुम्हें पता भी है कुछ
लोग पाकिस्तान को इस्लामिक देश कहते हैं
तुम्हें हँसी नहीं आती
और तुम्हें शरम भी नहीं आती
तुम्हारी मासूम बच्चियों को पढ़ने से रोका जाता है
उन्हें गोली भी मार देते हैं
तुमने एक मलाला को बचा लिया तो ज़्यादा ख़ुश न होओ
तुम्हारे आँसू नहीं बहते
जब किसी बोहरी लड़की का
ज़बरदस्ती ख़तना किया जाता है
क्या तुम्हें उन मासूम लड़कियों की चीख सुनाई नहीं देती
या तो तुम बहरे हो गए हो
या तुम्हारे कान ही नहीं हैं
या फिर तुम ही नहीं हो
तुम तो कहते हो तुम ज़र्रे ज़र्रे में हो
फिर जब कोई मंसूर अनल-हक़ कहता है
तब उसकी ज़बान क्यूँ काट ली जाती है
क्या उस कटी ज़ुबान से टपके ख़ून में तुम नहीं थे
क्या मंसूर की उन चमकती आँखों में
तुम उस वक़्त मौज़ूद नहीं थे
जो तुम्हारी आँखों के सामने फोड़ दी गयीं
क्या मंसूर के उन हाथों में तुम नहीं थे जो काट दिए गए
क्या मंसूर के पैर कटते ही
तुम भी अपाहिज़ हो गए
आओ आके देखो अपनी दुनिया का हाल
आबादी बहुत बढ़ चुकी है
अब सिर्फ़ एक मुहम्मद से काम नहीं चलेगा
तुम्हें पैग़म्बरों की पूरी फ़ौज़ भेजनी होगी
क्यूँकि मूसा तो यहूदियों के हो गए
और ईसा को ईसाईयों ने हथिया लिया
दाऊद बोहरी हो गए
बुद्ध का अपना ही एक संघ है
महावीर जो एक चींटी भी मारने से डरते थे
उस देश में इंसान की लाश के टुकड़े
काग़ज़ की तरह बिखरे मिलते हैं
जाने कितने दीन धरम मनगढ़ंत हैं
श्वेताम्बर दिगम्बर जाने कितने पंथ हैं
आदम की औलाद सब जाने कैसे बिखर गए
तुम्हारे सब पैग़म्बरों के टुकड़े टुकड़े हो गए
तुम तो मुहम्मद की
इबादत में बहे आँसुओं से खुश हो लिए
मगर क्या तुम्हें ये सूखी धरती दिखाई नहीं देती
ये किसान दिखाई नहीं देते
तेरी दुनिया में आज
अनाज पैदा करने वाले ही भूखे मरते हैं
मुझे हँसी आती है तेरे निज़ाम पर
और तू जहन्नम का डर दिखाता है
जा मैं नहीं डरता तेरी दोज़ख़ की आग से
यहाँ ज़िन्दगी कौन सी जहन्नम से कम है
पीने का पानी तक तो पैसे में बिकता है
तू पहले हिन्दुस्तान की औरतों को
मस्ज़िद में जाने की इजाज़त दिला
तू पहले अपने मुल्ला मौलवियों को समझा
कि लोगों को इस तरह गुमराह न करें
तीन बार तलाक़ कह देने से ही तलाक़ नहीं होता
तू आके देख
मदरसों में मासूम बच्चों को क़ुरआन
पढ़ाया नहीं रटाया जाता है
फिर इन्हीं रटंतु तोतों को हाफ़िज़ बनाया जाता है
जो तेरी बाकमाल आयतों को तोड़ मरोड़ कर
अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं
मैं किस मस्ज़िद में जाऊँ
तू तो मुझे वहाँ मिलता नहीं
और तेरे दर क़ाबा आने के इतने पैसे लगते हैं
जहाँ हर साल भगदड़ होती है
और न जाने कितने ही बेवकूफ़ मरते हैं
मैं कहता हूँ इतनी भीड़ में जाने की ज़रूरत क्या है
कितना अच्छा होता कि मैं मक्का पैदल आता
और तू मुझे वहाँ अकेला मिलता
तू पहले ये सरहदें हटा दे
ये क्या बात हुई
कि तेरे क़ाबा पे अब सिर्फ़ कुछ शेख़ों का हक़ है
तू पहले समझा उन पागलों को
कि तुझे सोने के तारों से बुनी चादर नहीं चाहिए
मैं तब आऊँगा वहाँ
तेरी मस्ज़िद में अभी आने का दिल नहीं करता
जानता है क्यूँ
अँधेरी ईस्ट की साई गली वाली मस्ज़िद के बाहर
एक मासूम सी लड़की
आँखों में उम्मीद लिए और हाथ फैलाये हुए
भीख़ माँगती है
मैं उसे पाँच रूपये देने से पहले सोचता हूँ
कि इसकी आदत ख़राब हो जायेगी
फिर ये इसी तरह भीख़ माँगती रह जायेगी
अगर मैं उससे थोड़ी हमदर्दी दिखाऊँ
तो लोगों की नज़र में मेरी नज़र ख़राब है
मैं उसे अपने घर भी ला नहीं सकता
कुछ तो घर वाले लाने नहीं देंगे
और कुछ तो उसके मालिक भी
हाँ शायद तुम्हें किसी ने बताया नहीं होगा
हिन्दुस्तान में बच्चों से भीख़ मँगवाने का
बाक़ायदा क़ारोबार चलता है
मासूम बच्चों को पहले अगवा किया जाता है
फिर उनकी आँखें फोड़ दी जाती हैं
कुछ के हाथ काट दिए जाते हैं कुछ के पैर
और फिर तेरी बनाई हुई क़ुदरत रहम का सहारा लेकर
तेरे ही नाम पे उनसे भीख़ मँगवाया जाता है
अब तुझे मैंने सब बता दिया
अब तू कुछ कर
इन बच्चों को पहले इस क़ैद से रिहा कर
फिर मैं तेरी मस्ज़िद में आऊँगा
तेरे आगे सर भी झुकाऊँगा
अभी मुझे लगता है तू इबादत के क़ाबिल नहीं
अभी तुझको बहुत से इम्तेहान पास करने होंगे
हाँ इम्तेहान से याद आया
ये तूने कैसी बक़वास दुनिया बनाई है
जो सिर्फ़ पैसे से चलती है
मुझे इस पैसे से नफ़रत है
ये निज़ाम बदलने की ज़रूरत है
तुम पहले कोई ढँग की रहने लायक दुनिया बनाओ
फिर मुझे नमाज़ के लिए बुलाओ
और तब तक तुम यहाँ से दफ़ा हो जाओ
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बेबांक मार्मिक सटीक शब्दाभिव्यक्ति " मैं नमाज नहीं पढूँगा " कैस जौनपुरी सही अर्थों में रचना का सृजन करते हैं | रचना के साथ यदि रचनाकार का संक्षिप्त जीवन परिचय भी हो तो बेहतर |- अशोक शर्मा ' भारती '
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