कहानी गर्भ की आवाज भावना शर्मा ‘‘बधाई हो मृणाल. तुम्हारी रिपोट्र्स पोजिटिव आई हैं. मृणाल तुम मां बनने वाली हो. आज पन्द्रह वर्ष बाद...
कहानी
गर्भ की आवाज
भावना शर्मा
‘‘बधाई हो मृणाल. तुम्हारी रिपोट्र्स पोजिटिव आई हैं. मृणाल तुम मां बनने वाली हो. आज पन्द्रह वर्ष बाद तुम्हारे घर ख़ुशी आई है. मैं तुम्हारे लिए बहुत ख़ुश हूं पर साथ में हैरान भी हूं कि हम तो उम्मीद खो चुके थे. सच है, चमत्कार होते हैं. आज मानना पड़ेगा.’’ डॉ की आवाज में हैरानी और ख़ुशी दोनों ही झलक रही थी.
मृणाल को भी अपनी इस ख़ुशी पर विश्वास नहीं हुआ. वो अपनी इस ख़ुशी को सुनकर सकते में आ गई. उसने डॉ से दोबारा जानना चाहा, इसलिए पूछा-
‘‘जो आपने अभी कहा डॉ वो दोबारा दोहराइए’’
‘‘ मृणाल तुम सच में मां बनने वाली हो.” डॉ ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा.
मृणाल बार-बार वही सवाल किये जा रही थी. जैसे वो इस बात को हर पल महसूस करना चाहती हो. डॉ. भी उसकी हालत जानकार बार-बार उसके इस सवाल का जवाब दिए जा रही थी, क्योंकि वो जानती थी कि मृणाल अपने पन्द्रह सालों को इस पल में भिगोकर धो देना चाहती है.
‘‘जाओ मृणाल आकाश को ये ख़ुशखबरी बताओ.’’ डॉ. ने मृणाल को अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए कहा.
मृणाल उठी. डॉ. को धन्यवाद देकर वो घर की ओर चल पड़ी. पूरे रास्ते बस डॉ. की बातें उसके जेहन में गूंज रही थीं. अपनी इस ख़ुशी में वो टैक्सी तक लेना भूल जाती है. घर की ओर पैदल ही सड़कों को नापने लगती है. अपनी सुध-बुध खोते हुए जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगती है. दरवाजा खुलता है.
“अरे मृणाल, तुम हांफते हुए कहां से आ रही हो?” आकाश ने दरवाजा खोलते हुए हैरानी से मृणाल से पूछा.
मृणाल आकाश को अपनी बांहों में समेट लेती है. अपनी अनकही ख़ुशी बिखेरते हुए कहती है.
‘‘मुझ पर लगा हुआ कलंक धुल गया आकाश.’’
आकाश उसे सम्भालते हुए अन्दर ले जाता है. उसे बिठाता है और फिर पूछता है.
‘‘कलंक? कौन सा कलंक? तुम क्या कह रही हो, मुझे समझ में नहीं आ रहा? और तुम आ कहां से रही हो?’’
मृणाल ने आकाश का हाथ थामा और उसके हाथ को अपने गर्भ पर रखा और कहा.
‘‘महसूस करो आकाश.’’
आकाश ने मृणाल की आंखों में देखा. मृणाल की आंखों ने उसे सब कुछ बता दिया. इतना समझते ही आकाश ने मृणाल को अपने गले से लगा लिया.
दोनों की अगली सुबह उनके लिए एक नई जिन्दगी लेकर आई थी. आकाश मृणाल का बहुत अच्छी तरह से ख्याल रख रहा था. हर छोटी-छोटी बात पर उसकी नजर रहती थी. सुबह के नाश्ते से लेकर रात के सोने तक वो मृणाल को आराम देने की हर सम्भव कोशिश करता था.
क्या बात है आकाश? तुम तो मेरा ऐसा ख्याल रख रहे हो जैसे दुनिया में मैं ही पहली बार मां बन रही हूं. इस चक्कर में तुम दो दिन से ऑफिस भी नहीं गये हो. अब नौ महीने की छुट्टी लेने का इरादा है क्या?” मृणाल ने हंसकर पूछा.
‘‘हां, मैं कल छुट्टी की एप्लीकेशन देकर आऊंगा. तुम्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ आकाश ने मृणाल के सर पर हाथ रखते हुए कहा.
मृणाल ने उसकी आंखों में देखा. उसकी आंखों में अथाह समुद्र बह रहा था.
‘‘क्या हुआ आकाश? जरूर तुम्हारे दिल में कोई बात है.” मृणाल ने आकाश के प्रति चिंतित होकर कहा.
‘‘हम इस बारे में बाद में बात करेंगे. तुम अभी आराम करो.’’ आकाश ने मृणाल को समझाते हुए कहा.
पूरा दिन इसी उधेड़बुन में निकल गया. मृणाल को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आखिर क्यों आकाश ऐसे कर रहे है? उनकी बातों का अर्थ क्या है? इन सब सवालों का जवाब मृणाल को नहीं मिल पा रहा था पर उसने ठान लिया था कि आज रात वो आकाश से इस बारे में बात जरूर करेगी.
‘‘लो मृणाल, ये दूध जल्दी से पी लो और सो जाओ. तुमने खाना भी ठीक से नहीं खाया. दूध पियोगी तो तुम्हारे और बच्चे के लिए ठीक रहेगा.’’ आकाश ने दूध का गिलास मृणाल को पकड़ाते हुए कहा और जैसे ही वो मुड़ा, मृणाल उसे टोकते हुए बोली. ‘‘ठहरो आकाश. मुझे तुमसे कुछ बात करनी है.’’
‘‘हां, बोलो.’’ आकाश ने कहा.
‘‘सुबह जो हमारे बीच बात अधूरी रह गई थी, मुझे उसे पूरा करना है. तुम मेरा जरूरत से ज्यादा ख्याल क्यों रख रहे हो? माना हम पन्द्रह साल बाद माता-पिता बन रहे हैं और हमारे लिए इससे ज्यादा कोई और बात ख़ुशी की हो ही नहीं सकती है, पर नौ महीने की छुट्टी लेना और सुबह से शाम तक बिना पलक झपकाए मेरा ध्यान रखना, मुझे उठने भी ना देना, ये सब क्या है?’’ मृणाल ने फिक्र जताते हुए कहा.
‘‘कमाल है मृणाल, सारी बीवियों को अपने पतियों से यही शिकायत रहती है कि उनके पति उनका ख्याल नहीं रखते और एक तुम हो जो मुझे ही सुना रही हो.’’ आकाश ने मुस्कुराते हुए कहा. फिर दोबारा आकाश ने मृणाल को समझाते हुए कहा-
‘‘देखो मृणाल, मुझे तुम्हारी फिक्र है. तुम्हें किसी भी वक्त किसी भी चीज की जरूरत पड़ सकती है और यहां कोई और है भी नहीं तो किसके सहारे मैं तुम्हें छोड़कर ऑफिस चला जाऊं.’’
‘‘पर आकाश ये गलत है. अगर ऐसी ही बात है तो हम मां जी को बुला लेते हैं.’’ मृणाल ने अपनी राय आकाश के सामने रखी.
‘‘नहीं, बस यही मैं नहीं चाहता और मैंने इसीलिए छुट्टी ली है. अब हम इस बारे में और बात नहीं करेंगे.’’ आकाश ये कहते हुए कपड़े बदलने चला गया.
यह सुनते ही मृणाल को सब समझ आ गया था. उसने आकाश को मनाने की कोशिश भी की, पर आकाश नहीं माना क्योंकि जो उसकी मां ने उसके साथ किया था अगर वो किसी और ने किया होता तो शायद आकाश को इतना बुरा नहीं लगा होता पर एक मां होकर अपनी बहू को बाझं कहना, इसके लिए वो उनको माफ नहीं कर पाया था.
मृणाल सो चुकी थी और आकाश मृणाल को देखे जा रहा था. पुरानी सारी बात उसके सामने जीवित हो उठी, जब उसने अपनी मां को मृणाल की रिपोर्ट के बारे में बताया था.
कितना ख़ुशहाल परिवार था. आकाश और मृणाल कितने ख़ुश थे. उनकी शादी को एक साल छह महीने हो चुके थे. पर अभी भी वो ऐसे लगते थे जैसे इनकी अभी-अभी शादी हुई हो. कभी लगा नहीं था कि पढ़े-लिखे लोगों की सोच इतनी छोटी हो सकती है.
‘‘अरे आकाश, आज बहू की रिपोट्र्स आनी है.’’ कब तक लेकर आएगा?’’ आकाश की मां ने पूछा.
‘‘मां ऑफिस से आते हुए लेता आऊंगा.’’ आकाश ने जवाब दिया.
‘‘रिपोर्ट चाहे कुछ भी कहे पर मुझे पता है मैं दादी बनने वाली हूं.’’ मां ने ख़ुशी जताते हुए कहा.
‘‘मां, जब पता ही था तो बेकार में मेरे इतने पैसे क्यों खर्च करवाए.’’ आकाश मां को छेड़ते हुए कहता है.
‘‘चल नालायक कैसी बातें करता है. ध्यान से शाम को रिपोट्र्स लेते हुए आना.’’ मां ने कहा.
मृणाल ये सब बातें सुनकर मन ही मन बहुत ख़ुश थी क्योंकि वो भी जानती थी कि ख़ुशखबरी तो है. मां मार्किट जाते हुए मृणाल को कह जाती हैं कि रोशनी और सतीश आने वाले हैं और मृणाल उनके लिए खाना बनाकर रखे. रोशनी और सतीश मृणाल के नन्द और नंदोई थे. मृणाल खाना बनाने लगी. खाना बनाते हुए ही रोशनी और सतीश का आगमन हो ही जाता है. रोशनी तपाक से मृणाल के गले लगती है और बधाई देते हुए कहती है-
‘‘मुबारक हो भाभी, आपको बेटा होने वाला है.’’
मृणाल को उसका हर्षित होना अच्छा तो लगता है, पर बेटा होने की बात उसे कुछ चुभ सी जाती है. रोशनी कहती है-
‘‘क्या हुआ भाभी कुछ खिलाओगी नहीं क्या?’’
मृणाल सीधे रसोई में घुसती है और दोनों के लिए खाना परोसने लग जाती है. उसके मन में सिर्फ एक ही बात घूम रही होती है तो वो रोशनी से पूछ ही लेती है-
‘‘तुम मुझे मुबारकबाद दे रही हो, तुम भी तो बुआ बनने वाली हो, परन्तु तुम्हें कैसे पता कि बेटा ही होगा, बेटी भी तो हो सकती है.’’
इतना सुनते ही रोशनी का चेहरा बिलकुल बदल गया और उसने तुरंत कहा-
‘‘नहीं भाभी, मां ने कहा है बेटा ही होगा और उन्हें बेटा ही चाहिए.’’
सतीश ने भी आग में घी डालने का काम किया- ‘‘लो तुम्हारी भाभी ऐसा कह रही हैं. लगता है उन्हें तो बेटा चाहिए ही नहीं वो तो चाहती ही नहीं हैं कि आकाश का वंश आगे बढ़े.”
‘‘ये आप क्या कह रहे हैं दामाद जी?” शोभना कुछ कहती इससे पहले दरवाजे पर खड़ी मां जी की आवाज आई.
सतीश ने मां जी के पैर छुए और बोला- ‘‘मैं कुछ नहीं कह रहा हूं मां जी. आपकी बहू ही कह रही है कि उनके बेटी ही होगी. आपकी बेटी ने तो मेरा वंश बढ़ा दिया. मैंने सोचा आपका भी अब वंश बढ़ जायेगा पर मुझे लगता है कि भाभीजी को बेटा पसंद ही नहीं.”
‘‘मैं ये क्या सुन रही हूं मृणाल.” मां ने मृणाल को डांटते हुए कहा.
‘‘नहीं मम्मी मैं तो बस...” मृणाल कुछ कह पाती उससे पहले ही मां बोल पड़ती हैं, ‘‘चुप, बिलकुल चुप. हमारे घर बेटा ही होगा वरना कोई नहीं होगा.”
मृणाल मां की आंखें देख कर डर गयी. जिस मां को वो जानती थी, आज ऐसा लग रहा था कि वो सास है और वो उनसे अनभिज्ञ है. अब वो अन्दर चली जाती है.
शाम को आकाश रिपोट्र्स लेकर घर पहुंचता है. उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी कि रिपोट्र्स में क्या आया है. और वह अपनी ख़ुशी बयां करते हुए कहता है-
‘‘ मृणाल की रिपोट्र्स पॉजिटिव आई है मां. आप दादी बनने वाली हैं.”
‘‘भगवन! तेरा बहुत बहुत धन्यवाद. चाहे लड़का हो या लड़की बस तुम मेरी बहू और मेरे बच्चे की रक्षा करना.’’ मां ने कहा.
आकाश को इस बात की ख़ुशी थी कि उसकी मां को बेटा या बेटी में कोई फर्क नहीं. वहीं दूसरी तरफ मृणाल इन बातों को सुनकर हैरान थी कि जो मां जी ने मेरे सामने कहा, वही अपने बेटे के सामने क्यों नहीं कहा.
आकाश मृणाल के पास आया और उसने कहा-
‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं. मैं और मां तुम्हारे साथ हैं. और मां तुम्हारा पूरा ख्याल रखेंगी.’’
आकाश को खुश देखकर मृणाल चाहते हुए भी कुछ बता नहीं सकी. सब कुछ सामान्य चल रहा था. मृणाल की सास के दिल में क्या था, कुछ समझ नहीं आ रहा था. कुछ महीने तक सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा. पर एक दिन अचानक-
‘‘ मृणाल चलो उठो डॉ के पास जाना है.’’ मां जी ने मृणाल से कहा.
‘‘डॉ के पास तो कल हम हो आये थे. उसने तो अगले हफ्ते बुलाया है मां जी.’’ मृणाल ने कहा.
“अगले हफ्ते भी चली जाना, पर चेकअप कराने अभी जाना है.” मां ने कड़क आवाज में कहा.
बिना कोई सवाल किए मृणाल उनके साथ चल पड़ी. ये कोई और डॉ. थी और इस डॉ. से पहले ही अपॉइंटमेंट लिया हुआ था. डॉ. के पास पहुँचते ही डॉ. ने कहा-
‘‘आप लेट जाइये. हमें कुछ चेकअप करना है. आपको कुछ पता नहीं चलेगा और डॉ. ने इंजेक्शन लगाया और जब होश आया तो सारी दुनिया बदल चुकी थी. मृणाल के चारों तरफ कोई नजर नहीं आ रहा था. पर अपने अन्दर कुछ बदला हुआ जरूर नजर आ रहा था उसे. वो थकान महसूस कर रही थी और दर्द भी. खुद ही उठकर बाहर तक आई. बाहर की दुनिया बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी पर वो खुद को सामान्य नहीं पा रही थी. एक अनसुलझे रास्ते से गुजरती हुई डॉ. से सारी सच्चाई जानकार वो घर की ओर बढ़ती चली गयी. मन में घुमड़ते हुए सवाल को लेकर जैसे ही घर की घंटी बजायी तो दरवाजा आकाश ने खोला.
आकाश को देखते ही मृणाल की सवालिया नजर उस पर पड़ी. जैसे पूछ रही हो- ‘‘क्या तुम भी इसमें शामिल थे?’’
‘‘ मृणाल, मृणाल, कहां खो गयी? कबसे आवाज दे रहा हूं.’’ आकाश ने मृणाल को हिलाते हुए कहा.
‘‘अन्दर चलिए आकाश,’’ इतना कहकर मृणाल बिना कुछ कहे, बिना आकाश के सवालों का जवाब दिए अन्दर आ गयी. अन्दर आते ही आकाश ने मृणाल से प्यार से सर पर हाथ रखते हुए पूछा-
‘‘क्या हुआ मृणाल? तुम्हारी तबियत ठीक है न? कोई परेशानी है क्या?’’
हाथ पकड़ते हुए मृणाल ने आकाश की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा-
‘‘क्या कसूर था मेरा आकाश? और क्या कसूर था उसका जिसे हमारी जिन्दगी में आने का पूरा अधिकार था? बोलो. तुम्हें बेटी नहीं चाहिए थी तो कह देते, मैं उसे अकेली ही संभाल लेती समझे.’’ मृणाल ने चिल्लाते हुए कहा.
उसकी ममता फूट-फूट कर बाहर निकल रही थी और आकाश बिलकुल सन्न् खड़ा हुआ सारी बातें सुन रहा था. पर उसे समझ कुछ नहीं आ रहा था कि मृणाल ऐसा क्यों कह रही है. उसकी ऐसी हालत क्यों है.’’
मृणाल ने आकाश की ओर देखा तो पाया कि आकाश खुद उसकी ओर हैरानी से देख रहा है, तब उसे समझ आया कि आकाश को शायद कुछ पता ही नहीं. उसने तुरंत आकाश को पूछा-
‘‘आकाश तुम मेरे साथ चलोगे?’’
‘‘कहां मृणाल? और क्यों? और तुम्हारी ये हालत मैं समझ नहीं पा रहा हूं.’’
मृणाल ने अपने आपको संभालते हुए कहा-
‘‘आकाश तुम्हें याद है जब रोशनी और उनके पति घर आये थे.’’
‘‘हां, याद है.’’ आकाश ने कहा.
तब मृणाल आकाश को उस दिन की सारी घटना बताती है.
‘‘नहीं मृणाल, तुम्हें गलतफहमी हुई है. मां को बेटा या बेटी से कोई फर्क नहीं पड़ता है.’’ आकाश ने मृणाल को समझाते हुए कहा.
‘‘कोई फर्क नहीं पड़ता न आकाश तो चलिए मेरे साथ.’’ मृणाल आकाश को उसी अस्पताल में ले जाती है, जहां उसकी सास चेकअप के बहाने उसे लेकर आई थी. वहां पहुंचते ही सामने से आकाश की मां आती दिखाई दी. आकाश और मृणाल को वहां देखते ही उनकी हवाइयां उड़ गयीं और कुछ ना सोचते हुए उलटे आकाश से मृणाल की बुराई करते हुए कहने लगी-
‘‘तेरी जिन्दगी खत्म कर दी इसने बेटा. यहां आकर मुझे पता चला कि इसने गर्भपात करा लिया है.’’
‘‘मैंने तो आपसे कुछ पूछा ही नहीं मां.’’ आकाश ने भरी हुई आवाज से कहा. मां ने आगे कुछ नहीं कहा.
‘‘हाँ आकाश, जिन्दगी तो उजड़ गयी है, अकेले तुम्हारी नहीं, हमारी और पता है क्यों? क्योंकि मेरी कोख में हमारी परी थी लेकिन मां को तो राजकुमार चाहिए था और धोखे से इन्होंने अपने ही बेटे का घर जला दिया.’’ मृणाल ने टूटे दिल से कहा.
सारी सच्चाई पता चलने के बाद भी आकाश विश्वास नहीं कर पा रहा था.
‘‘घर चलिए. घर चलकर बात करेंगे.’’ अपने आप को समेटते हुए आकाश ने कहा. उस वक्त इतना संयम रखना आकाश के लिए तीरों की शैया पर लेटे रहने जैसा था. घर पहुंचते ही उसने मृणाल को आराम से बिठाया क्योंकि मृणाल की हालत पहले से ही खराब थी और हाथोंहाथ अपनी बहन और बहनोई को भी उसने बुला लिया ताकि सारी सच्चाई सामने आ जाये. जब तक वो लोग आ नहीं गए, तब तक उसने चुप्पी साध ली.
घंटी बजी. रोशनी और सतीश दोनों ने एक साथ घर में प्रवेश किया. अंदाजा तो उन्हें भी था कि उन्हें क्यों बुलाया गया है. पर अनजान बनते हुए बोले-
‘‘भैया-भाभी कैसे हैं आप? चलिए आप लोगों को हमारी याद तो आई.’’
उनके बोलने के बाद भी सन्नाटा ही था घर में. आंधी आने से पहले की शांति को वो भांप गए थे इसलिए खुद ही अपनी सफाई देते हुए बोल पड़े-
‘‘भैया इसमें हमारी कोई गलती नहीं है और भाभी को भी बेटे या बेटी होने से फर्क नहीं पड़ रहा था पर मां जी बेटा चाहती थी. हर वक्त यही कहती रहती थी कि बेटा ही होगा और कभी भी मुझे पता चला कि बेटी है तो वो क्या उसकी परछाई भी मेरे घर में कदम नहीं रख पाएगी.’’
आकाश के सामने सब दूध का दूध और पानी का पानी होता चला जा रहा था. वो सुन तो रहा था पर कोई रिएक्शन नहीं दे रहा था. इतने में बौखलाई हुई मां खुद ही बोल पड़ी-
‘‘और अब मुझे इस मृणाल की भी जरूरत नहीं है. जो अब बीज बोने लायक ही नहीं रही और जो जमीन बीज बो ही नहीं पायेगी तो उसमें फल कैसे लगेंगे?’’
ये सुनते ही आकाश के सब्र का बांध टूट गया. वो अन्दर तक तो वैसे ही टूट चूका था. मां की तरफ देखते हुए उसने कहा-
‘‘मां, तुम ये क्या कह रही हो. इसका मतलब जो कुछ हुआ वो तुम्हारी रजामंदी से हुआ.’’
मां कहती हैं- ‘‘हां, मैं बेटी नहीं चाहती. मुझे मेरा वंश बढ़ाने वाला चाहिये और वंश बढ़ाना तो दूर वंश का नाम लेने लायक ये नहीं रही.’’
‘‘आपको मां होकर दूसरी मां की कोख उजाड़ना सही लगता है. आपने मृणाल से मां बनने का हक छीना है जिसके कारण वो अब कभी मां नहीं बन सकती.’’ आकाश के अन्दर क्रोध, रोश, घुटन, उदासी, शून्यता सब एक साथ समा गए थे.’’
मृणाल का हाथ अपने हाथ में लेकर आकाश ने जैसे ही घर की देहलीज लांघने के लिए कदम बढ़ाया, पीछे से आवाज आई-
‘‘ये बांझ है और ये कलंक इसके माथे से कभी नहीं हटेगा.’’
आकाश ने बिना पीछे मुड़े बस हमेशा के लिए उस घर को छोड़ दिया.
कितने ख़ुश हैं आज मृणाल और मैं. आकाश अतीत के पन्नों से बाहर आकर सुकून महसूस कर रहा है. और अभी भी वो मृणाल के सर पर हाथ सहला रहा है और मन ही मन कहता है-
‘‘सच में पन्द्रह साल बीत गये मृणाल के साथ. पर मुझे तो कभी उसमें बांझपन का एहसास ही नहीं हुआ. और आज मृणाल ने मुझे मेरी जिन्दगी का सबसे बड़ा तोहफा देकर अपना कृतज्ञ बना दिया.’’
‘‘ मृणाल, तुमने इतने साल ख़ुशी ख़ुशी हमारी जिन्दगी के हर एक पल को हजार पलों में बदल दिया. मेरे परिवार से मिली सजा को, उसकी परछाई को भी मेरी जिन्दगी पर पड़ने नहीं दिया. धन्यवाद मृणाल, मेरी जिन्दगी को जिन्दगी बनाने के लिए.’’ आकाश दिल की गहराईयों से मृणाल को धन्यवाद देता है.
इतने में आकाश को आवाज़ सुनाई देती है- ‘‘पापा’’. आकाश चौंका. दोबारा वो आवाज़ आई- ‘‘पापा’’ आकाश चौंककर बैठ गया पर कोई नज़र नहीं आया. मन में यही विचार आया कि शायद कोई वहम है पर फिर वही आवाज-
‘‘पापा, मैं यही हूं. आपके पास, मम्मी के अन्दर. आपको अपने होने का एहसास दिला रही हूं. आप मम्मी को धन्यवाद कह रहे हैं. मैं आप दोनों को धन्यवाद बोलना चाहती हूँ कि आप मुझे इस ख़ूबसूरत दुनिया में दोबारा आने दे रहे हैं. मैं पहले भी आई थी पर आने से पहले ही बेटी होने की वजह से मेरा वजूद मिटा दिया गया. मैं आपके पास आना चाहती हूँ. आप दोनों के प्यार को अपने में समेटना चाहती हूं. जैसे अब तक आपने मुझसे प्यार किया है वैसे हमेशा करना और ऐसे ही मुझे संभालकर रखना.’’
इतना सुनते ही आकाश की आँखों में सुकून के आंसू छलक पड़े. उसे अपनी बेटी का एहसास हो रहा था. उसने तभी एक ओर से मृणाल को और दूसरी ओर से अपनी बेटी को बाँहों की सुरक्षा कवच में ले लिया और कहा-
‘‘मैं तुम्हारा सुरक्षा कवच हूँ और हमेशा रहूँगा.’’
और तभी मृणाल ने भी आकाश के हाथ पर हाथ रखकर कहा-
‘‘मैं भी...’’
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