सुशील ‘साहिल’ देखना! मंजिल पे पहुंचेगा वो हुशियारी के साथ. है बहुत रिश्ता पुराना उसका मक्कारी के साथ. इसलिये तो दोस्ती उसकी जमाने-भर स...
सुशील ‘साहिल’
देखना! मंजिल पे पहुंचेगा वो हुशियारी के साथ.
है बहुत रिश्ता पुराना उसका मक्कारी के साथ.
इसलिये तो दोस्ती उसकी जमाने-भर से है,
दुश्मनी रहती है हरदम उसकी खुद्दारी के साथ.
जब भी जंगल ने मदद के वास्ते आवाज दी,
लोग तो आये मदद को हां, मगर आरी के साथ.
दूर तक इक साथ चलने का नतीजा ये हुआ,
दुश्वारी-सी हो गई अब अपनी दुश्वारी के साथ.
जिस्म में चाहत की भर दो तुम हजारों तीलियां,
खेलने का तब मजा आयेगा चिंगारी के साथ.
आज मेरे हाथ में पत्थर से ज्यादा कुछ नहीं,
हां, मगर मैं कल मिलूंगा पूरी तैयारी के साथ.
राहे-उल्फत में कदम बहके थे मेरे भी जरूर,
पर नहीं सौदा किया मैंने वफादारी के साथ.
आरजू के चन्द टुकड़े और कुछ अरमान के,
बेचने बाजार में निकला हूं वफादारी के साथ.
कह नहीं सकता है कोई भी उसे दुश्मन मेरा,
वो मिला करता है मुझसे जिस अदाकारी के साथ.
साहिले-लाचार से फहमो-फरासत सीख ले,
बेवफाई वो निभाता है वफादारी के साथ.
डॉ. गायत्री तिवारी
1. दोषी कौन
हम अंगुली पकड़कर चलते हैं.
फिर बढ़ते बदलते हैं
और अंगुली उठाने लगते हैं
दूसरों पर.
समझ में नहीं आता
दोषी कौन है!
हम या अंगुली.
2. मुरझाता मन
सबको दिखता है
हंसना मुस्कुराना
कौन देख पाता है
मन का मुरझाना.
मन मुरझाता है
धीरे-धीरे
जैसे कांच को काटते हैं
हीरे धीरे-धीरे.
संपर्कः 112, सराफा वार्ड, कोतवाली के पीछे
जबलपुर-482001 (म.प्र.)
डॉ. भावना शुक्ला
विचार और बूंद
विचार और बूंद
विचार सी बूंद
और
बूंद-सा विचार
कितना समानता है दोनों में.
विचार करते हैं परिवर्तन,
लाते हैं क्रांति
और बूंदें;
वे होती हैं जीवन दायिनी
वे ही लाती हैं तबाही.
मैंने देखी हैं मुम्बई की छाती पर
गिरती-तिरती, उफनती बूंदें
और फिर उनका बदलना बाढ़ में.
जैसे पानी की बूंद-सा
आतंक का विचार
ला देता है भीषण तबाही.
बस्तियों को बदल देता है कब्रिस्तान में
बूंद हो या विचार
खतरनाक हैं दोनों की दिशाहीनता!
सम्पर्कः डब्ल्यू जेड/21, हरिसिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व), नई दिल्ली-110056
अहमद फ़राज़
आंख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा.
वक्त का क्या है गुजरता है गुजर जायेगा.
इतना मानूस1 न हो खलवत-ए-गम2 से अपनी,
तू कभी खुद को भी देखेगा तो डर जायेगा.
डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दो,
मैं नहीं कोई तो साहिल3 पे उतर जायेगा.
जिन्दगी तेरी अता4 है तो ये जानेवाला,
तेरी बख्शिश तिरी दहलीज पे धर जाएगा.
जब्त लाजिम है मगर दुख है कयामत का फराज,
जालिम अबके भी न रोयेगा तो मर जायेगा.
1. प्रेमी 2. पीड़ा का एकान्त 3. किनारा
4. पुरस्कार
दौलत-ए-दर्द को दुनिया से छिपाकर रखना.
आंख में बूंद न हो दिल में समन्दर रखना.
कल गये गुजरे जमानों का खयाल आयेगा,
आज इतना भी न रातों को मुनव्वर1 रखना.
अपनी आशुफ्ता-मिजाजी पे हंसी आती है,
दुश्मनी संग से और कांच के पैकर2 रखना.
आस कब दिल को नहीं थी तेरे आ जाने की,
पर न ऐसी कि कदम घर से न बाहर रखना.
जिक्र उसका ही सही बज्म में बैठे हो फराज,
दर्द कैसी ही उठे हाथ न दिल पर रखना.
1. उज्ज्वल 2. आकृति
मुसाफिर देहलवी
दूर तक देखो, जहां बरसात है.
आंधियों में बिजलियों का साथ है.
थी घटा रंगी कहीं मातम भरी.
भीगे शहर यू.पी. कहीं गुजरात है.
जुल्फें अम्बर खुलके, बरसा रात भर.
बिजलियों में हुस्न की सौगात है.
गमजदा वो शख्स, हंसता है मगर,
उसकी दुनियां में भी काली रात है.
टूटा छप्पर किसने देखा है मेरा,
कह रहे हैं सब, हंसी बरसात है.
किसने रुख मोड़ा है. यूं तूफान का,
फिर शहर में बाढ़ के हालात का.
जब से वो रहबर ‘मुसाफिर’ बन गए,
हर लम्हा लगता, सुहानी रात है.
सियासत के सपेरों ने, हजारों नाग पाले हैं.
छिपे कुछ आस्तीनों में, बड़े ही घात वाले हैं.
तुम्हारी नेक नीयत का, तमाशा हमने देखा है,
जिधर देखो, जहां देखा, घोटाले ही घोटाले हैं.
यही दौरे-तरक्की है, तो इसके मायने क्या हैं,
मकानों में अंधेरा है, और सड़कों पे उजाले हैं.
ये बिजली कम्पनी वाले, किसी डॉयर से क्या कम हैं,
कि वो अंग्रेज गोरे थे, कि ये अंग्रेज काले हैं.
तुम लुटियन के बंगले में, बिरयानी उड़ाते हो,
हमारे झोंपड़े देखो, यहां रोटी के लाले हैं.
जहां सरकार बहरी हो, जहां कानून अंधा हो,
जहां की नीतियां सारी, दबंगों के हवाले हैं.
‘मुसाफिर’ मुल्क को बस, सिर्फ दो लफ्जों ने बांटा है,
ये ऊंची जात वाले हैं, ये नीची जात वाले हैं.
सम्पर्कः 261, डी.डी.ए फ्लोर, पॉकेट 9,फेस-1
नसीरपुर-द्वारका, नई दिल्ली-110045
मो. 9210967356
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राधा
जीवन का सच
इस रोजमर्रा की जिन्दगी को देख के
यूं तो जीवन बोझ सा लगता है
और जब ये पता चल जाये
कुछ सांसें ही बाकी हैं इस जीवन की
तब सांसों के लिए मन तरसने लगता है.
जब जीवन में रफ्तार थी
तब सांसों की परवाह न थी
जब रफ्तार धीमी हुई
तो हर सांस कीमती लगती है
अब हर पल जीने को मन करता है.
जो नींद आंखों में यूं ही आ जाया करती थी
अब वो नींद बोझिल आंखों से हो जाया करती है
न जाने कौन सा पल अन्तिम हो
ये सोच के भी डर लगता है
वो नींद जो अचानक से आ जाया करती थी
अब उसके आने से भी डर लगता है
जीवन के हर पल को जीने का मन करता है.
आंखें जो गम या खुशी में
नम हो जाया करती थीं
अब उन आंखों को नम
करने से भी डर लगता है
कुछ पल ही सांसों के बचे हैं
मुट्ठी भर यादों को समेटने
में अब वक्त गुजरता है
अब अधूरी ख्वाहिशों को पूरा
करने का मन करता है.
जो दूर हैं मुझसे मेरे
जो नाराज है मुझ से
उनको मनाने को मन करता है
वापस आ जाये पास मेरे
आखिरी वक्त में सबके साथ में
रहने को मन करता है
सासें कम हैं, फिर भी
हर आखिरी सांस को
जीने का मन करता है
वो आखिरी पल
वो आखिरी सांसें ही तो सच हैं
क्यों इस बात को झुठलाने को मन करता है
हर सांस कीमती है मेरी
हर सांस को जीने को मन करता है.
संपर्कः ई. 372, प्रथम तल, निर्माण विहार,
नियर मैट्रो स्टेशन, मेन विकास मार्ग, नई दिल्ली-92
कुमार नयन
लगता है लहू खौलने अक्सर मिरे अन्दर.
जब सोच का उठता है बवण्डर मिरे अन्दर.
आंखों में मिरे झांक कभी दिल को मिरे छू,
तू देख तो इक बार उतरकर मिरे अन्दर.
मत सोच मिरे ख्वाब फकत मेरे लिए हैं,
पलता है जमाने का मुकद्दर मिरे अन्दर.
चल साथ मिरे जल के अन्धेरे को मिटाने,
है आग बराबर तिरे अन्दर मिरे अन्दर.
सोचूं जो नया कुछ तो वो तूफान उठा दे,
इक शख्स है मुझसे जरा बदतर मिरे अन्दर.
बाजार न गुम कर दे तिरे मिरे भी एहसास,
हर पल है यही चीख यही डर मिरे अन्दर.
मिलती न सजा मेरे गुनाहों की कभी तो,
ऐसे में उतर जाता है खंजर मिरे अंदर.
संपर्कः खलासी मोहल्ला,
जिला-बक्सर (बिहार)-802101
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