व्यंग्य मुझे सस्पैण्ड कर दीजिये सर! एस.एस.एच.रिजवी अमृतलाल धुवारे एक मास्टर हैं और मेरे बचपन के दोस्त भी. पढ़ाने में जितनी अच्...
व्यंग्य
मुझे सस्पैण्ड कर दीजिये सर!
एस.एस.एच.रिजवी
अमृतलाल धुवारे एक मास्टर हैं और मेरे बचपन के दोस्त भी. पढ़ाने में जितनी अच्छी मास्टरी नहीं है, उससे ज्यादा नौकरी में है. हर पल का लाभ कैसे लिया जाए, इसमें उन्हें अच्छी मास्टरी है. अपने चेले-चपाटियों को वो नौकरी में कामचोरी कैसे की जानी चाहिए और कैसे साफ-सुथरा बने रहना चाहिए, इसके भी वो गुर सिखाया करते थे. अक्सर वो नौकरी में सस्पैण्ड होने की महिमा अपने सहकर्मियों को बतलाया करते थे.
एक दिन उन्होंने घर आकर बताया, ‘‘रिजवी साहब! बधाई हो! मैंने जमीन खरीद ली है.’’ ‘‘कितनी?’’ मैंने पूछ ही लिया.
‘‘पूरी पांच एकड़,’’ दाएं हाथ की पांचों उंगलियां दिखाकर उन्होंने फख्र से कहा.
मैंने कहा- ‘‘वो सब तो ठीक है, लेकिन खेती करोगे कैसे? तुम तो नौकरी में हो न?’’
‘‘अरे कर लेंगे यार,’’ अपने पास भी छुरी मारने के ग़ुर हैं! नौकरी में रहकर साईड बिजनेस और खेती कैसे की जाती है, मैं जानता हूं.’’ उन्होंने शेखी बघारते हुए कहा.
मैंने पूछा- ‘‘क्या खेती करने के लिये छुट्टी लोगे?’’
‘‘अरे नहीं यार काहे की छुट्टी-वुट्टी!’’ बेवकूफ ही छुट्टी लेकर अपनी छुट्टियों का घाटा करते हैं, अपन उनमें से नहीं है.” अमृतलाल ने शेखी बघारते हुए कहा.
‘‘फिर क्या करोगे, खेती के लिये तो समय और देखरेख लगती है, वो कहां से पूरा करोगे?’’ मैंने पूछा.
‘‘अरे, सस्पैण्ड होंगे सस्पैण्ड!’’ “अमृतलाल ने दृढ़ता से कहा. फिर कहा- ‘‘अरे गुरु सस्पैण्ड होने के अपने ही मजे हैं, हेड क्वार्टर में अगर अटैच भी हो गए तो कौन रोज-रोज अटेण्डेंस देने और दस्तखत मारने के लिये आना है, और देखता भी कौन है?’’ फिर गंभीर होकर बोले- ‘‘यार!’’ इसके लिए महीने में
एकाध बार आकर संबंधित बाबू को चाय-नाश्ता कराकर मार लेंगे, महीने भर की साईन! और सस्पैण्डी हालत में होते रहेंगे अपने काम, अरे हम मास्टर महीने के इक्तीस दिनों में से बत्तीस दिन गोल भी हो जाएं तो कौन हमको देखने या चैक करने आता है?’’
फिर कहा- ‘‘गुरु, कई नए-नवाड़े तो सस्पैण्ड हालत में हनीमून में निकल जाते हैं. खैर...हमें इससे क्या लेना-देना, हमको तो खेती करनी है खेती?’’
मैंने कहा- ‘‘यार मास्टर साहब! सस्पैण्ड होने से तुम्हारा रिकॉर्ड खराब नहीं हो जाएगा?’’
‘‘अरे रिकार्ड को मारो गोली, कौन सा मेरे को राष्ट्रपति पदक लेना है और कौन सा प्रमोशन मिलना है, हमारी तो कई मास्टरनियां डोली में बैठते वक्त भी मास्टरनी थी और अर्थी उठने पर भी मास्टरनी रहीं. अरे यह मास्टरी है, मास्टरी! तुम बच्चों को पढ़कार राष्ट्रपति भी बना दोगे तो कोई तारीफ करने वाला नहीं है. यहां तो बस रात भर बैठकर ढोल मंजीरा और भजन गाने वाले को भी दो लड्डू और रात भर खुजाते हुए आराम करने वाले को भी दो लड्डू मिलना है, तब इतनी जद्दो-जहद क्यों?’’ उन्होंने दार्शनिक मुद्रा में कहा.
मैंने पूछा- ‘‘तुमको सस्पैण्ड कौन करेगा?’’
‘‘अरे ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कर देंगे, अपने ही आदमी हैं, उनसे सब बात साफ-साफ बता दो तो वो खुद ही रास्ता किाल लेते हैं.’’
‘‘अगर नहीं किये तो?’’ मैंने पूछा.
‘‘उनकी तो छांव को भी करना पड़ेगा, पाण्डे सर को देखो न, पंडिताई भी करता है और मास्टरी भी. अब मास्टरी उसका साईड बिजनेस हो गया है. पिछले साल अक्षय तृतीया से जो सस्पैण्ड हुआ तो पूरे सीजन शादियों में लग्न लगाकर खूब पैसा कमाया भाई! अब तो उसे बड़े-बड़े नेता और अफसर अपने घर पूजा-पाठ और सभी कर्मकाण्ड में बुलाते हैं, लाल बत्ती में जाता है. वी.आई.पी. हो गया है.” ‘‘तब मैं क्या मेरी छोटी सी खेती के लिये मैं सस्पैण्ड नहीं हो सकता,’’ रूमाल से मुंह पोंछने के बाद वो चुप हो गए.
मैंने कहा- ‘‘जरूर-जरूर तुम्हारा सस्पैण्ड होने का हक बनता है.’’ अमृतलाल ने कहा ‘‘यार वकील साहब, ऐसा करते हैं, कि कल ही बी.ई.ओ. (ब्लॉक शिक्षा अधिकारी) के पास चलते हैं.’’
‘‘किसलिए?’’ मैंने पूछा.
‘‘मैं उनसे साफ-साफ कह दूंगा कि मैंने जमीन खरीदी है और इस साल खेती करने के लिये मुझे सस्पैण्ड कर दो.’’ अमृतलाल ने कहा.
‘‘मैं क्या करूंगा चलकर, वो कोई कोर्ट-कचहरी है क्या?’’ मैंने बचना चाहा. ‘‘अरे हर जगह कोर्ट-कचहरी की रट मत लगाया करो, दोस्ती भी कोई चीज होती है,’’ तुम्हारा बस चले तो तुम राम-रमाई की भी फीस वसूल कर लो. ‘‘फिर कहा- ‘‘अरे वो बहुत बारीक आदमी है, सबूत मांगने के लिये पूछ ही लिया तो तुम बोल देना कि मास्साब ने जमीन खरीदी है.’’ मैंने अनमने ढंग से हामी भर दी.
दूसरे दिन 12 बजे हम दोनों ब्लॉक ऑफिस गए, साहब भीतर थे. अमृतलाल ने भीतर घुसकर ‘‘मे आई कम इन सर!’’ कहा.
‘‘अरे आओ-आओ अमृतलाल जी’’ भीतर से आवाज आई. अमृतलाल ने दरवाजे से बाहर झांककर मुझे देखा और बुलाया. मैं भी भीतर चला गया. मेरा परिचय कराते हुए अमृतलाल ने कहा- ‘‘सर ये रिजवी साहब हैं, बालाघाट के मर्डर स्पेषलिस्ट वकील
हैं.’’ अपना ऐसा परिचय सुनकर मैं खिन्न हो गया, लेकिन फिर उनके द्वारा परिचय कराने पर ध्यान न देकर हाथ जोड़कर अभिवादन कर दिया, तब उन्होंने बैठने कहा.
बैठने के साथ ही अमृतलाल ने इधर-उधर की बातें की, फिर पूछ ही लिया ‘‘भाभी की तबीयत कैसी है? पिछली बार दो बॉटल शहद लाया था, उससे फायदा तो हुआ ही होगा.’’ अमृतलाल ने याद दिलाया, साहब मुस्कुरा दिए.
फिर साहब ने पूछ ही लिया, ‘‘और सुनाओ अमृतलाल जी, कैसे आए?’’
‘‘बस साहब! आपके दर्शन के लिए बेताब था, बस दर्शन करने आया हूं,’’ अमृतलाल ने चाटुकारिता करते हुए कहा. साहब मुस्कुरा दिये, मानो सही में वे दर्षन देने के काबिल हैं और अमृतलाल उन्हीं के दर्षन से धन्य हो गया.
कुछ चुप्पी के बाद मैंने अमृतलाल को इशारा किया कि जो बात करने के लिये आए हो, वह कह दो, इस पर उसने हाथ जोड़कर कहा ‘‘एक निवेदन था सर! मुझे नये षिक्षा सत्र से सस्पैण्ड कर दीजिये.’’
‘‘क्यों?’’ बी.ई.ओ. साहब ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘सर, इस बार मैंने जमीन लिया है. बचपन से अरमान सजाए बैठा था, अब वो सपना पूरा हो जाएगा, बस आप की कृपा चाहिए.’’ स्थिति स्पष्ट करते हुए अमृतलाल ने कहा- ‘‘अगर यकीन न हो तो इन वकील साहब से पूछ लो.’’ उन्होंने मेरी तरफ देखा, तो मैंने भी शहादत दे दी.
साहब ने बड़े बाबू को बुलाया! बाबू उपस्थित हुए. साहब ने पूछा ‘‘इस संकुल में अभी कौन-कौन सस्पैण्ड चल रहा है?’’ बड़े बाबू ने बताया, ‘‘पाण्डे जी सस्पैण्ड चल रहे हैं.’’ साहब गंभीर हो गए. फिर बड़े बाबू ने याद दिलाया ‘‘सर! शुक्ला जी ने नये षिक्षा सत्र से सस्पैण्ड होने के लिये कहा था और आपने उनसे वायदा भी कर लिया है.’’
‘‘अरे हां याद आया, वो इमरजेंसी में है.’’ फिर कहा, ‘‘यार अमृतलाल जी बहुत मुश्किल है, मैंने शर्मा को वचन दे चुका हूं, एक ही स्कूल में एकसाथ दो-दो मास्टरों को सस्पैण्ड करने में मुश्किल हो जाएगी, ऐसा करो आप बाद में सस्पैण्ड हो लेना.’’ साहब ने अनुनय की मुद्रा में कहा. ‘‘नहीं सर! शुक्ला जी को दिया हुआ वचन तोड़ दो, उसे बाद में सस्पैण्ड कर देना! आप तो पहले मुझे सस्पैण्ड करो.’’ अमृतलाल ने हठ करते हुए कहा.
‘‘जब बोल दिया तो उसे समझो.’’ साहब ने कठोरता से कहा.
‘‘नहीं सर मुझे तो सस्पैण्ड होना है, यानि सस्पैण्ड होना है, चाहे इधर की दुनिया, उधर हो जाए.’’ अमृतलाल ने भी हठ करते हुए कहा.
‘‘तुम मुझे धमकी दे रहे हो.’’ साहब ने गुस्से से कहा.
‘‘नहीं सर! मैं तो निवेदन कर रहा हूं.’’ अमृतलाल ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, फिर मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘मेरा तो उसूल है, पहले आवेदन, फिर निवेदन और अंत में दनादन.’’ यह सुनते ही साहब सकते में आ गए.
‘‘नहीं अमृतलाल बात को समझा करो, मैंने शर्मा को वचन दे दिया है, मैं तुमको अभी सस्पैण्ड नहीं कर सकता, बाद में भले ही तुम साल भर सस्पैण्ड हो जाना.’’ साहब ने कहा.
अमृतलाल अड़ गए कहा- ‘‘नहीं’’ ‘‘मैंने कह दिया तो आप भी मान लो.’’
‘‘गेट-आऊट गेट-आऊट’’ कहकर साहब ने अमृतलाल को चिल्लाया, अमृतलाल ने आव देखा न ताव और आगे बढ़कर साहब के गाल पर दो चांटे जड़ दिये, शायद यह उसका आखिरी अस्त्र था.
साहब भी ढीठ थे, अपना गाल सहलाते हुए बोले- ‘‘अमृतलाल हम समझते हैं तुम्हारी चालाकी, तुम सोच रहे होगे कि तुम्हारे चांटा मारने से मैं नाराज हो जाऊंगा और तुम्हें सस्पैण्ड कर दूंगा, अरे जाओ-जाओ मैं तुमको बिल्कुल भी सस्पैण्ड नहीं
करूंगा.’’ इस पर अमृतलाल ने उन्हें कुर्सी सहित गिरा दिया, इस बार भी साहब ने जमीन पर पड़े-पड़े चिल्लाया, ‘‘मैं तुमको बिल्कुल भी सस्पैण्ड नहीं करूंगा, चाहे मेरा गला क्यों न घोंट दो.’’
उनकी मारपीट देखकर मैं सर पर पांव रखकर भागा और पास ही चाय की दुकान में दुबक गया.
थोड़ी देर बाद देखा कि अमृतलाल विजयी मुद्रा में गर्व के साथ चलते हुए मुझे इधर-उधर तलाष रहे हैं. मैं जल्द ही उनके सामने आ गया. मैंने कहा- ‘‘यार ये क्या कर डाला, अधिकारी पर हाथ उठाकर तूने अच्छा नहीं किया, कहीं उसने मेरे खिलाफ भी रिपोर्ट कर दिया तब तो मेरी भी मिट्टी-पलीद हो जाएगीकृ’’
‘‘नहीं उठाता तो सस्पैण्ड कैसे होता?’’ अरे पूरा ऑफिस जमा हो गया था, बड़ा बाबू तो फुट-फुट भर उछलकर सस्पैण्ड करो, सस्पैण्ड करो, चिल्लाता था. बस क्या था सबके कहने पर साहब ने बड़े बाबू से आर्डर बनवा कर चिड़िया बिठाल दी. अब मजे से खेती भी होगी और गहानी भी.’’ कहते हुए वे मेरे कंघे पर हाथ रखकर बाहर चलने लगे.
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संपर्कः बैहर रोड, बालाघाट (म.प्र.)
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