इतिहास बाबरनामा : सन् 935 हिजरी1 की घटनाएं युगजीत नवलपुरी जुमा मुहर्रम की तीसरी को असकरी आया. मुलतान के भले के लिए ही उसे वहां से बुला ...
इतिहास
बाबरनामा : सन् 935 हिजरी1 की घटनाएं
युगजीत नवलपुरी
जुमा मुहर्रम की तीसरी को असकरी आया. मुलतान के भले के लिए ही उसे वहां से बुला लिया था. दूसरे दिन मीर मुअर्रिख2 ख्वांद अमीर, मौलाना शहाब मुअम्माई और यूनुस अली के एक नजदीकी3 मीर इबराहीम कानूनी4 ने नौकरी हासिल की. मुद्दत हुई5 कि ये तीनों मुझसे मिलने के लिए हरी से चले थे.
पांचवीं को ग्वालियर की सैर के लिए जून (यमुना) पार आया. ग्वालियर की किताबों में ‘कालियूर’ लिखा6 है. किले में जाकर बुआ-बेगमों को काबुल विदा करने के लिए सवार हुआ. मुहम्मद जमान मीरजा छुट्टी लेकर आगरा में ही रह गया. उस रात हम तीन-चार कोस चले और एक बड़ी झील के किनारे आकर सो गए. वहां से सुबह की नमाज पहली बेर में ही पढ़कर सवार हो गए और गंभीर नदी7 के किनारे दुपहरा8 किया. मुल्ला रफी ने नशे के लिए एक चूरन बनाया था. तालकान9 के साथ फांका. सबको बदमजा लगा. धौलपुर से कोस भर पच्छिम एक नया बाग और मकान बनवाया था. वहीं उतरे.
यह जगह पहाड़ की चोंच पर है. पूरी चोंच इमारती लाल पत्थर की एक ही चट्टान है. मैंने कहा था कि इसमें मकान कट सके तो काटा जाए. पर सतह बराबर करने पर ऊंचाई कम निकली. इसीलिए मेरे दूसरे हुकुम पर काम हुआ. उस्ताद शाह मुहम्मद संगतराश ने इसमें छत्तेदार अठपहल तालाब काटा. तालाब के उत्तर में आम, जामुन और दूसरे पेड़ों के घने जंगल हैं. उसमें मैंने एक दह-दर-दह कुंड बनवाया. कुंड अब लगभग तैयार था. तालाब में पानी इसी से जाएगा. तालाब के पच्छिम सुलतान सिकंदर का बांध है, जो (पूरी घाटी) के आर-पार है. बांध पर मकान हैं. उसके उस पार बहुत बड़ी झील बन गई है. पूरब में बाग हैं. मैंने उधर की एक चट्टानी चट्टान में चौतरा और चारदरी तालार बाटने को कहा और पच्छिमवाली में एक मसजिद काटने को. मंगल-बुध को इसी के लिए रुका रहा. जुमरात को सवार होकर तीसरे पहर चंबल और चौथे पहर कवारी पार की. कवारी बढ़ी थी, इसलिए हम नाव से पार गए और घोड़े तैरकर.
अगले दिन अषरा10 था. दुपहर एक गांव में किया. इषा तक ग्वालियर से कोस भर उत्तर नए चारबाग पारसाल बनवाया था11. दूसरे दिन उत्तर की पहाड़ियों और ईदगाह की सैर की. मानसिंह के मकान के पासवाले फाटक हथियापोल से शहर में पैठे और राजा बिकरमाजीत के मकानों में उतरे. रहीमदाद12 इन्हीं में रहता है. रात को अफीम खा ली. इसलिए कि कान का दर्द सता रहा था13. दूसरी बात यह थी कि चांद बहुत चमक रहा था. दूसरे दिन उसके नशे ने बेचैन रखा. कई बार कै हुई. फिर भी मैंने मकानों की सैर अच्छी तरह कर ली.
मकान अजीब शान के हैं. पूरे तराशे पत्थर के. पर जो सिल्ले लगे हैं, वे बड़े भारी-भारी, बेडौल और ना-बराबर हैं14. राजाओं15 के महलों में मानसिंहवाले सबसे बढ़िया, आलीशान और रोबीले हैं. इनकी पूरबी पाखें सबसे बढ़कर कटावदार हैं. ये चालीस-पचास गज ऊंची हैं16. इन पर कोई हल्का दूधिया लेप है17. यह महल कहीं-कहीं से चौमहला है. निचले दो तल्लों में अंधेरा घुप्प है. बहुत देर ठहरने पर थोड़ा-थोड़ा सुझाई देता है. हमने उनकी सैर शमा की रोशनी में की. हर पाख पर पांच-पांच बुर्ज हैं. हर दो बुर्ज के बीच एक-एक चौपहल बुर्जी हिन्दी ढंग की है. बड़े-बुर्जों पर सोने का पानी चढ़े तांबे की कलसियां हैं. दीवारों के बाहर चीनी का काम है. उन पर चारों ओर केले के पेड़ बने हैं, जोहरी चीनी में हैं. पूरबी पाख में एक जगह निकलती हुई बड़ी निकसार है, जिसमें हथियापोल है. यहां ‘फील को ‘हाथी’ और ‘दरवाजे को ‘पोल’ कहते हैं. पोल के बाहरी निकास18 पर पत्थर का हाथी है, जिस पर दो महावत हैं. बिलकुल असली हाथी जान पड़ता है. इसी की वजह से फाटक को ‘हथिलापोल’ कहते हैं. पोल के ऊपर चौमहला है, जिसके सबसे निचले तल्ले की एक खिड़की हाथी के बिलकुल पास में ही खुलती है. उस खिड़की से हाथी को बहुत पास से देखा जा सकता है. सबसे ऊपर वही बुर्ज-बुर्जियां हैं. बैठका दूसरे तल्ले में है. इसमें मेहनत और कारीगरी तो बहुत की गई है, हिन्दी कटाव-सजाव में कोई कमी तो नहीं है, पर मकान घुटे-घुटे हैं. गड्ढे में होने से बे-हवा हैं19.
मानसिंह के बेटे विक्रमाजित के मकान किले के उत्तर में, बीच की जगह20 पर हैं. बाप की जैसी इमारत उसकी बन नहीं पड़ी. उसने एक बहुत बड़ा बुर्ज बनवाया है. यहां भी अंधेरा बहुत है. देर तक आंखें फाड़ने पर थोड़ी-थोड़ी धुंध खुलती है21. उसके नीचे एक छोटा मकान है, जिसमें कहीं से रोषनी नहीं आती. रहीमदाद ने बड़े बुर्ज में एक छोटा-सा तालार बनाया है. बेटे के महल से बाप के महल तक छिपा रास्ता है22. बाहर या भीतर कहीं से इस रास्ते का पता नहीं चलता. फिर भी इस पर कहीं-कहीं रोशनी है. खास रास्ता है.
मकानों की सैर के बाद रहीमदाद का बनाया मदरसा देखा. एक बड़े तालाब के पास उसने एक फुलवारी भी लगाई है. उसकी भी सैर हुई. शाम को बड़ी देर से चारबाग की अपनी छावनी में लौट गया. रहीमदाद की फुलवारी में फूल बहुत हैं. कनेर की तो भरमार है. उनका रंग बहुत ही लुभावना लाल है. यहां की और जगहों की तरह सतालूके फूल जैसा नहीं. मैंने आगरा में भी ग्वालियरी लाल कनेर लगवाए. फुलवारी के दक्खिन में बरसाती कूल हैं23. उसके पच्छिम में एक आलीशान मंदिर है24. सुलतान शमसुद-दीन अलमष ने मंदिर के पहलू में एक जुमा मसजिद बनाई है. किले में मंदिर से ऊंची और कोई इमारत नहीं है.
धौलपुर के पहाड़25 से किला और यह मंदिर खूब दिखाई देता है. कहते हैं, वह बड़ा कूल इसी मंदिर के लिए पत्थर कटने से बन गया था. रहीमदाद ने अपनी फुलवारी में काठ का एक तालार बनवाया है. उसके ओसारे नीचे, हिन्दी काट के और बेहूदा बने हैं.
दूसरे दिन यहां की और जगहें देखीं. ‘बादलगर’26 की इमारत देखी, जो मानसिंह के किले में है. फिर ‘उरवा’ घाटी में गए. किले की बाहरी दीवार इसी घाटी के रास्ते पहाड़ी की चोटी के ऊपर से गई है. घाटी के मुंह पर दुतही है. दुतही की ऊंचीवाली दीवार सत्तर-अस्सी हाथ ऊंची है. लंबीवाली भी वही है. घाटी से इसी दुतही में जाने के फाटक के ऊपर सुलतान शहाबुन-दीन अलमतश का नाम और सन् 630 (हिजरी) पत्थर पर खोदकर लगे हैं. इस बाहरी दीवार के और किले के भी बाहर एक बड़ी झील है, जो (कभी-कभी) पानी घट जाने से लापता हो जाती है. पानीचोर का पानी इसी झील से जाता है. उरवा के भीतर भी दो झीलें हैं. शहरवो उनके पानी को सबसे बढ़िया मानते हैं. उरवा के तीन ओर बदरंग लाल पत्थर का पहाड़ है. उसमें तीनों ओर बहुत-से छोटे-बड़े बुत कटे हैं. दक्खिन का एक बड़ा बुत कोई बीस कारी27 का है. सभी बुत चम-नंगे बने हैं. उरवा की दोनों झीलों के बीच बीस-तीस कुएं हैं. उनके पानी से साग-भाजी, फूल-पत्ते और पेड़-पौधे उगाते हैं. उरवा बंद सही, पर दिलचस्प जगह है. खोट बस वही बुत हैं. मैंने उन्हें तुड़वा दिया28.
सुलतानी पोल हिन्दुओं के दिनों से ही बंद था. खुलवाकर वहीं दिल बहलाया. शाम को रहीमदाद की फुलवारी में उतरे. वहीं सोया गया.
राणा सांगा का दूसरा बेटा विक्रमाजित अपनी मां पद्मावती के पास रण-थंभौर में था. चौदहवीं को उसके लोग आए. पहले भी उसके बड़े और विश्वासी सरदार अशोक29 व उसके लोग आए. पहले भी उसके लिए सत्तर लाख का मुल्क मांगा था. तब यह कहला दिया था. पर ये लोग दिए दिन के कई दिन बाद आए. अशोक पद्मावती का कोई होता है. उसने उन (दोनों) से बाप और बेटे की-सी बात की30. उन्होंने भी बात मान ली. राणा सांगा के पास सुलतान महमूद31 का एक ताज, कुलाह और सोने की पेटी थी. राणा ने ये चीजें लेकर सुलतान को रिहा किया था. अब ये चीजें विक्रमाजित के पास हैं. बड़ा भाई रतन-सी, जो अब बाप की गद्दी पर चितौड़ का राणा है, ये चीजें मांगता है, पर ये नहीं देते. अब जो इनके लोग आए तो इन चीजों की बात मुझसे चलाई और रणथंभौर के बदले बयाना मांगा. मैंने बयाना तो नहीं, पर शमसाबाद देने का वादा किया, उन लोगों को खिलअतें देकर विदा किया और कह दिया कि नौ दिन बाद बयाना आकर मिलो.
वहां से आकर मंदिरों की सैर की. मंदिर दुमहले-तिमहले हैं, पर तल्ले अगली काट के, नीचे-नीचे हैं. ईजारों के सिल्लों पर पूरे कद के बुत उभारदार खुदे हैं. कुछ मंदिर मदरसों की काट के हैं. उनके आगे खुले दालान हैं, सदर हैं, सदर में ऊंची बुर्ज हैं32 और हुजरे भी मदरसों के-से हैं. हर हुजरे पर पत्थर की पतली-पतली बुर्जियां हैं. निचले हुजरों के भीतर चट्टानों में ही काटे गए बुत हैं.
वहां के दक्खिन से निकलकर सैर करते हुए हथियापोल के पास रहीमदाद के बनवाये चारबाग33 में तरे. रहीमदाद ने बहुत बढ़िया आश की दावत की और तरह-तरह के सामान के अलावा चार लाख की रोकड़ भेंट की. उसके चारबाग से मैं अपने चारबाग में आ गया.
पंद्रहवीं को अग्नि कोने में कोई छह कोस जाकर एक झरने34 की सैर की. अरगामची35 भर ऊंचे से पनचक्की भर पानी गिरता है. नीचे बड़ी झील है. उस पर ठोस चट्टानें हैं, जो बैठने के लिए बनाई हुई-सी जान पड़ती हैं. पर सुनते हैं कि पानी हमेशा एकरस जारी नहीं रहता. झरने के ऊपर बैठकर हमने माजून खाई और उजानी चढ़कर उसकी बदयत36 देख आए. पलटकर एक टेकरी पर देर तक बैठे रहे. गाना-बजाना होता रहा. ऐतियों37 ने कई चीजें सुनाईं. कई ने हिन्दी आबनूस38 देखा न था. उन्हें दिखाया. नीचे आकर शाम को कूच किया. आधी रात को एक जगह से रहे. पहर दिन चढ़े चारबाग आकर उतरे.
सत्रहवीं को सलाहुदीन गांव सूकचाना के ऊपर वाले पहाड़ की घाटी में नींबू और सदाफल में बाग की सैर की. पहर (रात) गए चारबाग लौटे. उन्नीसवीं को मुंह-अंधेरे के पहले धौलपुर पहुंच लिए. अबुल फतह के बनवाए चिराग हम्माम की सैर करके बांध के सिरे पर बन रहे नए चारबाग में आ गए. रात को वहीं रहे. सवेरे उन जगहों को देखने गए, जिनके बनाने का हुकुम था39. छत्तेदार तालाब का मुंह40 सीधा नहीं उठ रहा था. मैंने कहा, संगतराषों की मदद बढ़ाकर पहले पेटी बराबर कर लो और फिर पानी डालकर उसकी सतह से दीवार के ऊपरी सिरे बराबर कर लेना. अब तक उन्होंने पेटी ठीक कर ली और पानी छोड़कर कगारों की कोरों की कोर-कसर निकालने लगे. मैंने हुकुम दिया कि कहीं मुनासिब जगह देखकर एक पनसाल काटो, जिसमें पनसाल का घर और उसके भीतर की छोटी पोखरी, दोनों एक ही चट्टान में कटे.
पूरक-4
(मुहर्रम की उन्नीसवीं के उल्लेख के बाद फिर निश्चित तिथि के नाम पर सफर की तीसरी का उल्लेख है. इस बीच मुहर्रम बीसवीं की दैनिकी तो ऊपर धौलपुर के लक्षण-कार्य के विवरण के रूप में आ गई है. पर इसके बाद जो क्रम टूटा है, वह फिर किसी अनुल्लिखित तिथि सोमवार की माजून-गोष्ठी के प्रसंग से चलने लगा है. सफर की तीसरी से पीछे को लौटते हुए यह अनुमान लगता है कि यह सोमवार27 मुहर्रम का रहा होगा. इस प्रकार इस बीच के कम-से-कम छह दिन के पत्रक खोए हैं. अंतराल की इसी अवधि में बाबर को बयाना में ‘विक्रमाजित’ के दूतों से मिलता था. सफर पांचवीं के विवरण में ‘अगले-पिछले’ दूतों के उल्लेख से स्पष्ट है कि बाबर बयाना गया और वहां से (अगले) दूतों को आगरा लेता हुआ (‘पिछले’ दूत सीधे आगरा पहुंचे होंगे). इस प्रकार धौलपुर-यात्रा की समाप्ति, बयाना-यात्रा, (पहली बार) बयाना किले की सैर, ‘विक्रमाजित’ के दूतों से बातचीत आदि के विवरण खोए हैं. सीकरी पहुंचने मे लगे समय से यह अनुमान होता है कि अनुल्लिखित तिथि सोमवार की माजून-गोष्ठी भी बयाना में ही हुई.- अनु.)
सोमवार41 को माजून का जलसा हुआ. मंगल को हम वही42 रहे. बुध की रात को रोजा खोलने के बाद सीकरी के लिए सवार हुए. आधी रात कि एक जगह सो रहे. मुझे तो कान के दर्द के मारे नींद नहीं आई. शायद सरदी का असर हुआ हो. सवेरा होते ही हम फिर चले. पहन दिन बढे़ सीकरी के नए बाग में उतरे. बाग की दीवारों और कुएं की इमारतों का काम बहुत धीमा चल रहा था. मीर-इमारत43 को बहुत डांटा. तीसरे पहर के बाद सीकरी से सवार हुए, मधकौर से निकलकर कहीं एक जगह सोए और पहर दिन चढ़े आगरा पहुंचे. वहां सुना कि (फूफी-बेगमों में से) फख्रि-जहां बेगम तो काबुल चली गई, पर खदीजा बेगम कुछ काम से रह गई, सो अभी यहीं है. किले जाकर उनसे मिला और फिर जून (यमुना) पार करके दश्त-बहिश्त बाग में आ गया.
सनीचर सफर की तीसरी को चौथेपहर में बड़ी फूफी-बेगमों में से गौहरशाह बेगम, बदीउलजमाल बेगम और आक बेगम से और छोटी बेगमों44 में से सुलतान मसूद मीरजा की बेटी खानजादा बेगम, सुलतान-बख्त बेगम की बेटी, और अपनी ‘यींका चाचा45’ की पोती जैनब-सुलतान बेगम से मिला. वे मुहल्लों के सिरे पर एक ‘छोटे काले गहरे ठहरे पानी46’ के किनारे उतरी थीं. वहां से मैं सीधे नाव में आया.
सोमवार पांचवीं को विक्रमाजित के अगले-पिछले एलचियों के साथ बहीरा के हमारे पुराने हिन्दू नौकर देवा के बेटे हामूसी को रणथंभौर भेजा कि बिकरमाजीत रणथम्भौर सौंप दे और अपनी ही रस्म और रिवाज के साथ नौकरी करें, वह अपनी बात पर रहे तो हम भी तैयार हैं. अल्लाह ने चाहा तो हम उसे उसके बाप की जगह चितौड़ का राणा बना देंगे.
(यहां फिर तीन दिन के पत्रक खोए हुए हैं)
अब तक दिल्ली और आगरा के खजाने चुक गए थे. हुकुम दिया कि हर वजहदार47 अपने भत्ते की तीस फी सैकड़ा रोकड़ दीवानी में डाले, ताकि लड़ाई समान, बारूद और रसद की और चीजें मोल ली जा सकें और तोपचियों-तुफंगचियों की तनखाहें दी जा सकें.
दसवीं को शाह कासिम पियादा फरमान लेकर फिर48 खुरासान भेजा गया. हरी के संगों-अपनों49 को फरमान था कि अल्लाह की इनायत, यहां के पूरब-पच्छिम दोनों ओर से दिलजमई हो चुकी है, अब इनशा-अल्लाह, अगली बहार में जैसे भी हो, मन की मुराद पूरी कर ली जाएगी50. जो फरमान अहमद अफशार के नाम था, उसके हाशिये पर मैंने अपने हाथ से यह लिख दिया कि फरीदून कबूजी यहां आ जाए.
(यहां फिर ग्यारह दिन के पत्रक खोए हुए हैं.)
उसी दिन पहले पहर से पारा खाने लगा.
इक्कीसवीं को कामरान और ख्वाजा दोस्त खावंद की अरदासें लेकर एक हिन्दी पियादा आया. ख्वाजा जुलहिज्ज की दसवीं को काबुल पहुंचा था और हुमायूं के पास जाने के लिए छटपटा रहा था, पर कामरान ने उसे रोक लिया कि पहले यह तो तय हो जाए कि मेरी अरदास51 का क्या हुआ! इसके ख्वाजा18 दिन बाद ही किला-जफर के लिए रवाना हो सका. अरदासों में एक बढ़या बात यह बताई गई थी कि तुहमास्प उजबेक52 को ठिकाने लगाने पर कमर कस चुका है और उसने रीनीश उजबेक और उसके सारे लोगों को मार डाला है. साथ ही यह बात भी थी कि उबैद खां हरी से भागकर मर्व जा बैठा है और मदद के लिए सारे सुलतानों को उसने वहीं बुला लिया है. वहीं पियादा यह हाल भी लाया53 कि यादगार तजाई की बेटी54 से हुमायूं के एक बेटा55 हुआ है और कामरान अपने मामा सुलतान अली मीरजा56 की बेटी57 से काबुल में ही ब्याह कर रहा है.
उसी दिन सैयद दकनी शीराजी जिबागर58 को खिलअत और इनाम देकर हुकुम दिया कि एक फव्वारादार कुआं59 जितना भी उम्दा बना सको, बनाओ.
तेईसवीं को ऐसी हरारत लगी कि मसजिद में जुमा की नमाज मुश्किल से पढ़ी गई. वहां से उठकर किताबघर में आ गया. बड़ी बेचैनी रही. एतवार को ताप चढ़ा तो जूड़ी कम हुई. मंगल की रात को जी में आया कि हजरत ख्वाजा उबैदुल्ला60 की (किताब) ‘वालिदीया रिसाला’61 को नज्म कबूल हो और कबूल होने की दलील62 यह हो कि जैसे कसीदा बुरदावाले का कसीदा63 कबूल हुआ तो वह फालिज से अच्छा हो गया, वैसे ही मैं भी इस बीमारी से निकल जाऊं. यहीं नीयत करके मैंने मौलाना अबदुर-रहमान जामी64 की (किताब) सुबतुल-अबरार की ‘रमल मुसदस मजनूं’ और ‘मजूनूं महजूफ’65 में यह काम शुरू कर दिया. उसी रात तेरह शे’र लिख डाले. कम-से-कम दस शे’र रोज लिखने की ठान ली. इतने में तो शायद ही किसी दिन चूक हुई हो. पिछले साल जब-जब बीमार हुआ, चंगा होने में तीस-चालीस दिन लग-लग गए. इस बार अल्लाह की इनायत और हजरत ख्वाजा की बरकत से उनतीसवीं को ताप उतर गया. पहली रबी की आठवीं66 को किताब पूरी हो गई. एक दिन तो बावन शे’र हुए थे.
अट्ठाईसवीं को चारों ओर हुकुम भेज कि सब लशकर सामान ठीक करके चले आएं.
(यहां भी नौ दिन के पत्रक खोए हुए हैं.)
पहली रबी की नवीं को बेग मुहम्मद तकअल्लुकची67, जो पारसाल मुहर्रम बीतने पर खिलअत और तपचाक लेकर हुमायूं के पास गया था, लौटकर आ गया. अगले ही दिन हुमायूं के दो नौकर, बेग-गीना68 और बयान शैख पहुंचे. बेग-गीना हुमायूं के बेटा होने का हाल लाया और बच्चे का नाम अल-अमान बताया. शैख अबुल वज्द69 ने उसके पैदा होने की तारीख निकाली. ‘शह सआदतमंद70!
बयान शैख बहुत बाद में चला था. वह दुशंबा से सफर की नवीं को चला और पहली रबी की दसवीं को आगरा आ गया71! पहले एक बार तो वह कुल ग्यारह दिन में किला-जफर कंदहार पहुंच गया था72. वह तुहमास्प के हाथों उजेबक के हारने का बसताम ओर दामगान ले लिया. रीनीश उजबेक के एक-एक आदमी को मार डाला. उबैद खां हरी से मर्व भाग गया. वहीं उसने मदद पर सभी खानों-सुलतानों को बुला लिया. तुहमास्प ने यह सब सुना तो हरी जाने के बजाय रादगान73 के हरियावल में खाइयां-वाइयां खोदकर बैठ गया. उजबेकों ने यह ठहराई कि और सब तो मशहद में बैठें और बीस हजार लोग साथ लेकर कुछ लोग उस छावनी तक जाएं और उसे (तुहमास्प को) सिर न उठाने दें. उन्होंने जादूगरों को भी बुला भेजा कि अकरब में सूरज के आते ही अपना काम74 शुरू कर दें. पर शाहजादा (तुहमास्प) ने मशहद से कूच किया75 और जाम76 के पास उजबेकों को हराकर अक्सर सुलतानों को मार डाला. एक चिट्ठी में तो यहां तक लिखा था कि ‘‘पता नहीं, कूचूम खां के सिवा और कोई (उजबेक) सुलतान बचा भी है या नहीं.’’ इबराहीम जानी को बेटा चलमा77, जिसका असल नाम इसमाईल है, हिसार में ही होगा.
हुमायूं और कामरान के नाम चिट्ठियां लेकर बयान शैख को ही उलटे पांव दौड़ाया. लिखने-लिखाने के जो भी काम थे, चौदहवीं तक हो लिए और पंद्रहवीं को वह आगरा में कोसों दूर था.
हुमायूं को भेजी गई चिट्ठी
‘‘हुमायूं को जिसे देखने को तरसता हूं, सलाम के बाद, पहली बात यह है किः
‘‘पहली रबी की दसवीं को मिली चिट्टियों से उधर और
इधर के78 सब हाल ठीक-ठीक जाने.
‘‘शुक्र अल्लाह का, देकर किसी को फरजंदी79.
तुमको बेटा दिया है, दी है मुझे दिलबंदी80!
‘‘दोनों जहानों का मालिक तुझे और मुझे बराबर एकसी ही खुश-खबरियां नसीब कराए! तू कहता है कि नाम ‘अल-अमान रखा है. अल्लाह करे, वह फूले-फले. पर तू यह भूल गया कि आम लोग ‘अलामा’ या ‘ईलामां81 कहेंगे. दूसरे, नामों में यह ‘अल’ शायद ही लगता है82. अल्लाह करे, वह और उसका नाम ऊंचा रहे. अल्लाह करे, हमें बरसों और दसियों बरसों तक ‘अल-अमान’83 नसीब हो. अल्लाह हमारे काम संवारे, ऐसे दिन दसियों बरसों में आ पाते हैं.
‘‘फिर. ग्यारहवीं को अफवाह आई कि बल्खी अपने यहां कुरबान84 को बुला रहे हैं.
‘फिर. कामरान और काबुल-बेगों को कहा है कि तेरे पास जाएं. वे आ लें तो तू हिसार, समरकंद, हरी या जहां कहीं नसीब ले जाए, चला जा. अल्लाह करे, तू बैरियों को कुचल डाले, कि सुनकर दोस्त लिखें और दुश्मन मुरझाएं! अल्ला का शुक्र करो, अब तुम्हारे लिए जान जोखिम में डालने और तलवार चलाने के दिन हैं. जो भी काम आ पड़े, पूरी लगन से करना. आलस और आरामतलबी का बादशाही से कोई मेल नहीं.
जहांगीरी तवक्कूफ बल नयाबद, जहानूरा बुवद कूबा-शिताबद
हमा चीजें जरूये कदखुदाई, सकूं मी याबदीला-पादशाही!’’
(‘‘जगज्जय में विलंब?- कभी न संभव!
जगत् उनका कि जो रहते सदा-जव!
जगत् रुक जाए, यदि हो परिणयोत्सव!
जगत्पति-कर्म का रुकना! उपद्रव!’’85)
अगर अल्लाह बल्ख और हिसार जिता दे तो अपने लोगों को हिसार में रखना, कामरान के लोगों को बल्ख में. समरकंद मिल जाए तो वहीं बैठना. फिर इनशा-अल्लाह, इनशा-अल्लाह, मैं
उधर के मुल्कों से ही कमी पूरी कर दूंगा.
‘‘फिर तू जानता है कि तुझे छह मिलें तो कामरान को पांच मिलते हैं. यही बराबर से होता आया है, इसमें हेरफेर न करना.
‘‘फिर. छोटे भाई से अच्छी निभाना. बोझ बड़ों को ढोना होता है86. मुझे तो भरोसा है कि तू उससे निभाएगा और वह भी बढ़िया-सा कामकाजी जवान हो चला है, तन-मन से तेरे काम अपने में कभी न चूकेगा.
‘‘फिर. मुझे तुझसे कुछ मामले सुलटाने हैं. पर तेरी चुप्पी कुछ देर में टूटती है. पिछले दो-तीन बरस में तेरा कोई आदमी नहीं आया. मेरा जो आदमी गया87, वह भी कोई बरसा भर बाद लौटा. है न यही बात?
‘‘फिर. तेरी चिटि्ठयों में ‘आराम-आराम’ का नारा है. आराम बादशाही की बहुत बुरी खोट है. हजरत(शैख)88 ने
कहा हैः
‘‘पांव बेड़ी में अगर हों तो तसाहुल बेहतर
कोई भी हो न हम-रकाब तो ले अपना सर89!
जैसी पाबंदी बादशाह की होती है, वैसी और कोई पाबंदी नहीं होती. आराम को बादशाही से कोई मेल नहीं.
‘‘फिर. मेरी बत रखने को तूने चिट्ठी तो लिखी है, पर उसे आप भी पढ़ क्यों न लिया? पढ़ लेता तो तुझे पता चल जाता कि इसे पढ़ना तेरे बस की बात नहीं. फिर तू इसमें हेर-फेर किए बिना न रहता. कोशिश और तरददुद करने पर मतलब तो निकल आता है, पर पूरी चिट्ठी बेहद उलझी हुई है. न- 90 में पहेली भला किसने देखी है?91 हिज्जे92 तेरा बुरा नहीं, पर पूरा सही भी नहीं. ‘इलतिफात’ को तू ‘ता’ से और ‘कूलिंज’ को ‘या’ से93 लिखता है. तेरी चिट्ठी में एक नहीं, हर तरह की कोशिश चाहिए. लफ्ज तू ऐसे चुनता है, जिनसे मतलब पर धुंध-सी छा जाती है. इस लापरवाही की जड़ यह है कि तू सीधी-सादी बात में भी दूर की कौड़ी लाना चाहता है. आगे से जो भी लिखना, उसमें इस बात का पूरा ध्यान रखना कि उसमें जानकारी का कोई दिखावा न हो, बनावट न हो. लफ्ज सीधे और सादे और साफ ही अच्छे. ऐसे लफ्ज ही काम में लाना. इसमें तू और तेरा लिखा पढ़़नेवाला, दोनों जहमत से बच जाते हैं.
‘‘फिर. तुझे अब बड़े काम94 पर निकलना है. होशियार और तजुरबेकार बेगों से सलाह करना और उनकी बात मानना. मेरी खुशी चाहता है तो अकेले बैठना और लोग-बाग से दूर रहना छोड़ दे. छोटे भाई और बेगों को दिन में दो बार अपने पास बुलाया कर.यह बात उन पर मत छोड़ कि वह चाहें तो आएं, न चाहें न आएं. काम कोई हो, सबकी सलाह से कर. उन भला चाहनेवालों से एक-एक बात ठहरा लिया कर और कोई काम ऐसा न कर, जिसमें सबकी राय न हो.
‘‘फिर. ख्वाजा कलों मेरा पुराना साथी और दोस्त है. घर के लोगों की तरह हम आपस में खुले रहे हैं. तू भी उससे उतना ही, बल्कि उससे भी बढ़कर घुल-मिल. इन्शा-अल्लाह, उधर काम हो ले, कामरान का उधर कोई काम न रहे, तो उसके सधे-मंजे लोगों को बल्ख में रखवाकर उसे मेरे पास भेज देना.
‘‘फिर. काबुल लेने के बाद ऐसी जीतें हुई हैं और ऐसे मुल्क हाथ आए हैं कि मैं काबुल को सगुन मानता हूं और इसीलिए उसे खालसा में रखा है. तुममें से कोई भी उसका लालच न करे.
‘‘फिर! यह तूने अच्छा किया है कि सुलतान वैस95 का दिल जीत लिया है. आदमी काम का है. उसकी राय मानकर चलना.
‘‘लशकर की पूरी गोलबंदी कर लेने पर ही कहीं निकलना.
‘‘जो बातें लिखने की नहीं, कहने की हैं, वे बयान शैख को अच्छी तरह समझा दी गई हैं. वह तुझे सब-कुछ बता देगा. यह सब कहकर तुझे सलाम करता हूं और तुझे देखने को तरसता
हूं.’’
यह चिट्ठी तेरहवीं96 को लिखी. यही बातें अपने हाथ से कामरान और ख्वाजा कलां को भी लिख भेजीं.
(नवंबर 28 से दिसंबर 1 तक का अंतराल)
उन्नीसवीं को मीरजाओं, सुलतानों, तुर्क बेगों और हिन्दी अमीरों की सलाह से यह ठहरी कि असकरी मुझसे पहले पूरब जाए और गंगा-पार के सुलतान और अमीर उसके साथ हो लें और फिर जिधर नसीब ले जाए, जाए. ये बातें लिख ली गईं और बाईसवीं को जुनैद बिरलास और पूरब के दूसरे अमीरों के पास गयासुद-दीन कूरची को दौड़ाया गया. लौटने को सोलह दिन की मियाद97 दे दी गई. अमीरों को कहला भेजा गया कि वे असकरी के साथ चलें और अगर काम पड़ा तो इस आदमी के लौटते ही बादशाह आप भी सवार होकर पूरब को रवाना होंगे. इस बात का ठीक-ठीक पता लगा लिया जाए कि बंगाली98 हमारे साथ हैं या दुचित्ते हैं. सबकी सलाह हो तो मैं भी आऊं, नहीं तो कहीं और99 जाऊं.
(पांच दिन का अंतराल)
उनतीसवीं के दिन असकरी को जड़ाऊ कटार, पेटी, शाही पोशाक, निशान, तूग नगाड़ा, एक लड़ी तपचाक, दस हाथी, एक लड़ी ऊंट, एक खच्चर, पूरा शाही ताम-झाम और शाही बरतन-बासन देकर दीवान की पहली जगह पर बिठाया गया100. उसके मुल्ला और दो अतालीकों को तुकमादार चमकान101 और दूसरे नौकरों को नौ-नौ लवादों के तीन-तीन तोशे102 अता हुए.
तीसवीं को मैं सुलतान मुहम्मद बखशी के घर गया. उसने पांवड़े बिछाकर मुझे भीतर लिया और कालीनें बिछाकर किशतियां103 पेश कीं. उसकी भेंट रोकड़ और सामान मिलाकर दो लाख से ऊपर की थी. आश खाकर हम दूसरे कमरे में गए, जहां माजून का जलसा रहा. तीसरे पहर वहां से विदा होकर हमने नदी पार की और खिलवतखाने में आ गए.
दूसरी रबी की चौथ को यह ठहरी कि चकमाक बेग104 शाही तमगाची105 की मुहर्रिरी106 साथ लेकर आगरा से काबुल तक की दूरी जरीब से नापे. हर नवें कोस पर बारह कारी ऊंची मीनार बने, जिसके ऊपर चार-दरा हो. हर अठारहवें कोस पर छह-छह घोड़ों की डाक-चौकी बिठाई जाए. चौकी खालसा के परगने में हो तो डाकदरों और साईसों की तलब और घोड़ों का दाना खालसा से मिले. नहीं तो जिस बेग के परगने में हो उससे लिया जए. चकमाक बेग शाही को लेकर उसी दिन आगरा से रवाना हो गया. कोस (‘कुरोह’) को ‘मिल’ के हिसाब से पक्का कर दिया गया, जैसा कि ‘मुबैयन’107 में लिख दिया हैः
‘‘चार हजार डगों का ‘मील’, कुरोह उसी का हिन्दी नाम;
डेढ़-डेढ़ ‘कारी’ का ‘डग’ है, हर ‘कारी’ है छह ‘तूताम’108,
हर ‘तूताम’ चार ‘ईलीकें; छह जौ की ‘इलीक’ प्रमाण
दूरी का यह मान जान ले, बहुत जरूरी दूरी-ज्ञान!’’
तनाब109 चालीस डग यानी साठ कारी यानी एक हजार चार सौ चालीस ईलीक की पक्की कर दी गई.
छठ को बड़ी दावत हुई. किजिलबाश, उजबेक और हिन्दू110 एलची भी शरीक हुए. किजिलबाश मुझसे सत्तर-अस्सी कारी दाएं के शमियाने में बैठे. उनके साथ अबदुल्ला बैठा. मैं नए अठपहल तालार से उत्तर खस के छप्पर तले था. मुझसे पांच-छह कारी दाएं तूखता-बूगा सुलतान111 और असकरी थे. उनके साथ हजरत ख्वाजा की औलादों में से ख्वाजा112 अबदुश शाहीद और ख्वाजा कलां, जो समरकंद चिश्ती113, खलीफा114 और ख्वाजा के वे हाफिज और मुल्ला115 बैठे, जो समरकंद से आये. उतने ही बाएं मुहम्मद जमान मीरजा, ताडातमीश सुलतान, सैयद रफी, सैयद रूमी, शैख अबदुल फतह, शैख जेमाली, शैख शाहाबुद-दीन और सैयद दकनी116 थे. आश के पहले सभी सुलतानों, खानों, बोगों, सरदारों और बड़े लोगों ने सुनहले, रूपहले और सांवले सिक्कों117, कपड़ों और दूसरे सामान की किशतियां पेश कीं. मुहरों और रुपयों को एक कालीन पर उंड़ेला जा रहा था और पास ही ताम-झाम, मलमल के थान और बदरे118 ढेर लगाकर रखे जा रहे थे. इधर ये पेशकश लाए जा रहे थे और उधर सामने के टापू119 पर मस्त नूकचारों120, मस्त हाथियों और मेंढों के जोड़े लड़ रहे थे. फिर पहलवानों की कुशतियां भी हुईं.
सदर आश121 चुन गई तो ख्वाजा अबदुश शाहिद को कारचोबी की गुलकारीवाले बारीक मलमल के जज्बे122 और मुनासिब पोशाकें पहनाई गईं. मुल्ला फर्रुख, हाफिज123 और उसके साथ वालों को अचकनें दी गईं. कूचूम खां124 के एलची ओर हसन चलबी125 के छोटे भाई को रेशमी पगड़ियां, कारचोबी मलमल के जव्बे और मुनासिब पोशाकें अता हुईं. अबू सईद सुलतान, मेहरबान खानम, उसके बेटे पोलाद सुलतान और शाह हसन126 के एलचियों को कारचोबी, अचकनें और रेशमी लबादे भेंट किए गए. दोनों ख्वाजाओं और दोनों मीर-एलचियों यानी कूचूम खां के मुसाहिब और हसन चलबी के छोटे भाई को चांदी के बट127 से सोना और सोने के बट से चांदी तुलवा दी. चांदी का बट सौ मिसकाल यानी काबुली आधसेर और सोने का पांच सौ मिसकाल यानी काबुली सेर भर को होता है.
ख्वाजा मीर सुलतान और उसके बेटों, हाफिज ताशकंदी, ख्वाजा के लोगों के मुखिया मुल्ला फर्रुख और दूसरे एलचियों को तरकश भर-भरकर सोना-चांदी इनायत हुई. यादगार-नासिर128 को पेटी-कटार और पेटी दी गई. गंगा पर बढ़िया पुल बनाने के इनाम के तौर पर एक कटार मीर मुहम्मद जालाबान को इनायत हुई. एक-एक कटार तोपचियों में से पहलवान129 हाजी मुहम्मद और पहलवान बहलोल को, वली पार्सची130 और उस्ताद अली के बेटे को भी इनाम में दी गई. सैयद दाऊद गर्म-सैरी को सोना-चांदी दी गई. बेटी मासूमा131 और बेटा हिन्दाल के नौकरों को तुकमादार चकमान और रेशमी खिलअतें अता हुईं. अंदिजान से आए हुआं को और जहां कभी132 हम बे-मुल्क और बे-घर होकर भटके थे, सूख और हुशियार जैसी उन जगहों से आए हुओं को भी सदरियां, रेशमी खिअलतें, सोना-चांदी, ताम-झाम और तरह-तरह के असबाब दिए गए. कुरबान और शैखी और काहमर्द की रैयत को भी इसी तरह के इनाम133 दिए गए.
आश के बाद हिन्दुस्तानी मदारियों का तमाशा हुआ. लूली आए. ये और मदारी कई ऐसे खेले करते हैं, जो उधरवाले नहीं करते. एक यह हैः माथे, रानों और हाथ-पैर की उंगलियों से ग्यारह छल्ले चिपकाते हैं और चार और छल्ले लेकर दो हाथों और दो पैरों की उंगलियों से नचाते हैं. फिर मोर-चाल में एक हथेली के बल टिके रहकर एक हाथ और दो पैरों से तीन और छल्ले तेजी से नचाते हैं. इसी तरह और छल्ले भी कई अदाओं से नचाते हैं. दूसरा यह हैः उधर के मुल्कों में दो आदमी एक-दूसरे को पकड़कर दो गिरहें मारते हैं, पर हिन्दुस्तानी लूली धड़ाधड़ा तीन-चार बार गिरह पर गिरह मारते चले जाते हैं. तीसरा यह हैः एक लूली अपनी कमर से बारह-चौदह हाथ का बांस सीधा ऊपर को खड़ा करता है और दूसरा उस पर चढ़कर ऊपर ही गिरह पर गिरह मारता रहता है. एक और यह हैः पैरों में लकड़ियां बिना बांधे ही उन लाठियों के कठ-पैरों से चलते हैं. एक और यह हैः छोटा लूली बड़े के सिर पर सीधा तना खड़ा रहता है और खड़ा-खड़ा ही तरह-तरह के खेल दिखाता रहता है और बड़ा बड़ी फुरती से चारों ओर घूम-घूमकर कुछ और करतब दिखाता रहता है. इन तमाशों के बाद बहुत-सी पातुरों का नाच हुआ.
सुनहले, रूपहले और सांवले ढेर-सारे सिक्के बिखेरे गए134, जिस पर बड़ी धक्कम-धक्का हुई. बड़ा शोर रहा. रात के पहले पहर मैंने पांच-छह खास-खास लोगों को अपने पास बिठाया. एक पहर से कुछ ऊपर तक वे मेरे पास रहे. दिन के दूसरे पहर हश्त-बहिश्त (बाग) आ गया.
सोमवार को असकरी हम्मास पर आया और मुझसे विदा होकर पूरब के कूच पर निकल पड़ा.
मंगल को मैं धौलपुर के तालाब और कुएं को काम देखने गया. पहर पर घड़ी बाद बाग से चला और रात के पहले पहर की पांच घड़ी गए धौलपुर बाग में पहुंच गया135.
जुमरात तक एक ही ढालू चट्टान से कटे136 संगीन कुआं, छब्बीस-पत्थर फव्वारे, पत्थर के खंभे और नाले तैयार हो गए. उसी दिन पानी निकला. उसमें थोड़ी-सी अदकाहट थी. इसलिए हुकुम दिया कि पखवाड़े भर रहट दिन-रात चले, दम भर को भी नहीं रुके. संगतराशों और सभी कमकरों को आगरा के रिवाज से इनाम दिए.
जुमा को पहले पहर की घड़ी भर रहे वहां से चलकर दिन डूबने के पहले ही नदी (यमुना) पार कर ली.
(तीन दिन के पत्रक नहीं हैं. ‘रामपुर’-दीवान की पुष्पिका (हरर-हू बाबर दोशंबा रबी-उलाखिर 935) में बाबर के हस्ताक्षर के साथ जो तिथि(सोमवार, 27 दिसंबर, 1528 ई.) है, वह इन्हीं तीन दिनों में से एक दिन की है. इससे इन दिनों में बाबर ने जो काम किये होंगे, उनमें से एक का पता तो चलता ही है.- अनुवादक)
मंगल को देव सुलतान137 का एक आदमी आया. वह किजिलबाश और उजबेक की लड़ाई में मौजूद था. उसने उस लड़ाई का बयान138 किया. बताया कि उजबेक तीन लाख और तुर्कमान ककुकल चालीस पचास हजार139 थे. किजिलबाश नेता (‘आदम’) रूमी ढंग से लड़ने की वजह से ही जीत पाया. अराबों के दाएं-बाएं जो तीसेक हजार लोग थे, उन्हें तो उजबेकों ने बात-की-बात में पीट लिया था और फिर तूलगमा के ढंग से पिछाए पर टूटकर बहुत से ऊंट और माल-असबाब लूट लिया था. अराबों के पीछे वाले बीस हजार चुने हुए लड़ाकों ने बड़ी कड़ी लड़ाई लड़ी, तीन बार बैरी को पीछे हटाया और आखिर हराकर ही दम लिया. नौ सुलतान पकड़े, जिसमें एक अभी जी रहा है, आठ ने मौत पाई140. उबैद खां का धड़ मिला, सिर नहीं. पचास हजार उजबेक और बीस हजार तुर्कमान खेत रहे.
उसी दिन गयासुद-दीन कूरची लौटा. उसे देर यों हो गई थी कि सुलतान जुनैद का लशकर खरीद की ओर चढाई पर गया था. सुलतान जुनैद ने कहलाया थाः ‘‘अल्लाह की इनायत, बादशाह के लिए इधर कोई काम नहीं है, मीरजा141 के आने से ही सारे काम निबट जाएंगे.’’
जुमा उन्नीसवीं को माजून खाकर कुछ खास-खास लोगों के साथ खिलवत-खाने में बैठा था कि मुल्ला मजहब142 हाजिर हुआ. पूछताछ से पता चला कि बंगाली हमारे साथ हैं.
एतवार को सलाह की. ठहरी यह कि बंगाली का एलची आया है143, इसलिए वहां जाना ठीक नहीं, पश्चिम में कुछ जगहें पास भी हैं और मालदार भी.
‘‘लोग काफिर, मुल्क मालामाल पास ही कोई नहीं जंजाल.’’ राय हुई कि अभी ठहरकर चलेंगे, ताकि पूरब की ओर से दिलजमई हुई रहे. गयासुद-दीन कूरची को बीस दिन की मियाद देकर फिर दौड़ाया कि असकरी के पास जुटे सभी सुलतानों, खानों और अमीरों को लिखे हुए फरमान दे आए और उधर का हाल लाए.
उन्हीं दिनों मुहम्मदी कोकलताश की अरदास आई कि बलूच फिर लूटमार मचा रहे हैं. उन्हें राह पर लाने को चीन तैमूर सुलतान भेजा गया. कहा गया कि सरहिन्द और समाणा के उधर वाले सभी बेगों को जुटाकर छह महीने में बलूचों को सीधा कर दो. इसके लिए उन बेगों को हुकुम हुआ कि क्या राह और क्या पड़ाव, सुलतान के कहे पर चलना. यह हुकुम ले जाने के लिए तवाची अब्दुल गफ्फार को बनाया गया. कहला भेजा कि सब सुलतान के दिए बूलजार पर गोलबंद हों. तवाची को हुकुम हुआ कि लशकर के साथ रहना और किसी की भी ढील देखना तो बता भेजना. फिर ऐसों का अपनों की गिनती144 से निकाल दिया जाएगा और परगने छीन लिए जाएंगे.
अट्ठाईसवीं को (रात के) तीसरे पहर की छठी घड़ी होने पर धौलपुर नीलोफर-बाग 145 की सैर के लिए जून (यमुना) पार की. (दिन के) तीसरे पहर के पहले ही पहुंच गए. बाग के पास की जगहें बेगों-मुसाहिबों के नाम कर दीं जो चाहे अपने टुकड़े में बाग लगाएं या पड़ाव के लिए रखें.
पहली जमादी की तीसरी को बाग के अगिन-कोने में हम्माम का ठौर ठीक किर दिया. जगह हमवार करके पहले कुरसी बनाने, फिर उस पर हम्माम तैयार करने और उसके एक कमरे में दह-दर-दह बनाने का हुकुम दिया.
उसी दिन आगरा से खलीफा ने काजी जीआ और बीरसिंह देव की अरदासें भेजीं. लिखा था कि सिकंदर के बेटे महमद146 ने बिहार (शरीफ) ले लिया है. सुनते ही मैंने चढ़ाई की ठान ली. दूसरे ही दिन छह दिन चढ़े सवार होकर हम बेर डुबते-डूबते आगरा आ गए. राह में धौलपुर जाता हुआ मुहम्मद जमान मीरजा और आगरा जाता हुआ चीन-तैमूर सुलतान मिला.
पांचवीं को सलाह की. ठहरी यह कि दसवीं को पूरब चला जाए.
उसी दिन काबुल की चिटि्ठयां आईं. हुमायूं सुलतान वैस को मिलाकर और चालीस हजार आदमी लेकर समरकंद पर चढ़ने निकल पड़ा था147 शाह-कुली148 हिसार चला गया था और तरसून मुहम्मद149 ने कबादियान ले लिया था और अब कुमक मांग रहा था. हुमायूं ने मुगलों के साथ तूलिक कोकलताश और मीर खुर्द150 को कुमक पर भेज दिया था और अब आप जा रहा था.
दसवीं को तीन घड़ी दिन चढ़े नाव से जलेसर के कुछ ऊपर नदी पार की और जरफिशां बाग151 में आ गया. लशकर को कहा कि नगाड़े, निशान, तूग और तबेले समेत सामने परले ही पार डेरे डाले जाएं और मुजरेवाले152 नाव से आया करें.
सनीचर को इसमाईल मीता ने बंगाली की भेजी हुई भेंट लेकर हिन्दी ढंग से नौकरी हासिल की. तीर की पहुंच के भीतर तक आकर आदाब बजा लाया और फिर लौटकर नौकरी के वे पहनावे पहन आया, जिन्हें ‘सरमूनिया’153 कहते हैं. फिर हमारे ढंग से तीन मुजरे करके नुसरत शाह की अरदास और पेशकश पेश की.
सोमवार को हजरत ख्वाजा अबदुल हक154 की सवारी आई तो मैं नाव से उस पार उनके डेरे गया ओर उनकी नौकरी हासिल की.
मंगल को हसन चलबी ने नौकरी हासिल की.
लशकर के मनसूबे155 के लिए कुछ दिन चारबाग में बिताए. सतरहवीं को तीन घड़ी दिन चढ़े कूच हुआ. मैं नाव से चला. आगरा से सात कोस पर अनवार गांव में उतरा गया. एतवार को उजबेक एलची विदा हुए. कूचूम खां के एलची अमीन मीरजा को पेटी-कटार, पेटी, कलाबूत के बूटेदार रेशमी थान156 और सत्तर हजार तंके दिए गए. अबू सईद के नौकर मूल्ला तगाई को और मेहरबान खानम और उसके बेटे पोलाद सुलतान के नौकरों को कारचोअी की तुकमादार चपकनें और सबकी अपनी-अपनी हैसियत के मुनासिब रोकड़े भी दी गई.
अगले दिन157 सबेरे ख्वाजा अबदुल हक को आगरा में रहने और ख्वाजा कलां को समरकंद जाने की छुट्टी दी गई. ख्वाजा कलां उजबेक खानों-सुलतानों की ओर से कुछ खास काम से158 आए थे.
हुमायूं के यहां बेटा होने की और कामरान को शादी की
बधाइयां भेजी गईं. लेके गए मुल्ला लबरेजी और मीरजा बेग तगाई159. मुंह-दिखाई160 दस-दस हजार शाहरुखी भेजी गई. साथ ही मैंने अपने पहनावे का एक-एक लबादा और एक-एक पकड़दार पेटी भी भेजी. मुल्ला बहिश्ती के हाथ हिन्दाल के लिए जड़ाऊ पेटी-कटार, पेटी, जड़ाऊ दवात, सीपकारी की कुरसी, नीमच161, तकबंद162, खत्ते-बाबरी के पन्ने और खत्ते-बाबरी के लिखे कुछ कित्ते भेजे. हुमायूं के पास हिन्दुस्तान में किया गया तरजुमा163 और हिन्दुस्तान में कहे गए शेर164 भेज दिए. तरजुमा और शेर हिन्दाल, ख्वाजा कलां और कामरान को भी भेजे. कामरान को खते-बाबरी को सरखत165 और भेजे दिया.
मंगल को काबुल के लिए चिट्ठियां लिखने के बाद आगरा और धौलपुर की इमारतों का काम मुल्ला कासिम, उस्ताद शाह मुहम्मद संगतराश, मीरक, मीर गयास, मीर संगतराश और शाह बाबा बेलदार को समझा दिया और उन्हें काम पर भेज दिया.
(क्रमशः अगले अंक में - साभार : बाबरनामा)
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टिप्पणियां
1. 16 सितंबर, 1529 ई. तक के चांद्र वर्ष की. इस हिजरी वर्ष के महीनों के दिनों की संख्या, चंद्र-दर्शन के व्यतिक्रम के कारण, असामान्य रही. मुहर्रम से आरंभ करके क्रमशः 29, 30, 30, 29, 30, 29, 30, 29, 29, 30, 29, 30, 29 और 30.
2. ‘प्रधान इतिहास लेखक. सुप्रसिद्ध ग्रंथ इकीबुस-सियर (गुणों का मित्र) के ग्रंथकार.
3. निकट-संबंधी.
4. ‘कानून’ (देखें) वादक.
5. ‘अपना प्यारा वतन बीच शव्वाल 933 हिजरी (जुलाई, 1527 ई.) में छोड़ा...यह बड़ी कठिन है. दूरी, गर्मी, बरसात, चौड़ी खरवार नदियां आदि के कारण राह में सात माह लग गए...(हबीबुससियर)
6. ‘ग्वालियावार’ (जलाल हिसारी और मीरामन ः तारीखि ग्वालियावार). अन्य वर्तनियां ः ‘ग्वालियर’, ‘ग्वाल्हेर’, ‘गवालियार’, ‘ग्वालियार’, ‘ग्वालेर’ और (बाबर की) ःगूआलीआर’
7. संगम के नीचे की गंभरी-बानगंगा.
8. ‘तूसलानीब’, दोपहर का हल्का भोज और स्वल्प विश्राम.
9. (सत-नचे का) सत्तू.
10. ‘आशूर’, मुहर्रम की दशमीं कोशगत अर्थ ः दस दिन, जैसे ः असरा मुहर्रम - मुहर्रम के दस दिन.
11. पूरब के अभियान से लौटकर बनवाया होगा. उल्लेख खोए पत्रकों में रहा होगा.
12. ‘ख्वाजा’. ख्वाजा मेंहदी का भतीजा (जलाल हिसारी). महत्त्वपूर्ण नए नामों के साथ बाबर जो पारिवारिक परिचय आदि देता है, वे खोए पत्रकों में रहे होंगे.
13. इसे कविता मानें या यह अंधविश्वास कि अफीम खाने से चांदनी की ‘ठंडी लू’ नहीं लगती?
14. ‘लूक (भारी) बलूक (सिल्ले)
15. राजा कीरतसिंह (1454-79 ई.), राजा मानसिंह (1486-1516 ई.) और राजा विक्रमाजीत (1516-26 ई.)
16. सौ फुट. पश्चिमी पाख 60’. लंबाई (उत्तर-दक्षिण)ः 300’. चौड़ाई (पूरब-पश्चिम) ः 160’.
17. बाबर के इस विवरण से प्रेरित होकर खोज करने कनिंघम को जोड़ों में लेप के प्रमाण मिले. दीवारों के उपरले भग के सिल्ले ऐसे बहुरंगी हैं कि उनके कारण महल का नाम ही ‘चि (घ्चित्र) मंदिर’ है. निचले भाग में दूधिया लेप होने पर उपरले सिल्लों के रंग निश्चय ही बहुत खिलते-निखरते होंगे.
18. ‘चीकीश’ (बहिर्गम) पर.
19. पीछे की जमीन दुमहले तक ऊंची है. आगे भी हथिया-पोल को छोड़कर सारा ही टीला है. खिड़कियां छोटी हैं. इसीलिए इतना
अंधेरा और इतनी घुटन है कि बाबर महल को गड्ढे (‘चूकूर’) में देखता है! हथियापोल से भीतर चलिए तो ‘हवा पोल’ तक जमीन बराबर ऊंची होती चली गई है!
20. ‘ऊरता-दा’, केन्द्र स्थानीय अवस्थिति.
21. बारह द्वारों के बावजूद इसकी विषालता इसे प्रायः प्रकाष-वंचित किए रहती होगी. बाबर भी किसी प्रकाष-वंचित घड़ी में ही वहां पहुंचा होगा.
22. ‘तूर यूल’, केन्द्र स्थानीय अवस्थिति.
23. ‘सूरज-कुंड’. बाबर की भाषा में ‘कूल’ (झील) प्रकृत या कृत्रिम, किसी भी बड़े जलाषय को कहा जा सकता है.
24. ‘तेली मंदिर’ या ‘तिलंगना मंदिर’.
25. लगभग पंद्रह कोस दूर.
26. इसी नाम के ‘पोल’ से घुसते ही यह एक बड़ी इमारत मिलती है. यहां का दर्शनीय स्थान (मानसिंह की गूजर पत्नी मष्गनयनी का बनवाया हुआ) ‘गूदरी मंदिर’ है.
27. पचपन. ठीक-ठीक ः 57’ (कनिंघम).
28. केवल सिर तोड़े गए थे. जैनों ने उन्हें रंगीन पलस्तर से फिर जोड़ दिया. (कनिंघम)
29. ‘असोकमल राजपूत’. (मीरासि सिकंदरी)
30. अर्थात् कुमार से पितृवत्, उसकी मां से पुत्रवत्.
31. खिलजी. (अंततः ये वस्तुएं गुजरात के बहादुरशाह को मिलीं.)
32. ‘तेली मंदिर’ पर दाक्षिणात्य-षैली के रथ शीर्शाकृत ‘गोपुरम्’ हैं. संभव है, ‘तिलंगाना’ (तैलंगाणा?) नाम का कारण यही हो.
33. धरती तो खड़ी-सी उतरान की है. चारबाग उतरान-तले की नीची जमीन पर रहा होगा.
34. मेरार का जलप्रपात.
35. ‘घोड़े की रस्सी’ भर. यानी 20 हाथ.
36. उद्गम.
37. (गद्य-पद्य के) कुशल कंठकार ‘पाठ’ कर्त्ताओं.
38. तेंदू, ‘द्योस्प्वीरोस् भेलानो ख्वीलोन्’ (देखें).
39. यह आदेश 934 हिजरी के उस पिछले भाग में दिया गया होगा, जिसके पत्रक खो गए हैं.
40. ‘यूज’.
41. 12 अक्टूबर?
42. बयाना में?
43. वास्तुकर्म-व्यवस्थाधिकारियों का प्रधान.
44. पद की दृश्टि से अपेक्षाकृत कम मान की अधिकारिणी. (बाबर के दादा सुलतान अबू सईद मीरजा की बेटियों) ‘बड़ी बेगमों’ की तरह शासक मीरजा की बेटियां न होने के कारण.
45. (‘यींका’ या ‘यीनका’- चाची, ताई, मामी, बड़ी भाभी आदि मातृस्थानीयाओं के वर्ग की; चीचा - प्यार के ऊनवाचक संबोधन में ‘मां’; इस तरह ‘यींका-चीचा घ्) ‘मामी-मां’ अर्थात मामी. (गुलबदन का सूचक है कि) एक जैनब सुलतान खानम, जो भारत आई थी, बाबर के मामा सुलतान महमूद खां चगताई की बेटी थी.
46. ‘दरिया करागीना’ यमुना का कोई ‘दह’. दो रहे होंगे, एक बड़ा और एक यह ‘छोटा’.
47. ‘वजह’ अर्थात वार्षिक निर्वाह-वेतन पानेवाला प्रदेशपाल.
48. पहले हिजरी 934 के उत्तरार्द्ध में गया होगा.
49. बायकरा-बंधुओं और उनसे विवाह-संबंधों में बंधे मीरानशाहियों
50. भारत से निश्चिंत हो जाने पर काबुल जाने की.
51. कमरान काबुल लेना चाहता था.
52. सबसे बढ़े-चढ़े उजबेक उबैदुल्ला खां को.
53. अनौपचारिक सूचना. औपचारिक 19 दिन बाद आई.
54. बेगा-बेगम, जो पीछे हाजी-बेगम हुई.
55. नाम पड़ा ः ‘अल-अमान’ (परमपुरुष हमारी रक्षा करे!)
56. बेगचिक.
57. ‘माह-अफरोज’ (चंद्र-प्रज्वालिका) से.
58. सौधजलाषयकार. पाठांतर ः ‘गैबागर’ (भू-गर्मी जल का भेद जानने वाला), ‘जीबागर’ (कवचकार). ‘दकनी’ (श्यामल) के पाठांतर ः ‘जकनी’ (ज्ञाता), ‘रुकनी’ (कर्णवंशकार).
59. ‘ख्वारालीक चाह’. पाठांतर ः ‘ख्वाज’. (कक्षमय कूप). विकल्पार्थ ः मेहराबी कूआँ.
60. देखें ‘सन् 899 हिजरी की घटनाएं; टिप्पणी 30.
61. ‘जनयितष्-प्रबंध’. मूल अरबी में. बाबर ने उसके तुरकी गद्यानुवाद को ‘नज्म किया’ (पद्यबद्ध किया, ‘नज्म’ अर्थात् पद्य में ‘पिरोया’.)
62. (यहां) प्रमाण.
63. मुहम्मद साहब के समकालीन अरब कवि शरफुद-दीन मुहम्मदुल बुसीरी (संक्षेप में ः अल-बुसीरी) का प्रसिद्ध ‘कसीदा’ (देखें), जो उसने ‘फालिज’ (पक्षाघात) के प्रकोप की अवस्था में मुहम्मद साहब की प्रषस्ति में लिखा था. कथा है कि हजरत (मुहम्मद) ने अपना बुरदा (काले कंबल का लबादा, जिसे वह दिन को पहनते और रात को ओढ़ते-बिछाते थे) उस पर फेंक दिया, जिसके स्पर्शमात्र से वह पक्षाघात-मुक्त हो गया. (इस बुरदे को वह इसी प्रकार एक और कवि, कअब बिन जहीर के ऊपर, उसकी कविता से प्रसन्न होकर फेंक चुके थे) बुसीरी की कविता का नाम ‘अलकवाकिबुद्द रींयः फी-मज फी-मज खैरुल्बर्रीयः’ था, पर उस चमत्कारी चिकित्सा से संपृक्त होने के कारण वह ‘कसीदा-बुरदा’ (‘कसीदतुल-बुरदा’) नाम से विख्यात हो गई. अपने वृथा-व्यतीत यौवन पर पछताने और अपने पापों का स्वीकार करने के बाद कवि अपने जीवन की तुलना मुहम्मद के जीवन से करता है और इस बहाने मुहम्मद के अनेकानेक चमत्कारों का वर्णन करने के बाद उनके प्रति निवेदित प्रार्थनाओं और प्रशस्तियों से कसीदे का समापन करता है.
64. देखें ‘सन् 911 हिजरी की घटनाएं’, टिप्पणी 109.
65. देखें ‘रमल मुसद्दस मजनूं’. ‘मजनूं महजूफ’ भी ‘रमल मजनूं’ (देखें) का ही एक भेद है, जो द्विविध है ः दोनों पंचदषश्रुतिक. न्यास हैःं ‘3 फाइलातुन (गालगागा) - फाइलुन (गालगाल)’; जैसे, बे-दरो-दीवार-सा यक घर बनाना चाहिए’ (गालिब); तथा 3 फाइलात (गालगाल) - फाइलुन (गालगा) जैसे’; ‘आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया’ (गालिब).
66. 20 नवंबर.
67. तलुकदार.
68. लघु-‘बेग’.
69. (षैख जैन ख्वाफी का मामा) 0-‘फारिगी’ (मष्त्यु ः 1533 ई.).
70. ‘सौभाग्यवान् सम्राट्’ या ‘सुयोग्य सम्राट’. वर्णांकः (शीन - हाय्-हव्वज - 300 घ्5 घ्) 305 - (सीन - ऐन - अलिफ - दाल - ते - मीम - नून - दाल - 60 - 70 - 1 - 4 - 400 - 40 - 50 - 4 घ्)629 - 934 (हिजरी). बच्चा शैशव में ही मर गया. चौदह वर्ष बाद अकबर के जन्म तक हुमायूं का कोई भी बेटा बचपन के पार तक बच न पाया था.
71. (काबुल और पेशावर के रास्ते) 1174 मील. औसत 38 मील रोज चला.
72. (शायद) हिजरी 913 में. बदख्षां के शाह के मरने का समाचार लेकर. (काबुल के रास्ते) 580 मील. औसत 53 मील रोज.
73. मशहद से 43 कोस पर.
74. ‘यदा-ताश’ (यशव-तणि, ‘जेड्’) की सहायता से शत्रु का बल छीनने का टोना.
75. उजबेक जादू-टोने में लगे रहे और यह समझते रहे कि तुहमास्प रादमान में ही पड़ा रहेगा. पर तुहमास्प ने तेजी से और गुपचुप शषहद पहुंचकर उनकी सारी ‘योजना’ पर पानी फेर दिया.
76. मौलाना जामी (देखें) का जन्मस्थान, जो पीछे अकबर की मां हमीदा बानो के पूर्वज संत शैख जामी की समाधि (‘तुरबत’) के कारण ‘तुरबति शैख जामी’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
77. ‘यात्राकाल का जल-व्यवस्थापक’. इस अप्रासंगिक-से वाक्य का अर्थ खान-खाना रहीम की इस टिप्पणी से खुलता है कि उजबेकों की हार का विस्तृत विवरण चलमा ने ही हुमायूं के पास लिख भेजा था.
78. हिन्दुकुष के उस पार और इस पार के.
79. पुत्रत्व.
80. हृदय को बंदी बनानेवाली स्थिति.
81. ‘तुर्कमान आक्रामक’. जन-प्रयोग से उच्चारण बिगड़े बिना भी ‘अल-अमान’ एक ऐसी दुआ है, जो आर्त्त की गुहार होती है (‘त्राहि प्रभो!’ के अर्थ में).
82. अरब नामों में लगता है. बाबर का अर्थ होगाः तैमूरियों के नामों में नहीं लगता.
83. (मूल अरबी अर्थ ः) शांति-सुरक्षा की स्थिति. बाबर ने हल्के से ठिठोली की है!
84. चीरखी. बाबर का स्वामिभक्त सेवक था.
85. निजामी की मसनवी (देखें) ‘खुसरो व शीरीं’ में नायिका ‘षीरीं’ नायक ‘खुसरो’ से. शीरीं यह कहकर विवाह से इनकार कर रही है कि तुम्हारे लिए यह समय तो सत्तार्थ लड़ने का है. ‘जहांगीरी’ - विष्वविजयिता या जगज्जय अर्थात् विविध देष जीतने का कार्य या कर्तव्य; ‘तवक्कुफ’ - विलंब. इस भाव को कविता बनाता है फारसी का यह शे’र ः
‘‘मौजेम की आसुदगिये-मा अदमे-माऽस्त
मा जिंदा अजानेम कि आराम न दारेम!’’
(‘‘लहरें हैं हम, सुख-चैन तो है अंत हमारा,
हम जीतिताह्नान हैं, विश्राम न पाते!’’)
86. ‘ऊलूगलार कूतारीमलीक कीराक’ (तुर्की कहावत) .
87. बेग मुहम्मद तअल्लुकची.
88. शैख सादी शीराजी (देखें गुलिस्तां).
89. ‘बोस्तां’ (‘उपवन’) में ‘हुरमुज को नौशेरवां की सलाह’ नामक अध्याय से. ‘तसाहुल - सुस्ती, निष्क्रिय उपेक्षा, ‘हम-रकाब’ (देखें).
90. गद्य.
91. उलझी भाषा-शैली पर व्यंग्य है.
92. वर्तनी.
93. ‘इलतिफात’ (दया, प्रवृत्ति, अनुराग) ‘ता’ (तोय) से नहीं ‘ते’ से लिखते हैं और ‘कूलिंज’ (देखें) ‘या’ अर्थात उर्दू के ‘ये’ (यकार और ईकार के वर्ण) से नहीं, बल्कि ‘जेर’ (इकार के चिह्न ) से. (तुरकी में तो ईकार और ऊकार तक प्रायः एक-दूसरे का स्थान ले लेते हैं.) ‘ता’ या ‘तोय’ सामी भाषाओं का विशिष्ट दंतोश्ठ्य अघोष अल्पप्राण वर्ण है, जो अरबी-प्रभावित लिपियों का दूसरा ‘तकार’ मात्र बनकर रह गया है और केवल अरबी से उधार लिए गए तत्सम शब्दों में ही काम आता है. ‘ते’ और तोय’ के उच्चारणों का सूक्ष्म भेद अरबों के अतिरिक्त दूसरों की पकड़ में शायद ही आ पाता है. इसलिए इन दोनों के बीच घपला करके वर्तनी की भूलें करना अकेले हुमायूं का ही हिस्सा नहीं, प्रायः सभी अरबेतर जातियों के लिए स्वाभाविक-सा है.
94. तैमूरिया सुलतानों के छिने हुए प्रदेषों की पुनर्विजय-यात्रा पर.
95. कूलाबी. गुलबदन की राजसखी हरम-बेगम का पिता.
96. 26 नवंबर.
97. ‘मलजार’ (यहां फारसी नहीं, ठेठ तुरकी अर्थ में) ः अवधि. विशुद्ध तुर्की में तीन अर्थ और हैं. नियमित, अभिसार, गोलबंदी.
98. नुसरत शाह.
99. राजपूतों, विशेष रूप से सलाहुद-दीन राजपूत, के प्रदेशों की ओर.
100.अर्थात् उसके लिए विशेष दरबार का आयोजन हुआ.
101. ‘तुकमालीक चकमानलार’, जड़ाऊ घुंडियों वाली या/आ कारचोबी बेल-बूटों वाली बंडी (तुर्की में ‘तुकमा’ जड़ाऊ घुंडी और कारचोबी बेलबूटे, दोनोंको कहते हैं.).
102. एक जैसे कपड़ों के ‘सेट’. संख्या प्रातः नौ की ही रखते थे.
103. नौकाकार उपहारपात्र (सोने या चांदी के).
104. ‘चीकमाक’ (चकमक, अरणि) बेग.
105. चुंगी-विभाग में ‘प्राप्त’ का ठप्पा लगानेवाला (या, जिसके नाम का ठप्पा लगे, वह अधिकारी. ‘शाही’ उस तमगाची का नाम था.
106. दो अर्थ संभव हैं - या तो शाही को लिपिक बनाकर भेजा गया, या लिपिकों का वह पूरा अनुभाग भेजा गया, जिसका वह मुख्य
अधिकारी था.
107. ‘मुबैयन’ का अध्याय ‘तयम्मुम’ . प्रसंग ः ‘सू यूराक बूलसा सींदीनीर बीर मील’ अर्थात् ‘‘यदि पानी तुझसे एक ‘मील’ दूर हो (तो मिट्टी या रेत से ‘वजू’ कर)’’ ः इस कर्मकांड-सूत्र के ‘मील’ ‘शब्द पर बाबर की पाठांतर्भुक्त टिप्पणी.
108. पूरी तालिका ः जो - , ईलीक , तूताम, कारी - , डग - 4’ , ‘मील’ घ्16,500’ अर्थात् आधुनिक मील अर्थात् 5.218125 किलोमीटर.
109. ‘रस्सी’, बाबर के अनुसार 165’. अबुल फजल् ः 121’. ग्लॅडि्वन (रेवेन्यु अॅकाउंट्स, बंगाल, पष्. 630) ः120’. परवर्तीया रस्सी ः 1250’. बंगाल, बिहार, उड़ीसा और पूर्वी उत्तर प्रदेष में अंगरेजी राज के युग तक ः 195’.
110. (यहां) राजपूत. ‘हिन्दू’ शब्द के और अर्थः (1) विशेषण-प्रयोग मे ‘काला’ (कृष्ण); (2) चमड़ी का ‘काला तिल’ (‘खालि हिन्दू’ का संक्षेप); हाफिज शीराजी का शे’र है ः ‘अगर ऊ तुर्कि-शीराजी बदस्तारद दिले-मा-रा, बखाले हिन्दवश बखम समरकंदो-बुखारा-रा!’
111. चगताई चंगेजखानी. बाबर का ममेरा भाई. अंतिम से उलटी ओर गिनने में पांचवें अनुच्छेद का अंतिम वाक्य.
112. ख्वाजा उबैदुल्ला अहरारी नक्षबंदी. शहीद, उनका पोता, पांचवें बेटे ख्वाजगान ख्वाजा (अबदुल्ला) का बेटा और ख्वाजा कलां परपोता, सबसे छोटे बेटे (और हत्या द्वारा मृत्यु पाने पाने तक बाबर के अनुरक्त) ख्वाजा यहिया का पोता था.
113. पाठांतर ः हुसैनी.
114. बाबर का मित्र और बेग (जुनेद-पुत्र) सैयद निजामुद-दीन अली खलीफा मरशीलानी बिरलास तुर्क.
115. अर्थात् ख्वाजा के प्रतिष्ठान में काम करनेवाले ‘हाफिज’ (देखें) और ‘मुल्ला’ (विद्वान् धर्माचार्य).
116. दक्षिण भारत के शीआ धर्म-गुरु सैयद शाह ताहिर दकनी, जो अहमदनगर के बुरहान निजाम शाह की ओर से बधाई का संदेष और गुजरात के बहादुरशाह गुजराती के विरुद्ध सहायता की प्रार्थना लेकर आए थे.
117. मुहरों, रुपयों और तांबे के तंकों के.
118. (तंकों के) तोड़े.
119. ‘आराल’, यमुना की थैल.
120. लड़ने के लिए पाली गई सांड़नियों.
121. भोज के मुख्य भोज्य.
122. ‘ऊरड़ीरलीक कीश जब्बह’. अचकन, सदरी, लबादे आदि सभी कपड़ों के ऊपर पहनने का कोंचेदार ‘झब्बा-झगला’.
123. ‘खबरकातिब’ (देखें) समरकंदी.
124. (बाबर का बहनोई और उजबेकों का चक्रवर्ती ‘खाकान’) 0-सुलतान कुचकूनजी उजबैक-षैबान चीनकीज (ंचंगेज)-खानी.
राजधानीः समरकंद. बाबर की सौतेली बहन मेहरबान खानम (मिह्न बानो) उसकी पत्नी थी, अबू सईद सुलतान उसका बेटा था.
125. तुहमास्प (त) का दूत. वह आप देर से पहुंचा. (चलबी’ से उच्च कुल सूचित होता है.) कूचूम खां और तुहमास्प ‘बादशाह’ थे, इसलिए उनके दूत ‘मीर एलची’ हुए.
126. अरगून. बेग. खलीफा का दामाद. बाप शाह(शुजा) बेग से झगड़कर बाबर के साथ हुआ था.
127. ‘ताश’ (पत्थर). चांदी की ‘विशिष्ट गरिमा’ दस और सोने की बीस होने के कारण एक ही आकार के बट (‘ताश’ ः चांदी-पत्थर, सोना-पत्थर) भार में 1:2 के अनुपात में थे. 250 ‘मिसकाल’ (देखें) - 92 तोले 5 मासे 3 रत्ती.? काबुली सेर - 184 तोले 10॥ माशे लगभग ऽ2.’ या 2144.9196234375 ग्राम का.
128. बाबर के सौतेले भाई नासिर मीरजा का बेटा, जो बाप के मरने पर पैदा होने के कारण ‘यादगार-नासिर’ (नासिर-स्मारक) कहलाया.
129. (अपने क्षेत्र में) प्रथम-गण्य या अद्वितीय.
130. (शिकारी) चीते पालनेवालों का मुखिया.
131. अपनी मां (बारबर-पत्नी) मासूमा का नाम पाने वाली मासूमा मुहम्मद जमां मीरजा बायकरा की पत्नी थी.
132. आरचीयन की लड़ाई में दानों मामुओं के साथ शैबानी खां से पराजित होने (जून, 1503 ई.) के बाद से काबुल के लिए रवाना होने (जून,1504 ई.) तक पूरे साल भर. ‘सूख’ और ‘हुशियार’ फरगाना के अफसरा प्रदेश (‘विलायत’) के पर्वतीय उपविभाग (‘बलूक’) थे. बाबर के सबसे बुरे दिन इन्हीं पहाड़ों में कटे थे. इस अपूर्व उत्सव में शायद उस ‘दिहकत’ के किसान भी आए थे, जहां के पहाड़ों में बाबर कभी नंगे पांव फिरा करता था.
133. चौथाई सदी बाद उपकार के प्रतिदान. कुरबान - कुरबान चीरखी, शैखी - शैखम नायी.
134. ‘साचीलदी’, लुटाए गए.
135. दूरी ः 34 मील (देखें) 19.40 बजे-9.22 बजे - 10 घंटा 18 मिनट में. राह में ‘दुपहरा करने’ (कुछ समय तो लगा ही होगा), और नदियां पार करने के बावजूद.
136. ‘यकपारा कीआ’, एकचट्टानी. ‘संगीन कुआं’, पत्थर का कुआं. पत्थर-फव्वाराः ‘ताशतार-नौ’. नाले ः ‘आरीकलार’.
137. फारसी में ‘देव’ - असुर; और ‘असुर’ (या ‘-हु-’) - देव; ‘अतुलित बलशालीकृषैलदेह’ को भी ‘देव’ कह सकते हैं.- रूमलू का सुलतान, जो पहले तहमास्प का संरक्षक था (‘तजकिरति तहमास्प’).
138. (इस अनुवाद में अध्याहृत पद ः ‘इस प्रकार’) यहां पर जाम की लड़ाई का जो सातिविस्तर वर्णन है, उसे बिल्कुल ही सार-संक्षिप्त कर दिया गया है.
139. नेता ही नेता (‘आदम’) किजिलबाश थे, सिपाही सामान्यतः तुर्कमान थे.
140. देव ने जिन मृत सुलतानों के नाम लिए, उनमें कूचूम (मष्त्युः 1530 ई.), उबैद (मृत्यु ः 1539 ई.) और सईद (मृत्यु ः 1533 ई.) जीवित थे; दो के दूत आगरा में थे, दोनों ‘दूसरी रबी की छठ (19 दिसंबर) की बड़ी दावत’ में मौजूद थे; दो के दूत आगरा में थे, दोनों ‘दूसरी रबी की छठ (19 दिसंबर) की बड़ी दावत’ में मौजूद थे; और उस लड़ाई को अब पूरे दो महीने हो भी चुके थे, इसलिए समाचारों की सत्यता की पुष्टि भी निश्चय ही हो चुकी होगी. बाबर ने देव के विचरण पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इससे और कई और बातों से लगता है कि यहां के भी कुछ पत्रक खो गए हैं. अगले संयुक्त वार-तिथि-उल्लेख्ख (जुमा उन्नीसवीं) से स्पष्ट है कि अगले अनुच्छेद के प्रारंभ का ‘उसी दिन’ मंगलसोहलवीं नहीं, बल्कि गुरुवार-अठारहवीं (30 दिसंबर) है. (इससे प्रकट है कि डेढ़ दिन के पत्रक खो गए हैं. उन्हीं में हसन चलबी के आने का उल्लेख भी रहा होगा.) अर्थात ‘मीयाद’ के सोलह दिन के बजाय लशकरकशी करते-करते बीस दिन लग गए थे.
141. असकरी.
142. ‘पंथ धर्माचार्य; नाम था. बंगाल में बाबर का दूत, जो पूरे पौने दो वर्ष बाद लौटा था. यहां भी ‘बंगाली’- नुसरत शाह.
143. इसमाईल मीता.(मुल्ला मजहब के साथ आया होगा.)
144. ‘मुवज्जह जिरगा’ (अरबी. पष्तो ः ‘तकधिष्त गोत्र’). जन्म से नहीं बल्कि कर्म से अपने (सगे) बने हुए लोगों के परिवार या मंडली से.
145. नीलकमल (‘निलुंबिउम् स्पिसियोसुुम्) का उपवन, नीलकमलाकर.
146. लेदी.
147. हुमायूं ने यह भी लिखा था कि सुलह की बात है. बाबर ने लिखा कि सुलह की बात चलाने का समय अभी है; कम-से-कम तब तक, जब तक हिन्दुस्तान के मामले निबट न लें. यह भी लिखा था कि उधर हम आप आनेवाले हैं, समरकंद की चढ़ाई हमारे आने पर हो तो अच्छा. उस समय वातावरण शांति-संधियों का ही था. विजयी तहमास्प ने उजबेक लड़की मांगकर ब्याही थी. उजबेक दूत और तुर्क ख्वाजा भी संभवतः इसी उद्देष्य से आगरा आए थे. (अबुल गाजी-कृत शजराति तुर्क और अबुल फजल-कृत अकबरनामा).
148. कुलाबी दृ सुलतान वैस का छोटा भाई.
149. सुलतान. हुमायूं. की ओर से तिरकमिज में था. कबादियान हिसान-षामदान के शासन-क्षेत्र में था. तरसून ने बरबरों से लिया था.
150. ‘छोटे’ ‘मीर’ (देखें). बकावुल (देखें) और हिन्दाल का ‘अतालीक’ (देखें) था. (-हुमायूंनामा)
151. - ‘जर-अफशां’ देखें बाग. ‘सुवर्णविकीर्णकारी उद्यान’. आगरा से तीन कोस पर. गुलबदन लिखती है कि एक बार मैं इस बाग में पिताजी से मिल थी तो उन्होंने यह भाव प्रकट किया था कि मैं बादषाही से तंग आ गया हूं. (-हुमायूंनामा)
152. (‘कूरनीश-कीलकान कीशीलार’ ः नतजानुप्रणामार्थी अर्थात्) सम्राट् के दर्शनार्थी.
153. घ्‘सर-मुआइना’ (मुंहदिखाई) से (पुरानी बंगला) तद्भव ः औपचारिक परिधान. या ‘सर-माविनः’ ः केशकुंचन (एॅिस्र्कन्) . या ‘सर-मूइना’ ः हिमनकुल, समूर आदि का बहुमूल्य सरोमाजिन (द्यकूर्तेय्य). मिलाएं लातीनी ‘सेरिमोनिया’ (औपचारिकी, औत्सविकी).
154. हजरत मखदूमी नूरा (ख्वाजा खाविद महमूद) के भाई. तारिखि रशीदीं में ‘नूरा का अत्यंत ही भक्तिपूर्वक गुण-कीर्त्तन किया गया है.
155. ‘चापदूक’ (देखें).
156. ‘जरबत्फ मिलक’ (- ‘जर’ अर्थात् सोना - ‘बात्फ’ ः अर्थात् ‘बुना हुआ’) वह ‘मिलक’ (विशेष प्रकार का रेशमी कपड़ा), जिसमें कलाबत्तु के बेलबूटे हों. ‘मिलक’ तुरकिस्तान से मंगाया जाता था. (‘आईनि अकबरी’).
157. ‘ताड्लासी’. अर्थात् (सोमवार, 31 जनवरी के दिन) भोर होने पर, या (30 जनवरी की शाम को) नई (हिजरी) तिथि शुरू होने पर.
158. संधिवार्ता के लिए.
159. कामरान के मामा और ससुर सुलतान अली मीरजा तगाई बेगचिक.
160. ‘साचाक’.
161. आधे आकर और विशेष प्रकार की तलवार.
162. रेषम या ऊन की चौड़ी पेटी, जो अंकुसियों-मुद्धियों से कसती थी. अक्सर नगीने भी जड़े होते थे.
163. (गद्य का पद्य में) रूपांतर या ‘अनुवाद’. ‘वालिदीया रिसाला’ (देखें) का.
164. रामपुर-दीवान के (देखें ‘पूरक-2’, हिजरी 928, अनुच्छेद 5; पूरक-3, अनुच्छेद 4; पूरक-5, अनुच्छेद 18 आदि.)
165. ‘शीर्षलिपि’, आदर्श लिखावट, जिसकी अनुकृति करके लिखने का अभ्यास किया जाए.
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