कहानी - आजादी के मायने

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-प्रमोद यादव   ‘क्या बात है जी ? बड़े उखड़े-उखड़े से लग रहे हैं ? ‘ यूनीफार्म उतारते जेलर पति से शीला पूछ बैठी . ‘ कुछ नहीं जी..बस यूँ ही.....

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-प्रमोद यादव

 

‘क्या बात है जी ? बड़े उखड़े-उखड़े से लग रहे हैं ? ‘ यूनीफार्म उतारते जेलर पति से शीला पूछ बैठी .

‘ कुछ नहीं जी..बस यूँ ही..वो मेरा बचपन का दोस्त है ना मंगल जो आजीवन कारावास की सजा काट रहा...उसके बारे में सोच रहा था...’

‘ क्या हुआ उसे ? ‘

‘हुआ कुछ नहीं..आज उसकी पत्नी गुजर गई..उसे पैरोल पर छोड़ना था..पर वह जाने को राजी नहीं हो रहा था.. आज ही ऊपर से आर्डर आया है कि कल स्वतंत्रता दिवस पर आजीवन कारावास भुगत रहे ऐसे कैदियों को रिहा करना है जिन्होंने जेल में पंद्रह साल काट लिए..मेरे जेल से ऐसे पांच कैदी है उसमें मंगल का भी नाम है..मैंने उच्चाधिकारियों से बात की कि आज ही उसकी पत्नी गुजर गई..उसे पैरोल पर छोड़ें कि क्या करें तो आई.जी. जेल से निर्देश मिला कि कल की जगह उसे आज ही रिहा कर दिया जाए..पर वह जाने को तैयार नहीं था..कहता रहा कि मैं उच्चाधिकारियों से बात करूं कि बाक़ी के दिन भी वह जेल में रहना चाहता है..इस बाबत उसने एक आवेदन भी दिया है.. बड़ी मुश्किल से समझा-बुझा कर अंतिम क्रिया के लिए भेजा है..लेकिन कहते गया है कि लौटकर फिर वापस यहीं जेल आएगा..’ जेलर ने एक सांस में पूरा वाकया बताया.

‘ ठीक है जी..पर क्या उसने बताया कि उसे आजादी क्यों नहीं चाहिए ? ‘

‘ हाँ शीलू..आज ही उसने बताया कि जिसके लिए आजाद होना चाहता था वो ही जब दुनिया से आजाद हो गई तो अब इस आजादी के क्या मायने ? कह रहा था –“ मेरे जेहन में उसकी जितनी भी हंसते-खिलखिलाते..बोलते-शर्माते वाली तस्वीर है,उसी ने मुझे अब तक जिलाए रखा..अब उसकी बेजान सूरत देखने की..उसकी अर्थी देखने की हिम्मत नहीं..मैं मर ही जाऊँगा...”..शीलू.. मेरे जेल में तो वह केवल चार साल पहले ही आया ..इन चार सालों में मैंने कभी नहीं पूछा कि उसके साथ क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? न ही उसने कभी बताने की कोशिश की..मेरे पास जो हिस्ट्रीशीट है ,वही मेरे लिए सच था..आज जब बार-बार उसे कुरेदा तब उसने अपनी असली रामकहानी कही..’ जेलर ने जवाब दिया.

‘ असली रामकहानी ? उसे तो किसी दोस्त की हत्या के जुर्म में सजा मिली है न ? ‘

‘ हाँ शीलू..मैं भी यही कुछ जानता था पर आज बताया कि वो हत्या उसने नहीं बल्कि उसकी पत्नी ने अपनी अस्मत बचाने गैर इरादतन की थी..और अपनी जवान और सुन्दर पत्नी को बचाने मंगल ने वह जुर्म अपने सिर लिया..’

‘ अरे..पर हुआ क्या था ? ’ शीलू पूछी.

‘ वही तो बता रहा हूँ..पूरी घटना यूं है कि उन दिनों एक बार मंगल को किसी घातक बीमारी ने दबोच लिया..उसके बचने की उम्मीद नहीं थी..डाक्टरों ने साफ़ कह दिया कि महीने भर के भीतर अगर आपरेशन नहीं हुआ तो मरना तय...आपरेशन के लिए कम से कम एक लाख रूपये की जरुरत बताई..और किसी बड़े प्राइवेट हास्पिटल में जाने कहा.. पर इतनी रकम का जुगाड़ मंगल के लिए असंभव था..उसकी पत्नी के मायके वाले भी सहायता करने में असमर्थ थे..पर वह चाहती थी कि उसका पति किसी भी कीमत पर बच जाए..उसकी मांग का सिंदूर न उजड़े..तभी मंगल का दोस्त उदय जो काफी पैसेवाला था, का उदय हुआ..वैसे मंगल के घर उसका आना-जाना पहले भी होता था..पर इस बार वह एक अलग अंदाज में पेश आया..उसने एक दिन उसकी पत्नी से सहानुभूति जताते बड़ी बेशर्मी से कहा- कि पैसे की चिता न करें आप ..मैं दे देता हूँ..पर रिटर्न में मुझे भी “कुछ” चाहिए..तब मंगल सरकारी अस्पताल में भर्ती था.. उसकी पत्नी इस “कुछ” का मतलब तो समझ गई पर चुप रही..कुछ नहीं बोली..उदय ने आनन्-फानन में उसे एक बड़े नर्सिंग होम में भर्ती करा लाख रुपये अदा कर आपरेशन करा दिया.. आपरेशन सफल रह ..मंगल बच गया..वह बड़ी तेजी से स्वस्थ होने लगा..उसकी पत्नी दिन-रात वहीं रहकर सेवा-सुश्रुआ करती रही...दस-पंद्रह दिनों बाद एक दिन डाक्टरों ने कहा कि अब वह भी घर जाकर आराम करे...घर को ठीक-ठाक करे...कल या परसों उसके पति को डिस्चार्ज कर देंगे..’

‘ फिर ? ‘

‘ फिर क्या ? वह ख़ुशी से फूली न समाई..भागी-भागी घर पहुँच साफ़-सफाई करने लगी..पूरे दिन घर सजाते-सजाते थक सी गई..शाम को हास्पिटल का एक चक्कर भी लगा आई और मंगल को दिन भर का हाल-चाल सुना आई..रात घिरते ही एकाएक बूंदा-बांदी शुरू हो गई..मौसम में ठंडकता आ गई..कब रात के दस बज गए पता ही न चला..तभी दरवाजे पर दस्तक हुई..बाहर से उदय की आवाज आई-‘ उदय हूँ..दरवाजा खोलिये ..भीग जाऊँगा..’ एकबारगी उसकी पत्नी ने मन बनाया कि दरवाजा नहीं खोलेगी..फिर ख्याल आया कि आड़े वक्त में जिसने मदद की उससे ऐसा व्यव्हार उचित नहीं..उसने किवाड़ खोल दिए..वह दनदनाता हुआ घुसा और बोला – ‘ कल-परसों तो मंगल आ ही जाएगा..मैं चाहता हूँ कि उससे पहले ही हिसाब हो जाए तो अच्छा..’ सुनकर उसकी पत्नी सहम गई..इससे पहले कि कुछ कहती उदय ने किवाड़ अन्दर से बंद कर दिया..उसकी पत्नी ने काफी अनुनय-विनय की कि धीरे-धीरे सारे रूपये लौटा देगी..रहम करे..पर उदय पर तो जैसे पागलपन ही सवार था..वह जबरदस्ती पर उतर आया..वह इज्जत बचाने रसोई की ओर भागी..और पास पड़े हंसिये को चुपचाप अपने आँचल में छुपा ली..जैसे ही रसोई में उदय उस पर टूटा, उसी तत्परता से उसने उसके पेट को हंसिये से चीर दिया..’

‘ फिर ? ’

‘ उदय मिनटों में अस्त हो गया..वह घबरा गई कि अब क्या करे क्या न करे ? तभी फिर दरवाजे पर दस्तक हुई..वो पसीने-पसीने हो गई..बाहर से जब मंगल की जानी-पहचानी आवाज आई तो जैसे उसे होश आया..वह झटपट दरवाजा खोली और उससे लिपट रोने लगी.. रो-रोकर मंगल से उसने सारी बातें बताई..उसने काफी सान्तवना दी और समझाया कि जो हुआ-सो हुआ..अपने पर काबू रखो...तनिक भी न घबराओ..अब जैसा कहूँ वैसा करो..उसने साफ़ कह दिया कि अभी थाने जाकर वह आत्म समर्पण करेगा..कोई लाख पूछे पर सच्ची बात किसी से न कहना..उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि सही वक्त पर वह पहुँच गया नहीं तो न जाने क्या होता ? उसने बताया कि शाम को राउंड पर आये बड़े डाक्टर ने उसे कल की जगह आज देर शाम को ही डिस्चार्ज कर दिया..वह बहुत पहले ही आ जाता पर बारिश के चलते एक जगह रुका रहा इसलिए नहीं पहुँच सका..समय पर पहुंचता तो ये हादसा नहीं होता..पर होनी को भला कौन टाल सका है ?..’

‘ फिर क्या हुआ जी ? ‘

‘ हुआ क्या ? थाना-कचहरी का चक्कर हुआ और उसे आजीवन कारावास की सजा..उसने पत्नी को सलाह दी कि मायके चली जाए ..अगर कभी लौटकर आना हुआ तो सीधे वह वहीं आएगा.. तब तक इन्तजार करे..पर इन्तजार करते-करते पत्नी की आँखें पथरा गई और कल उसका इंतकाल हो गया..किसी तरह वह अंतिम क्रिया में चला तो गया है पर ईश्वर जाने अब आगे क्या करेगा ?...मैंने तो काफी समझाया है कि हर अँधेरे के बाद रौशनी की गुंजाइश रहती है..हौसला रखे..धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा पर वह जिद्द पकडे बैठा है कि उसे फिर से जेल में रख लूँ..अब भला बिना किसी जुर्म के उसे कैसे जेल में रखूँ ? मैंने कह दिया है कि दस दिनों की ट्रेनिंग में दिल्ली जा रहा हूँ..लौटने के बाद ही कुछ करूँगा..ये भी कह दिया है कि इतने दिन किसी तरह काट ले ..इस बीच किसी भी प्रकार की मदद चाहिए..रुपया-पैसा..कपडे-लत्ते..तो बेझिझक तुमसे आकर ले ले..ठीक कहा न शीलू ? जेलर ने पूछा.

‘ बिलकुल ठीक कहा जी..शायद अकेलेपन से वह घबरा गया है..अब हम भी तो लगभग अकेले ही हैं.. हमारे आगे-पीछे कौन है भला ? पर इसका मतलब ये तो नहीं कि जीना ही छोड़ दें ?आप निश्चिंत हो ट्रेनिंग में जाईये..मुझसे जो हो सकेगा..मदद करुँगी..’ शीलू ने भरोसा देते कहा.

ट्रेनिंग समाप्त कर जेलर लौटा तो मंगल को अपने घर में पाया..वह काफी खुशमिजाज सा दिखा..बड़े साफ़-सुथरे घरेलू कपड़ों में उसे पहली बार देखा..इसके पहले कि कुछ पूछता अन्दर से शीलू आरती की थाल सजाये आती दिखी.. माजरा समझ नहीं आया..इसके पहले भी तो कई बार बाहर गया पर लौटने पर कभी आरती नहीं उतारी..आज अचानक..तभी शीला मंगल के सामने खड़े हो बोली - ‘भैया..पहले राखी बंधवा लो..फिर सामान लेने बाजार जाना..’ तब जेलर को याद आया कि आज राखी है..वह मुस्कुरा कर रह गया..आरती करने के बाद जेलर के सामने होती बोली- ‘ अजी..आप कहाँ जा रहे..आपकी भी आरती उतारनी है..आपने ही मुझे ये दिन दिखाया..आज पहली बार रक्षा-बंधन मना रही हूँ..अब मंगल भैया हमारे साथ ही रहेंगे..तुमसे पूछे बिना ही मैंने निर्णय ले लिया..’ शीला बोलते-बोलते कुछ ठिठक सी गई.

इसके पहले कि शीला आगे कुछ बोलती जेलर ने कहा- ‘ शीलू..अब बस भी करो..तुम्हारे किसी फैसले पर मैंने कभी ना कहा है ? और सच पूछो तो मैं भी यही चाहता था..अब झटपट अपने भैया को मिठाई खिलाओ और मुझे एक कप गरमा गरम चाय..फिर शाम को सब चलते हैं राक्सी में सिनेमा देखने.. “गोलमाल रिटर्न – फाइव” लगा है..’

शीला ख़ुशी से जेलर को चूम ही डाली फिर ख्याल आया कि मंगल भी है तो शरमाकर भाग गई..जेलर और मंगल देर तक हंसते रहे..

अर्से बाद मंगल आजादी के सही मायने से अवगत हुआ..

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प्रमोद यादव

गया नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

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रचनाकार: कहानी - आजादी के मायने
कहानी - आजादी के मायने
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