इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र शाश्वत सत्य है शब्द मरते नहीं . इसीलिये शब्द को हमारी संस्कृति में ब्रम्ह कहा गया है . यही कारण ...
इंजी विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र
शाश्वत सत्य है शब्द मरते नहीं . इसीलिये शब्द को हमारी संस्कृति में ब्रम्ह कहा गया है . यही कारण है कि स्वयं अपने जीवन में विपन्नता से संघर्ष करते हुये भी जो मनीषी निरंतर रचनात्मक शब्द साधना में लगे रहे , उनके कार्यो को जब साहित्य जगत ने समझा तो वे आज लब्ध प्रतिष्ठित हस्ताक्षर के रूप में स्थापित हैं . लेखकीय गुण , वैचारिक अभिव्यक्ति का ऐसा संसाधन है जिससे लेखक के अनुभवों का जब संप्रेषण होता है , तो वह हर पाठक के हृदय को स्पर्श करता है . उसे प्रेरित करता है , उसका दिशादर्शन करता है . इसीलिये पुस्तकें सर्व श्रेष्ठ मित्र कही जाती हैं .केवल किताबें ही हैं जिनका मूल्य निर्धारण बाजारवाद के प्रचलित सिद्धांतों से भिन्न होता है . क्योंकि किताबों में सुलभ किया गया ज्ञान अनमोल होता है . आभासी डिजिटल दुनिया के इस समय में भी किताबों की हार्ड कापी का महत्व इसीलिये निर्विवाद है , भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम स्वयं एक शीर्ष वैज्ञानिक थे , उनसे अधिक डिजिटल दुनिया को कौन समझता पर फिर भी अपनी पुस्तकें उन्होने साफ्ट कापी के साथ ही प्रिंट माध्यम से भी सुलभ करवाईं हैं .उनकी किताबों का अनुवाद अनेक भाषाओं में हुआ है . दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल बुक स्टोर अमेजन पर कलाम साहब की किताबें विभिन्न भाषाओं में सुलभ हैं . कलाम युवा शक्ति के प्रेरक लेखक के रूप में सुस्थापित हैं .
अवुल पकिर जैनुलअबिदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहिणी थीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थे इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे। उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की। उन्होंने देश के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (डीआरडीओ और इसरो) में वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया। वर्ष 1998 के पोखरण द्वितीय परमाणु परीक्षण में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ भी जुड़े थे। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ कहा गया . वर्ष 2002 में कलाम भारत के ११ वें राष्ट्रपति चुने गए और 5 वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षण, लेखन, और सार्वजनिक सेवा में लौट आए। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
राष्ट्रपति रहते हुये वे बच्चों से तथा समाज से जुड़ते गये , उन्हें जनता का राष्ट्रपति कहा गया . राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद डॉ कलाम अपने मन की मूल धारा शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध जैसे कार्यों में व्यस्त रहे और भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिल्लांग, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंदौर, जैसे संस्थानों से विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर जुड़े रहे। प्रायः विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों में वे सहजता से पहुंचते तथा नव युवाओं को प्रेरक वक्तव्य देते . वे भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के फेलो, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, थिरुवनन्थपुरम, के चांसलर, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई, में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर भी रहे।
उन्होंने आई. आई. आई. टी. हैदराबाद, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और अन्ना यूनिवर्सिटी में सूचना प्रौद्योगिकी भी पढाया . वर्ष 2011 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म ‘आई ऍम कलाम’ उनके जीवन पर बनाई गई .
एक लेखक के रूप में अपनी पुस्तको "अदम्य साहस" जो जनवरी २००८ में प्रकाशित हुई , इस किताब में देश के प्रथम नागरिक के दिल से निकली वह आवाज है, जो गहराई के साथ देश और देशवासियों के सुनहरे भविष्य के बारे में सोचती है। अदम्य साहस जीवन के अनुभवों से जुड़े संस्मरणों, रोचक प्रसंगों, मौलिक विचारों और कार्य-योजनाओं का प्रेरणाप्रद चित्रण है। उनकी एक और किताब "छुआ आसमान" २००९ में छपी जिसमें उनकी आत्मकथा है जो उनके अद्भुत जीवन का वर्णन करती है. अंग्रेजी में इंडोमिटेबल स्प्रिट शीर्षक से उनकी किताब २००७ में छपी थी जिसे विस्व स्तर पर सराहा गया . गुजराती में २००९ में "प्रज्वलित मानस" नाम से इसका अनुवाद छपा . "प्रेरणात्मक विचार" नाम से प्रकाशित कृति में वे लिखते हैं , आप किस रूप में याद रखे जाना चाहेंगे ? आपको अपने जीवन को कैसा स्वरूप देना है, उसे एक कागज़ पर लिख डालिए , वह मानव इतिहास का महत्त्वपूर्ण पृष्ठ हो सकता है . मैने कलाम साहब को अपनी बड़ी बिटिया अनुव्रता के एम बी ए के दीक्षान्त समारोह में मनीपाल के तापमी इंस्टीट्यूट में बहुत पास से सुना था , तब उन्होंने नव डिग्रीधारी युवाओं को यही कहते हुये सम्बोधित किया था तथा उन्हें देश प्रेम की शपथ दिलवाई थी .
भारत की आवाज़ , हम होंगे कामयाब , आदि शीर्षकों से उनकी मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई किताबें ‘इंडिया 2020: ए विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘विंग्स ऑफ़ फायर: ऐन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इग्नाइटेड माइंड्स: अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’, ‘मिशन इंडिया’, आदि किताबें विभिन्न प्रकाशकों ने प्रकाशित की हैं . ये सभी किताबें सहज शैली , पाठक से सीधा संवाद करती भाषा और उसके मर्म को छूती संवेदना के चलते बहुपठित हैं . बहु चर्चित तथा प्रेरणा की स्त्रोत हैं .
न केवल कलाम साहब स्वयं एक अच्छे लेखक के रूप में सुप्रतिष्ठित हुये हें बल्कि उन पर , उनकी कार्य शैली , उनके सादगी भरे जीवन पर ढ़ेरों किताबें अनेकों विद्वानों तथा उनके सहकर्मियों ने लिखी हैं .
27 जुलाई, 2015, को शिलोंग, मेघालय में आई आई एम के युवाओं को संबोधित करते हुये ही , देश की संसद न चल पाने की चिंता और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का समाधान खोजते हुये हुये उनका देहावसान हो गया पर एक लेखक के रूप में अपने विचारों के माध्यम से वे सदा सदा के लिये अमर हो गये हैं .
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प्रांतीय अध्यक्ष , वर्तिकाओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
मो ९४२५४८४४५२ , ९४२५८०६२५२
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