कहानी - जयमाल की साड़ी

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गीता दुबे ‘भाभी आज फिर वे लोग आए थे’--- हिमांशु ने भाभी से कहा. “अच्छा! तो क्या बात आगे बढ़ी?” ‘हाँ, लगता है वहाँ रिश्ता पक्का हो जाएगा’—हि...

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गीता दुबे

‘भाभी आज फिर वे लोग आए थे’--- हिमांशु ने भाभी से कहा.

“अच्छा! तो क्या बात आगे बढ़ी?”

‘हाँ, लगता है वहाँ रिश्ता पक्का हो जाएगा’—हिमांशु ने मुस्कुराते हुए कहा.इस रिश्ते से वह काफी खुश था. पड़ोस की मुंहबोली भाभी से वह अपनी सारी बातें शेयर करता.

‘हिमांशु लगता है तुमने पहले से ही लड़की पसंद कर रखी थी,उसके पिता और मामा जी तो सिर्फ फौर्मेलिटी में यहाँ आए थे.. है कि नहीं?’

“ हाँ कुछ ऐसा ही है, दरअसल उसे मैंने एक पार्टी में देखा था और वह मुझे पसंद आ गई, लड़की है बहुत खूबसूरत.. वैसे मैं भी कोई कम थोड़े ही हूँ, जरा सा सांवला हूँ तो क्या हुआ.. कृष्ण भगवान भी तो सांवले ही थे” और वह ठहाका लगा कर हँसने लगा. चलिए भाभी इसी बात पर एक कप चाय पिलाइए.

   भाभी चाय लेकर आई और पूछने लगी.. और बताओ और क्या क्या जानते हो उसके बारे में?

“अरे भाभी मैंने उसे भली-भांति देख लिया है और क्या जानना है? अपनी सहेलियों के बीच वह अलग ही दिख रही थी.”

‘तुमने उससे बातें कीं?’

“नहीं भाभी, मैं तो उसे बस दूर से निहार रहा था”

‘ मौका देखकर तुम्हें उससे बातें कर लेनी चाहिए थी.. बातें करने से हम इंसान को कुछ और करीब से जान पाते हैं’.

“ आप भी न भाभी, अरे लड़की है, मुझे पसंद है, इतना काफी नहीं है क्या शादी करने के लिए?”इसके अलावा यह भी जानता हूँ कि वह बी.ए. पार्ट- २ की छात्रा है, मेरी जाति की है और एक दारोगा की पुत्री है, और कुछ मैं जानना भी नहीं चाहता. अरे ऐसा लड़का कहाँ मिलेगा उसे? ऐसा छैल-छबीला, ऐसे ऊँचे खानदान का, वह तो फूले नहीं समाएगी मुझे पाकर.

    हिमांशु बारहवीं में था जब उसके पिता की मृत्यु हुई थी. एक दिन उसके पिता एल. डी. में काम करते वक्त हाईड्रालिक प्रेशर के शिकार हो गए और वहीँ उनकी मृत्यु हो गई. हिमांशु को उसके पिता की नौकरी मिली.उस कच्ची उम्र में ही उसपर नौकरी और परिवार की जिम्मेवारी आ पड़ी. हिमांशु दो भाई थे, हिमांशु और उससे चार साल बड़ा सुधांशु.सुधांशु स्वभाव से ही गैरजिम्मेवार था. वह सपने देखने और शेरो-शायरी में विश्वास रखता था, उसने पहले ही यह साफ-साफ कह दिया था कि मैं यह नौकरी नहीं करने वाला, भले ही बेरोजगार रहूँ.एक बहन भी थी स्मिता जो आठवीं कक्षा की छात्र थी. घर- गृहस्थी फिर से ठीक-ठाक चलने लगी थी.अचानक सुधांशु दो दिनों से घर नहीं आया,हिमांशु ने उसके सारे ठिकानों को चान मारा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला.अंत में उसने अपनी यह जिम्मेवारी पुलिस को दे दी लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ, दो दिन से दो महीने हुए और फिर दो वर्ष लेकिन सुधांशु का कहीं पता नहीं चला. एक दिन माँ के नाम एक लिफाफा डाकिए ने दिया. सुधांशु ने अपनी माँ को पत्र लिखा था- ‘ माँ मैं यहाँ मुंबई में बिलकुल अच्छी तरह हूँ, मेरी फ़िक्र मत करना, मैंने शादी कर ली है, तुम्हारा जब मन करे अपनी बहू से मिलने चली आना, मेरी फ़िक्र मत करना. हिमांशु ने उस लिफाफे को उलट-पलट कर देखा, कहीं भी उसका अता-पता नहीं लिखा था और न ही कोई संपर्क नंबर.वे जाते भी तो कहाँ? फिर न उसकी कोई चिठ्ठी आई और न ही कोई फोन. इसी तरह दस वर्ष बीत गए. हिमांशु अब पूरी तरह वयस्क हो चुका था.स्मिता भी अब विवाह योग्य हो चुकी थी, माँ को उसकी फ़िक्र खाए जाती थी, पैसे के नाम पर कुछ भी जमा पूंजी न थी.इसी बीच दारोगा जी का आना-जाना होने लगा, वे बड़े ही सधे हुए इंसान थे, उनकी व्यावहारिकता ने हिमांशु और उसकी माँ को पूरी तरह अपने वश में कर लिया. उनका बार-बार यह कहना कि आपकी बेटी मेरी बेटी हुई और आपकी सारी समस्याएं शादी हो जाने पर मेरी हो जाएंगी को उन्होंने सच मान लिया और दारोगा जी ने काफी सस्ते में अपनी बेटी पूनम का विवाह हिमांशु से कर ओना काम निबटा लिया.हिमांशु खूबसूरत बीवी पाकर बहुत खुश था, उसने उसके लिए अपनी पसंद के गहने बनवाए थे- खूबसूरत और कीमती.उसने अपनी बीवी पर प्रभाव जमाने के लिए बहुत बड़ी पार्टी भी की लिहाजा वह शादी के बाद कर्ज के बोझ से लद चुका था. उसने समझा था कि ससुर जी कुछ मदद जरुर कर देंगे, लेकिन दरोगा जी ने बेटी की शादी के बाद कभी भी उनके घर पर दस्तक ही नहीं दी. उन्होंने अपनी बेटी का हाल- समाचार लेना भी आवयश्क न समझा. क्या करते बेचारे दारोगा जी भी विधाता ने उन्हें एक दो नहीं, पूरे सात बेटियों का पिता बनाया था. कितनों के घर जाते? कहाँ तक रिश्ते निभाते? पूनम सबसे छोटी बेटी थी, उसकी शादी कर वह चैन की जिंदगी जीना चाहते थे और जी रहे थे. हिमांशु के घर जो भी आता, बहू को देखकर उसकी तारीफ़ में चार शब्द कहकर ही जाता. एक दिन हिमांशु ने पूनम से कहा- ‘ अरे वाह! जो भी इस घर में आता है , तुम्हारी ही तारीफ़ करता है, मुझे तो कोई पूछता ही नहीं’. इसपर पूनम ने हंसकर कहा – “ काले- कलूटे को कौन पूछता है भला?” हिमांशु ने इस बात को हंसी में उड़ा दिया था लेकिन थोड़ी ठेस तो उसे लगी ही थी. एक दिन पूनम ने हिमांशु से कहा- ‘ हमारी शादी को चार महीने से ज्यादा हो गए, लेकिन अब तक हम हनीमून के लिए कहीं नहीं गए’. हिमांशु ने कहा- हाँ,हाँ थोड़े दिनोर रुक जाओ, हम कहीं न कहीं जरुर चलेंगे. इसपर पूनम ने कहा-‘ ओ हो अब समझी, मेरी शादी एक भिखमंगे से हुई है, जिसने कर्ज लेकर मेरे लिए गहने बनवाए हैं’, पता नहीं पापा को क्या दिखा तुममें? मेरी तो किस्मत ही फूट गई थी जो तुम मुझे मिले. मैं एक नई- नवेली दुल्हन हूँ .. मेरे भी कुछ सपने हैं, शादी के बाद ऐसी जिंदगी की कल्पना नहीं की थी मैंने ... मन होता है कहीं भाग जाऊं! हिमांशु उस दिन जो ड्यूटी पर निकला तो दो दिनों तक घर वापस नहीं आया, वह कहाँ था, किस हाल में था.. किसी को इसकी खबर नहीं थी. तीसरी सुबह वह खुदबखुद वापस चला आया, आकर उसने पूनम से धीरे से कहा-‘ मैंने मसूरी की बुकिंग करवा ली है एक सप्ताह के लिए, कल की ट्रेन है तुम अपना सामान पैक करना शुरू कर दो.’ माँ और स्मिता जान गईं कि इन दो दिनों में उसने पैसों का इंतजाम किया होगा.दिन बीतने लगे.. कभी ठीक से तो कभी बेठीक से. हिमांशु एक बच्चे का पिता हो चुका था लेकिन अभी तक स्मिता की शादी तय नहीं हो चुकी थी हालाँकि हिमांशु इसके लिए प्रयत्नशील रहता था, स्मिता की अब उम्र निकल रही थी, माँ को अब उसकी विवाह की चिंता खाए जा रही थी, इसी बीच पूनम जिद कर बैठी कि मुझे भाड़े के घर में नहीं रहना है. साल भर से ही हिमांशु कर्ज के भार से मुक्त हुआ था, फिर फ़्लैट ले लेने की वजह से उसके पास अब कुछ भी नहीं बचा था. पूरा बैंक खंगालने पर भी पचास हजार से अधिक नहीं थे.खैर एक जगह स्मिता की शादी तय हो गई, हिमांशु इस जिम्मेवारी से भी मुक्त हो गया लेकिन फिर वही कर्ज का भार. वह कर्ज चुकता कर जल्दी से जल्दी एक चैन की जिंदगी चाहता था इसलिए उसने ओवरटाइम करना शुरू कर दिया.

     जाड़े की रात थी, सारा शहर ठंढ से ठिठुर रहा था. रात दस बजे की सायरन बजी और हिमांशु ने अपने घर की राह पकड़ी. उसका घर कंपनी के पीछेवाले रास्ते से होकर जाने पर जल्द आ जाता था. उसने अपनी बाइक उसी रास्ते पर घुमा दी. अचानक उसने देखा चार-पांच लोग एक ट्रक पर जल्दी-जल्दी कुछ रख रहे हैं. वह नजदीक चला गया, उसने देखा उनमें से एक उसका मित्र शेखर है. उसे देख हिमांशु ने कहा-‘ अरे शेखर यह क्या कर रहे हो तुम?’ चोरी... शेखर ने कहा –‘ हम बाद में बातें करतें हैं, अभी तुम जाओ यहाँ से..जल्दी जाओ.’ इत्तिफाक से उसी समय हिमांशु के बॉस मिस्टर सेनगुप्ता उसी रास्ते से आ रहे थे. उनकी गाड़ी आती देख सभी रात के अँधेरे में ओझल हो गए, लेकिन हिमांशु वहीँ खड़ा रहा. मिस्टर सेनगुप्ता ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने के लिए कहा और स्वयं उतरकर ट्रक के नजदीक आए. हिमांशु को वहाँ देखकर वे चौंके—“ हिमांशु तुम? और यह क्या? तुम चोरी... इतना बड़ा धोखा?” हिमांशु ने अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा लेकिन सेनगुप्ता यह कहकर चले गए कि कल तुम मुझसे मेरे चैंबर में आकर मिलो. दूसरे दिन हिमांशु जल्दी ही ड्यूटी जाने को तैयार हो गया. पूनम ने बहुत दिनों बाद हिमांशु से मुस्कुराते हुए कहा-‘ आज जरा जल्दी घर आ जाना, कल की तरह देर मत करना, पड़ोस वाले सिंह जी की बेटी की शादी है, इकठ्ठे ही चलेंगे. हिमांशु ने सर हिला कर हामी भर दी और चला गया. सबसे पहले वह अपने बॉस से मिलने उसके चैंबर में गया. उसे देखते ही मिस्टर सेनगुप्ता आगबबूला हो उठे—“ तुम इतने गिरे हुए इंसान हो! इतना बड़ा धोखा करते तुम्हें शर्म नहीं आई! मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी”..

‘ लेकिन सर’...

“ लेकिन वेकिन कुछ नहीं मैंने तुम्हें कंपनी का सामान चुराते हुए अपनी आखों से देख लिया है, इसके लिए मैं तुम्हारी कोई कहानी नहीं सुन सकता, गनीमत समझो कि तुम्हें पुलिस में नहीं दे रहा हूँ..” तंगी- बदहाली किसके यहाँ नहीं होती लेकिन कोई तुम्हारी तरह कंपनी में चोरी नहीं करता. यू आर डिसमिस्ड ... यह लेटर लो और गेट लॉस्ट...!!” हिमांशु जमीन पर जम गया था मानो, आगे बढ़ने के लिए पाँव ही नहीं उठ रहे थे. पूनम पार्टी में जाने के लिए तैयार होकर बहुत देर से हिमांशु का इन्तजार कर रही थी. आज उसने जयमाल वाली गुलाबी साड़ी पहनी थी. जब भी वह यह साड़ी पहनती हिमांशु उसकी तारीफ़ में कुछ न कुछ जरुर कहता.. आज भी वह ऐसा ही सोचकर वह साड़ी पहनी थी. बहुत देर इन्तजार करने के बाद भी जब हिमांशु नहीं आया तो वह माँ और बेटे को लेकर शादी में चली गई.लौटकर उसने कपड़े बदले और साड़ी वहीँ मेज पर रखकर सोने चली गई. रात करीब एक बजे हिमांशु ने अपनी चाबी से दरवाजा खोला, देखा सभी बेखबर सो रहे थे.. किसी को भी उसकी सुध नहीं थी. वह भी पूनम के बाजू में आकर धीरे से लेट गया. उसकी आहट से पूनम की नींद खुल गई और उसने हिमांशु को देखकर कहा—‘ तो अब आए हो घर? एक तो देर से आते हो और चेहरा ऐसा बनाते हो मानो कोई विपत्ति आ पड़ी हो... मैं सब तुम्हारी चालें समझती हूँ.. घिन आती है मुझे तुम्हारी इस मनहूस शक्ल से.. देखना नहीं चाहती तुम्हारी यह शक्ल..’और भी न जाने उसने क्या-क्या कहा फिर अपनी तीखी आवाज से ऊब-थककर वह खुद ही सो गई लेकिन हिमांशु की आँखों में नींद कहाँ? सुबह सब की आंखें देर तक लगी रहीं.पुलिस जोर- जोर से दरवाजा पीट रही थी. पूनम आखें मलते उठी तो पुलिस को देखकर चौंक गई.

‘ चलिए हमारे साथ लाश की पहचान करनी है, लोगों ने बताया कि इसी घर का आदमी है’—पुलिस ने पूनम से कहा. पूनम पुलिस के साथ पास वाले पार्क की और चल पड़ी. उसने पेड़ से झूलते शव को देखकर धीमी आवाज में कहा-‘ हाँ इन्हें मैं पहचानती हूँ, ये मेरे पति हैं.’ उसने देखा हिमांशु के गले में उसकी वही गुलाबी साड़ी बंधी हुई थी.... जयमाल की साड़ी.        

                                                                                  

गीता दुबे                                                                          

जमशेदपुर 

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रचनाकार: कहानी - जयमाल की साड़ी
कहानी - जयमाल की साड़ी
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