न उलझें किसी से

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  डॉ. दीपक आचार्य   अधिकांश संघर्षों की बुनियाद बहुत छोटी सी होती है जो बाद में चलकर कभी सुनामी जैसी हो जाती है, कभी दावानल और कभी ज्वाला...

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डॉ. दीपक आचार्य

 

अधिकांश संघर्षों की बुनियाद बहुत छोटी सी होती है जो बाद में चलकर कभी सुनामी जैसी हो जाती है, कभी दावानल और कभी ज्वालामुखी।  इस बीज का नाम है उलझना। यह उलझना अपने आप में इतना बड़ा महत्त्व रखता है कि जो एक बार उलझने की आदत पाल लेता है वह जिन्दगी भर कहीं न कहीं उलझता ही चला जाता है। उसकी जिन्दगी मकड़ी की उलझ कर रह जाती है।

एक बार यदि  उलझने और उलझाने का दौर शुरू हो जाए तो फिर वह अंतिम समय तक यों ही चलता रहता है। उलझना और उलझाना भी अपने आप में किसी रस से कम नहीं है। और जमाने के सौभाग्य से इस रस के कद्रदान खूब लोग हर जगह बड़ी संख्या में मौजूद हैं जिन्हें इन्हीं में आनंद आता है।

ये लोग हमेशा किसी न किसी को उलझन में डालने के फेर में लगे होते हैं। कोई सा काम हो, और इसे उलझाए रखना हो तो इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है, बहुत सारे लोग मिल जाएंगे, इनमें से किसी एक पुराने उलझन-एक्सपर्ट को काम सौंप दो, अर्से तक यूँ ही पड़ा रहेगा और कब इसका अस्तित्व समाप्त हो जाए, कोई कुछ नहीं कह सकता।

आम तौर पर विवाद की शुरूआत किसी न किसी उलझन से ही होती है। दुनिया में इस किस्म के शातिर दो किस्मों के हैं। एक वे हैं जो उलझाने वाले हैं, दूसरे हैं उलझ जाने वाले। हम सभी लोगों के भाग्य से दोनों ही मार्गों के लोग हमारे यहाँ बहुत बड़ी संख्या में हैं।

दुनिया के बहुत सारे झगड़े-फसाद और विवाद इन्हीं दो प्रजातियों की अहम देन है जिसकी वजह से रोजाना हम ऎसा कुछ पढ़ने, सुनने और देखने के विवश होते हैं जो शोभा नहीं देता। जीवन का कोई सा पक्ष हो, इन स्थितियों से बचना चाहें तो इसका एक ही मूल मंत्र है। और वह है किसी से न उलझें, अपना काम चुपचाप करते रहियें।

बहुत से लोग हैं जो अपने मनोरंजन और घटिया किस्म वाले आनंद के लिए हमें उलझाना चाहते हैं और उनका यही मकसद होता है कि हम हमेशा उलझे हुए रहें। इस वजह से ये लोग कोई न कोई बहाना या कारण ढूँढ़ कर हमें उत्तेजित करना और रखना चाहते हैं।

एक बार हम इनके झाँसे में आ जाएं तो फिर इनके सारे षड़यंत्रों की सफलता शुरू हो जाती है। दुनिया के हर कोने, बाड़े और गलियारे में इस किस्म के लोग विद्यमान हैं जो कि किसी न किसी को उलझाना चाहते हैं और इन्हीं लोगों के कारण से समाज और क्षेत्र में संघर्ष की स्थितियां पैदा होती रही हैं।

इन सभी से बचने का एकमात्र रास्ता यही है कि हम किसी से किसी भी तरह उलझे नहीं। कोई हमें कितना ही उलझाने की कोशिश करे, विचलित और प्रभावित न हों, बल्कि उसे अनसुना और उपेक्षित कर दें और आगे बढ़ जाएं।

पूरी राह में खूब सारे लोग मिलेंगे जो हमें उलझाना चाहते हैं और उलझा कर हमारा अमूल्य समय, बुद्धि आदि सब कुछ व्यर्थ खर्च करवा कर मुफ्त में आनंद पाना चाहते हैं। यही लोग हैं जो हमारे लिए हर काम में चुनौतियाँ खड़ी करते रहते हैं और मार्गान्तरण के भरपूर प्रयास करते हैं।

इनमें खूब से लोग हैं जो हमारे काम के नहीं हैं और न किसी और के काम के। न समाज के काम के हैं न देश के। आज सर्वत्र हालात ऎसे ही हैं। अपने आपको मस्त और स्वस्थ बनाना चाहने वालों के लिए सबसे बड़ा गुरु मंत्र यही है कि हम किसी से कभी न उलझें, जो उलझाने वाले हैं उनसे नज़रें चुरा कर चुपचाप खिसक लें।

कोई किसी भी विषय पर कुछ भी कहता-बकता रहे, हमें चाहिए कि उन सभी से बेपरवाह रहें और अपने लक्ष्य तथा सौंपे गए कामों को पूरी ईमानदारी से करते रहें, एकाग्रता के साथ काम करें और उनके प्रति जवाबदेह रहें जो कि हमें काम सौंपते हैं। उन्हीं की आज्ञा का परिपालन करें जिनके प्रति हम जवाबदेह हैं।

इससे कार्य में पूर्णता और गुणवत्ता के साथ समयबद्धता भी सामने आती है और असल में ये ही काम यादगार किस्म में शुमार हो पाते हैं। कार्य संपादन में तीव्रता और साख अभिवृद्धि का यह एकमात्र मूल मंत्र है।

अक्सर कई उलझनवादी मानसिकता कील बेचारगी पाले हुए लोग हमें उत्तेजित करने और प्रतिक्रियावादी बनाने के लिए तरह-तरह के कुतर्क और षड़यंत्रों का सहारा लेते हैं और इस बात के पक्के प्रयास करते रहते हैं कि हम उनकी कही गई बातों पर कोई प्रतिक्रिया दें और क्रिया-प्रतिक्रिया, सवाल-जवाब का यह दौर वह अवस्था प्राप्त कर ले जिसका कहीं कोई अंत नहीं हो।

ये तो चाहते ही हैं कि हम बुरी तरह उलझ कर रह जाएँ, हमारे अपने कामों को कर नहीं पाएं, तनावों, क्रोध और उद्विग्नताओं में जीते हुए मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खो दें और जीवन का ऎश्वर्य, आनंद तथा सुकून समाप्त हो जाए।

किसी से किसी बात पर न उलझें, अपने हाल में मस्त रहें। दुनिया के सारे शातिर और मूर्ख लोग अपनी बात को मनवाने के लिए तरह-तरह की सलाह देते हैं, उपदेशों की बरसात करते हैं, निर्देशक की भूमिका को धन्य करते रहते हैं और चाहते हैं कि हम सभी लोग वही काम करें जो ये लोग कहते हैं।

इन मूर्खों के चक्कर में अपना समय बरबाद न करें क्योंकि पहले ये मूर्ख कुतर्कों और हठ के सहारे हमें अपने स्तर से नीचे गिराते हैं और फिर प्रतिक्रियावादी बनाने के लिए पुरजोर प्रयास करते हैं।  इससे तो अच्छा है कि इन शातिरों की बातों में न आएं और जीवन की गति को बाधित न होने दें।

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- डॉ. दीपक आचार्य

 

dr.deepakaacharya@gmail.com

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