पाकिस्तान से कहानी : दीवार के पीछे

SHARE:

शौकत सिद्दीकी अचानक मेरी आंख खुल गई। करीब बारह-साढ़े बारह बजे का वक्त था। कहीं करीब ही कुत्ते जोर-जोर से भौंक रहे थे। उन दिनों पास-पड़ोस में...

image

शौकत सिद्दीकी

अचानक मेरी आंख खुल गई। करीब बारह-साढ़े बारह बजे का वक्त था। कहीं करीब ही कुत्ते जोर-जोर से भौंक रहे थे। उन दिनों पास-पड़ोस में चोरी की एक-आध घटना भी हो चुकी थी। इसलिए कुत्तों को इस तरह निरंतर भौंकने से जरा चिंता हुई। मैं शहर के जिस इलाके में रहता हूं वह किसी कदर गैर आबाद है। न सड़कों पर रोशनी का इंतजाम है न रात को पुलिस की बाकायदा गश्त होती है।

आंख खुलने के बाद मैंने सोचा कि सावधानी के तौर पर अपने घर का भी जायजा ले लूं। मैंने दरवाजा खोला और खंखारता हुआ बाहर आ गया। गुलाबी जाड़ों की रात थी, हवा में खुशगवार शीतलता थी। कुत्तों के भौंकने की आवाज घर के पिछवाड़े से आ रही थी। मैं उस तरफ चल दिया। मेरे मकान के पीछे एक खाली प्लाट है। उसके बराबर एक अधबना मकान है जो गैर आबाद होने के बावजूद रात के अंधेरे में भूतों का ठिकाना मालूम होता है। रातों को यहाँ कुत्ते बसेरा करते हैं या निर्माण हो रहे मकानों में काम करने वाले मजदूर और कारीगर इसको प्रात: आवश्यक क्रियाकर्म के लिए प्रयोग करते है। मालूम नहीं किस मनहूस का मकान

है। कभी पलट कर भी नहीं देखा कि मैं उससे अपना विरोध प्रकट कर सकूं। हां तो जब मैं पिछली दीवार की तरफ गया तो पीछे से हल्की-हल्की कानाफूसी की आवाज हुई। मैं कांपकर रह गया। दिल में कहा, लो भई आज पड़ गया चोरों से वास्ता।

इससे पहले कि मैं लपककर गाँव के किसी को जगाऊं कि इसी दौरान में चूडियों को हल्की से झनझनाहट हुई। साथ ही किसी औरत ने बहुत आहिस्ता से कहा.....' 'ये कुत्ते तो हमारे पीछे लग गये। मुझे तो डर लग रहा है, आओ उस खाली मकान में चलें। ''

' 'हां, यह ठीक है। '' आवाज मर्दाना थी।

मामले की स्थिति तो कुछ समझ में आ गयी मगर मैं चक्कर में पड़ गया कि इस वक्त इस आधी रात को यहां कौन आ सकता है। कुछ गुस्सा भी आया कि हरामजादों को कहीं और ठिकाना न मिला। मेरी ही दीवार के पीछे इनको इश्क लड़ाना रह गया था। जी चाहा कि उनको टीके, बुरा-भला कहूं लेकिन फिर इस ख्याल से बाज रहा कि अपनी भी नींद हराम होगी और दूसरों की भी, बेकार का हंगामा होगा। बहुत ज्यादा बढ़ गयी तो मामला पुलिस तक पहुंचेगा। सोचा मुझे क्या नुकसान पहुंचा रहे हैं, ' पस-ए-दीवार बैठे हैं तेरा क्या लेते हैं। ''

मैं खामोशी के साथ वापिस आकर बिस्तर पर सो गया।

अभी जरा आंख लगी ही थी कि बीवी ने झंझोड़कर जगाया।

घबराकर पूछा, ' 'खैरियत तो है। ''

जवाब मिला, 'बाहर सारा मुहल्ला इकट्‌ठा है कोई वारदात हो गयी है। '' लोगों के जोर-जोर से बातें करने की आवाजें भी मैंने सुनी।

आंखें मलता हुआ उठा, बाहर जाकर देखा, एक मकान के सामने कुछ लोग जमा थे। करीब गया तो एक मर्द और औरत नजर आये।

दोनों गर्दन झुकाये सहमे हुए खामोश खड़े थे। उनको देखते ही मैं समझ गया कि बात क्या है। औरत काला बुरका पहने हुए थी। चेहरे पर नकाब पड़ी थी। मर्द शक्ल से हरगिज नामाकूल नहीं लगता था। काले रंग की चुस्त पतलून और ऊनी स्वेटर पहने वह सीधा-सादा एक आम नौजवान मालूम होता था। लोग दोनों के इर्दगिर्द नीम दायरे में खड़े हुए इस तरह घूर रहे थे जैसे वह कोई अद्‌भुत वस्तु हो। मेरी तरह कुछ और लोग भी घरों से निकलकर वहां आ गये।

हर आने वाले की जुबान पर एक ही सवाल था-हुआ क्या, मामला क्या है? जवाब देने वाला भी एक शख्स था-लम्बा-तडंगा, नीली युनिफार्म पहने, गुलूबंद लपेटे वह बड़ी शान से अकड़ा हुआ खड़ा था। मेरा ख्याल है कि वह पावर हाउस में मिस्त्री का काम करता है। मुमकिन है कि फोर-मैन हो। कुछ भी हो, आदमी पल्ले दर्जे का शेखी बिगाड़ने वाला है। वह ठहर-ठहरकर चुटकारा लेकर ऊंची आवाज से बता रहा था-

' 'भई, हुआ यह कि मैं ड्‌यूटी खत्म करके आ रहा था। जब मैं खाली मकान

के सामने पहुंचा तो कुछ आहट मालूम हुई, दो साये नजर आये। मैं ठिठककर ठहर गया और वही डपटकर आवाज लगाई। ' 'कौन है?'' बस एकदम से दोनों निकलकर भागे। मैं पीछा न करता तो साफ निकल गये होते बल्कि यह साला तो निकल ही गया .था। वह तो रास्ते में कोई गढ़ा आ गया, कलाबाजी खाकर गिरा और मैंने फौरन दबोच लिया। बहुत हाथ-पांव मारे लेकिन मैंने टेंटवा घुटने से दबा रखा था, निकलकर कैसे जाता। यह विस्तार जैसे पहले भी बता चुका था और हर बार कंधे को उचका कर सबको इस तरह देखता जैसे अखाड़े से कुश्ती मारकर आया हो। वह बात खत्म करता तो एकदम समीक्षा शुरू हो जाती।

' 'यारो अंधेर है अंधेर, गजब खुदा का किस कदर बे-गैरती है। ''

' 'सूरत तो देखो, अच्छा-खासा भला आदमी मालूम होता. है और उसके यह करतूत।' '

' 'नहीं भई, यह तो कोई आवारा औरत मालूम होती है।' '

' 'अबे तुमकी हरामकारी करते शर्म नहीं आती। जहनुम में जाओगे जहन्नमु में। ''

' तुफ है तुम्हारी औकात पर। ''

इस लानत और फटकार के बाद ठिगना कद मुहम्मद हुसैन अपनी बारीक आवाज में बार-बार कहते, ' अजी इनको संगसार (पथराव करके मार डालना) कर देना चाहिए। इस्लाम में जूनाकारों (व्यभिचारियों) की यही सजा है। ''

जब वह कई बार यही बात कह चुके तो एक बार मैंने जलकर कहा : 'किबला! पहला पत्थर कौन मारेगा?''

बोले, ' 'आप ही से बिस्मिल्लाह हो जाय तो क्या हर्ज है। ''

मैंने कहा, ' 'जनाब फांसी के तख्ते पर चढ़ने का मेरा कोई इरादा नहीं है। आप ज्यादा मुजाहिद (सेनानी) मालूम होते हैं, आप ही से पहल हो। ''

वह एकदम जोश में आ गये, ' लीजे मैं ही शुरू करता हूं।' ' और उन्होंने वाकई पत्थर उठा लिया।

मैंने टोका, ' 'पत्थर उठाने से पहले यह भी सोच लीजिए कि अंजाम क्या होगा। जेल की कोठरी और फांसी का तख्ता, बीवी रांड बेवा. .बच्चे यतीम। '' उन्होंने फौरन पत्थर छोड़ दिये। मुझे खूंखार नजरों से घूरते हुए बोले, ' 'जरा जबान संभाल कर बात कीजिए। आप ही ऐसे बुजदिलों ने तो मुसलमानों को बदनाम किया है, जभी तो हम इस हालत में पहुंचे हैं कि इस तरह खुलेआम हरामकारी हो रही है। ''

शायद वे कुछ और भी कहते लेकिन बीच में दूसरे लोग बोल पड़े। हो भी यही रहा था.... .कोई बात शुरू करता दूसरा बीच में टांग अड़ा देता। हर शख्स अपनी हांक रहा था जितनी मुंह उतनी बातें और वे दोनों खामोश खड़े हैं, भय से सहमे हुए, सुकड़े हुए, दुबके हुए।

रात ढलने लगी थी, शीतलता बढ़ गयी थी और यह तय नहीं हो सका था कि उनके साथ क्या सलूक किया जाय। कुछ लोगों का आग्रह था कि इनको पुलिस के हवाले कर दिया जाय। मगर सवाल कई मील दूर थाने जाने का था और इससे हर शख्स कन्नी काट रहा था।

कुछ का प्रस्ताव था कि मर्द का मुंह काला किया जाय और जूते लगाये जाएं और औरत की सिर्फ चोटी काट दी जाय। कुछ और भी ऐसे ही दिलचस्प सजाएं तजबीज की गयीं। बूढ़े चढ़-चढ़ कर बोल रहे थे और जवान बड़ों के डर से खामोश थे। एकआध बार उन्होंने बात की तो उन्हें डांटकर खामोश कर दिया गया। जिनके बाप मौजूद थे उन्होंने लड़कों को डांटकर घर वापस भेज दिया था। आखिर बड़ी बक-बक झक-झक के बाद यह तय पाया कि उनसे पूछ-ताछ की जाय और इस जांच पड़ताल की रोशनी में सजा तद्‌बीज की जाय। लेकिन इस तरह ओस में लोग ज्यादा खड़े होने के हक में नहीं थे।

किसी ने मशविरा दिया कि कहीं बैठकर आराम से पूछ-ताछ की जाय। बात माकूल थी सब तैयार हो गये। मजे की बात तो यह कि कोई भी घर वापस जाता मालूम नहीं होता था। हर शख्स को दिलचस्पी थी। कुरेध थी। और उनमें मैं भी शामिल था। यह प्रस्ताव चूंकि अकबर साहब का था इसलिए उन्हीं के मकान में, जो करीब ही था, बाहर के बरांडे में सब लोग इकट्‌ठे हो गए। अंदर से कुर्सियां आ गयीं। बैठना नसीब हुआ तो लोगों में एक माकूलियत भी पैदा हो गयी औरत को जरा दूर एक कोने में बैठा दिया गया और मर्द से सवाल किये जाने लगे।

डा. मिर्जा ने शुरूआत कि उन्होंने किसी कदर नर्मी से पूछा। ' 'मर्द, तुम इस मुहल्ले के तो नहीं मालूम होते हो। यह बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है, कहां रहते हो, क्या करते हो? और यह औरत कौन है? बीवी तो मालूम नहीं होती।' '

किसी ने बीच में लुकमा दिया, ' तोबा कीजिए, बीवी के साथ तो कोई यह अनुचित हरकत करता है। ये साहब कि जिनका नाम शरीफ अहमद है, मेरे घर से कुछ ही फासले में रहते हैं। इन्होंने अभी नया-नया मकान बनवाया है। किसी ऐसे फर्म में मुलाजिम है जहां दूसरे अलाउंसों के साथ मकान का एक मुकर्रर किराया भी मिलता है। अपने मकान में रहने के बावजूद दफ्तर से इसका किराया भी उसूल करता है। मकान बीवी के नाम है। इस भय से कि कहीं भेद न खुल जाय। बीवी के लिए शौहर के खाने में किसी छक्कन खान का नाम लिखवा दिया। वैसे बड़े परहेजगार आदमी हैं। मैं हर रोज इनको पाबंदी से मस्जिद की ओर जाते हुए देखता हूं। ''

शरीफ अहमद का जिक्र तो यूं ही बीच में आ गया। अब उस आदमी का हाल सुनिए। उसने किसी सवाल पर कोई जवाब नहीं दिया, सिर झुकाये खामोशी से बैठा रहा। बहुत आग्रह किया गया तो बड़ी नम्रता से बोला-

' 'जनाब, गलती हो गयी। माफ कर दीजिए। आप सबसे माफी मांगता हूं तोबा

करता हूं।' ' उसने दोनों हाथ जोड़ दिये।

मिस्त्री जी, जिन्होंने दोनों को पकड़ा था, फौरन बोल पड़े, ' 'माफी तो तुमने हमसे उसी वक्त मांगी थी। इस तरह काम नहीं चलेगा, साफ-साफ बताओ।' ' वह आदमी खामोश हो गया, कोई जवाब नहीं दिया। अचानक फियाज खान ने उठकर उसके मुंह पर एक जोरदार थप्पड़ लगाया और गरजकर बोले- ' 'बताता है कि साले के और एक लगाऊं। '' उसकी आंखों में आसू भर आये, बोला, ' 'आप क्यों मार रहे हैं, मैंने उसका क्या बिगाड़ा है ?' '

फियाज खान पुलिस के रिटायर इंस्पेक्टर हैं, जरा न पसीजे, एक और हाथ रसीद किया। वह बिलबिलाकर अपना गाल सहलाने लगा।

फियाज खान ने हम सबको इस तरह प्रशंसा चाहने वाली नजरों से देखा जैसे कह रहे हों कि देखो इस तरह पूछताछ की जाती है। डॉक्टर साहब ने एक बार फिर अपना सवाल दोहराया, ' 'अब तो बता दो कि तुम कौन हो, यहां कैसे आये, क्यों आये?''

फियाज खान ने उसको डांटा- ' 'सच-सच बताना वर्ना मार-मारकर सुअर बना दूंगा।' '

वह आदमी आहिस्ता से बोला, ' 'मेरा नमा असलम है। दफ्तर में क्लर्क हूं।' '

पूछा गया, ' शादी हो गयी तुम्हारी?''

उसने इनकार में गर्दन हिला दी।

अकबर साहब ने कहा, ' 'तो भले आदमी, शादी करके घर क्यों नहीं बसा लेते। इस खुराफात में क्या रखा है, अंत भी खराब और दुनिया में भी मुंह काला। '' वह बोला, ' 'आप ठीक कहते हैं, मेरी मां और दूसरे रिश्तेदार भी यही कहते हैं मगर बात यह है.. ..।

किसी ने बीच में बात काट दी, ' 'क्या बकता है, तुमको औरतों के साथ अवारागर्दी में मजा आता है। ''

' 'नहीं जनाब, यह बात नहीं।' '

फियाज खान ने त्योरी पर बल डालकर पूछा, ' 'फिर क्या बात है, सच-सच

बता।'

वह बताने लगा, ' 'देखिए, एके सौ पचास रुपये तो कुल मेरी तनखाह है, इसमें से पचास रुपये हर महीने अपनी मां को भेजता हूं। उनके और कोई सहारा नहीं। मेरे बाप की मृत्यु हो चुकी है। आप जानते हैं कि कराची में मामूली से मामूली मकान 1०० रु. से कम नहीं मिलता। एक दोस्त के साथ किसी न किसी तरह गुजर-बसर कर रहा हूं।' '

फिर कोई बीच में बोल पड़ा। ' अमा साफ झूठ बोल रहा है। यह तो कुछ और ही मामला मालूम होता है।' '

पूछा, ' 'इस औरत को भगाकर लाये हो?''

उसने जवाब दिया। ' 'जी नहीं। ''

किसी ने लुकमा दिया, ' 'तो फिर इसका भड़वा होगा। '' इस पर बाज लोगों बांछें खिल गयीं।

डॉक्टर साहब ने पूछा, ' 'यह औरत कौन है?''

वह बड़े इत्मीनान से बोला, ' 'मालूम नहीं।' '

फियाज खान फिर गरजे, ' 'अबे फिर झूठ बोला, लगाऊं दो-एक और.. .' ' ' 'मैं आपसे सच कह रहा हूं। ''

फियाज खान को अब तो जलाल आ गया। इससे पहले कि वह हाथ उठाए,

डॉक्टर साहब फौरन बोल पड़े, ' 'फिर वह औरत तुम्हारे साथ कैसे आयी, ठीक-ठीक बताओ, वर्ना और दुर्गति बनेगी। ''

वह कहने लगा, ' 'देखिए बात यह है कि मैं 1० बजे के करीब एक दोस्त से मिलने रेलवे स्टेशन गया था। वह रेलवे में क्या करता है, मुझे मालूम नहीं। वहीं यह औरत उसको मिल गयी। स्टेशन से जरा हटकर फुटपाथ पर खड़ी किसी आदमी से बात कर रही थी। मुझे आता देखकर वह आदमी एकदम आगे बढ़ गया। मैं उसके पास से गुजरा तो मुझे महसूस हुआ कि वह मुझको देखकर मुस्करायी थी। मैं आगे चला गया फिर जाने क्यों वापिस आ गया। ''

किसी ने आवाज लगायी, ' 'उस्ताद यह नहीं कहते कि जरा ठरक लगाने को जी चाहा। ''

दूसरी तरफ .से आवाज आयी। ' अमा बात तो पूरी सुनने दो। हां भई। तो फिर क्या हुआ?''

अब उसकी बात में लोगों को दिलचस्पी पैदा होने लगी थी।

वह बताने लगा, ' 'मैंने करीब जाकर उससे पूछा-कहां जाओगी?''

वह बोली, जहां ले चलो। बस फिर हम दोनों साथ-साथ चलने लगे। उसने हमसे चालीस रुपये मांगे और बीस रुपये पेशगी भी ले लिये। हम देर तक इधर-उधर सड़कों पर घूमते रहे और जब एक पुलिस वाले को अपनी तरफ घूरते देखा तो सोचा कि इस तरह सड़कों पर घूमना खतरनाक है। मैंने फौरन एक रिक्शा ठहराई और दोनों उस पर सवार हो गये। मगर उसको लेकर जाता कहां। दफ्तर के एक मिलने वाले के यहां पहुंचा तो उसने गालियां देकर भगा दिया। जिस शख्स के साथ रहता हूं वह बाल-बच्चों वाला आदमी है। उसको जरा भी सन्देह हो जाय तो खड़े-खड़े घर से निकाल दे। ''

सब बड़ी दिलचस्पी के साथ चुपचाप उसकी बातें सुन रहे थे कि अचानक अकबर साहब बोल पड़े, ' 'तो जब मुंह ही काला करना था तो किसी होटल में कमरा ले लिया होता। यहां तो होटलों की कमी नहीं। ''

वह बोला, ' 'मेरे पास इतने रुपये नहीं थे। ''

किसी ने पूछा, ' 'कितने रुपये हैं।' '

' 'पचास। ''

डॉक्टर साहब ने कहा कि मां को भेजने के लिए तो नहीं थे।

उसने सिर झुकाकर आहिस्ता से कहा, ' 'जी हां।' '

एक साथ कई आवाजें विभिन्न सीमाओं से उभरीं।

' 'भई, हद हो गयी। ''

' 'लानत है इस शख्त पर। ''

' 'इसको तो वाकई सजा मिलनी चाहिए।' '

किसी ने ऊंची आवाज में उसको सम्बोधित करके कहा, ' 'भई, तुम आगे बताओ।' '

वह बताने लगा, ' 'कोई बात समझ में नहीं आयी तो हम शहर से निकल कर इधर आ गये। यहां आबादी भी कम है और सड़कों पर अंधेरा भी। क्या करता, बीस रुपये तो उसूल करने थे।' ' अब जरा मुस्करा कर बात करने लगा।

किसी ने तुरन्त कहा, ' 'तो तुमने किये क्या वे रुपये उसूल।' '

वह बड़े भोलेपन से बोला, ' 'रिक्शे का किराया जो कि तीन रुपये दिये थे, वह भी वसूल नहीं हुए।' '

ठिगने मुहम्मद हुसैन इस बात पर तड़पकर बोले, ' लाहौलवला कूबत, क्या बेगैरती की बातें हो रही हैं और इस बेहया को देखिए कि किस बेशर्मी के साथ बता रहा है।' ' कुछ और लोगों ने भी फटकारना शुरू कर दिया।

रात बहुत ज्यादा हो चुकी थी और उस शख्स की बात में भी अब कुछ नहीं रह गया था। डॉक्टर साहब ने सिफारिश की, ' 'मेरा ख्याल है अब इसको जाने दिया जाय, इसको काफी सजा मिल गयी। ''

शरीफ अहमद कहने लगे, ' 'क्या बातें कर रहे हैं डॉक्टर साहब, इन लोगों को सजा कहां मिली। इनको जरूर कुछ न कुछ सजा मिलनी चाहिए।' '

डॉक्टर साहब ने जवाब दिया- ' 'यह बदनामी, ये लानत, फटकार, कुछ कम सजा है? भले आदमी होंगे तो आइंदा ऐसी हरकत नहीं करेंगे।' '

डॉक्टर साहब ने फिर भी हथियार नहीं डाले और कहने लगे, ' 'पुलिस के हवाले करने से क्या होगा। ज्यादा से ज्यादा कुछ जुर्माना हो जाएगा और अखबारों में खबर छप जाएगी कि एक नौजवान औरत पब्लिक प्लेश पर चुम्मा-चाटी करते हुए पकड़े गये और जहां तक थाने जाने का सवाल है, मैं तो अब घर जाकर सो जाऊंगा। मैं थाने-वाने नहीं जाता।' '

जरा देर के लिए सन्नाटा छा गया फिर शरीफ अहमद की आवाज उभरी। ' 'मुझे तो सबसे बड़ा एतराज यह हे कि यह शरीफ लोगों की आबादी है। यह यहां

इस हरामकारी के लिए क्यों आया ?' '

मैं जो तमाम समय खामोश बैठा रहा था मेरी तो शामत आई, बोल पड़ा, ' 'जनाब, मेरे घर की दीवार के पीछे यह सारी बेहूदगी हुई मगर में अब इनसे क्या कहूं? न जाने रात के अंधेरे में किस-किसकी दीवार के पीछे क्या कुछ होता है। मुझे तो इन्होंने कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। न मेरी नींद खराब की न मेरे घर में सेंध लगायी।' '

शरीफ अहमद मेरी बातों पर चिढ़ गये, ' 'आपको इनसे बड़ी हमदर्दी मालूम होती है। ऐसे ही हमदर्दी है तो अपने घर के अन्दर बुला लिया होता।' '

उनकी इस बात पर मैं जल गया लेकिन उन्होंने इस पर भी सब्र न किया। बड़े कटाक्ष के साथ बोले, ' 'आइन्दा बुला लीजिएगा, वैसे यह धन्धा बुरा नहीं है, मुनाफा ही मुनाफा है।' '

यह कहकर उन्होंने जोर का ठठ्‌ठा मारा। मैंने अपना पैर जरा ढीला किया और इससे पहले कि उनका कहकहा खत्म हो, जूता उतार कर बगैर किसी भूमिका के तड़ातड़ दो उनकी गंजी चूंदिया पर जमा दिया। तीसरा हाथ उठाया था कि लोगों ने हाथ पकड़ लिया और जबरदस्ती जूता छीनकर फेंक दिया। फिर क्या था। वह आपे से बाहर हो गये। लड़ने-मरने पर तैयार हो गये। एक हंगामा शुरू हो गया। कभी वह मुझे मारने के लिए झपटते, कभी मैं उन पर लपकता। कई बार हम गुत्थमगुत्था होते-होते रह गये। हर बार लोगों ने रोक लिया। अच्छी-खासी अफरातफरी मच गयी।

जब जरा मामला ठंडा हुआ तो पता चला कि इस हंगामे में वह दोनों चुपके से निकल भागे मगर मैं बैठे-बैठाये मुश्किल में फंस गया।

शरीफ अहमद ने दूसरे ही दिन सिटी कोर्ट में मजिस्ट्रेट के रूबरू आठ आने के स्टैम्प पर हलफनामा दाखिल किया। दो गवाह पेश हो गये और मारपीट करने के इल्जाम में मेरे खिलाफ काबिल-ए जमानत वारंट जारी हो गये। अभी मुकदमे की पहली पेशी है जिसमें जमानत देकर आया हूं बाकायदा सुनवाई बाद में होगी। अब चूंकि यह मामला अदालत के सामने है इसलिए यह बात यहीं छोड़े देता हूं। कुछ और कहूंगा तो अदालत के अपमान के आरोप में धर लिया जाऊंगा

--

पाकिस्तान की सर्वश्रेष्ठ उर्दू कहानियाँ, संपादक नंद किशोर विक्रम, साक्षी प्रकाशन, दिल्ली से साभार

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: पाकिस्तान से कहानी : दीवार के पीछे
पाकिस्तान से कहानी : दीवार के पीछे
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDU2HRm-o66XkIUiaWFfg5sS82sh_rz4iMD1Lg3GfGyo5N74q4O_8FaYv51lLOdgeYvKxhxY8hc8rJt5vesGrcPbWqL1h2rIoKvrz23gCATl2TSQ2LiA06VKkhpbtJduFphhto/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDU2HRm-o66XkIUiaWFfg5sS82sh_rz4iMD1Lg3GfGyo5N74q4O_8FaYv51lLOdgeYvKxhxY8hc8rJt5vesGrcPbWqL1h2rIoKvrz23gCATl2TSQ2LiA06VKkhpbtJduFphhto/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/08/blog-post_62.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/08/blog-post_62.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content