डॉ. दीपक आचार्य आज का दिन दुनिया भर के तमाम गुरुओं के नाम समर्पित है। चाहे गुरु जीवित हैं या दिवंगत। सृष्टि में अब तक जो-जो भी, जित...
डॉ. दीपक आचार्य
आज का दिन दुनिया भर के तमाम गुरुओं के नाम समर्पित है। चाहे गुरु जीवित हैं या दिवंगत। सृष्टि में अब तक जो-जो भी, जितने भी गुरु हुए हैं उन सभी का पावन स्मरण, आदर-सम्मान और श्रद्धा निवेदन का पर्व है। जो दिवंगत हो गए हैं उनके नाम कुछ करें, न करें, उन्हें कुछ नहीं पड़ी है, वे तो मोक्ष पा गए हैं। लेकिन जो विद्यमान हैं उन समस्त गुरुओं को हर भांति प्रसन्न करने और प्रसन्न बनाए रखने का दायित्व शिष्यों पर है।
जिस अनुपात में गुरुओं का जमघट बढ़ रहा है उसी अनुपात में शिष्यों का आंकड़ा भी सारे पुराने कीर्तिमान तोड़ चुका है। अब हमारे सामने दो ही लक्ष्य रह गए हैं। गुरुओं की जमात चाहती है कि उनके शिष्यों की संख्या में निरन्तर बढ़ोतरी होती रहे ताकि शिष्यों की भीड़ को लेकर होने वाले हर शक्ति परीक्षण में बाजी उनके हाथ में रहे।
और शिष्यों का मानना है कि जिसे उन्होंने बनाया है वही असली और सिद्ध गुरु है, उसके आगे न कोई दूसरा गुरु या भगवान हो सकता है, और न कोई इंसान। जो शिष्य बन चुके हैं वे भी, और उनके अपने-अपने गुरु भी परस्पर एक दूसरे को धन्य मान रहे हैं कि वे सभी गुरु-शिष्य परंपरा में शामिल होकर स्वर्ग या मोक्ष जाने वाले पुष्पक विमानों का टिकट आरक्षित करवा चुके हैं।
तीसरे बचे हमारी तरह के लोग, जिन्हें न शिष्य बनना पसन्द है, न कोई गुरु करना। असल बात तो यह है कि कोई ऎसा दिखा ही नहीं जो गुरु बनने के लायक हो। जिस तरफ डग बढ़ाते हैं वहाँ धर्म और सदाचार की चकाचौंध दिखती है फिर पीछे छाया हुआ अंधकार भी दिख जाता है।
जो शिष्य बन चुके हैं वे तो दूसरों को अपने-अपने गुरुओं को महान, चमत्कारी, भगवान और महासिद्ध बता-बताकर शिष्य बनाने और संख्या बढ़ाने के धंधे में जुटे हुए हैं ही, हर गुरु भी चाहता है कि जो बचे-खुचे रह गए हैं वे भी उनकी ओर आकर्षित हों और दीक्षा पाकर शिष्य बन जाएं।
तमाम गुरु और शिष्य चिल्ला-चिल्ला कर कहते रहे हैं, भरमाते रहे हैं कि गुरु बिना ज्ञान नहीं, गुरु बिना मोक्ष या स्वर्ग नहीं, और जिसने मनुष्य जन्म पाकर गुरु नहीं बनाया, उसका जीवन व्यर्थ चला गया। इस चक्कर में आकर भी बहुत सारे लोग गुरु बना रहे हैं और चेले बनकर अपने मोक्ष मार्ग की प्रीपेड़ सिम ले चुके हैं।
इन्हीं में एक किस्म उन शिष्यों की भी है जो हर साल गुरु बदलते रहते हैं। किसी आकर्षण या मोहपाश में आकर एक को गुरु करते हैं, फिर दूसरे किसी स्वार्थ के सामने आ जाने पर या कि साल भर में गुरु की असलियत सामने आ जाने पर दूसरे गुरु से दीक्षा ले लेते हैं। इस तरह गुरुओं को बदलने का दौर जिन्दगी भर यों ही चलता रहता है। बावजूद इतने सारे सिद्ध गुरुओं के आश्रमों और मठों से होकर आने के अन्त में पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता। पूरे जीवन का निचोड़ यही पाते हैं कि इतना भटकते रहने के बावजूद कोई गुरु नहीं मिला।
आजकल गुरुओं की स्थिति सभी तरह से विचित्र हो गई है। हर कोई गुरु होना, दिखाना और कहलाना चाहता है क्योंकि यही एक मार्ग ऎसा है जिसमें न कोई पूंजी लगती है, न किसी प्रकार के ताम-झाम की जरूरत। थोड़ी सी चमत्कारिक बातें कर ली, भगवान के नाम पर कुछ भी कह लिया और फिर सब कुछ शुरू। आदर और सम्मान भी पूरा और श्रद्धा भी अपार।
हमारे पुराणों और धर्म शास्त्रों में गुरु के जो लक्षण बताए गए हैं उनमें से कितने लक्षण अपने-अपने गुरुओं पर खरे उतरते हैं, इसी को जान लिया जाए तो हमें गुरुओं का असली ज्ञान हो जाएगा। गुरु हमेशा मार्गद्रष्टा रहा है, मार्ग अवरोधक नहीं। कुछ अपवादों को छोड़ कर आज गुरुओं ने धर्म, नीति और शास्त्रों की अवज्ञा करनी शुरू कर दी है।
गुरु भगवान को पाने के लिए भगवान का मार्ग दिखाने वाला होना चाहिए, सत्य और धर्म की राह पर चलने की सीख देने वाला होना चाहिए और ऎसा मार्ग दिखाए कि व्यक्तित्व आदर्श बने तथा दूसरे लोग उनका अनुकरण करें। आज कौन से गुरु अच्छा मार्ग दिखा रहे हैं। बहुत सारे गुरु भ्रष्ट राजनीतिज्ञोें, रिश्वतखोरों, व्यभिचारियों, भूमाफियों, शराब माफियाओं, काले धंधे करने वालों, समाज के निकृष्ट माने माने जाने लोगों को प्रश्रय दे रहे हैं। इन्हीं धंधों से जुड़े उनके चेले बहुतायत में हैं।
गुरु ईश्वर से अपना संबंध भुला कर नेताओं और अपराधियों का सान्निध्य पाकर गौरवान्वित हो रहे हैं। बहुत सारे गुरुओं ने अपने आपको भगवान और सिद्ध बतातेे हुए लोगों को ईश्वरीय मार्ग से भटका कर खुद के पास रोक लिया है ताकि ये भगवान के पास जाने का रास्ता छोड़ कर गुरु के इर्द-गिर्द भटकते रहें।
एक जमाना था जब शिष्य समर्थ गुरु पाने के लिए जंगलों, वनों और कंदराओं में भटकते हुए आश्रमों तक पहुँचते थे और वहाँ भी कठोर परीक्षा के बाद गुरु उन्हें स्वीकार करते थे। अब हर तरफ गुरु भटक रहे हैं शिष्यों की तलाश में, तभी तो बड़े-बड़े विज्ञापनों, होर्डिंग और पोस्टर वार चल रहे हैं जैसे कि गुरुजी कोई चुनाव ही लड़ रहे हों और प्रचार अभियान यौवन पर हो।
किसी भी ऋषि-मुनि या पुरातन परंपरा के गुरुओं ने वो नहीं किया जो आज के गुरु कर रहे हैं। असल में अब शिष्यों या गुरुओं की गुणवत्ता का पैमाना संख्या बल ही रह गया है चाहे शिष्य कैसे भी हों, क्या फर्क पड़ता है जब गुरु भी कौनसे अच्छे हैं। गुरु पूर्णिमा आदि गुरु वेद व्यास के प्रति श्रद्धा समर्पित करने का पर्व ही है। खुद को पूजवाने, दान-दक्षिणा और उपहार लेने वाले गुरुओं या पैसे लेकर पढ़ाने वालों का इस पर्व से कोई संबंध नहीं है।
आज गुरु पूर्णिमा गुरुओं और शिष्यों के लिए शक्ति परीक्षण और संख्या बल बढ़ाने का वार्षिक पर्व हो चला है जहाँ जितनी ज्यादा भीड़, जितने ज्यादा वीआईपी, जितनी लम्बी आलीशान वाहनों की कतार, उतना वह गुरु सफल। इसी सफलता के अति उत्साह को साल भर तक भुनाया जा सकता है।
आज का गुरुपूर्णिमा उत्सव भारत वर्ष के लिए महान अवसर है जब कोना-कोना गुरु-शिष्य परंपरा के गीत गुंजा रहा है। सभी गुरुओं और चेले-चेलियों को हार्दिक शुभकामनाएं। जिन्होंने गुरु नहीं बनाया है उन सभी के लिए महान अवसर है गुरु बनाने का, दीक्षा पाने का। गांव-शहर और महानगर के हर कोने में, मन्दिरों, मठों और चौराहों पर, हर कहीं ईश्तहार टंगे हैं, वहाँ भी कोई ढंग का गुरु न दिखाई दे तो अखबार तो भरे पड़े हैं गुरुओं के स्तुतिगान और विज्ञापनों से।
चूके नहीं, किसी न किसी को बना ही डालें आज अपना गुरु। अच्छा न लगे तो किसी भी वक्त बदल डालने की सुविधा हमारे पास है ही, गुरु बदलने और नए-नए गुरु बनाने से हमें कौन रोकने वाला है। बहुत से लोग हैं जो हर साल गुरु बदलते रहते हैं और हर गुरु का आशीर्वाद पाकर जीवन धन्य कर रहे हैं। गुरु से कोई फायदा भले न हो, अपने काम-धंधे को बरकत देने लायक हर किस्म के धंधेबाज हर गुरु के पास रहा ही करते हैं।
बोलो अपने-अपने गुरुओं की जय, उनके तमाम किस्मों के शिष्यों की भी जय। सभी को गुरुपूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान श्री वेदव्यास के प्रति पावन श्रद्धा निवेदन।
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- डॉ. दीपक आचार्य
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