डॉ0 दीपक आचार्य आज रक्षाबंधन है। यह पर्व केवल भाई-बहनों से संबंधित ही नहीं है बल्कि रक्षाबंधन अपने आप में कई सारे व्यापक अर्थ समेटे ह...
डॉ0 दीपक आचार्य
आज रक्षाबंधन है। यह पर्व केवल भाई-बहनों से संबंधित ही नहीं है बल्कि रक्षाबंधन अपने आप में कई सारे व्यापक अर्थ समेटे हुए व्यष्टि और समष्टि, व्यक्ति, परिवेश और राष्ट्र सभी के लिए महत्त्वपूर्ण है।
हमने इस पर्व को केवल भाई-बहन के संबंध तक सीमित करके रख दिया है और इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि इस पर्व के माध्यम से जो विराट अर्थ वाले संदेश जन-जन से लेकर सर्वत्र संवहित होने चाहिएं वे नहीं हो पा रहे हैं। सिर्फ बहनों की रक्षा और भाइयों के दायित्व का बोध कराने वाला पर्व होकर रह गया है राखी।
लोक परंपरा में रमे रहकर उत्सवी उल्लास पाने की स्वार्थ भरी और संकीर्ण मनोवृत्ति ने हमारे तकरीबन सारे पर्वों को स्थूल अर्थों से जोड़ दिया है। इसका कारण यह भी है कि हम सामुदायिकता से व्यक्तिवाद तक, राष्ट्रवाद से इकाई तक की संकीर्णता की ओर निरन्तर ऎसे बढ़ते चले जा रहे हैं कि हमें देश या देशभक्ति, राष्ट्र रक्षा, सीमाओं की सुरक्षा आदि की कोई चिंता नहीं है।
रक्षाबंधन का स्पष्ट संदेश है मर्यादाओं और परंपराओं की रक्षा के लिए व्यक्ति-व्यक्ति का समर्पण और आत्मीय सहयोग। इसमेंं इकाई से लेकर सम्पूर्ण राष्ट्र तक की वे सारी बातें शामिल हैं जो किसी समाज को संगठित और विकसित करते हुए पूरे राष्ट्र को मजबूती से बाँध देने का सामथ्र्य रखती हैं।
यह कार्य तभी संभव हो पाता है जबकि देश की हर इकाई अपने आपमें सशक्त हो और एक-दूसरे से अभेद व आत्मीय रूप से जुड़ी हुई हो। रक्षाबंधन का यह पर्व राष्ट्र रक्षा, कुल मर्यादाओं की रक्षा, बहन-बेटियों की रक्षा और अपने संस्कारों, संस्कृति की रक्षा आदि सभी पहलुओं से जुड़ा हुआ है। इसे हम सिर्फ बहनों की रक्षा से जोड़कर देखने लगे हैं जो कि एक स्थूल रक्षात्मक संदेश है।
बहन-बेटियाँ हमारी राष्ट्रीय अस्मिता, सृजनक्षमता और पवित्रता का पर्याय हैं जिनकी रक्षा वंश परंपरा से लेकर संस्कारों और आनुवंशिक गुणों की निरन्तर प्रवहमान धाराओं के अक्षुण्ण और विशुद्ध प्रवाह को बनाए रखने के लिए जरूरी है।
मर्यादाओं से लेकर पिण्ड मात्र की रक्षा का यह पर्व हमारी सभी प्रकार से सुरक्षा करने का मार्ग प्रशस्त करता है। तभी तो दैवीय आराधना से प्राप्त दिव्य ऊर्जाओं भरे अभिमंत्रित और कल्याणकारी भावनाओं से परिपूर्ण तंतुओं को रक्षासूत्र के रूप में परिवर्तित कर बाँधने की सनातन परंपरा चली आ रही है।
यह रक्षासूत्र जीव और जगत सभी तत्वों की रक्षा के निमित्त बांधा जाता है। इसमें व्यक्तियों से लेकर हमारे आस-पास रहने वाले सभी प्राणियों, वाहनों, अस्त्र-शस्त्रों आदि सभी को रक्षा सूत्र में आवेष्टित करने की भारतीय परंपरा अपने आप में सर्वरक्षा का बोध कराती है।
केवल बहनों के हाथों से अपनी कलाइयों में राखी बंधवा देने मात्र और बहनों की रक्षा का संकल्प लेने से ही रक्षाबंधन का दायित्व पूरा नहीं हो जाता। सहोदराएं ही अपनी बहन नहीं मानी चाहिएं बल्कि अपने क्षेत्र में जो भी स्ति्रयां हैं उन्हें भी माँ-बहन-बेटियाँ मानकर उन सभी की रक्षा के प्रति हमेशा सजग और सक्रिय रहने का संकल्प साकार करना ही रक्षाबंधन का मर्म है।
हमारे लिए ये सभी सम्माननीय और आदरणीय हैं तथा इन सभी की रक्षा का दायित्व हम पर है। अपनी बहन के हाथों रक्षासूत्र बंधवा लेना तो केवल प्रतीक है। इसका संबंध केवल अपनी बहन से नहीं होकर जगत की सभी बहनों से है और इन सभी की रक्षा हमारा परम कत्र्तव्य है।
बात सिर्फ बहनों की रक्षा तक ही सीमित नहीं है। अपने समाज, क्षेत्र और राष्ट्र को सभी प्रकार के भीतरी और बाहरी खतरों से बचाना और रक्षा करना हमारा प्राथमिक फर्ज है। भारतमाता की रक्षा करना उन प्रहरियों का काम ही नहीं है जो सीमाओं पर तैनात हैं। उनसे कहीं अधिक और अहम् जिम्मेदारी हमारी अपनी है।
देश भीतरी शत्रुओं और उन देशद्रोहियों से अधिक त्रस्त है जो अपनी कुर्सियों, पदों, कदों, वैभव और शक्तिशाली जिम्मेदारियों को बचाए रखने मात्र के लिए देशवासियों को भ्रमित करते रहे हैं, दुनिया में भारत की गरिमा और गर्व को ठेस पहुँचाते रहे हैं और राष्ट्र की बजाय अपने आपको बचाने के लिए स्वयंभू स्थापित कर राष्ट्रीय अस्मिता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
राष्ट्रीय चरित्र, स्वाभिमान, भारतीय संस्कारों व परंपराओं की हत्या करते हुए जो लोग देश की जड़ों को खोखला करने में दीमक की तरह लगे हुए हैं, रोजाना अनर्गल बयानबाजी, घृणित दुष्प्रचार कर रहे हैं, दंगे-फसाद और आतंक का सहारा ले रहे हैं, संविधान का हनन कर रहे हैं, शत्रु देशों के प्रति स्वामीभक्ति दर्शा रहे हैं, धर्म की विकृत परिभाषाओं का सहारा लेकर राष्ट्रधर्म को भुला बैठे हैं, आतंकवाद को प्रश्रय देकर पनपा रहे हैं, हिंसा के ताण्डव के सहारे साम्राज्यवाद के बीज बो रहे हैं, वे सारे लोग देश के शत्रु हैं और इनसे देश को बचाना, देशवासियों की रक्षा करना हमारा फर्ज है।
देश की संस्कृति मटियामेट करने वाले, विदेशी कंपनियों के जरिये अर्थ व्यवस्था को तहस-नहस कर पराश्रित करने वाले, मैकाले की शिक्षा पद्धति के सहारे देश को बर्बादी की ओर धकेलने वाले ये सारे के सारे लोग देशद्रोही हैं।
जनता से उगाहे गए पैसों पर ऎय्याशी करने वाले, गरीबों के नाम पर घड़ियाली आँसू बहाने वाले, भारतीय जनता से पैसे लेकर विदेशी बैंकों में जमा करने वाले, भ्रष्ट, बेईमान, चोर-उचक्के और तस्कर, मुनाफाखोर और सभी तरह के नालायक लोग देश के प्रत्यक्ष गद्दार होने के साथ ही देश और देशवासियों के शत्रु हैं। इन सभी से रक्षा करने के संकल्पों को भी याद दिलाता है हमारा रक्षाबंधन पर्व।
अब समय आ गया है कि जब हम सभी को मिलकर समाज और देश के शत्रुओं को चुन-चुनकर ठिकाने लगाने के लिए आगे आने की आवश्यकता है। रक्षाबंधन के असली मर्म को समझें और रक्षा सूत्रों का घेरा इतना व्यापक बनाएं कि देश और देशवासी हर प्रकार से सुरक्षित और संरक्षित महसूस करते हुए तरक्की और सुकून के नए आयामों का आस्वादन करते रहें। सभी को रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ...।
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- डॉ0 दीपक आचार्य
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