अक्षय शर्मा की कविताएँ - मेरी कहानियाँ जिनमें पूर्णविराम कम है !

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  1) -----------------------------x--------बिम्ब और प्रतिबिम्ब----------x------------------------------ हाँ, अब मैं तुम्हें ठीक से देख पा ...

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1)
-----------------------------x--------बिम्ब और प्रतिबिम्ब----------x------------------------------

हाँ,
अब मैं तुम्हें
ठीक से देख पा रहा हूँ !
बिम्ब हूँ या प्रतिबिम्ब
ये तो ठीक से याद नहीं
पर ये पता है
मैं हिल रहा हूँ जैसे
भभकती सड़क के उस पार
सारे दृश्य हिल रहे हैं |
स्पंदित होता मेरा ह्रदय
हथेली को आ गया है
मैं देख रहा हूँ ठहरे कुएं की
जलसतह पर हिलते बिम्ब को
मैं हिल रहा हूँ जैसे छोटी सूईं
घूम रही है अनवरत समानांतर
अनंत सूईयों जैसी इकसार आवृत्त |
सुनता हूँ ढोल जैसी थाप और
घेरा बना गुबार
धूआँ नाच रहा है और
मैं खड़ा हूँ बीचों-बीच
एक नायक की तरह !
खलनायक था मैं,
क्यूंकि मेरी जेब में थी
अनेकों लाशें और रिटर्न टिकट
एक अदृश्य दर्पण सा है जिसमें
धुंए के बीच सना पड़ा मैं
तुमको ठीक से देख पा रहा हूँ !
मैं बिम्ब हूँ या प्रतिबिम्ब ?

 

2)
-----------------------------------x-----भावनाओं के मानवीय अधिकार-----x-----------------------------
चंद रंगीन यादों के टुकड़े
बंद पड़े हैं चारदीवारों के भीतर
मंद परावर्तित निर्जीव आकार लिए,
जैसे कलाईडोस्कोप के भीतर
यादों के टुकड़े बना रहे हैं
जीवन की प्रतिकृति घूम-घूमकर,
हर-एक अंश निरर्थक है स्वतंत्र रूप में
मूर्तिकार के आहते में रखे हुए पुतलों जैसा
प्राण-प्रतिष्ठा की अवहेलना करते हुए,
यादों और भावनाओं का चूरा उड़ता जाता है
समय के धोरों की तरह निस्संदेह-निर्विलंब,
उन पर कोई कोर्ट-कचहरी नहीं करता क्यूंकि
भावनाओं के मानवीय अधिकार नहीं होते
किया नहीं जाता स्मृतियों का सामजिक विश्लेषण,
और परिवर्तित नहीं होता
यादों का परिवाद-क्षेत्र
मेज़ें थप-थपाकर, क्यूंकि
जीवन एक आग्रह की विषय-वस्तु है!

 

3)
-------------------------------------------x------------------------------------x---------------------------------------
उस तस्वीर के रंग
बहने लगे हैं बरस कर,
पिघल कर, ठहर गए हैं,
गहने लगे हैं गुज़रे जो
प्रहर गए हैं सहम कर,
अनजाने वहम लगे हैं,
ऊंची मीनारों की दीवारों पे
चिपके शीशे चहक रहे हैं,
खूनों में लथपथ दर्दनाक
प्रेम के थक्के, जमे हुए हैं
नशीली मृगमरीचिका के नक़्शे
रेत के धोरों में भरे हुए
हरे खेतों में लहर रहे हैं,
अश्रु-स्वेद-रक्त के वज्र से
दब कर युद्ध-प्रेम मर रहे हैं |


4)
--------------------------------------------x--------------प्रेम पत्र--------------x-----------------------------
पता है इस बार क्या हुआ ?
जब डाक बाबू ने दरवाज़ा खटका
धड़कना बंद सा हो गया ह्रदय का,
स्थान धमनियों की रक्त कणिकाओं का
स्मृतियों के मायाजाल ने ले लिया,
देह पर स्वर-व्यंजनों का थक्का जम गया
शरीर में यूँ बना रोंगटों का नक्शा
मानो ब्रेललिपि में हो वह नाम लिक्खा,
और लेखनी की वो काल्पनिक स्याही
अंतर्मन की केशिकानली बन प्रवाही,
उद्गम हुआ इन्द्रियों में एक द्रव्य का
अनुभव हुआ प्रतिस्पर्धा के अंत प्रहर सा,
मैं उठा ख़ुशी का आधा निवाला तोड़
आत्मनिर्मित रोमांच को ख़ुद ही में मोड़,
डाक बाबू के साथ में रखा सुनहरा पत्र
एक क्षण को ले गया मुझे अन्यत्र,
हाथ बढाया मैंने ग्रहण करने को फ़िर
ख़ुशी से घिग्गी बंधी व दिशा आयीं घिर,
काटकर पत्र का एक तीक्ष्ण कोर
निकला जन्मरेखा से भाग्यरेखा की ओर,
सन गया नाम पत्र पर लिखा हुआ मेरा
और तुम्हारे पर चंद्रबिंदु सा जा ठहरा,
रुधिर था, कुछ स्वर व थे कुछ प्रण
अंत मेरा तुम्हें अक्षय करने को अर्पण |
पता है फ़िर क्या हुआ ?


5)
--------------------------------------x---------------अक्षय--------------x-----------------------------------

तुम्हारे
हर अल्पविराम से पहले
अक्षय हूँ मैं और
मेरे हर पूर्णविराम के
ठीक बाद तुम,

अक्षय हैं वो
अनहद स्मृतियों के गुम्बद
वाली इमारतों पर लिखी
प्रेम की कुछ इबारतें और
स्वप्न से ठीक पहले
आमंत्रण वाला समय
जैसे रेत-घड़ी की बालू
बन जाता है धोरा
पलटने से पहले
और बहते हैं
भात पकाते गर्म चश्मे
हिमगिरि शिखा से,
रुदन भींचती चादर का
पांचवा कोना जिसे
दबाया नहीं जा सकता
तकिये के नीचे |

प्रेम का हलाहल पीते
नीलकंठ से,
अक्षय ही तो हैं हम !

 

6)
------------------------------------------------x---------झूठ की भी हद होती है----------x-----------------

झूठ की भी हद होती है !

याद है.?
तुम्हारे कान के बगल और
कलम वाली लट के पास वाला तिल
गाढ़ा व अच्छा लगता था मुझे
और नज़र से बचाता था, जैसे
मैं बचाता था हमारी साथ वाली उस
फ़ोटो में, तुम्हें !

जब तुम्हारा बांया हाथ पकड़
कनिष्ठिका के ठीक दायें दबाकर
ध्यान खींचा था मैंने और कहा था
यही है हमारी विवाह रेखा !

उमराव की नक़ल वाले आदाब
उस बाएँ गाल पे पड़े गड्ढे के साथ
न जाने कितनी ही बार
दोहराए थे तुमसे स्वप्न में,
गुस्सा किया था तुम्हारे बाल कटवाने पर
और खुश भी दिखाया था खुद को
छोटे बालों में ज्यादा प्रोफेशनल कह कर,
मोटी बंगाली आँखें न होने पर भी
यह कह कर हंसाया था तुम्हें कि
कजली वाले बॉर्डर के बाद
न कोई फ़र्क बाकी रहेगा
नक़ार दिया था तुमने कह कर
की काजल अच्छा नहीं लगता
यही सहना होगा, ऐसे ही रहना होगा !

उस सीट के लिए ज़िद भी
क्या ज़िद थी जब देखना था
बाएँ ही रस्ते भर
और खिड़की थी दायें तुम्हारे,
स्टेशन पर जब चिप्स का पैकेट
खरीद लाया था और तुमने
भूख नहीं होने का कह कर रख दिया था
मेरे ही बैग में वापिस,
तब मैंने नहीं बोला था तुमसे कि
जेब में बचा था सिर्फ एक नोट
दस रुपये का
जो देना था पार्किंग में और बीस का
था यह पैकेट,
अलविदा कहते हुए जब
“आपकी आँखों में कुछ..” गाकर
सुनाया था तुमने जैसे मैं कांच था
और तुम्हारी ध्वनि परावर्तित हो रही थी
उसी कलम वाली लट से होकर
तुम्हारे कान तक
शायद यही वो “..महके हुए से राज़ हैं”

वो पैकेट,
लौटते वक़्त दे दिया था मैंने
एक बच्चे को जो भूखा था
प्यार का !

झूठ की भी हद होती है !


7)
----------------------------------x--------------सूरत--------------x---------------------------------
वो सूरत बहुत प्यारी थी।
वो मूरत बहुत सच्ची थी।
एक सुन्दर वीणा जैसी,
सोचता था,
इसके सुर कितने अच्छे होंगे।
पर बस एक ही कमी थी उसमे।
उसमे तार नहीं थे।
वो बस ऐसी मूरत थी जिसमे प्यार नहीं था।
क्या करता मैं उसका।
उसे वहीँ छोड़ आया


8)
-----------------------------------x---------शौक़----------x------------------------------------------
यूँ तो शौक़ नहीं है
मुझे लिखने का,

और बिकने का अपनी
आँखों के बाज़ार में |

गिर जाते हैं कुछ लफ्ज़
छाती पर
बावस्ता होकर
यादों के यलगार में |

उछलती नसों में
घुले वादों की हंसी
रुला देती है,
रुखसत के इस क़रार में |

यूँ तो शौक़ नहीं है
मुझे लिखने का,
पर कुरेद देता हूँ
ख़्वाबों को, फ़िर
हूँ अपना ही तो
सितमगार, मैं |


9)
--------------------------------x---------रंग---------x-----------------------------------------------

होली के इन लाखों रंगों में
इक रंग तेरा भी होगा
हो न हो फ़िर तेरे जिस्म में
एक क़तरा मेरा भी होगा |

सोचा आज इस प्रिज़्म का
हर इक रंग छांट डालूँ, पर
फ़िज़ा की इस गुलाबी रूह में
एक ज़र्रा तेरा भी होगा |

काग़ज़ पर कलम घिसकर
लिख़ डाले हैं सब रंग मैंने
आधी चली इस चाल का ढंग,
न जाने अब कैसा होगा |

रंग भरे इस प्याले में
गुझिया के इस निवाले में
कभी दिख जाती है तू बहते हुए
तुझे रोक न पाने का वो मलाल
न जाने अब कैसा होगा |

ना पी पा रहा हूँ तुझे
न जी पा रहा हूँ तुझे
बिन मौसम बरसात का ये मौसम,
न जाने अब कैसा होगा |


10)
-------------------------------------x---------------------------------x-------------------------------

पूर्व में,
मानवीयता के नाते,
अपने प्यार वाली
बंधुआ मजदूरी के कुछ
कागज़ी किस्से व तस्वीरें,
आज़ाद कर दिए थे मैंने,
रद्दी के ठिकानों पर
चंद मेहनताने के लिए,
आज उनसे बनी प्लेट पर
एक प्रेमी-युगल को
कुल्फ़ी खाते, झगड़ते देखा |

मैं बस देख ही रहा था
दूर से,
वो लड़ रहे थे कि,
कैसे कोई अपनी यादें यूँ
पत्तलों में भर देता है
प्यार का 'सम्मान' करना चाहिए |

चौराहे पर थोडा आगे चलकर
प्रेमिका ने एक घर के बाहर
कूड़ेदान में वो गुलदान फैंक दिया,
शायद 'सम्मान' के साथ |


11)
---------------------------x-----------रेट पर घर बनाने की ठानी थी मैंने-------x------------------

रेत पर
घर बनाने की ठानी थी मैंने,
बहते समंदर, उड़ते टीलों और
जूतों की सूखी रेत पर,

हर मौसम छान मारा
कभी धूप थी गाढ़ी
तो था कभी पारा,

नींव हर बार भरी हुई थी
मौजों से मेरी ठनी हुई थी
इस बार जो रुक जाए ये
मौजों पे टिक जो टिक जाए ये,
तो ख़ाब पक जाए ये |

बर्फ की ख़ुश्क
समंदर की तृप्त और
दरिया की भूखी रेत में
जब धरा पाँव मैंने अंगदी,
पिघल गयी जैसे हिमनदी |

मृगतृष्णा,
जो होने लगी साकार
मेरे सपने
जो थे बोतल में बंद
लेने लगे आकार |

रेत पर
घर बनाने की ठानी थी मैंने,
बहते समंदर, उड़ते टीलों और
जूतों की सूखी रेत पर |

उसी घर में आज
वो धूप, पारा,
मौज और हिम
टंगे हैं अलगनी पर |


12)
------------------------x-----------इस रात की बारिश में वो बात नहीं है -------------x------------

आज,
इस रात की बारिश में
वो बात नहीं है |

मन,
ना भिगोने का
न ही भीगने का है |

लैम्पपोस्ट का
धुंधला पीलापन भी
तेरे दुपट्टे से उन्नीस ही है |

अमरूदों की परछाई,
जो लैम्प की रौशनी का अँधेरा
सीली दीवार पर उकेरती है
तेरा अक्स नहीं बना पा रही है |

बालकनी में लगे
मोगरे के पत्ते भी
छज्जे से टपकती बूंदों को
अपने ऊपर लेकर
नाच नहीं रहे हैं |

रोशनदान से आती
रातरानी की ख़ुशबू भी
तवे पर जले
ज़ीरे ने दबा दी है |

मन
ना भिगोने का
न ही भीगने का है |

इसीलिए,
आज
इस रात की बारिश में
वो बात नहीं है |


13)
-----------------------------x--------याद---------x--------------------------------------------------
तुम्हारी यादों के
सैंड पेपर से
रगड़ खाकर
थोड़ा सा घिस जाता है,
ये दिल मेरा
थोडा खुरदुरा
थोडा चिकना सा,
कहीं-कहीं
कुछ हलकान सा भी,
दायें आलिन्द के ठीक नीचे
जहाँ से छोड़ा जाता है
निर्वात रक्त, विरक्त सा
दायें निलय में
शुद्धि के लिए,
जैसे छूट जाता है
एक निशां साफ़ सा,
घडी का या वक़्त का,
चमड़ी पर,
जब चिलचिलाती धूप में
लौटता हूँ मैं उतार
रखने के लिए
फ्रिज पर या
मेज़ की दराज में,
वो हाथ-घड़ी
जिसकी वारंटी
चली गयी थी
तुम्हारे यादों के जाने के ही साथ |

--

 

A K S H A Y   S H A R M A

Electrical  Engineer

E-mail - akshaytechno@gmail.com

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श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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रचनाकार: अक्षय शर्मा की कविताएँ - मेरी कहानियाँ जिनमें पूर्णविराम कम है !
अक्षय शर्मा की कविताएँ - मेरी कहानियाँ जिनमें पूर्णविराम कम है !
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