कहानी - हरम

SHARE:

हरम ० अजय गोयल वेटिंग हॉल में टंगी गुलाम भारत की याद दिलाती 'दिल्ली दरबार' की जीवन्त आदमकद पेंटिंग होटल में आने वाले को क्लीन बो...

image

हरम

० अजय गोयल

वेटिंग हॉल में टंगी गुलाम भारत की याद दिलाती 'दिल्ली दरबार' की जीवन्त आदमकद पेंटिंग होटल में आने वाले को क्लीन बोल्ड कर देती। पहली नजर में सकपकाये आगंतुक को लगता कि बरतानिया के किंग जॉर्ज और रानी मेरी उसके स्वागत के लिए वर्षों से बैठे-बैठे पथरा गये हैं। उन दोनों के पीछे सजे-धजे खड़े और अपनी-अपनी पगड़ियों में बँधे भारतीय राजा महाराजे उनको लाँघने के लिए नाकाम आतुर लगते।

दस घंटे की लंबी सड़क यात्रा के बाद पंकज शिमला के उस होटल के कमरे में जाकर आराम करना चाहता था जबकि उसका बेटा मुन्ना माँ से अपने पालतू ब्लैकीबिल्ले की बातें करता हुआ थका नहीं था। बिटिया पावनी चुपचाप अपनी बार्बी डॉल के साथ बैठी रही। उसकी चुप्पी पापा पंकज को चुभ रही थी। जबकि ऐसी यात्राओं में पावनी मोबाइल फोन पर गूगल मैप खोलकर रास्तों का अता-पता बताती रहती। उसका सपना एक जीती-जागती बार्बी बन जाने का था। वह अक्सर ' 'आई एम ए बार्बी डॉल' ' गीत गाना पसंद करती। वह अपने लिए बार्बी डॉल जैसा ड्रीमरूम बनवाना चाहती। जैसा बार्बी की कहानियों में मोबाइल फोन की स्कीन पर झाँकता। इंटरनेट से डाउनलोड कर वह बार्बी की कहानियाँ देखना पसंद करती।

बार्बी को केन्द्र बनाकर पावनी कुछ कहानियाँ लिख चुकी थी। जैसे - ' बार्बी एंड टाइमलैस स्टोरी''। ' बार्बी सेव ब्लैकी कैट' '। जिन्हें वह फेसबुक पर अपलोड कर चुकी थी। बार्बी सेव ब्लैकी कैट' की शुरुआत में उसने लिखा था, ' 'जब वह ठंडी रात काँप कर रजाई में दुबक गयी थी।' ' यह एक सच्ची घटना थी। ब्लैकी के रहने का प्रबंध पंकज ने छत के लिए जाने वाले जीने से कर दिया था। उस रात छत का दरवाजा खुला रह गया था। आधी रात में एक कातर महीन म्याऊँ-म्याऊँ की पुकार से उसकी नींद खुली। उसे लगा कि ब्लैकी की आवाज है। ब्लैकी पुकार रहा था। दरवाजा खोलने पर उसके सामने एक मोटा जंगली बिल्ला था। पंजा उठाए। उसके नीचे ब्लैकी पड़ा कराह रहा था। जब तक जंगली बिल्ला उसकी पिछली टाँगों की पिंडलियों का माँस नोच चुका था। भागना तो दूर उठने की ताकत नहीं बची थी ब्लैकी में।

- ''तो आप इस तरह अपना चक्रवर्ती साम्राज्य स्थापित करना चाहते हैं। यह इलाका आपका हरम है। ही भाई, एक हरम में दो मर्द कैसे रह सकते हैं ?'' पंकज ने कहा।

बिल्ला अब भी उसके सामने था। अपना पंजा वह जमीन पर रख चुका था।

- ''इस तरह आप बच्चों को स्वर्ग भेज देते हैं। उठने लायक तक नहीं छोड़ा। चलेगा नहीं तो खाएगा क्या? पियेगा क्या? कितनी भूखी बेरहम मौत की सौगात देते हो।'' उसने कहते हुए डंडा फटकारा। जंगली बिल्ला कैसे रूकता। पीछे-पीछे पावनी भी आ गयी थी। टांगें ठीक होने तक पावनी रोजाना ब्लैकी की मरहम-पट्टी करती। जबकि मुन्ना उसे दूध भरा कटोरा दिन में कई बार पेश करता। अपनी इन कहानियों को पावनी चाहती की बार्बी कम्पनी अपनी कहानियों में जगह दे। वह ई-मेल द्वारा कम्पनी को भेज चुकी थी। कम्पनी से जवाब आने की प्रतीक्षा कर रही थी। इसलिए शिमला के रास्ते में अनमनी रही। पंकज उसे बहलाने की कोशिश में उससे कहता, ' गुड़िया मेरी बातों की पुड़िया।' ' जिसका वह जवाब नहीं दे रही थी।

- ' 'फेसबुक पर तुम्हारी कहानियों को सब लाइक कर रहे हैं।'' कह कर मम्मी उसे ढाढस बँधाना चाहती। साथ ही मुस्करा कर उसकी बैचेनी को दूर करने की कोशिश करती।

पावनी को मालूम था कि बार्बी की दुनिया में उसके पास चालीस पालतू जानवर हैं। जिनमें से एक बिल्ला भी है।

ब्लैकी बिल्ले को अपनाने के लिए पावनी के लिए इतना काफी था।

ब्लैकी के चमकते काले बालों व भूरी आंखों के कारण पावनी ने उसका नाम ब्लेकी रखा था। लगता कि प्रकृति ने उसके शरीर में पम्प लगाकर स्कूर्ति भर दी है। पता नहीं कौन से तेल के कारण उसके चमकते बाल सम्मोहित करते।

जंगली बिल्ले के हमले के बाद ब्लैकी पावनी के पैर का अँगूठा धीरे-धीरे अपने दाँतों से सहलाकर प्यार जताता।

मुंडेर पर चढ़े ब्लैकी को पावनी यदि आवाज देती तो दौड़कर आ जाता।

भूख लगने पर उसने दूध माँगने का तरीका ढूँढ लिया था। वह रेफ्रिजरेटर के पास जाकर म्याऊँ-म्याऊँ करने लगता।

चाकलेट निगलता।

कोल्ड ड्रिंक तक चाटता।

जब तेज संगीत के साथ पावनी और मुन्ना धमाल करते तो वह म्याऊँ-म्याऊँ कर सब कुछ समझ आने का दावा पेश करता।

सुबह उठकर मुन्ना सबसे पहले ब्लैकी को ढूँढता। उसे जीने में न पाकर उसकी नजरें मोहल्ले के घरों की मुंडेरों पर होती।

- ' 'सुबह-सुबह से ब्लैकी क्यों भागा-भागा फिरता है।' ' मुन्ना ने एक दिन पंकज से पूछा था।

- ' 'तुम तो सोते रहते हो, पर ब्लैकी को सुबह-सुबह सूरज को जगाना होता है। वह आसमान में जाकर खिड़की खोलता है। तभी तो सूरज बाहर आता है।''

मुन्ना उसके उत्तर से संतुष्ट हो गया था। जबकि पावनी बहुत देर तक इस उत्तर से मुस्कराती थी।

चार-पाँच साल का मुन्ना ब्लैकी को अपना दोस्त कहता। वह ब्लैकी को अपनी गोद में बैठाकर शिमला लाना चाहता था। पिछले तीन-चार दिनों से खडा को दूध पिलाते समय वह कहता कि इन गर्मियों में वे शिमला जा रहे है। वहाँ गर्मियों में भी ठंड होती है। तुम भी मेरे साथ चलना। मेरी गोद में बैठ कर। तुम मुझे ज्यादा प्यार करते हो ना। ये सामने वाला चीनू तो तुमसे प्यार का नाटक करता है। तुम्हें दूध में पानी मिलाकर पिलाता है। पापा कह रहे थे कि वहाँ बड़ा मजा आयेगा।

हद होती। जब वह ब्लैकी को स्कूल पढ़ाने के लिए ले जाना चाहता। या जब मुन्ना मोबाइल फोन ब्लैकी के हालचाल पूछने के लिए स्कूल ले जाना चाहता था। इस पर मम्मी उसे झिड़क देती। कहती, ''मैं हूँ तो तुम्हारे ब्लैकी के लिए। तुम स्कूल जाते हो तो वह जीने में आराम करता है। बन्द किवाड़ों में भी वह कैसे आ जाएगा जंगली बिल्ला। उससे ब्लैकी डरता है। मैं तो नहीं डरती।' '

उस ताकतवर जंगली बिल्ले से बचाने के लिए मुन्ना ब्लैकी को अपने साथ ले जाना चाहता था। चलते समय उसने ब्लैकी को पकड़कर गोद में बैठा लिया था। पर जैसे ही कार स्टार्ट हुई, वह कूदकर भाग गया। जबकि मम्मी उसके रहने का प्रबंध चीनू के घर कर चुकी थी।

वेटिंग हॉल की विशाल पारदर्शक शीशों की दीवार के पार फैली घाटियों में चहलकदमी करते अँधेरे उजाले को देख मंत्रमुग्ध सा मुन्ना दीवार के पास जा खड़ा हुआ था। उस समय सूरज थककर जा चुका था।

ऐतिहासिक होटल के मैनेजर से बात करते समय पंकज का ध्यान वेटिंग हॉल की एक दीवार पर खूबसूरत लिखावट में लटकी एक घोषणा पर गया 1 जो स्वतंत्र भारतीय दिलों में बसी गुलामी का पता बता देती। सागवान के आयताकार टुकड़े पर बसी घोषणा वायसरायों और अंग्रेज सैन्य अधिकारियों को दर्प के साथ याद करती। जो जलती गर्मी में सुकून के लिए पिछली शताब्दियों में भौरों की तरह खींचें चले आये थे।

आगन्तुक यह सब जानकर एक साँस में शान की एवरेस्ट पर बिना ऑक्सीजन के जा पहुँचता।

होटल के गलियारे बीते वक्त से रोशन थे। फोटो फ्रेमों से झाँकते बीते पल गये वक्त का एक झरोखा खोल देते। रजवाड़ों के दरबारों से लेकर शिकार के लिए जाते वायसरायों के भरे पूरे फोटो एक तिलिस्म सा गढ़ने में सफल थे। इन्हीं बीते पलों से खोयी पावनी ने पंकज को आवाज देकर कमरे से बुलाया था, ' 'पापा! देखो। चर्च के गेट के पास बैठा बंदर चर्च में जाते वायसराय को कैसे दाँत दिखा रहा है।' '

फोटो में वायसराय अचंभित मुद्रा में थे। शायद सोच रहे थे कि जब सारा भारत उनके सामने घुटनों पर था तो एक अदने बंदर ने इतनी हिमाकत कैसे की।

पंकज ने होटल के गलियारे से वापस कमरे में जाते वक्त महसूस किया कि ज्यादातर वायसराय और सैन्य अधिकारियों के द्वारा मारे गये शेरों के फोटोग्राफ वक्त के गवाह हैं। शिकारी वेशभूषा में राइफल लिए अधिकारी शेरों के सिरों पर अपना एक पैर रखे हैं। जिनके बगलगीर भारतीय राजे महाराजे और नवाब प्यादे बने खड़े हुए थे। होटल के गलियारे से गुजरना पंकज के लिए किसी कब्रिस्तान के बीचों-बीच खुली हुई कब्रों के ऊपर से गुजरना जैसा हो गया था।

कमरे में मुन्ना लाइव वीडियो काल पर ब्लैकी को चीनू द्वारा दूध पिलाते देख रहा था।

फोन पर मुन्ना उसे ब्लैकी कहकर पुकारता।

दूरियाँ पार कर मुन्ना की आवाज ब्लैकी तक पहुँचती। फोन पर वह मुन्ना की पुकार सुनता। चौंकता। दूध पीते-पीते वह नजरें उठाता। चौंक कर इधर-उधर देखता। उसे चीनू के सिवाय कोई नहीं दिखता। यह सब वीडियो कॉल पर देख होटल के कमरे में बैठा मुन्ना तालियां बजाने लगा था।

कुछ देर बाद कल घूमने जाने के लिए पंकज रूपरेखा बनाने लगा।

तभी मासूम बचपन का इंद्रधनुष कमरे में उतर आया। मुस्कराता मुन्ना अचानक ठिनकने लगा था।

चीनू द्वारा वीडियो कॉल पर ब्लैकी को दूध पिलाते देख, बोला, ' ब्लैकी अब चीनू से शादी कर लेगा। मुझे मना कर देगा।' ' ठिनकता मुन्ना रोने लगा था।

पावनी ने उसे गोद में भर लिया। बोली, ' 'मैं ब्लैकी से मना कर आयी हूँ ना।' '

- ' 'ना। पर उससे कर लेगा।' ' मुन्ना जोर-जोर से रोने लगा था।

पावनी उसे बालकनी में ले गयी।

उस उतरती दोपहर मोहल्ले में शोर मचा था कि कुत्ते एक बिल्ले को पकड़ने में लगे थे। कुछ घंटों बाद शाम को आश्रय ढूँढता निढाल और बेजान-सा ब्लैकी घर के दरवाजे के पीछे पावनी को मिला। चीते की बोन्साई लगता बिल्ला। भागने की ताकत उस समय ब्लैकी में नहीं थी। सूखा शरीर। तेज-तेज चलती साँसों के साथ जिन्दगी से जंग लड़ रहा था। मुन्ना उसे देखकर मचल गया। पावनी उसके लिए दूध भरा कटोरा ले आयी थी। एक परी-कथा की तरह जीवन में आया था। चीनू और मुन्ना के लिए जीता जागता एक साझा खिलौना।

दोनों स्कूल से आकर उसे दूध पिलाते। उसके लिए नई-नई शर्ते लगाते। झगड़ते। इन झगड़ों और शर्तों के हिंडोलो में सारा मोहल्ला हँसता। मुस्कराता। शहर का एक पुराना मोहल्ला। जहाँ सुबह घरों की मुँडेरों पर कबूतरों की गुटर गूँ. गुटर गूँ.. में प्रकृति का स्वागत करती। दोपहर में धूप स्वयं वहाँ अलसा जाती। संध्या आरती और फिल्मी गानों के साथ बच्चों की किलकारियों में घुलमिल जाती।

बिल्ली को पावनी और मुन्ना अपने साथ अपने कमरे में रखना चाहते। जिसके लिए मम्मी तैयार नहीं थी। कहती, ' 'बिल्ली असहनीय है। घर में पालना परम्पराओं के विरुद्ध है।''

पंकज ने बीच का एक रास्ता खोजा। जीने में उसके लिए जगह बनायी गयी। पावनी ने एक गत्ते के डिब्बे में पुराने अखबार लगाकर उसका बिस्तर बनाया। मम्मी ने दूध के लिए एक कटोरी दी। दोनों को उलझन होती, जब मुन्ना ब्लैकी के मुँह से अपना मुँह लगाने की कोशिश करता। या ब्लैकी पावनी के बिस्तर में घुस जाता। एक दिन पंकज ने कहा, ' 'तुमने पाला है ब्लैकी। इसकी वैक्सीन का खर्चा तुम अपनी जेब खर्च से दोगी।'' पहले से नाराज पावनी इस बात पर ठुनक गयी। जबकि वह अपनी जेब खर्च से बार्बी की नयी ड्रेस लाना चाहती थी।

उस रात पावनी कुछ जल्द सो गयी। डायरी लिखना उसकी आदत में शामिल हो चुका था। इसका कारण बार्बी का नियमित डायरी लिखने का प्रचार था। टेबल लैम्प जल रहा था। पंकज पावनी के कमरे में गया। पावनी मीठी नींद में थी।

डायरी खुली थी। पंकज ने पड़ा, ' 'मैं पापा से नाराज हूँ। बहुत ज्यादा नाराज। मेरी कोई बात सुनते नहीं हैं। बार्बी के पास अपना ड्रीम हाऊस है। जैसे मेरे पास क्या ड्रीम रूम नहीं हो सकता। क्या वे मेरी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते। पापा जानते हैं कि बार्बी के पालतू जानवरों में शेर का एक बच्चा भी है। मैंने तो एक बिल्ला पाला है। उसके टीके भी अपनी जेब खर्च से लगवाऊँ। वैसे मुझे वे 'अपनी गुड़िया बातों की पुड़िया कहते हैं।' सब झूठ। उनका जीवन एक घटना में अटका है। जो सालों पहले भोपाल में घटित हुई। एक यूनियन कार्बाइड कंपनी थी। जिससे एक रात में निकली जहरीली मिक गैस से बीस हजार आदमी मारे गये। वे कहते हैं कि हमारी सरकार उस कंपनी के चीफ एंडरसन को एक दिन की भी सजा नहीं दिला सकी। इन सबका मेरे ड्रीम रूम और ब्लैकी की वैक्सीन से क्या संबंध?' '

आखिरी सवाल पंकज को छील गया था। सोती पावनी को उसने देखा। कमरे से बाहर निकलते वक्त अतीत एक बार फिर सामने था। बीस हजार बदनसीब लाशों में उसके अपने चाचा-चाची थे। उस रात सोने के बाद उनके भाग्य में सुबह नहीं थी। उन्हें जहरीली गैस से बचाव के लिए पानी से भीगे रूमाल रखने का मौका भी नहीं मिला। उस गैस से बचाव का एक साधारण सा उपाय नाक पर गीला कपड़ा रखना था। इसके प्रचार के लिए वकील चाचा जी ने कोर्ट के नोटिस द्वारा अपनी बात कंपनी से कही थी। जिसे कंपनी ने अनसुना कर दिया। उस समय खून से भरी फिजा में प्यादे से सत्ताधीश एंडरसन को वापस भेज न्याय-न्याय चिल्लाने लगे थे। उसके मन में एक सवाल बार-बार आता। उस रात हवा का रुख हुक्मरानों के महलों की तरफ क्यों नहीं था।

सुबह पावनी गलियारों में शिकार में मारे गये शेरों की गिनती करना चाहती थी। बाहर घूमने जाने के लिए देर हो रही थी। पंकज उसके पास पहुँचा। दोनों वायसराय कर्जन के सामने थे। फोटोग्राफ में एक शेर के सर पर पैर रखकर खड़े कर्जन ने कुल पाँच शेर मारे थे। उसके बगलगीर प्यादा सा खड़ा नवाब हैदराबाद था। फोटोग्राफ के नीचे लगा था, वायसराय को शिकार के लिए बुलाना उस समय शान का प्रतीक था। नवाब हैदराबाद के साथ खड़े लार्ड कर्जन ने एक बार कहा था, ' 'एज लांग एज वी रूल इंडिया, वी आर ग्रेटेस्ट पावर ऑफ दी वर्ड।'' (जब तक हम भारत पर काबिज हैं, हम विश्व की महान शक्ति रहेंगे।)

- ' 'पापा! अपना ब्लैकी देखने में शेर जैसा लगता है।''

- ' 'कोई ई-मेल आया बार्बी की कंपनी से।' ' विषय बदलते हुए पंकज ने पूछा।

चुप रही पावनी।

पंकज ने दोबारा पूछा।

- ' 'पापा! मैं आपको बता देती न।' ' कुछ-कुछ झल्लाकर वह बोली।

गलियारा पार कर दोनों होटल से बाहर निकलते वक्त पंकज पावनी से बोला, ' 'दो सौ साल के अंग्रेजों के शासन में इंडिया ने बहुत तरक्की की। इतनी कि एक सुई के लिए भी दूसरे देशों का मोहताज रहा। बार्बी कम्पनी भी चाहती है, तुम जैसी बार्बी दीवानी मीरा हर घर-ऑगन में हो। तुम बार्बी बनो इसमें तुम्हारी नहीं उस कम्पनी की सफलता है।' '

होटल के बाहर धूप खिली थी। गर्मी के मौसम में काटने को आती धूप पहाड़ों पर सौम्य और दुलारती लग रही थी।

कार में पावनी पापा के पास बैठी थी।

- ' 'मेरी जीनियस बातों की पुड़िया।' ' कहकर पंकज ने उसे प्यार से थपथपाया।

- ' 'पापा। पापा।' ' कहकर वह उससे लिपट गयी।

पिछले कुछ दिनों में उलझी-उलझी पावनी के चेहरे पर उजास झाँकने लगा था। तभी पंकज को लगा कि पावनी ने बार्बी को पहाडी घाटियों को नजर कर दिया है। जिसे वह उस वक्त देख नहीं सका था

 

अजय गोयल

निदान नर्सिंग होम,

फ्री गंज रोड हापुड़ 2451०1

a.ajaygoyal@rediffmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी - हरम
कहानी - हरम
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggN8FftyOztFeX28IEoompd-Nkw1VppM8dCLhPF3Bw6sS2sciWR1vFrnhp9bYrLX-BXXWMumpcSRabMY_ZJy3UoAzvqSQyo6IDpsRr4pXVyj61VK5tGmmUKPBpOh9_U5lr0gEY/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggN8FftyOztFeX28IEoompd-Nkw1VppM8dCLhPF3Bw6sS2sciWR1vFrnhp9bYrLX-BXXWMumpcSRabMY_ZJy3UoAzvqSQyo6IDpsRr4pXVyj61VK5tGmmUKPBpOh9_U5lr0gEY/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/08/blog-post_12.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/08/blog-post_12.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content