डॉ. दीपक आचार्य इन दिनों सर्वत्र श्रावण मास की धूम है। शिव आराधना का यह वार्षिक पर्व हर जगह श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। ...
डॉ. दीपक आचार्य
इन दिनों सर्वत्र श्रावण मास की धूम है। शिव आराधना का यह वार्षिक पर्व हर जगह श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जा रहा है।
हर भक्त की यही तमन्ना है कि भोले बाबा उन पर कृपा करें और उनके बिगड़े काम बनने शुरू हो जाएं, सुख-समृद्धि का सुकून मिले और जो कुछ मनोकामनाएँ हैं वे आसानी से पूरी होती चली जाएं, किसी भी प्रकार की कोई अड़चन न आए।
तकरीबन सभी लोग अपने किसी न किसी स्वार्थ या काम को लेकर इन दिनों सावन मास में शिव आराधना के तरह-तरह के जतन में जुटे हुए हैं। कुछेक लोग ऎसे भी हैं जो भगवान भोलेनाथ की कृपा पाने के इच्छुक हैं, कुछ हैं जो भगवान शिवशंकर के दर्शन पाना चाहते हैं। नगण्य संख्या उनकी भी है जो कि हमेशा-हमेशा के लिए शिव लोक की प्राप्ति की कामना संजोये हुए भूतभावन भगवान शिव की आराधना में पूरे मन से हमेशा लगे रहते हैं।
हर तरफ एक ही माहौल है। बोल बम, जय महादेव, हर-हर महादेव, जय शिवशंकर, जय भोलेनाथ, शिव-शिव, महादेव के उद्घोष गूंज रहे हैं। सारे के सारे भक्त गण अपनी-अपनी हैसियत, ज्ञान और सुविधा के अनुसार जुटे हुए हैं।
हमने तिथि, वार, रात्रि, दिन और मास, चातुर्मास आदि सब में देवी-देवताओं को बाँट दिया है और अपनी-अपनी सुविधा से हम सब कुछ करते रहे हैं। हालांकि बहुत सारे पर्व और त्योहार तथा विशिष्ट घड़ियां ऎसी हैं जो धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से शक्ति संचय और भगवान की कृपा प्राप्ति के दुर्लभ अवसरों में गिनी जाती हैं और इनमें विशेष भक्ति, साधना और आराधना होनी चाहिए। लेकिन सिर्फ अपनी भक्ति को इन्हीं दिनों में प्रकट करके बाद में भूल जाएं, यह उचित नहीं कहा जा सकता।
बात सावन मास और शिवभक्ति की हो रही है। हम सभी शिव भक्तों के लिए जितना पंचाक्षरी मंत्र, रूद्राभिषेक, बिल्वपत्रों से शिवार्चन और दूसरे सारे मंत्रों, स्तुतियों, भजनों से शिव को रिझाने का महत्त्व है उससे कहीं अधिक यह समझने की आवश्यकता है कि शिव कहाँ आते हैं, शिव कहाँ रहना पसंद करते हैं।
शिव पुराण को समझने और शिव महिमा को जानने वालों को अच्छी तरह पता है कि शिव उन्मुक्त प्रकृति के बीच रहने वाले हैं। शिव को पाने के लिए अपने मन-मस्तिष्क को सभी प्रकार के सांसारिक विकारों से दूर कर श्मशान बना डालें, तभी उनका आगमन संभव है अथवा शिव को पाने के लिए उनके लायक प्रकृति का निर्माण करें।
खुला भाग, प्रचुर बहती जलराशि, एकान्त, सघन हरियाली और वह सब कुछ चाहिए जो कि नैसर्गिक आनंद और रमणीयता का प्रतीक है। तभी तो भगवान भोलेनाथ गुफाओं, कंदराओं, पर्वतशिखरों, नदियों के किनारे और घने जंगलों में बिराजमान रहे हैं। आज न एकान्त रहा है, न कोई जलस्रोत हमने बचा रहने दिया है, न मन्दिरों के आस-पास खुला भाग है। यहीं नहीं तो परिक्रमा स्थल तक नहीं है। दुकानें निकालकर हमने एकान्त को नष्ट कर डाला है।
आज शिव को पाने के लिए हम सभी लोग जतन तो खूब कर रहे हैं मगर असली कामों से दूर भाग रहे हैं। रोजाना टनों पानी और दूध आदि का अभिषेक शिवलिंगों पर कर रहे हैं, गला फाड़-फाड़ कर मंत्र, स्तुतियों और भजनों से माहौल में शिव लहरियों का प्रवाह कर रहे हैं और तिलक, त्रिपुण्ड, छापों, जटा-दाढ़ी आदि बढ़ा कर अपने आपको सच्चा शिवभक्त मानने लगे हैं।
रोजाना हजारों लाखों बिल्व पत्र चढ़ाते रहे हैं। सालों से यही सब हम करते आ रहे हैं फिर भी कोई खास उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाए हैं। इसका मूल कारण यह है कि शिव को पाने के लिए हमने वास्तविक आराधना को अपनाया ही नहीं। हम सारे लोग बिल्वपत्रों के लिए भागदौड़ करते हैं या खरीदते हैं। हममें से कितने लोग हैं जिन्होंने बिल्व का एक पौधा भी कहीं रोपा हो।
शिव को पाने के लिए जल स्रोतों का संरक्षण करें, नवीन जलाशय पनपाएं, पेड़ लगाकर हरियाली लाएं, वनों की रक्षा करें, एकान्त पर ध्यान दें, मन्दिरों के नाम पर दुकानदारी बन्द करें, पुराने पर्वतीय व ऎतिहासिक स्थलों की रक्षा करें और प्रकृति का आदर-सम्मान करें, तभी शिव की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है।
शिव भी उन्हीं लोगों पर प्रसन्न रहते हैं जो मन से भोले और निष्कपट हैं, परमार्थ करते हैं और भोलेनाथ की तरह हर किसी आप्त या जरूरतमन्द प्राणी की सेवा के लिए हमेशा हर पल तत्पर रहते हैं। शिव की तरह जो मस्त है, सभी प्रकार की आधि, व्याधि और उपाधि से मुक्त है, परम पवित्र, निर्मल मन वाला, कपट रहित, भोला, सबका कल्याण करने वाला, स्थानीय उत्पादों पर जीवननिर्वाह करने वाला, पुरुषार्थ की कमाई खाने वाला, प्राणी मात्र के प्रति सहिष्णु, सहनशील, उदार, सेवाव्रती, परोपकारी और सभी को आनंद देने वाला है वही भगवान भोलेनाथ का सच्चा भक्त कहा जा सकता है।
बाकी सारे लोग ढोंगी, पाखण्डी और व्यभिचारी भक्ति वाले हैं जिनकी भक्ति दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है। इनमें से बहुत सारे लोग अपने आपको धार्मिक या शिवभक्त कहलाने वाले कालनेमि हैं, बहुत सारे अपने अपराधों और बुरी प्रवृत्तियों को ढंकने के लिए शिवभक्ति का चौला धारण करने वाले हैं।
सच कहा जाए तो शिव कल्याण का देवता है जिसे पा लेने के बाद सत्यं और सुन्दरं अपने आप प्रकट हो जाता है। जो हिंसक, शराबी, मांसाहारी, लूटेरा, चोर-डकैत, भ्रष्ट, कामचोर, हराम की कमाई खाने वाला, मुफत का माल उड़ाने वाला, पराये संसाधनों, पराये व्यक्तियों की जमीन-जायदाद हड़पने वाला, अतिक्रमणकारी, व्यभिचारी, कपटी, दुष्ट और दूसरों को बेवजह तनाव देकर परेशान करने वाला, हिंसक, क्रूर और पिशाचवृत्ति वाला है, वह चाहे लाख जतन क्यों न कर ले, शिव उससे कभी खुश नहीं हो सकते। उसकी भक्ति का सौ जन्मों में भी कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता।
भगवान भोलेनाथ को खुश करना चाहें तो अपने भीतर उन विशेषताओं को आत्मसात करना आरंभ करें जो भगवान शिव में हैं। उपास्य देव की भावना और प्रकृति को अपना कर हम अपने देव को जल्दी रिझा सकते हैं। बड़ी ही श्रद्धा और आस्था रखें, प्रेमपूर्वक भगवान शिव को भजें लेकिन शिवत्व को पाने की तरफ भी ध्यान दें ताकि हमारी भक्ति और साधना शीघ्र सफल हो सके। अन्यथा ऎसे कितने ही सावन गुजर जाएंगे, हाथ कुछ नहीं आने वाला।
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- डॉ. दीपक आचार्य
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