प्रमोद भार्गव अंतरजाल की आभासी व मयावी दुनिया से अश्लील साम्रगी हटाने की मांग के चलते,केंद्र सरकार ने 857 पोर्न वेबसाइटों को बंद करने की स...
प्रमोद भार्गव
अंतरजाल की आभासी व मयावी दुनिया से अश्लील साम्रगी हटाने की मांग के चलते,केंद्र सरकार ने 857 पोर्न वेबसाइटों को बंद करने की सूची इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को दी है। इन्हें बंद करने के संदर्भ में कम उ्रम के बच्चों पर इनके नकारात्मक असर को लेकर चिंता जताई गई है। इसके पहले सर्वोच्च न्यायालय भी अश्लील साम्रगी का कारोबार करने वाली वेबसाइटों के सिलसिले में गृह मंत्रालय से जवाब-तलब कर चुकी है। सरकार की इस कार्रवाही के साथ ही चंद बुद्धिजीवी इस यौनिक मुद्दे को भी वाम बनाम दक्षिणपंथ में बांटकर देखने लगे हैं। लिहाजा ऐसी आपत्तियां आनी षुरू हो गई हैं कि बच्चों से संबंधित पोर्न वीडियो पर प्रतिबंध लगाने के बहाने सरकार वयस्क नागरिको की निजता पर अंकुश लगाने को आमादा है। यह बेहद दुखद बौद्धिक पहलू है कि भौंडे,वीभत्स एवं निर्लज्ज तरीके से परोसी जा रही इस विकृत साम्रगी को भी कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में देख रहे हैं।
न्यायालय ने यही निर्देश संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की डॉ मनमोहन सिंह नेतृत्व वाली सरकार को भी दिया था। लेकिन सरकार ने असहायता जताते हुए तब कहा था,‘यदि हम एक साइट अवरुद्ध करते हैं तो दूसरी खुल जाती है। साथ ही सरकार ने नितांत हास्यास्पद दलील देते हुए कहा था ‘इन्हें बाधित करने से भारतीय भाषाओं का साहित्य भी प्रभावित हो सकता है।‘
एक वेब ठिकाना बंद करने पर दूसरे का यकायक खुल जाना भी एक हकीकत है। बल्कि वस्तुस्थिति यह है कि एक नहीं अनेक ठिकाने खुल जाते हैं। वह भी दृष्य,श्रव्य और मुद्रित तीनों माध्यमों में। ये साइटें नियंत्रित इसलिए नहीं होती,क्योंकि सर्वरों के नियंत्रण कक्ष विदेशों में हैं। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि अंतर्जाल पर सामग्री को नियंत्रित करने के पर्याप्त कानूनी उपाय नहीं हैं। इसलिए लोग बेधड़क अश्लील वीडियो देखते हैं। यह सुविधा आमतौर पर निशुल्क उपलब्ध होती है, इसलिए भी दर्शक आसानी से देख लेते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मायावी दुनिया में करीब 20 करोड़ अश्लील वीडियो क्लीपिंग चलायमान हैं, जो एक क्लिक पर कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, फेसबुक, ट्विटर और वाट्सअप की स्क्रीन पर उभर आती हैं। यहां सवाल उठता है कि इंटरनेट पर अश्लीलता की उपलब्धता के यही हालात चीन में भी थे। जब चीन ने इस यौन हमले से समाज में कुरूपता बढ़ती देखी तो उसके वेब तकनीक से जुड़े अभियतांओं ने एक झटके में सभी वेबसाइटों पर रोक लगा दी। गौरतलब है, जो सर्वर चीन में अश्लीलता परोसते हैं, उनके ठिकाने भी चीन से जुदा धरती और आकाश में हैं ?
इस तथ्य से दो आशंकाएं प्रगट होती हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में एक तो हम भारतीय बाजार से इस सामग्री को हटाना नहीं चाहते, दूसरे यह अश्लीलता कामवर्द्धक दवाओं व उपकरणों और गर्भ निरोधकों की बिक्री बढ़ाने में भी सहायक हो रही है। दरअसल इस कारोबार को बढ़ावा देने में एक पूरा माफिया तंत्र लगा हुआ है। ब्रिटेन में सोहो एक ऐसा स्थान है, जिसका विकास ही पोर्न फिल्मों के निर्माण के लिए हुआ है। ‘सोहो‘ पर इसी नाम से फ्रैंक हुजूर ने उपन्यास भी लिखा है। यहां बनने वाली अश्लील फिल्मों के निर्माण में ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने धन का निवेश करती हैं,जो कामोत्तेजक सामग्री,दवाओं व उपकरणों का निर्माण करती हैं। वियाग्रा, वायब्रेटर, कौमार्य झिल्ली, कंडोम,और सैक्सी डॉल के अलावा कामोद्दीपक तेल बनाने वाली कंपनियां इन फिल्मों के निर्माण में बढ़ा पूंजी निवेश करके मानसिकता को विकृत कर देने वाले कारोबार को बढ़ावा दे रही हैं। यह शहर ‘सैक्स उद्योग‘के नाम से ही विकसित हुआ है। बाजार को बढ़ावा देने के ऐसे ही उपायों के चलते ग्रीस और स्वीडन जैसे देशों में क्रमशः 89 और 53 फीसदी किशोर निरोध का उपयोग कर रहे हैं। यही वजह है कि बच्चे नाबालिग उम्र में काम मनोविज्ञान की दृष्टि से परिपक्व हो रहे हैं। 11 साल की बच्ची रजस्वला होने लगी है और 13-14 साल के किशोर कमोत्जेना महसूस करने लगे हैं। इस काम-विज्ञान की जिज्ञासा पूर्ति के लिए अब वे फुटपाथी सस्ते साहित्य पर नहीं,इंटरनेट की इन्हीं साइटों पर निर्भर हो रहे हैं। इसका विस्तार भारत में भी हो गया है। लिहाजा यह मुद्दा जितना निजता के हनन से जोड़कर जताया जा रहा है। उससे कहीं ज्यादा इसे बच्चों में बढ़ रही काम-पिपासा के दायरे में देखने की जरूरत हैं।
डॉ मनमोहन सिंह सरकार ने अश्लील बेव साइटों को बंद करने की मुश्किलों में एक मुश्किल यह भी जताई थी कि इन साइटों के बंद करने से साहित्य से जुड़ी साइटें प्रभावित होंगी। यही आशंका वाम बुद्धिजीवी भी जता रहे हैं। यह सही है कि अंतर्जाल पर आज हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं के ठिकाने उपलब्ध हैं। चिट्ठों (ब्लॉग) पर खूब साहित्य लिखा जा रहा है। सभी भाषाओं के समाचार पत्र-पत्रिकाएं भी ई-पत्रों के रूप में इंटरनेट पर उपलब्ध हैंं। इनमें अनेक साहित्यिक पत्रिकाएं भी हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा की भी ‘हिंदी समय डॉट कॉम‘ नाम से वेब ठिकाना है। इनमें अनेक पत्रिकाएं स्तरीय व अप्रकाशित दुर्लभ साहित्य प्रकाशित करने में अह्म भूमिका निभा रहीं हैं। समाचार-पत्र व राजनीतिक-पत्रिकाएं भी साहित्यिक सामग्री अपने रविवारीय परिशिष्टों में कहानी, कविता, उपन्यास अंश व पुस्तक समीक्षा के रूप में देते हैं। इनमें से ज्यादातर पत्रिकाएं नियमित हैं और इनका प्रसार दुनिया भर में फैले अप्रवासी भारतीयों में भी है। कई प्रवासी भारतीय भी हिंदी में ई-पत्रिका निकाल कर हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। अब यह समझ से परे है कि यह साहित्य अश्लीलता के दायरे में कैसे है और अश्लील दृश्य व श्रव्य साइटें प्रतिबंधित करने पर ये साइटें कैसे बंद हो जाएंगी ? दरअसल उद्योग जगत का पक्षधर मीडिया और बुद्विजीवी अश्लील सामग्री बंद न करने की पैरवी साहित्य के अलावा खजुराहो के मंदिरों में काम-कला से जुड़ी नग्न मूर्तियों और वात्स्यायन के ‘कामसूत्र‘ में दर्ज सचित्र काम-आसनों का हवाला देकर भी कर रहे हैं। इनका तर्क है कि यदि अश्लील साइटें बंद की जाती हैं तो खजुराहो और कामसूत्र से जुड़ी साइटें भी बंद करनी होंगी। ऐसा होता है तो इंटरनेट पर इन मंदिरों और इस ग्रंथ को देखकर जो पर्यटक विदेशों से आते हैं,उनमें कमी आएगी। कई बुद्धिजीवी तो यह कुतर्क भी गढ़ रहे हैं कि क्या अश्लीलता से बचने के लिए इन मंदिरों को ढहाया जा सकता है या कामसूत्र को नष्ट किया जा सकता है ?
खजुराहो की प्रणयरत मूर्तियों के साथ भारतीय दर्षन की आध्यात्मिक विलक्षणता जुड़ी हुई है। जिसका कोई दुनिया में दूसरा उदाहरण नहीं है। इस परिकल्पना के साथ अभिसार और अध्यात्म के युग्म,यानी भोग के बाद भक्ति-मार्ग की ओर प्रेरित करने का पवित्र अभिप्राय जुड़ा है,जो भारतीय जीवन-दर्शन का मूल है। फिर काम-कला की ये चित्र-खचित प्रतिदर्ष कहीं भी विकृत और बलात यौनिकता के दुर्भाव उत्पन्न करने का काम नहीं करते ? ये वास्तुशिल्प के भी अद्भुत नमूने हैं,जो अपने संपूर्ण मौलिक रूप में काम को जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग मानते हैं। इसीलिए चंद बुद्धिजीवियों द्वारा इस तरह के बेहूदा सवाल उठाना ही बेमानी है।
कामसूत्र के संदर्भ में तो हमारे देश में धारणा ही गलत है। ज्यादातर लोग अज्ञानतावश मानते हैं कि यह सिर्फ काम-विज्ञान का ग्रंथ है। जबकि जीवन के विविध आयामों से जुड़ी यह किताब बहुत आगे जाती है। इसमें सात अघ्याय हैं। इनमें से केवल दूसरे अघ्याय में चुबंन, आलिंगल और सहवास की विधियों विवेचन है। साफ है, कामसूत्र का महज एक चौथाई भाग सेक्स के बारे में है। इसके अध्याओं में दर्ज विषय हैं,नागरिक या सुरूचि संपन्न व्यक्ति की जीवन शैली, रसोई या आहार कला, गृहणी, यानी पत्नी के कर्त्तव्य, विवाह के प्रकार सामंतों का जीवन एवं रनिवास और इन सबसे इतर यह सौन्दर्यशास्त्र तथा सामाजशास्त्र की किताब है। वात्स्यायन का काम से आशय जीवन को सर्वांगीण रूप में सुंदर और सुव्यवस्थित बनाने वाले सारे तत्वों के समुच्चय से जुड़ा है। वास्तव में करीब सवा दो हजार साल पहले संस्कृत में लिखा गया यह ग्रंथ प्रेम सौंदर्य और जीवन के राग का एक अनूठा विश्वकोष है। साहित्य में इस विषय पर लिखा गया यह दुनिया में पहला ग्रंथ है। इसे देह के माध्यम से जीवन की कविता का आविष्कार भी माना जाता है। वैसे भी भारतीय जीवन-दर्शन में धर्म और अर्थ की तरह काम को भी जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। जाहिर है, साहित्य के बहाने अश्लील बेवसाइटों को जीवंत बनाए रखना सैक्स उद्योग को संरक्षण देना है। लिहाजा जो सामग्री बालकों के नाजुक मन-मस्तिष्क को विकृत कर यौन हिंसा के लिए बाध्य करती है,उस पर नियंत्रण जरूरी है।
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
शब्दार्थ 49,श्रीराम कॉलोनी
शिवपुरी म.प्र.
मो. 09425488224
फोन 07492 232007
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।
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