डॉ. दीपक आचार्य भारतीय संस्कृति की मिट्टी पलीत करने में जिन लोगों की अहम् भूमिका रही है उनमें सर्वाधिक वे लोग हैं जो अपने आपको गुरु कहन...
डॉ. दीपक आचार्य
भारतीय संस्कृति की मिट्टी पलीत करने में जिन लोगों की अहम् भूमिका रही है उनमें सर्वाधिक वे लोग हैं जो अपने आपको गुरु कहने-कहलवाने वाले हैं। इन लोगों ने गुरु परंपरा का जितना अपमान किया है और कर रहे हैं वह भारतभूमि के लिए सर्वाधिक दुर्भाग्यशाली पक्ष है जिसकी वजह से आज ईश्वर, धर्म, सत्य, संस्कृति, न्याय और परंपराओं से हमारा नाता टूटता जा रहा है और इसकी बजाय समाज-जीवन में भोग-विलास, ऎषणाओं और धर्म के नाम पर प्रेम एवं श्रद्धापूर्वक लूट-खसोट के नए-नए धंधे परवान पर हैं।
असली गुरु गायब हो गए हैं और नकली गुरुओं का चलन सब तरफ नॉन स्टॉप चल पड़ा है। धर्म के नाम पर ठगी और लूट का इससे बड़ा और कोई धंधा हो ही नहीं सकता जिसमें लूटने वाला श्रद्धा का महापात्र होता है और जो लुट जाने वाले हैं वे भी श्रद्धा के साथ लुट कर भी अपने आपको धन्य और कृत भाग्य मानते हुए आनंदित होते हैं।
भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों, सिद्धों, तपस्वियों ओर योगियों से लेकर असली गुरुओं की सुदीर्घ परंपरा रही है लेकिन हाल के वर्षों में गुरुओं और बाबाओं के नाम पर जिस तरह की जमातें हर तरफ कुकुरमुत्तों और गाजरघास की तरह उगती, पल्लवित होती और पसरती जा रही हैं उसे देख कर लगता है कि वाकई कलियुग हावी होने लगा है।
गुरुओं के नाम पर नए-नए पंथ, मत और सम्प्रदायों का जन्म हो रहा है, इनके नाम पर आलीशान आश्रमों और वैभवशाली प्रासादों का चलन बढ़ता जा रहा है, भोग-विलास के सारे संसाधनों और उपकरणों का जखीरा धर्म धामों को धन्य कर रहा है, बड़े-बड़े लोगों की आवाजाही और बेशकीमती वाहनों के काफिलों के साथ शानदार पार्किंग दिखाते आश्रमों ने गुरुओं के चेहरे की चमक-दमक बढ़ाकर जग प्रतिष्ठ कर दिया है।
सब तरफ तथाकथित गुरुओं के आडम्बर और पाखण्ड का तगड़ा नेटवर्क इंटरनेट संजाल की तरह इस कदर पसरा हुआ है कि हर किस्म के लोग इससे जुड़कर अपने आपको महात्मा, धार्मिक और अनन्य भक्त-शिष्य मानकर फूले नहीं समा रहे।
तमाम गुरुओं की सख्ती से पड़ताल की जाए तो यही तथ्य सामने आएगा कि अधिकांश न तो किसी गुरु परंपरा से जुड़े हुए हैं न इनमें गुरु के रूप में स्थापित होने लायक ज्ञान, अनुभव और तार्किक क्षमताएं।
बहुत से ऎसे हैं जो समाज-जीवन में कहीं असफल हुए तो बाबाजी बन गए। ढेरों ऎसे मिल जाएंगे जो अत्यन्त चतुर और शातिर किस्म के हैं और इन्हें लगता है कि धर्म के नाम पर लोगों को उल्लू बनाने से बड़ा सहज और आसान धंधा और कुछ नहीं, जहाँ हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा का चोखा।
बहुत सारों को पता है कि समाज में जब तक लोभियों और छोटी-मोटी कामनाओं को पूरा करने-कराने वाले भिखारियों की बहुतायत है तब तक धूर्तों को भूखे मरने की नौबत कभी नहीं आ सकती।
कई सारे पढ़े-लिखे चतुर किस्म के विद्वानोंं को लगता है कि धर्म का क्षेत्र ही एकमात्र ऎसा है जिसका सहारा लेकर दुनिया का सभी प्रकार का वैभव पाया जा सकता है और वह भी पूरी की पूरी श्रद्धा के साथ। न कोई बाधा, न खटका, मस्ती से भोग-विलास में डूबे रहो, एंजोय करो-कराओ और माल बनाते जाओ। हर तरह मूर्खों की कोई कमी थोड़े ही है।
धर्म के नाम पर सब तरफ फ्री-स्टाईल है। कोई पूछने वाला नहीं। चंद बड़े और धन्ना सेठों, कारोबारियों और पण्डितों को पकड़ लो, धंधा ऎसा चल निकलेगा कि पीछे मुड़कर देखने तक की जरूरत नहीं।
इन सभी पाखण्डी गुरुओं और बाबाओं का एकसूत्री एजेण्डा यही है कि धर्म के नाम पर भक्तों को ईश्वर से विमुख करते हुए गुमराह करना और अपने आपको स्वयंभू भगवान के रूप में स्थापित कर इन बुद्धिहीनों को अपने इर्द-गिर्द रोके रखना ताकि दोनों ही काम सध सकेें। एक तो तथाकथित गुरुओं के आस-पास हमेशा भीड़ बढ़ती रहे जो उनका ही उनका गुणगान करती रहे। दूसरी ओर मूल भगवदीय धाराओं से विमुख रहे ताकि सत्य का बोध तक न हो सके।
आजकल के गुरुओं का यही धंधा है। और यही कारण है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग ऎसे हैं जो धर्म और भक्ति के नाम पर तथाकथित गुरुओं और पाखण्डी बाबाओं के परिसरों में परिभ्रमण करते रहने के आदी हो गए हैं।
यह धर्मसंगत शाश्वत तथ्य और सत्य है कि जो लोग भगवान के मार्ग को ग्रहण करते हैं, थोड़ी-बहुत साधना भी कर लिया करते हैं उनके भीतर सत्य का प्रकटीकरण करना परमात्मा का दायित्व होता है और ऎसे में जो लोग धर्म के मर्म और सत्य को जान लेते हैं वे इन पाखण्डी और ढोंगी गुरुओं, बाबाओं और इनके नाम पर दान-दक्षिणा व पूजा-पाठ-अनुष्ठानों का धंधा करने वाले, भगवान के नाम पर मनोकामना पूर्ति, रोग निवारण या आपत्ति उन्मूलन के धंधों में दलाली करने वाले पण्डितों से अपने आप दूरी बना लिया करते हैं और भगवान की कृपा से जुड़ी मुख्य धारा में आ जुड़ते हैं जहाँ धर्म का मूल मर्म इन्हें अपने आप सारे पाखण्डों, भ्रमों और शंकाओं से दूर कर देता है। फिर ये किसी ढोंगी के चक्कर में नहीं आते।
जो लोग सीधे भगवान की उपासना की ओर ध्यान देते हैं, भगवान को ही अपना गुरु मानते हैं अथवा योग्य गुरु से दीक्षा प्राप्त करते हैं वे ईश्वरीय मुख्य धारा का आनंद पाते हैं जबकि जो लोग भगवान के नाम पर धर्म का धंधा करने वाले गुरुओं के पीछे भागते हैं, उनके अंधानुचर बने रहते हैं उन्हें न धर्म का भय होता है न भगवान का।
यही कारण है कि इन बाबों और गुरुओं के शिष्यों में अपवादों को छोड़कर स्वेच्छाचारी लोगों की संख्या अधिक हुआ करती है जिनका मूल मकसद अपने गुरुओं की ही तरह धर्म के नाम पर धंधेबाजी मानसिकता को अपना कर अपने उल्लू सीधे करना ही रह जाता है। इन लोगों के लिए अपने गुरु के बताए मार्ग के सिवा सब कुछ व्यथा होता है यहाँ तक कि भगवान को भी ये द्वितीयक मानते हैं।
जिस गुरु में पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा होती है वह कभी गुरु नहीं हो सकता। जो स्वयं शरीर को तपाता है, त्याग और तपस्या में रमा रहता है, औरों को सच्ची व निष्काम सेवा, परोपकार, परिश्रम और सादगी का पाठ पढ़ाता है वही सच्चा गुरु हो सकता है। लेकिन ऎसे गुरुओं की संख्या नगण्य होती जा रही है।
यही कारण है कि आज समाज मेंं सच्चे गुरुओं का भारी अकाल होता जा रहा है और नई किस्म की ऎसी गुरु-शिष्य परंपरा स्थापित होती जा रही है जिसमें दोनों पक्षों का परम लक्ष्य भौतिक सम्पदा का अर्जन और भोग-विलास के संसाधन जुटाना, एक-दूसरे के सभी प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने में सहभागी होना और निरापद एवं वैभवशाली जीवन जीने के लिए सभी जतन करना ही अभीष्ट हो गया है। इससे लोगों को धर्म और परंपराओं के बारे में सही-सही ज्ञान, जानकारी और मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है और लोग भटकते रहने के आदी होते जा रहे हैं।
इन गुरुओं के फेर में आ जाने के बाद धर्म, भगवान, सत्य, न्याय और दूसरे सारे उपादान लक्ष्य न होकर सहयोगी या आड़ का काम करते हैं। धर्म, संस्कृति और परंपराओं के प्रति समझ के अभाव और अपने-अपने गुरु के प्रति अंधश्रद्धा ही वह कारण है जिससे तथाकथित गुरुओं के चेलों की फौज स्वेच्छाचारी, उन्मुक्त और स्वच्छन्द व्यवहार करती नज़र आती है।
इन सबके बावजूद आज भी धरती बीज नहीं खा गई है। बहुत सारे त्यागी-तपस्वी और धर्ममर्मज्ञ गुरु हैं लेकिन उन्हें न लोकप्रियता चाहिए, न भोग-विलासिता, और न ही शिष्यों की भारी भरकम फौज, इसलिए वे एकान्तिक साधना का मार्ग अपनाए हुए अपने-अपने हिसाब से जगत के कल्याण में जुटे हुए हैं।
---000---
- डॉ. दीपक आचार्य
COMMENTS