- योगेन्द्र प्रताप मौर्य वैसे तो हमारे घर मधु खरीदने के लिए लोग अक्सर आया करते हैं किफायती रेट और शुद्ध मधु यही पहचान है भैया की ( बताता च...
-योगेन्द्र प्रताप मौर्य
वैसे तो हमारे घर मधु खरीदने के लिए लोग अक्सर आया करते हैं किफायती रेट और शुद्ध मधु यही पहचान है भैया की ( बताता चलूँ कि भैया का मधुमक्खी पालन का व्यवसाय है)
स्कूल के बाद मेरा सारा समय घर पर ही बीतता है। मैं उस समय घर पर ही था ,जब वह लड़का मधु लेने आया था। हालांकि उसको मैं ठीक-ठीक जानता था पर उससे कभी बातें नहीं की थी या ऐसा कभी जरूरत ही नहीं पड़ी थी। उसका घर बाजार में था और मेरा बाजार के पिछवाड़े। दूरी महज 150 मीटर के आसपास रही होगी। उसने आधा किलो मधु लिया। जब पैसा देने की बारी आई तो बोला भैयाजी पांच रुपये छोड़ दीजिये।
पासपड़ोस के नाते हमने कहा चलो पांच कम ही दो। फिर हमने उसका नाम पूछा तो उसने इमरान बताया। हमने कहा -इमरान किस कक्षा में पढते हो। तो वह बोला -भैयाजी मेरे भाई बहनो में कोई अलिफ़ बे ते के आगे बढ़ा ही नहीं। मौलवी के हाथों बहुत डंडे खाये है। अब्बा कहते है कि पढ़-लिखकर क्या करोगे इससे अच्छा अंडा बेचो दो पैसे की आमदनी ही होगी। मेरा उसके प्रति कोई आकर्षण नहीं था। लेकिन उसका नाम इमरान याद हो गया। बाजार आते-जाते जब भी मेरी नजर उस पर पड़ती तो वह जरूर मुस्कुराता था। और मेरे दिमाग में उसका नाम इमरान आ जाता था। हफ्ते भर बीते होंगे कि एक दिन फिर इमरान आधा किलो मधु लेने आ गया। इस बार उसे भाव-ताव की दिक्कत न हुई। जितना पैसा उस बार दिया था उतना देकर चलता बना।
इस बार इमरान बड़ा परेशान दिखाई पड़ रहा था लेकिन हमने इसका कारण नहीं पूछा। हाँ उस रात को इमरान जरूर दिखाई पड़ा था। गोल-मटोल मुस्कुराता हुआ चेहरा, लुंगी और हीरोइन छाप बनियान पहने हुए। उम्र यही कोई बारह-तेरह की रही होगी। शरीर दुबला-पतला था इसलिए कुछ लंबा दिखाई पड़ रहा था। खड़े-खड़े अम्मी को बेना कर रहा था। अम्मी का पसीना सूख ही नहीं रहा था। मैंने कहा- "इमरान क्या हुआ अम्मी को"? इमरान तो नहीं बोला। पर मेरी बीवी जरूर बोली -किसके अम्मी को पूछ रहे हैं ? अचानक मेरी नींद खुल गई। कुछ नहीं बस इमरान और उसकी अम्मी स्वप्न में आ गए थे। कल मैं बाजार जा रहा था तो इमरान के यहाँ भीड़ लगी थी। जल्दी में था इसलिए रुका नहीं। बस वही लोग स्वप्न में आ गए थे- मैं कहे जा रहा था। अच्छा वह जुलाहा अरे उसकी अम्मी को तो हवा मार दिया है। बेचारा गरीब है। अच्छा सो जाओ -बीवी ने कहा। मुझे नींद कहाँ आने वाली थी। खैर किसी तरह रात बीती।
हफ्ता तो लगभग बीत चुका था, मैं सोच ही रहा था कि इमरान इस बार मधु लेने नहीं आया तबतक इमरान डिब्बा लेकर पहुँच गया। हमने डिब्बे में आधा किलो मधु भर दिया। मुझे उस पर दया आ रही थी। बेचारा दिनरात अम्मी की सेवा में लगा रहता है। ऊपर से चार बिन ब्याही बहनें जो खर्चा चलाने के लिए बीड़ी बनाने का काम करती थी। अब्बा का फेरी करने का काम था। दो भाई इमरान से बड़े थे जो हाल ही में मुंबई कमाने गए थे और दो भाई इमरान से छोटे थे। घर में सब सामान लाने की जिम्मेदारी इमरान की ही थी। इस प्रकार इमरान कुल नौ भाई-बहन थे और अम्मी -अब्बा। घर पक्का था पर ओ भी बाबा आदम के ज़माने का जर्जर हो चुका था उसमें जगह मुम्बई के खोली के इतना था, आधी गृहस्थी तो घर के बाहर ही रहता था। ऊपर से अम्मी को हवा लग जाना। इमरान के अब्बा की कमर तोड़ के रख दी। इमरान तुम्हारी अम्मी को क्या हुआ है-मैंने पूछा। उनको हवा लग गई है-इमरान ने कहा। अब्बा से कह दो किसी बड़े हॉस्पिटल में इलाज कराये -मैंने कहा।
भैयाजी दो वक़्त की रोटी का इंतजाम हो जाये वही बहुत है। वैसे भी अब्बा पीर बाबा से मिलकर आये है। वे मधु का शर्बत देने के लिए बोले है अब तो पहले से कुछ आराम है -इमरान भावुक होकर बताये जा रहा था। कुछ देर बाद वह चला गया। मैं बाजार जाते समय उसके घर से गुजरता था उसकी अम्मी हरदम मुँह से कुछ अनाप-शनाप बोलती रहती थी। पर स्पष्ट न होने के कारण समझ में नहीं आ रहा था। शायद सबको गालियां ही दे रही हो। खैर उनकी गालियों का किसी पर असर नहीं था बल्कि सहानुभूति ही थी। मन तो करता था जा के हालचाल ले लूं किन्तु उनका रहन-सहन देखकर अंदर जाने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। इमरान हफ्ते भर बाद फिर मधु लेने आया। इस बार वह काफी खुश था। अब तुम्हारी अम्मी कैसी है-मैंने पूछा
पहले से ठीक है -इमरान ने उत्तर दिया।
तभी काफी खुश हो -मैंने कहा।
भैयाजी रमजान आ गया है और ईद का रोजा शुरू हो गया है मैं भी रोजा रखता हूँ। ईद की तैयारियां शुरू हो गई। नए-नए कपड़े,जूते,चप्पल.....ख़ुशी तो होगी ही-इमरान बड़े अच्छे से बताये जा रहा था।
मैं हैरान था बेचारा नए कपड़े इत्यादि के लिए इतना खुश है किन्तु इसके अब्बा तो इस बार इसके ख़ुशी पर पानी फेर देंगे। कहाँ से उधार लायेगे। कपड़े वाले, जूते वाले ,किराने वाले सब के यहाँ तो उधार किये बैठे है ,जब कोई भी तगादा करता तो कहते निसार और लियाकत कमाने गए है पैसे भेजते ही चुकता कर दूंगा। मैं इमरान की ख़ुशी कम नहीं करना चाहता था। इसलिए उसकी हर एक बातों को सुन रहा था उसने तो हमें भी सेवइयां खाने की दावत देते हुए चला गया।
मैं एक दिन बाजार से लौट रहा था तो देखा कि किराना वाला इमरान के अब्बा से झगड़ रहा था । ईद तक उधार चुकता नहीं किये तो ठीक नहीं होगा नहीं तो इन बकरियों को उठा ले जाऊंगा बेचारे इमरान की अम्मी की बीमारी की दुहाई दे रहे थे। मैं रुका नहीं आगे बढ़ गया जबकि इमरान हमें देख रहा था। इमरान बीच में फिर मधु लेने आया था। हमने घर वालों से कह दिया था इमरान से अब पैसे मत लेना। बेचारा की ईद करीब है। कम से कम इन पैसो से वह कपड़ा वगैरह खरीद लेगा। बहुत मासूम है।
भोर हो रहा था। आसमान में लालिमा थी। ईद का दिन था। इमरान सेवइयां खाने के लिए बुलाया था। मैं सोच रहा था। आज इमरान के अब्बा को कुछ पैसे दे आऊं।
तबतक बाहर किसी के पुकारने की आवाज आई.....भैया जी...भैया जी... मैं छत से नीचे झाँका तो इमरान था
क्या हुआ इमरान ?
उसके आँखों में आँसू थे। केवल लुंगी पहने था।
भैयाजी फावड़ा .....चा..हि..ये...।
फावड़ा...
पर..
अम्मी अल्ला को प्यारी हो गई....
मेरे मुंह से निकला पर ...ई...द..
-योगेन्द्र प्रताप मौर्य
बरसठी ,जौनपुर
मो. 8400332294
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