(ताज़ा अपडेट - अभी खबर मिली है कि हमला नाकाम कर दिया गया है और सभी आतंकवादी मारे गए हैं) पंजाब में मुंबई दोहराने की कोशिश लोकमित्र पंजाब म...
(ताज़ा अपडेट - अभी खबर मिली है कि हमला नाकाम कर दिया गया है और सभी आतंकवादी मारे गए हैं)
पंजाब में मुंबई दोहराने की कोशिश
लोकमित्र
पंजाब में 20 साल बाद हुए, 27जुलाई 2015 को सुबह 5 बजे हुए आतंकी हमले ने, एक बार फिर से 26/11 मुंबई के फिदायीन हमले की याद ताजा कर दी है। यह कैसा दुःसंयोग है कि अभी एक दिन पहले ही पंजाब के राज्यपाल रहे जूलियस फ्रांसिस रिबेरो का राजधानी दिल्ली के एक अंग्रेजी दैनिक में आर्टिकल छपा था, जिसमें आगाह किया गया था कि पाकिस्तान की मदद से पंजाब में फिर से आतंकवादी सिर उठा सकते हैं। यही नहीं ठीक इसी तरह का एक एलर्ट पिछले हफ्ते ही आईबी की तरफ से पंजाब पुलिस को भेजा गया था। जिसमें कहा गया था कि आतंकवादी अपनी तरफ दुनियावी फोकस घुमाने के लिए इसी तरह का कुछ कर सकते हैं, जैसाकि सामने आया है।
लेकिन सवाल उठता है कि आतंकवादी अपने से संबंधित भविष्वाणियों को सच साबित करने पर इतने बेखौफ तरीके से क्यों जुटें हुए हैं? पहले यह एक अघोषित नियम सा हुआ करता था कि जब जब हाई अलर्ट या बड़े आतंकी हमले की आशंका जतायी जाती थी, उन दिनों खास तौरपर आतंकी इस तरह की हरकत को अंजाम देने से बचते थे। मगर अब आतंकी अपने भविष्यवाणियों के अनुकूल ही जोखिम उठाने की हिम्मत जुटा ले रहे हैं। पाकिस्तान इस हमले का रचनाकार है, इसके लिए अलग से कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं। इस हमले के तमाम हावभाव उसी की तरफ इशारा करते हैं। आतंकी हमले का तौर तरीका, आतंकवादियों की लगातार घुसपैठ की नामकाम कोशिशों की खीझ और लगातार भारत पर बेशर्म दबाव बनाने की पाकिस्तानी सत्ता की कोशिश। ये कुछ ऐसे सबूत हैं जिनकी रोशनी में यह माथापच्ची करने की जरूरत नहीं है कि गुरुदासपुर हमले की रूपरेखा बनाने वाला और उसे अंजाम देने वाला कौन है?
मगर सवाल है इस हमले के पीछे आतंकियों और भारत के बैचेन पड़ोसी का क्या संदेश हो सकता है? इस पर विचार करने के पहले एक नजर उस खौफनाक परिदृश्य पर डाल लेते हैं जो दो दशकों बाद पंजाब की सरजमीं में फिर से देखने को मिला। 27 जुलाई की सुबह 5 बजे देश अभी नींद के आगोश में ही था कि पाकिस्तान की सीमा से सटे महज 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंजाब के गुरुदासपुर में सेना की वर्दी पहने चार आत्मघाती आतंकवादी गुरुदासपुर बस टर्मिनल पहुंचे। क्योंकि उनके निशाने पर अमरनाथ यात्रा पर जा रहे यात्री थे। मगर अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले यात्री निकल चुके थे। तभी इन्हें जम्मू से कटरा की तरफ जा रही बस दिख गई। ये उस पर सवार हुए। उस समय बस में 25 से 30 यात्री मौजूद थे। आतंकियों ने इन पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी जिससे एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई और 7 यात्री बुरी तरह से घायल हो गए।
ये आतंकवादी जिस समय बस पर हमला किया था, उस तक एक सफेद मारूति से पहुंचे थे, जिस उन्होनें आध्ो घंटे पहले ही एक व्यक्ति की हत्या करके छीनी थी। बस पर हमला करके और कई लोगों पर गोलियां बरसाकर ये कुछ ही दूर स्थित दीनानगर पुलिस स्टेशन में घुस गए। पुलिस स्टेशन में घुसकर अंधाधुंध फायरिंग की। गौरतलब है कि इस पुलिस स्टेशन से पुलिस वालों की कालोनी भी जुड़ी हुई है, जहां पुलिस अफसर रहते हैं। शायद इनका मकसद पुलिस स्टेशन पर घुसकर कुछ पुलिस वालों को बंधक बनाने का रहा होगा। लेकिन इस हमले के विरोध में सुरक्षा एजेंसियों ने करारा प्रति हमला किया, जिससे आतंकी अपनी बंधक योजना पर सफल नहीं हुए।
बहरहाल इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अभी ये आत्मघाती हमला समाप्त नहीं हुआ था। दोनों तरफ से जोर शोर से फायरिंग जारी थी और अगर सभी आतंकवादियों के अंतिम सांस लेने तक मृतकों की संख्या में और ज्यादा इजाफा हो जाता है तो आश्चर्य नहीं होगा। आतंकवादी तो चाहते ही यही हैं ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा मीडिया में सुर्खियां हासिल हो सकें। हाल के दिनों में देखने में आया है कि आतंकवादी संगठन चाहे वो जहां पर अपनी आतंकी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हों, एक खास किस्म के औचक गुरिल्ला वार को तरजीह दे रहे हैं। आतंकी अपनी जान हथेली पर लेकर आते हैं और किसी भी संवेदनशील जगह पर अंधाधुंध फायरिंग करते हुए प्रवेश कर जाते है। फिर खुद मरने तक जितना अधिक से अधिक खून बहा सकते इसकी कोशिश करते हैं।
गुरिल्ला हमला करना आतंकवादियों को कोई नया रणनीतिक प्रयोग नहीं हैं। हमेशा से हारते हुए, अपनी ताकत को कम समझने वाले, आत्मघाती इसी हमले के तरीके पर बाजी लगाते रहे हैं। हालांकि इतिहास में कई योद्धा न्याय और ताकत की गैर बराबरी पर आजादी के लिए लड़ाई के इस तरीके पर हाथ आजमाते रहे हैं। लेकिन पिछले कई दशकों से अब इस पर आतंकवादियों का ही कब्जा दिख रहा है। दरअसल भले आतंकवादियों ने पूरी दुनिया को दहशत में बने रहने के लिए मजबूर कर दिया हो, लेकिन हकीकत यही है कि आतंकवादी दुनिया में हर जगह हार रहे हैं या उनके पैर उखड़ रहे हैं। ऐसे में उनकी अधिक से अधिक गतिविधियां आत्मघाती हो गई हैं।
भारत में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी पिछले 6 दशकों से कश्मीर को हड़पने की अपनी नाकाम जिद पर अड़े हैं। हर गुजरते दिन के साथ वो इस सच को पहले से कहीं ज्यादा मजबूती से समझने लगे हैं कि कश्मीर को भारत से लड़कर, आतंकी धौंस दिखाकर और उथल पुलथ की कोशिशों से नहीं हासिल कर सकते। कई कई संगठनों ने मिलकर अपनी तमाम मंशाओं को नए नए प्रयोगों से अंजाम देकर देख चुके हैं और समझ चुके हैं कि मजबूत भारतीय सेना तथा दृढ़ इच्छा वाली भारतीय सत्ता के सामने पाकिस्तान की कोई भी गतिविधि कामयाब नहीं हो सकती। इसलिए आतंकी अब सिर्फ आतंक की भाषा से भारत को डराने की कोशिश कर रहे हैंं। लेकिन वो नहीं समझते कि हिंदुस्तान के लोगों में अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की बदौलत सदियों तक संघर्ष का माद्दा है। इसलिए इस तरह की आत्मघाती घटनाएं कुछ घड़ी और मिनटों के लिए भारत को भौचक कर सकती हैं, सकते में ला सकती हैं। लेकिन परास्त नहीं कर सकतीं।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)
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