- दयाधर जोशी बाल समय रबि भक्षि लियो तब , तीनहुँ लोक भयो अंधियारो. ताहि सों त्रास भयो जग को , यह संकट काहु सों जात न टारो. देवन आनि कर...
- दयाधर जोशी
बाल समय रबि भक्षि लियो तब, तीनहुँ लोक भयो अंधियारो.
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो. देवन आनि करी बिनती तब,
छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो; को नहिं जानत है जगमें कपिद्य
संकटमोचन नाम तिहारो.-1
हे हनुमानजी! बाल्यावस्था में हजारों योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को मीठा फल समझ कर आपने अपने मुँह में रख लिया जिससे तीनों लोकों में अंधकार छा गया। संसार में चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। लेकिन यह संकट किसी से टाला नहीं जा सका। तब देवताओं ने आकर आपसे विनती की तो आपने सूर्य को मुक्त कर उनका एवं संसार पर आये कष्ट का निवारण किया। संकट मोचन का यह पहला काम आपने बाल्यावस्था में बाल-लीला करते हुए किया। हे वीर हनुमान! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है? आप
सभी कष्टों का निवारण करने वाले हैं, यह बात जग प्रसिद्ध है। बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो;
चौंकि महा मुनि शाप दियो तब, चाहिय कौन बिचार बिचारो.
कै द्विज रुप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो. को-2
हे हनुमानजी! बाली के डर से डरे हुए सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत की चोटी पर रहते थे। वहाँ से उन्होंने धनुषधारी श्रीराम और लक्ष्मण को उधर आते देखा। ऋषि मतंग के श्राप के डर से बाली तो यहाँ आ नहीं सकता। कहीं बाली ने इन्हें मुझे मारने के लिये तो नहीं भेजा है? सुग्रीव ने आपसे कोई उपाय सोचने के लिये कहा। तब आपने ब्राह्मण का रुप
धारण कर इनसे परिचय किया। परिचय हो जाने पर आप श्रीराम-लक्ष्मण को आदरसहित पर्वत पर ले गये और इनकी कृपा से सुग्रीव का शोक निवारण किया। हे वीर हनुमान! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है?
अंगद के सँग लेन गये सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो; जीवत ना बचिहौ हम सों जु,
बिना सुधि लाए ईंहाँ पगु धारो.
हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय, सिया-सुधि प्रान उबारो. को-3
हे वीर हनुमान! सीतामाता की खोज के लिये सुग्रीव ने आपको एवं अन्य वानर भालुओं को युवराज अंगद के साथ भेजते हुए कहा था कि 'यदि तुम सीतामाता की खोज करने में असफल रहे तो लौट कर मुझे अपना मुँह मत दिखाना। तुम जीवित नहीं बचोगे।' सीतामाता नहीं मिली तो थके माँदे निराश वानर समुद्र तट पर बैठ गये। तब आपने देहाभिमानी समुद्र को लाँघ कर सीतामाता की खोज की और अंगद सहित सभी वानरों के प्राण बचाये थे। हे हनुमानजी! संसार मं ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है?
रावन त्रास दई सिय को सब,
राक्षसि सों कहि सोक निवारो; ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो.
चाहत सीय असोक सों आगिसु,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो. को-4
हे हनुमानजी! रावण ने सीतामाता को भयभीत किया और राक्षसियों से कहा कि वे सीता के शोक का निवारण करें। सीतामाता के लिये यह सब असह्य हो गया तो वे अशोक वृक्ष के कोमल पत्तों से स्वयं को भस्म करने के लिये अग्नि माँग रही थी। ऐसे विपरीत समय में आपने प्रभु श्रीराम की मुद्रिका उनकी गोद में डाल दी और प्रभु श्रीरामचन्द्रजी के गुण समूहों का वर्णन कर उनका
शोक निवारण किया, व राक्षसों का संहार किया। हे हनुमानजी! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है? बान लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो; लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो.
आनि सजीवन हाथ दई तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो. को-5
हे हनुमानजी! लंका में युद्ध करते हुए जब रावण पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण जी की छाती में शक्तिबाण मारा तो वे मरणासन्न घायल हो गये और मूर्छित होकर गिर पड़े। तब आप लंका के राजवैद्य सुषेन को उसके घर सहित ले आये थे। वैद्यराज ने लक्ष्मण की प्राण रक्षा के लिये, हिमालय के द्रोणाचल पर्वत से सूर्योदय से पहले, संजीवनी बूटी लाने को कहा। उनकी सलाह को मान कर आप संजीवनी सहित द्रोणाचल पर्वत को ही उठा लाये। उसमें से संजीवनी बूटी निकाल कर लक्ष्मणजी को देने से उनके प्राणों की रक्षा हो सकी। हे हनुमानजी! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट मोचन' नाम नहीं जानता है?
रावन जुद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो; श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो.
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो. क-6
हे वीर हनुमानजी! रावण ने स्वयं युद्ध करते हुए 'नागपास' अस्त्र का प्रयोग कर श्रीराम लक्ष्मण सहित अनेकों वीरों को मायिक सर्प डाल कर बाँध दिया। प्रभु श्रीराम सहित सभी मोह के वश में हो गये। श्रीराम की सेना में घोर संकट उत्पन्न हो गया। चारों ओर शोक की लहर छा गई। तब आप इस संकट की घड़ी में पक्षीराज गरुड़ को लेकर आये। गरुड़ ने सभी सर्पों को काट कर श्रीराम-लक्ष्मण को 'नागपाश' से मुक्त किया। आपने अपने प्राण संकट में डाल कर भगवान श्रीराम के कष्ट को दूर किया। हे हनुमानजी! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है?
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो;
देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो.
जाय सहाय भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत सँहारो. को-7
हे वीर हनुमान! पाताल लोक का राजा अहिरावण, श्रीराम-लक्ष्मण को अपने लोक में ले गया। उसने सबके साथ मिल कर विधि-विधान से दवे ी की पूजा की और पूजा के अंत में सभी ने आपस में मंत्रणा कर राम-लक्ष्मण की बलि देने का निर्णय ले लिया। इसी समय आपने वहाँ पहुँच कर अकेले ही अहिरावण और उसकी सेना का संहार कर श्रीराम-लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की। हे हनुमानजी! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है?
काज किये बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो;
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसों नहिं जात है टारो.
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कुछ संकट होय हमारो. को-8
हे वीर हनुमान! आपने बड़े-बड़े देवताओं के कार्यों को सम्पन्न किया है। हे महाप्रभु! आप
भलीभाँति विचार करें कि मुझ जैसे गरीब साधारण जन का ऐसा कौन सा संकट हो सकता है जिसका निवारण आप नहीं कर सकते हो, जिसको आप दूर नहीं कर सकते? हे हनुमान महाप्रभु! हमारे जो भी संकट हों उन्हें अतिशीघ्र दूर करो। यह बात सभी जानते हैं कि जन-जन के संकटों का निवारण करने वाले आप ही हैं। हे हनुमानजी! संसार में ऐसा कौन है जो आपका 'संकट-मोचन' नाम नहीं जानता है? लाल देहलाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर.
हे हनुमानजी! आपका शरीर लाल है, आपने लाल पूँछ धारण की है। आपके शरीर पर लाल रंग का सिन्दूर व लाल रंग का चारुवेश सुशोभित है। आपके महातेजस्वी शरीर के लाल रंग से रक्तिम किरणें निकलती दिखायी दे रही हैं। आपका शरीर वज्र के समान है। हे बजरंगी! आप दुष्टों का संहार करने वाले हैं। आप कपियों में महाशूरवीर हैं। हे संकट मोचन! हे महाशूरवीर! आपकी जय हो! जय हो! जय हो!
श्री तुलसीदास कृत संकट मोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ।
सत्यमेतद् रघुश्रेष्ठ यद् ब्रवीषि हनूमति।
न बले विद्यते तुल्यो न गतौ न मतौ परः।।
वा.रा. ७/३५/ १५
महर्षि अगस्त्य कहते हैं, हे रघुश्रेष्ठ श्रीराम! हनुमान के विषय में आप जो कुछ कहते हैं, वह सब सत्य ही है, बल, बुद्धि एवं गति में इनकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई नहीं है।
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