- जावेद अनीस भोजपुरी गायक गुड्डू रंगीला अपने “हमरा हाउ चाही” जैसे दिअर्थी गीतों के वजह से काफी बदनाम रहे हैं, निर्देशक सुभाष कपूर की नयी ...
- जावेद अनीस
भोजपुरी गायक गुड्डू रंगीला अपने “हमरा हाउ चाही” जैसे दिअर्थी गीतों के वजह से काफी बदनाम रहे हैं, निर्देशक सुभाष कपूर की नयी फिल्म के दो प्रमुख किरदारों का नाम भी “गुड्डू” और “रंगीला” है, संयोग से यह समानता यही तक सीमित रहती है और हम पाते हैं कि खाप पंचायतों की दहशत हरियाणा के गलियों से उड़ कर सिनेमा के पर्दे पर तैर रही है।
कुछ समय से पश्चिमी उत्तरप्रदेश और हरियाणा हमारे राजनीति और सिनेमा के लिए दिलचस्पी का केंद्र बने हुए हैं, यह क्षेत्र घटते लिंगानुपात, “खाप पंचायतों”, 'ऑनर किलिंग' और इन्हें दी जा रही राजनीतिक संरक्षण की वजह से पहले से ही बदनामियाँ बटोरता रहा है, इधर सियासत भी “लव जिहाद” और “सामाजिक तनाव” को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को चलाकर इसे अपने विभाजनकारी राजनीति का प्रयोग केंद्र बनाए हुए है। जिसके नतीजे में वहां समुदायों के बीच आपसी सम्बन्ध और सहअस्तित्व तेजी से खत्म हो रहे हैं और उनकी जगह परस्पर अविश्वास और नफरतें ले रही हैं, मुजफ्फरनगर और अटाली जैसी वारदातों में राजनेता अपना हाथ सेंक रहे हैं और पूरी व्यवस्था या तो इसमें शामिल है या मूकदर्शक बने रहने के लिए कीमत वसूल रही है। यह सबकुछ आधी सदी पहले लिखे गये उपन्यास “उदास नस्लें” की याद दिलाती हैं, जिसमें पाकिस्तान के उपन्यासकार अब्दुल्ला हुसैन ने 1947 के बंटवारे, विस्थापन, तत्कालीन भारतीय समाज में अस्मिताओं के टकराव और बदलाव की कहानी को दर्दमन्दी के साथ तहरीर किया है।
सिनेमा पर वापस लौटें तो पिछले चंद महीनों में करीब कई ऐसी फिल्में आई हैं जिनके बैकग्राउंड में हरियाणा, खाप और यहाँ की औरतें रही हैं वो हैं एन एच 10, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, मिस टनकपुर हाजिर हो और अब गुड्डू रंगीला। रिलीज से पहले ही इस फिल्म को लेकर विवाद भी सामने आया, मुख्य विवाद कॉमेडी भजन 'कल रात माता का मुझे ईमेल आया है' को लेकर था जिसे कई संगठन आस्था के साथ खिलवाड़ बताते हुए फिल्म से हटाने की मांग कर रहे थे। सेंसर बोर्ड द्वारा भी फिल्म के कई संवादों पर कैंची चलाये जाने की ख़बरें आयीं।
“गुड्डू रंगीला” के केंद्र में इज़्ज़त बचाने के नाम पर की जा रही “ऑनर किलिंग” जैसा संवेदनशील मुद्दा है, यह मनोज-बबली ऑनर किलिंग से प्रेरित है। 2007 में हरियाणा के करनाल ज़िले क़े मनोज और बबली ने खाप पंचायत के फैसले का विरोध करते हुए घर से भागकर शादी कर ली थी। बाद में खाप पंचायत के निर्देश पर उनकी कोर्ट से लौटते हुए निर्मम हत्या कर दी गई क्योंकि दोनों एक ही बिरादरी के थे हत्या के वक्त इन दोनों को कोर्ट से सुरक्षा मिली हुई थी। आमिर खान के प्रोग्राम 'सत्यमेव जयते' में मनोज के परिवार वालों ने बताया था कि हत्या के वक्त इन दोनों को कोर्ट से सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन अपने को कानून से ऊपर समझने वाले खाप के लोगों दारा पहले तो दोनों को सरेआम गाड़ी से बांध कर घसीटा गया और फिर उनका गला घोंट कर मार डाला और हाथ पैर बांध कर नहर में डाल दिया। यही नहीं दोनों की मौत के बाद इनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार भी किया गया, यहां तक कि गांव के कुम्हार ने तो उनकी अस्थि कलश के लिए कलश देने से भी इनकार कर दिया था।
मार-धाड़, हिंसा और हास्य से लदी यह फिल्म दो बदमाश भाईयों की कहानी है। गुड्डू (अमित साध) और रंगीला (अरशद वारसी) नाम के ये चचेरे भाई वैसे तो ऑर्केस्ट्रा चलाते हैं लेकिन इसके आड़ में वे इसके साथ ही कुछ स्थानीय गिरोहों के लिए मुखबिर का काम करते हैं, वे जब किसी के घर गाने बजाने का कार्यक्रम करने जाते हैं तो वहां कितना पैसा और गहना है इसके बारे में डकैतों के गिरोह को बता देते हैं जिसकी ऐवज में उन्हें कुछ पैसे मिलते हैं। इस दौरान रंगीला लोकल नेता बिल्लू पहेलवान (रोनित रॉय) के खिलाफ कोर्ट भी लड़ता है क्योंकि बिल्लू द्वारा पूर्व में उसकी और उसकी प्रेमिका बबली (श्रीस्वरा ) की प्रेम विवाह के जुर्म में इसलिए हत्या करने की कोशिश की गयी होती है क्योंकि दोनों की जाति अलग होने की वजह से खाप ने इन्हें मारने का हुक्म सुना दिया था। इसमें बबली तो बच जाता है लेकिन रंगीला सहित सबको लगता है कि बबली मर चुकी है। सब कुछ ठीक चलता है लेकिन इसी बीच ट्रांसफार होकर नया पुलिस इंस्पेक्टर आ जाता है जो उनसे मुखबरी के एवज में दस लाख रूपए की डिमांड के देता है। मजबूरी में गुड्डू और रंगीला जल्दी पैसा कमाने के लिए बंगाली के दस लाख रुपए के प्लान का हिस्सा बन जाते हैं। बंगाली के साथ दस लाख रुपए की इस डील के बाद गुड्डू और रंगीला को बेबी (अदिति राव हैदरी) का अपहरण करना है, जो कि बिल्लू की साली है, वह भी अपने जीजा बिल्लू से अपने बहन की मौत का बदला लेना चाहती है। यह जानकार गुड्डू और रंगीला को बेबी के साथ मिलकर बिल्लू से बदला लेने का मौका मिल जाता है और इस तरह कहानी आगे बढती है। बीच में यह कहानी शोले के प्लाट की याद दिलाती है लेकिन फिर इससे उबर भी जाती है और अपने मूल विषय 'ऑनर किलिंग' पर वापस लौट आती है ।
अरशद वारसी और अमित साध ने अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है, बिजेंद्र काला और राजीव गुप्ता जैसे कलाकार ऐसी फिल्मों के अनिवार्य हिस्से बन गए है और यहाँ भी वे फिट बैठे है लेकिन रोनित रॉय सब पर भारी पड़े हैं वे बिल्लू पहलवान बने हैं जो विधायक है और अंतरजातीय विवाह का ईमानदारी की हद तक विरोध करता है और अपनी जाति की उन लड़कियों का सबसे बड़ा दुश्मन है जो दूसरी जाति के लड़कों से इश्क करने की गलती करती हैं। उनके किरदार के सामने सभी दब से गये हैं, वे अफ्गानिस्तान के खूंखार तालबानियों और बब्बर खालसा गुट के किसी सदस्य का मिश्रण लगते हैं, पूरी फिल्म में उनका अपने किरदार की हैवानियत ठसक, दबंगता,चालढाल और बोली पर पकड़ देखते ही बनता है। अरसे बाद कोई खलनायक परदे पर डराता और नफरत पैदा करता है।
अदिति राव हैदरी के पास ज्यादा कुछ करने को नहीं है और यही इस फिल्म की कमजोरी भी है आश्चर्य की बात है कि “ऑनर किलिंग” जैसे विषय पर होने के बावजूद इसके महिला किरदारों पर उतना ध्यान नहीं दिया है, जिसकी वजह से खाप की दुनिया में औरतों की दर्दनाक सामाजिक स्थिति उभर कर सामने नहीं आ पाती है। इसकी भरपाई उन्होंने क्लाईमेक्स में बिल्लू पहेलवान को दोनों प्रमुख महिला किरदारों से मरवाकर करने की कोशिश की है, यह शार्टकट उपाय ज्यादा कारगर साबित नहीं हो पाती है।
सुभाष कपूर इससे पहले 'फंस गए रे ओबामा' और 'जॉली एलएलबी' जैसी फिल्में बना चुके हैं जॉली एलएलबी को बेस्ट हिंदी फिल्म का 61वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला है। वे मूल रूप से पत्रकार रहे हैं, उनका कहानी कहने का अपना अंदाज है, उनकी कहानियां वास्तविकता को छूती है और किरदार लार्जर दैन लाइफ नहीं बल्कि रीयल लाइफ के होते हैं। उनकी फिल्में मास्सेस और क्लासेज दोनों को छूती हैं। जॉली एलएलबी में एक बड़े घराने की अय्याश औलाद द्वारा हिट ऐंड रन केस को कहानी को बेस बनाया गया था जिसमें लड़का शराब के नशे में तेज स्पीड गाड़ी को फुटपाथ पर चढ़ा कर भाग जाता है। हादसे में वहां सोने वाले लोग मारे जाते हैं, लेकिन बड़े वकील की दलीलें और पैसे की बल पर केस को खारिज करवा दिया जाता है। यही बात फंस गये रे ओबामा के बारे में भी कही जा सकती है जो अमरीका के मंदी के शिकार एक एन.आर.आई. की कहानी थी। गुड्डू रंगीला में भी उनका पहला जोर स्क्रिप्ट पर ही है। जिसके माध्यम से उन्होंने खाप,राजनीति के अपराधीकरण,ऑनर किलिंग, दहेज जैसी रियल मसलों को साधने की कोशिश की है। उन्होंने अपने मुख्य किरदारों को एक गाने बजाने वाले समुदाय के रूप में पेश करके कास्ट के मसले को भी छुआ है। कुल मिलकर यह मसाला मनोरंजक के साथ संदेश देंने वाली फिल्म है जो आपको हंसाते-हंसाते हरियाणा की खापों से रूबरू कराती है। यह आपको आहत नहीं बल्कि शर्मिंदा करती है और आपको हँसाने के साथ सोचने का मौका भी देती है।
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