डॉ . अवुल पकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम -लोकमित्र हाल के दशकों में शायद ही किसी भारतीय को इस कदर जनलोकप्रियता हासिल हुई हो, जितनी लोकप्रि...
डॉ. अवुल पकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम
-लोकमित्र
हाल के दशकों में शायद ही किसी भारतीय को इस कदर जनलोकप्रियता हासिल हुई हो, जितनी लोकप्रियता पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को मिली थी। आखिर उनमें क्या ऐसी चीज थी, जो उन्हें सबसे अलग और खास बनाती थी? क्या उनकी अकादमिक उपलब्धियां ऐसी थीं? शायद नहीं। वह महज विज्ञान के स्नातक थे। डॉक्टरेट की उपाधि तो उन्हें बतौर सम्मान मिली थी और एक दो जगह से नहीं बल्कि उपलब्ध सूचनाओं के मुताबिक 30 जगहों से। फिर क्या उन्होंने कोई युग प्रवर्तक आविष्कार किया था? नहीं। उन्होंने कोई भी आविष्कार नहीं किया था, न तो अतंरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में और न ही मिसाइल या आयुध के क्षेत्र में। वह महज प्रशासक थे, समेकित प्रक्षेपास्त्र परियोजना के भी वह सिर्फ प्रशासक थे। तब क्या वह महान राजनेता थे? शायद नहीं।
सवाल है इस सबके बावजूद आखिर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम में क्या ऐसी चीज थी जो उन्हें आज के दौर की सबसे लोकप्रिय शख्सियत बनाती थी? यह भी कि उनकी शख्सियत का कोई विशुद्ध खांचा नहीं था, वो जितने प्रसिद्ध बतौर राजनीतिक व्यक्तित्व के थे, उससे कहीं ज्यादा प्रसिद्ध बतौर शिक्षक, बतौर प्रशासक, बतौर वैज्ञानिक भी थे। वह एक किस्म से बौद्धिक सेलिब्रिटी थे। उनकी बातें सुनी जाती थीं। उनके हाव भाव तक की सम्मान के साथ नकल की जाती थी। उनके शब्दों को ब्रह्म वाक्यों की तरह सुना जाता था। सवाल फिर वही है कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम आखिर इतनी परिपूर्ण शख्सियत क्यों और कैसे थे?
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की सम्पूर्ण लोकप्रियता, उनके तमाम सम्मान और उनके प्रति उमड़ते, घुमड़ते, छलकते देशवासियों के प्रेम का आधार था, उनकी जीवनशैली। वह ऋषियों, मुनियों की काव्यात्मक परिकल्पना के वास्तविक व्यक्तित्व थे। वह इस दौर के गांधी थे। जिन्होंने गांधी को नहीं देखा। जिन्होंने गांधी जी की संकल्पित प्रतिबद्धता के बारे में सिर्फ सुना है, उन्हें डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम गांधी की साकार मूर्ति लगते थे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की तमाम लोकप्रियता, लगभग समस्त भारतीयों में उनके प्रति आपार सम्मान की भावना का सबसे बड़ा कारण था, उनकी बेहद सात्विक और चमचमाती हुई जीवनचर्या। लिखने, पढ़ने और कहने के जितने आदर्शपूर्ण प्रतिमान होते हैं, जितनी आदर्श पूर्ण बातें होती हैं, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम में वो तमाम बातें, वो तमाम प्रतिमान पूरी वास्तविकता के साथ उनके व्यक्तित्व में विद्यमान थे।
आज हमारे देश में सबसे बड़ा संकट कथनी और करनी का संकट है। सबसे बड़ा संकट विश्वास का संकट है। कोई नेता कितनी भी अच्छी अच्छी बातें क्यों न करे, लेकिन आम लोग अगर ऐसे नेताओं की तमाम अच्छी बातों पर तर्क भी नहीं करते, तब भी व्यंग्य से मुस्कुरा देते हैंं। इसकी वजह कोई और नहीं हमारे तमाम नेता ही हैं। नेतागण बातें आदर्श के पराकाष्ठा की करते हैं लेकिन हकीकत यह है कि कही हुई तमाम बातों में से अपने व्यवहारिक जीवन में पांच फीसदी बातें भी नहीं उतारते। इसलिए कहे गए, सुने गए और तमाम नाटकीय अभिनय क्षमता के साथ देखे गए तवेरों का भी आम जनता में कोई असर नहीं पड़ता बल्कि बार बार विश्वास को इन महान लोगों द्वारा तोड़े जाने के कारण आम लोगों में आदर्श की तमाम बातें चिढ़ाती हैं, उन्हें चिड़चिड़ा बनाती हैं और उनमें खीझ पैदा करती हैं। जबकि अब्दुल कलाम की ऐसी ही बातें लोगों में विश्वास पैदा करती थीं। आस्था जगाती थीं और उन्हें इन तमाम बातों पर न्यौछावर हो जाने के लिए उकसाती थीं। क्योंकि वह जितना कहते थे, उतना भर ही नहीं करते थे बल्कि वह कुछ भी नहीं कहते थे लेकिन कल्पनाओं की हद तक आदर्शपूर्ण जीवन जीते थे।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम विश्वास की जीती जागती प्रतिमूर्ति थे। लोग उन पर ही नहीं उनकी परछाई पर भी आंख मूंदकर भरोसा करते थे। उन्होंने लोगों का विश्वास महात्मा गांधी की तरह अर्जित किया था। लोग उन पर जान निसार करते थे। इस मायने में वो गांधी और सुभाष की तरह जननेता थे। क्योंकि लोग सत्य की जिस पराकाष्ठा की कल्पना करते थे, कलाम उस सत्य को जीते थे। मुझे याद है यह सन 1998 (जब बुद्ध दोबारा मुस्कुराए थे) की बात है। उन दिनों कलाम साहब दिल्ली के खेलगांव, सीरीफोर्ट इलाके में एक फ्लैट में रहा करते थे जो उन्हें बतौर प्रधानमंत्री के सलाहकार के आवंटित था। हम लोग उनका एक इंटरव्यू करना चाहते थे, इसलिए मैं और दो मुझसे सीनियर पत्रकार उनके फ्लैट में गए थे। हालांकि उस दिन वो हमें नहीं मिले; क्योंकि अचानक उन्हें मद्रास जाना पड़ गया और यह सूचना उन्होने हम लोगों तक पहुंचा दी थी। लेकिन हम लोग उनके व्यक्तित्व का, उनके आसपास के लोगों में क्या असर है, इस बात को जानने के लिए उनके आवास तक गए थे।
वहां हमें हैरान करने वाली और आज भी यकबयक सच न लगने जैसी सच्चाई पता चली कि वह मुख्य सड़क से अपने फ्लैट तक अकसर एक छोटा सा ब्रीफकेस लिए पैदल ही आया करते थे। उन्हें इलाके के लोग अकसर मंत्रालय की कार से नहीं बल्कि डीआरडीओ की मिनी बस से मुख्य सड़क पर उतरते देखा करते थे। बच्चों के लिए वो बहुत सहज और प्रिय बूढ़े थे। उनके आस पड़ोस के तमाम लोग उन्हें एक बेहद सामान्य आदमी के रूप में ही जानते थे। जो सुबह बहुत तेज तेज कदमों से घूमा करता था। उनके आस पड़ोस के लोग अकसर उन्हें अपने छोटे से फ्लैट की बालकनी में बैठकर वीणा बजाते देखा करते थे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के व्यक्तित्व का आकर्षण चुम्बकीय था। वह ऋषियों, मुनियों सरीखे लगते थे, देखने में भी, बोलने में भी और बरतने में भी।
मैंने उनका एक अपने दो सीनियर पत्रकारों के साथ मिलकर साझा इंटरव्यू किया था। इंटरव्यू के दौरान एक बार भी ऐसा महसूस नहीं हुआ था कि हम किसी ऐसे जीवट वैज्ञानिक से बात कर रहे हैं जो कई प्रधानमंत्रियों के विज्ञान सलाहकार होने के साथ साथ पोखरण-दो की रूपरेखा तय करने वाले प्रमुख लोगों में से एक थे। उनके इर्दगिर्द ज्ञान से ज्यादा अपनत्व की, भारतीयता की, विलक्षणता की और ऋषियों मुनियों की रोमांचित करती परंपरा की मद्धिम-मद्धिम बारिश होती रहती थी। उनके इर्दगिर्द हमेशा एक निहाल कर देने वाली सकारात्मक ऊर्जा का घेरा होता था। उन्हें देखने से प्यार उमड़ता था। खुद ब खुद सम्मान के लिए सिर झुकता था। वह राष्ट्रपति न भी हुए होते तो भी उनके समूचे प्रभाव में एक पालक, एक पिता, एक रहनुमा की भावना टपकती रहती थी। यह उनका व्यक्तित्व था, यह उनकी जीवनचर्या थी जो उन्हें आज के दौर का जीवित गांधी बनाती थी। इसीलिए उन पर लोगों का प्यार, श्रद्धा और सम्मान उमड़ता था।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में वरिष्ठ संपादक हैं)
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