प्रमोद भार्गव सोने के लगातार गिरते भाव भारतीय अर्थव्यस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सोने के भाव गिरकर 25,500 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गए ह...
प्रमोद भार्गव
सोने के लगातार गिरते भाव भारतीय अर्थव्यस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सोने के भाव गिरकर 25,500 रुपए प्रति 10 ग्राम हो गए हैं। पिछले पांच साल में यह दर सबसे कम है। सोने के दामों में कमी के कई अंतरराष्ट्रीय कारण एक साथ बने हैं। लिहाजा सोने की मांग गिर गई है। तेल के भावों में कमी के चलते अरब देशों में सोने की खरीद लगभग बंद है। क्योंकि लोगों के पास सोने में निवेश के लिए अतिरिक्त पैसा नहीं है। चीन ने हाल ही में शंघाई गोल्ड एक्सचेंज से पांच टन से भी ज्यादा सोना बेचा है। अमेरिकी वायदा कमीशन के मुताबिक 14 जुलाई तक बड़ी मात्रा में सोने की बिकवाली हुई है। ग्रीस ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोश से 210 क्ंिवटल सोना बेचने की अनुमति मांगी हैं। भारत में सोने के आयात नियमों में ढील के चलते एवं कालाधन वापसी में बरती जा रही कड़ाई के चलते भी सोने के भाव गिरे हैं। सोना संग्रह के ये ऐसे कारण बने हैं,जो भारत समेत कई देशों की अर्थव्यस्था बिगाड़ने वाले हैं।
रिर्जव बैंक द्वारा सोने के आयात नियमों में ढील देने के वक्त ही यह आशंका पैदा हो गई थी,कि इसके परिणाम घातक साबित होंगे। क्योंकि सोने का आयात विदेशी मुद्रा डॉलर से होता है। जाहिर है,यदि इस अनुत्पादक और मृत संपदा में बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार खप जाएगा तो निकट भविष्य में नरेंद्र मोदी सरकार के सामने विदेशी मुद्रा का संकट मुहंबाए खड़ा होना तय है। सोने के गिरते मूल्यों से यह संकेत अब साफ झलकने लगा है। दरअसल एक समय भले ही भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता हो,लेकिन आज तो उसे अपनी जरूरतों के लिए 95 फीसदी सोना दूसरे देशों से खरीदना होता है। कच्चे तेल के बाद सोने के आयात में ही सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च होती है।
भारतवासियों में सोने का महत्व और लालच दोनों एक साथ देखने को मिलते हैं। सोना भारतीय परंपरा में धार्मिक,सामाजिक और आर्थिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। पूजा-पाठ से लेकर शादी में वर-वधु को सोने के गहने देना प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक है। जीवन में बुरे दिन आ जाने की आशंकाओं के चलते भी सोना सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति आम आदमी में खूब है। इसलिए जैसे ही सोना सस्ता होता है,इसकी खरीद बढ़ जाती है। जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। इसी परिप्रेक्ष्य में पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम ने जनता से अपील की थी कि वह एक साल तक सोना न खरीदे,ताकि देश की माली हालत संभाली जा सके।
चिदंबरम ने चेतावनी दी थी कि सोना डॉलर में आयात किया जाता है। इस वजह से व्यापार घाटा खतरनाक तरीके से बढ़ जाता है। इसी कारण रुपए की कीमत भी गिरने लगती है। इसीलिए संप्रग सरकार ने सोने के आयात को रोकने के लिए आयात शुल्क बढ़ाकर 6 से 8 फीसदी कर दी थी। किंतु रिजर्व बैंक के रघुराम राजन के गर्वनर बनते ही सोना आयात नियम शिथिल कर दिए गए थे। नतीजतन सोने के आयात का सिलसिला चलता रहा,जो अब घातक सिद्ध हो रहा है। ऐसी ही गलत नीतियों के कारण 2003 में जहां हम 3.8 अरब डॉलर सोने का आयात करते थे,वहीं देश के धनी लोगों की स्वर्ण-लिप्सा के चलते,2008-09 में भारत में सोने का आयात 20.7 अरब डॉलर था,जो 2009-10 में 28.6 अरब डॉलर,2010-11 में 40.5 अरब डॉलर, 2011-12 में 56.3 अरब डॉलर, और 2012-13 में आयात का यह आंकड़ा 53.8 तक पहुंच गया।
संप्रग-2 ने अपने 5 वर्ष के कार्यकाल में ही 250 अरब डॉलर के सोने का आयात किया था। जबकि भारत लगातार गरीबी,मंहगाई और बेरोजगारी से जूझ रहा है। जबकि इस विदेशी मुद्रा का उपयोग देश का सरंचनात्मक ढांचा सुदृढ करने में किया जाता तो जीडीपी दर बढ़ती और युवाओं को बढ़े पैमाने पर रोजगार के अवसर सुलभ होते। विडंबना देखिए एक मृत और अनुत्पादक धातु की महज चमक के लालच में विदेशी मुद्रा देश से लगातार बाहर भेजी जा रही है। राजग सरकार में भी यह सिलसिला जारी है। इस पर अंकुश के फौरी उपाय भी नहीं किए गए।
जीडीपी लगातार गिरते जाने के कारण देश की अर्थव्यस्था डांवाडोल है। खुद रिर्जव बैंक भी यह आकलन कर चुका है कि विकास दर 6-7 पर पहुंचना नामुनकिन है। इसीलिए मुद्रास्फीति बेकाबू और निर्यात के मुकाबले आयात इस कदर बढ़ा है कि पिछले 30-32 साल में चालू खातों में उतना घाटा नहीं रहा,जितने बीते 2-3 साल में रहा है। मौसम विभाग द्वारा कमजोर मानसून के संकेत मिलने के कारण भी अर्थव्यस्था का एकाएक उज्जवल पक्ष सामने आने वाला नहीं है। लिहाजा यह आशंका भी बलवती होती है कि कहीं जाते-जाते संप्रग सरकार के इशारे पर तो रिर्जव बैंक ने आयात में ढिलाई का निर्णय नरेंद्र मोदी सरकार को आर्थिक संकट में डालने की दृष्टि से तो नहीं लिया था ?
सोने में आयात की शर्तों में छूट और गिरती कीमतों के बावजूद सोने की तस्करी भी जारी है। चेन्नई और हैदराबाद के हवाई अड्ढों पर तस्करी करके लाए गए सोने की बरामदगी से तस्करी की तस्दीक हुई है। चैन्नई के एक कूड़ेदान में 7.5 किलोग्राम सोने के बिस्कुट मिले थे। जिनकी कीमत 2 करोड़ 60 लाख रुपए आंकी गई थी। दूसरी तरफ हैदराबाद हवाई अड्ढे के शौचालय में 7 किलो सोना मिला था। इन बरामदगियों से पता चलता है कि बड़ी मात्रा में सोने में कालाधन खफाया जा रहा है।
पूर्व वित्तमंत्री पी.चीदंबरम ने सार्वजानिक रूप से कहा भी था कि देश में हर महीने तस्करी के जरिए तीन टन सोना आ रहा है। तय है,इससे कहीं अधिक मात्रा में सोना तस्करी के जरिए आ रहा होगा ? साल 2012-13 में सोने की तस्करी से जुड़े 870 मामले सामने आए थे और सौ करोड़ का सोना जब्त किया गया था। सवाल उठता है कि जब सरकार सोने की तस्करी की जानकारी रखती है तो उसे इस पर सख्त पाबंदी लगाए जाने वाले उपाय भी करने चाहिए थे।
देश के सभी हवाई अड्ढों पर तस्करी रोकने के लिए एक बड़ा संस्थागत ढांचा कस्टम विभाग है। इसके अलावा स्थानीय राज्य पुलिस भी गड़बड़ियों पर चौकसी रखती है। देश के बंदरगाहों और समुद्री सीमा पर तस्करों पर निगाह रखने के लिए भी राज्य पुलिस के साथ जल सेना भी है। देखने में आया है कि कस्टम अधिकारियों की मिलीभगत से ही सोने की तस्करी अंजाम तक पहुंचाई जा रही है। सरकार के पास तस्करी करके लाए सोने और पंजीबद्ध किए गए मामलों की जानकारी तो है,लेकिन यह जानकारी नहीं है कि वह कितने मामलों में अधिकारियों को सजा दिलाने में सफल रही ? उसके पास यह भी जानकारी नहीं है कि उसने गड़बड़ियों में लिप्त पाए गए कितने अधिकारियों को निलंबित या बर्खास्त किया ?
मोदी सरकार के वजूद में आने के बाद कालाधन वापिसी के लिए कुछ ठोस कदम उठाए गए हैं। हाल ही में एक बार फिर से आयकर विभाग ने विदेशों में कालाधन रखने वालों को चेतावनी देते हुए कहा है कि 30 सितंबर 2015 तक विदेशी संपत्ति का खुलासा नहीं किया तो ऐसे लोगों को बतौर जुर्माना 120 फीसदी पैसा देना होगा। इसके अलावा मनी लांड्रिंग कानून में भी कठोर प्रावधानों के तहत 10 वर्ष की सजा कर दी गई है। नतीजतन जिन जमाखोरों का कालाधन विदेशों में जमा है,वह भी आयात की छूट का लाभ उठाकर कालेधन को सोने में बदलने लग गए हैं। खाड़ी देशों के साथ ही टैक्स हैवन की सुविधा प्राप्त देश मलेशिया,सिंगापुर,फिलीपिंस,इंडोनेशिया,थाईलैंड समेत दक्षिण पूर्वी देश सोने की तस्करी में बैंक ग्राहकों की मंशा के अनुरूप सहयोग देने में लगे हैं। बहरहाल तय है, सोने की देश में बेतहाशा बढ़ती आमद मोदी सरकार को आर्थिक संकट में डालने का काम करेगी ? ऐसा हुआ तो यह स्थिति सरकार के लिए गरीबी में आटा गीला करने जैसी आर्थिक मुसीबत का सबब बन सकती है ?
प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
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लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार है।
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