श्री हनुमान चालीसा - टीका

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-दयाधर जोशी   श्री हनुमान चालीसा   दोहाः श्रीगुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि।। मैं...

-दयाधर जोशी

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श्री हनुमान चालीसा

 

दोहाः

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

मैं अपने श्रीगुरु के चरण-कमल की धूल से अपने मनरुपी दर्पण को स्वच्छ करके श्रीरामचन्द्र भगवान के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ जो पुरुषार्थरुपी चार फल-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार.।।

हे पवनपुत्र! मैं बुद्धिहीन होने के साथ ही निर्बल भी हूँ, इस बात को मैं भलीभांति जानता हूँ, इसीलिये आपका स्मरण करता हूँ। आपको याद करता हूँ। कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और सभी प्रकार की विद्याएँ प्रदान कर मेरे क्लेश और पाप को दूर करें, मेरे सभी दुःखों का निवारण करें।

चौपाईः

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर 

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।। 

हे हनुमानजी! आप पृथ्वी, आकाश एवं पाताल को प्रकाशमान करने वाले ज्ञानी एवं अनन्त गुणों

के सागर हैं। हे कपीस! मैं आपकी जय-जयकार करता हूँ।

राम दूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

हे हनुमानजी! आप भगवान श्रीरामचन्द्रजी के दूत हैं। आप अथाह, अन्तहीन बल के भण्डार हैं।

असीम बल और पराक्रम के निधान, आपको अंजनिपुत्र व पवनसुत के नाम से भी पुकारा जाता है। महाबीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

हे हनुमान! आप वीर श्रेष्ठ हैं, प्रतापी हैं, अमित विक्रमी हैं, आपका शरीर वज्र के समान अतीव बलशाली है इसलिये आपका एक नाम वजरंग से बजरंगी भी है। आप कुबुद्धि का नाश करने वाले और सुबुद्धि का साथ देने वाले हैं।

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हे हनुमान! आपका शरीर सुमेरु पर्वत के समान कान्तिमान है। स्वर्ण के समान वर्ण वाले शरीर पर चारुवेश (सुन्दर पोशाक) को धारण कर आप अतिशोभायमान होते हैं। आप कानों में कुण्डल पहनते हैं और आपके सिर पर घुँघराले बाल अतिसुन्दर लगते हैं।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

काँधे मूँज जनेऊ साजै।।

हे हनुमानजी! आपके एक हाथ में वज्र के समान शक्तिशाली गदा व दूसरे हाथ में रामनामी ध्वजा और कंधे पर मूँज की जनेऊ शोभायमान है।

संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बंदन।।

हे शंकर के अवतार! आप शंकर भगवान के पुत्र हैं तथा केसरी जी को आनन्द देने वाले हैं। आपके यश और प्रतिष्ठा की वन्दना और गुणगान सारा संसार करता है।  सारा संसार आपके सामने नतमस्तक रहता है।

 

बिद्यावान गुणी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

हे हनुमानजी! आप सभी विद्याओं के ज्ञाता हैं, विद्वान हैं, अनुभवी हैं, आप प्रभु श्रीरामजी के

सभी कार्यों को पूर्ण करने के लिये हमेशा आतुर रहते हैं, उत्सुक रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

हे हनुमानजी! आपको प्रभु श्रीरामचन्द्रजी से सम्बन्धित साहित्य एवं कथाओं को पढ़ने और सुनने में आनन्द की अनुभूति होती है। रामचन्द्रजी के चरित्र को सुनना आपको अच्छा लगता है, आप जैसा रामकथा का वक्ता एवं श्राते ा और कोई नहीं है। श्रीराम-लक्ष्मण और सीता सदैव आपके हृदय में निवास करते हैं।

सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रुप धरि लंक जरावा।।

हे वीर हनुमान!  आपको अपने शरीर को बहुत छोटा व आवश्यकतानुसार पर्वताकार कर लेने की सिद्धि प्राप्त है। आप योग विद्या द्वारा सूक्ष्मरूप धारण कर सीतामाता के सामने उपस्थित हुए

और लंका-दहन करने के लिये आपने भयंकर भीमकायरुप धारण कर लिया।

भीम रुप धरि असुर सँहारे। रामचंद्र के काज सँवारे।।

हे वीर हनुमान! श्री लंका प्रस्थान के समय व राम-रावण युद्ध में आपने विशालकायरुप धारण

कर राक्षसों का संहार किया और प्रभु श्रीराम के सभी कार्यों को सम्पन्न किया ।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

हे पवनसुत! आपने द्रोणाचल पर्वत से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी के प्राणों की रक्षा की।

आपके इस कार्य से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने आपको अपने हृदय से लगा लिया। रघुपति किन्हीं बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

हे पवनसुत! आपने लक्ष्मणजी के प्राण बचाये। इस सराहनीय कार्य से अतिप्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि 'हे वीर हनुमान! तुम भरत के समान ही मेरे परम प्रिय भाई हो।'

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

हे वीर हनुमान! हजारों मुख आपका गुणगान कर रहे हैं, हजारों मुख वाले शेषनाग आपका यशोगान कर रहे हैं। यह कहते हुए श्रीपति रघुनाथजी ने पुनः आपको अपने गले से लगा लिया। सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।

श्रीसनक, सनातन, सनन्दन, सनतकुमार, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, मुनिगण, नारदजी, माता सरस्वती, शेषनाग, यम, कुबेर, दशों दिशाओं की रक्षा करने वाले दिगपाल, कवि, पंडित आपकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते हैं। ऐसे में सांसारिक कवि व ज्ञानी आपकी महिमा और यश का बखान कैसे व किस तरह कर सकते हैं? आपका पूरा विवरण प्रस्तुत करने में कौन सक्षम है? हनुमानजी की पूरी महिमा का वर्णन तो कोई कर ही नहीं सकता। जिससे जितना बन पड़ा उतना गुणगान कर दिया।

 

 

 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

हे हनुमानजी! आपने सुग्रीव को ब्रह्म से मिला कर व उन्हें किष्किंधा का राज्य पुनः दिला कर महान उपकार किया है। सुग्रीव को भगवान श्रीराम के साक्षात् दर्शन कराना किष्किंधा का राजपद पुनः दिलवाने से भी बड़ा उपकार था।

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

हे पवनसुत! आपके मंत्र (मनन करने से जिसकी रक्षा हो) यानी उचित परामर्श को मानकर ही विभीषण प्रभु श्रीराम की शरण में गये और अन्ततः प्रभु श्रीराम ने विभीषण को लंका का राजा 'लंकेश्वर' बना दिया। इस बात को सारा संसार जानता है।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

हे वीर हनुमान! बाल्यावस्था में आपने बाल-लीला करते हुए हजारों योजन की दूरी पर स्थित

सूर्य को मीठा फल समझ कर अपने श्रीमुख में रख लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।

हे वीर हनुमान! जब आप सीता माता की खोज करने के लिये गये तो आपने विशाल समुद्र को पार किया। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि सभी विघ्नबाधाओं को हर कर, सभी कार्यों को पूर्ण करने वाली प्रभु श्रीराम द्वारा दी गई अंगूठी को आपने अपने श्रीमुख में रख लिया था।

दुर्गम काज जगत के जेते,

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

हे वीर हनुमान! इस भवसागर में लोगों के जितने भी असम्भव, कठिन से कठिन कार्य हैं सभी

आपकी अनुकूलता, दया एवं कृपा दृष्टि से सहज में हो जाते हैं, पूर्ण हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

हे वीर हनुमान! आप प्रभु श्रीराम के द्वार (मोक्ष द्वार, वैकुण्ठ द्वार) के रखवाले हैं। आपकी अनुकूलता, दया एवं कृपादृष्टि के बिना प्रभु श्रीराम की भक्ति तक नहीं पहुँचा जा सकता है। आप प्रभु श्रीराम के द्वार पर सतत् विराजमान रहते हैं। आपकी आज्ञा के बिना द्वार के अन्दर प्रवेश असम्भव है।

सब सुख लहैं तुम्हरी सरना।

तुम रच्छक काहू को डरना।।

हे वीर हनुमान! आपकी शरण में सुख ही सुख हैं। जो मनुष्य आपकी शरण में आ जाता है उसे सुख, समृद्धि, बल, विद्या, सुबुद्धि आदि सब कुछ मिल जाता है।  आप उसके रक्षक बन जाते हैं तो उसे किसी भी तरह का डर नहीं रहता है।

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हाँक तें काँपै।।

हे वीर हनुमान! आपके प्रचण्ड तेज, महाबल, पराक्रम और हुंकार से तीनों लोक कम्पायमान हो जाते हैं।  इस प्रचण्ड तेज को स्वयं आप ही सँभाल सकते हैं, क्योंकि आपके पराक्रम के आगे और कोई टिक ही नहीं सकता।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

हे पवनसुत! आपके नाम का उच्चारण सुनने से ही भूत, प्रेत, पिशाच, दुष्ट आत्माएँ व दुष्ट स्वभाव के मनुष्य नजदीक नहीं आ सकते हैं। आपका नाम इनके लिये 'रामबाण' है, जिसे सुन कर इस तरह की बाधाएँ नजदीक नहीं आती हैं।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमान बीरा।।

हे वीर हनुमान! निरन्तर आपका नाम लेने से, आपके नाम का जप करने से, सभी तरह के

रोग व पीड़ाओं से मुक्ति मिल जाती है।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

हे वीर हनुमान! मन, वचन और कर्म से आपका ध्यान करने वाले मनुष्य को सभी तरह के संकटों से छुटकारा मिल जाता है। भक्त को

धार्मिक, दैहिक एवं दैविक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। आप सभी तरह के कष्टों का सर्वानुकूल समाधान कर देते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।।

हे पवनसुत! तपस्वी श्रीराम संसार के स्वामी हैं, राजा हैं, नियन्ता हैं, इसके उपरान्त भी आपने संसार के राजा (नियन्ता) प्रभु श्रीराम के सभी कठिन से कठिन कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है।

और मनोरथ जो कोइ लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

हे वीर हनुमान! जो भी आपके पास अपनी मनोकामनाएँ, अपने मनोरथ लेकर आता है उसे आप पूर्ण कर देते हैं। मनोवांछित फल प्रदान करने के साथ ही आप प्रभु श्रीराम की भक्ति का मार्ग भी प्रशस्त कर देते हैं, और मनुष्य को जीवन का अमूल्य फल, सत्गति प्रदान करते हैं। मनुष्य सांसारिक इच्छाओं से मुक्त हो कर राम द्वार में प्रवेश पाने का अधिकारी बन कर, मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। आप अपने भक्तों के लिये कल्पवृक्ष हैं।

चारों युग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

हे वीर हनुमान! आपका प्रताप, महिमा व आपके प्रभाव की आभा चतर्युग (सतयुग, त्रेता, द्वापर एवं कलयुग) में फैली हुई है। आपका पराक्रम, शौर्य और यश सभी युगों में यथावत् रहता है। आपका प्रताप चारों युगों को प्रकाशित करने के लिये प्रसिद्ध है। सर्वत्र आपकी प्रसिद्धि फैली हुई है।

साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

हे पवनसुत! आप साधु-संतों की, सत्य आचरण करने वाले सभी भक्तों की रक्षा करने वाले, सज्जनों का साथ देने वाले व दुष्टों का नाश करने वाले हैं।  आप प्रभु श्रीराम के दुलारे हैं। प्रभुश्रीराम आपको पुत्र की तरह प्यार करते हैं।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

हे वीर हनुमान! आपको सीता माता से एसे ा वरदान प्राप्त है कि आप अपने किसी भी परमप्रिय भक्त को अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ दे सकते हैं। इस घोर कलयुग में आप समस्त सिद्धियों और निधियों के दाता हैं।

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

हे वीर हनुमान! आपके रोम-रोम में प्रभु श्रीराम रमण करते हैं। प्रभु श्रीराम आपके साध्य भी हैं और साधना के लिये साधन भी हैं। आप दास्य प्रेम के आदर्श हैं। आपके पास राम भक्तिरुपी संजीवनी रसायन है। आपकी विशेषता यही है कि आप प्रभु श्रीराम के दास के रुप में अपने सभी सच्चे भक्तों को 'राम-भक्त' बना कर प्रभु श्रीराम से मिला देते हैं। निकृष्ट मनुष्य के लिये आप मार्ग-दर्शक हैं और उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने की क्षमता से परिपूर्ण हैं। 

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै।।

हे वीर हनुमान! आपका भजन करने मात्र से भक्त, श्रीराम को पा लेते हैं। प्रभु श्रीराम समदर्शी हैं लेकिन इन्हें आप जैसे सेवक एवं आपके भक्त प्राणप्रिय होते हैं। वास्तव में आप मन, क्रम, वचन से प्रभु श्रीराम के दास हैं। 'राम ते अधिक राम कर दासा' की भक्ति करने से ही मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के दुःखों का अंत हो जाता है। आपका भजनीक भक्त जन्म-जन्मान्तर के दुःखों को भूल जाता है।

अंत काल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

हे वीर हनुमान! आपका भजन करने से ही भक्त को प्रभु श्रीराम की कृपा दृष्टि प्राप्त होती है। श्री राम-नाम तारक मंत्र है। पतित पावन प्रभु श्रीराम का नाम सभी पापों का नाश करने वाला है। आप प्रभु श्रीराम के परम भक्त भी हैं, लीला-सहचर भी हैं। आपकी कृपा-दृष्टि प्राप्त होने पर ही प्रभु श्रीराम का धाम प्राप्त होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। मृत्युलोक में पुनः जहाँ भी जन्म हो वहाँ हरि-भक्त कहलाये जाने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। प्रभु श्रीराम की भक्ति का मार्ग अपनाने से वे राम-भक्त कहलायेंगे।

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्व सुख करई।।

हे वीर हनुमान! आपकी सच्चे मन से भक्ति एवं सेवा-पूजा करने वाले भक्तों को सभी तरह के सुख प्राप्त हो जाते हैं। आपकी उपासना सर्वमान्य है। आपकी सेवा-पूजा करने वाले भक्त को अन्य देवताओं में चित्त लगाने की आवश्यकता नहीं रहती है।

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

हे वीर हनुमान! आपकी उपासना करने से, निरन्तर नाम सुमिरन करने से, भक्त के सारे कष्ट एवं दुःखों का अन्त हो जाता है। जन्म-मरण के चक्र से भी मुक्ति मिल जाती है। जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरु देव की नाईं।।

हे वीर हनुमान गोसाईं (गोस्वामी) आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप साक्षात् सद्गुरुरुप हैं। आप सद्गुरु की भाँति हमेशा मुझ पर कृपा करते रहें। 'गिरति अज्ञानम्' - अज्ञानरुपी अंधरे को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गुरु, श्री हनुमान जी की जय हो, जय हो, जय हो। जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो भी इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सभी बंधनों से मुक्त हो जायगा। आपके नाम का नियमित जप, नाम-स्मरण व हनुमान चालीसा का निरन्तर पाठ करने वाला भक्त, जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। आपके शरणागत भक्तों का उद्धार हो जाता है, जीवन में सुख और आनन्द की प्राप्ति हो जाती है। भक्त परमानन्द प्राप्त कर लते ा है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि, साखी गौरीसा।।

जो भक्त प्रेम पूर्वक हनुमान चालीसा का पठन व श्रवण करता है उसका मन पूर्णतः निर्मल हो जाता है, उसे सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं, सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस हनुमान चालीसा के नित्य पठन मात्र से भक्तजन सिद्ध हो जाते हैं। इन्हें सभी सिद्धियाँ सुगमता से प्राप्त हो जाती हैं, ऐसा मैं, पार्वती पति भगवान शिव की साक्षी देकर कहता हूँ। भगवान शिव स्वयं इस बात के साक्षी हैं।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा।।

गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं, मैं सदा प्रभु श्रीराम का दास हूँ। हे नाथ! हे श्रेष्ठ वीर हनुमान! आप हमेशा मेरे हृदय में निवास करें।

पवन तनय संकट हरन। मंगल मूरति रुप।

राम लखन सीता सहित। हृदय बसहु सुर भूप।।

हे पवनपुत्र! आप अपने सभी भक्तों के सभी कष्टों को हरने वाले मंगलकर्ता एवं कल्याण की साक्षात मूर्ति हैं। हे देवताओं के स्वामी, हनुमान! आप श्रीराम, लक्ष्मण और सीताजी सहित मेरे हृदय में निवास करें। इति श्री हनुमान चालीसा

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: श्री हनुमान चालीसा - टीका
श्री हनुमान चालीसा - टीका
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