कानून के साये में वेश्यावृति!

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एक बहस                     कानून के साये में वेश्यावृति! - राजीव आनंद     वेश्यावृति को कानूनी दर्जा देने के लिए हरियाणा महिला आयोग की उप...

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एक बहस                     कानून के साये में वेश्यावृति!

- राजीव आनंद

    वेश्यावृति को कानूनी दर्जा देने के लिए हरियाणा महिला आयोग की उपाघ्यक्ष सुमन दहिया, जो पेशे से वकील भी है, एक अभियान चला रखा है, जिसके तहत उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी, हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी, मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखकर वेश्यावृति को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अघ्यक्ष ललिथा कुमारमंगलम ने भी इसकी हिमायत में एक पत्र उच्चतम न्यायालय को पहले ही लिख चुकी हैं।
    सुमन दहिया और ललिथा कुमारमंलम शायद यह मानती है कि वेश्यावृति को कानूनी दर्जा देने से इस धंधे में फंसी संबंधों से संक्रमित रोगों से बचाया जा सकेगा, दलालों और वेश्यावृति के अड्डों को संचालित करने वालों के चंगुल से बचाया जा सकेगा, यौन हिंसा और आर्थिक शोषण से बचाया जा सकेगा। वेश्यावृति में लगी औरतें पुलिस के शरण में जा सकेगी, उन्हें कामगारों का दर्जा मिल जाएगा, उनकी सौदेबाजी की ताकत बढ़ जाएगी तथा बलात्कार की घटनाओं में भारी कमी आएगी।
    लेकिन वेश्यावृति को कानूनी मान्यता देना, मर्दों की कामवासना और उनके हवस की संतुष्टि के लिए औरतों को गुलाम बना कर रखने जैसा है इसलिए बिल्कुल ही अस्वीकार्य है। वेश्यावृति को कानूनी मान्यता देने की सिफारिश करना वैसा ही है जैसा कि ब्रिटिश सरकार ने ब्रिटिश सैनिकों की हवस को पूरा करने के लिए हिन्दुस्तानी औरतों को जबरन 'द कैंटोमेंट एक्ट' के तहत गुलाम बनाया था। निसंदेह औरतें यूरोप से भी लाई जाती थी, जिनकी स्थिति गुलाम से ज्यादा नहीं थी। ब्रिटिश सरकार का मानना था कि इससे सैनिक सुकून से रह सकेंगे और समलिंगी यौन संबंध से दूर रहेंगे। इतिहास गवाह है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की साम्राज्यी सेना ने भी औरतों को जापानी सैनिकों की हवस को पूरा करने के लिए यौन गुलाम बनाया था। इस चलन की निंदा जापान के साथ-साथ विश्व के कई देशों में आज भी होती रहती है।
    प्रश्न उठता है कि क्या आज विश्व में किसी भी देश की सरकार अपने सैनिकों की यौन जरूरत को पूरा करने के लिए उन्हें औरतें मुहैया कर सकती है ?
    प्रश्न यह भी उठता है कि वेश्यावृति से जुड़ी तमाम गतिविधियों को 'इमॉरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट, 1956' के तहत जब अपराध करार दिया गया है तो समुन दहिया, ललिथा कुमारमंगलम या इस अभियान से जुड़ी औरतें किस आधार पर वेश्यावृति को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग कर रहीं है ?
    कहने की आवश्यकता नहीं है कि पैसे के बदले वेश्यावृति का धंधा औरतों के लिए कितने अपमान और अमानवीयता से भरा है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस धंधे में वही गरीब औरतें उतरती है जिनके पास गुजारे का कोई और विकल्प नहीं होता। वे गरीबी की मार से तंग आकर ही इतना घृणित धंधा करती हैं और वे इतनी जरूरतमंद और बेसहारा होती है कि किसी भी तरह के शोषण या अमानवीय सलूक का विरोध नहीं कर सकती। क्या यह कहना कि ये औरतें वेश्यावृति मौजमस्ती के लिए करती हैं, औरतों के प्रति महानतम अपमान नहीं होगा ? ये कदापि नहीं कहा जा सकता कि गरीबी और तंगहाली से पस्त होकर वेश्यावृति अपनाने वाली औरतें अपनी पंसद से ऐसा कर रहीं हैं ?
    वेश्यावृति को श्रम की श्रेणी में इसलिए नहीं रखा जा सकता क्योंकि कार्य उसे कहते है जिसमें श्रम और कौशल का विनिमय मजदूरी या वेतन से होता है, यह शरीर से अलग किया जा सकता है जबकि सेक्स को शरीर से अलग नहीं किया जा सकता इसलिए बेबस गरीब औरतों को यौनकर्मी करार देना उनके साथ आले दर्जे का नाइंसाफी हे। वेश्यावृति कानून होने के बावजूद इसलिए भी पनपता और फलफल रहा है क्योंकि यह पुरूष को अव्वल और औरत को दोयम दर्जे का मान कर चलता रहा है। जहां एक तरफ औरतों की सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करने के लिए आंदोलन चल रहे हैं वहीं वेश्यावृति जैसे निकृष्टतम और हिकारत से भरे जीवन में ढकलने को कानूनन जायज बनाने की वकालत समाज में व्याप्त दोहरे मानदंड को दर्शाते हैं।
    चुंकि वेश्यावृति को खत्म करने के कानून होने के बावजूद सरकार आज तक ऐसा करने में नाकाम रही है इसलिए क्या वेश्यावृति जैसी गैरकानूनी और अमानवीय गतिविधि को कानूनी दर्जा दे दिया जाना चाहिए ? ऐसा करना तो वैसा ही होगा जैसे भ्रष्टाचार या दहेज के विरूद्ध कानून होने के बावजूद सरकार इसे खत्म करने में नाकाम रही है तो भ्रष्टाचार या दहेज को भी कानूनी मान्यता मिल जानी चाहिए। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वेश्यावृति समाज का वो सड़ा-गला जख्म है जिसे कानूनी मान्यता देना उस जख्म पर न सिर्फ नमक बल्कि मिर्च छिड़कने की तरह होगा क्योंकि वेश्यावृति में संलग्न औरतें हमेशा के लिए अपनी मानवीय गरिमा खो देती है और किसी भी इंसान के लिए मानवीय गरिमा उसका मूलभूत मानवाधिकार है। सरकार को महज मर्दों की यौन और हवस की पुष्टि के लिए ऐसा कोई धंधा को कानूनी दर्जा क्यों देना चाहिए जो औरतों के लिए निकृष्टतम और जलालत भरा हो ? यह अव्वल दर्जे का मानसिक दिवालियापन होगा कि कोई सरकार अपने नागरिकों को आजीविका के लिए वेश्यावृति में जाने का रास्ता साफ कर दे। क्या सरकार इसलिए होती है कि वह गरीब बेसहारा औरतों की मानवीय गरिमा की रक्षा न कर उन्हें वेश्यावृति जैसे निकृष्टतम धंधे में धकेल दे ? जहां पहुंच कर कोई भी औरत अपने परिवार और मातृत्व के अधिकार से वंचित हो जाए। इसलिए यह निहायत आवश्यक है कि सरकार जैसे खाद्य सुरक्षा मुहैया करताी है उसी तर्ज पर सेक्स की दुकान का लाइसेंस भी न मुहैया कराए।

 


राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंडा
गिरिडीह-815301, झारखंड
संपर्क-9471765417

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