ई-बुक : प्राची, जुलाई 2015 : कहानी - अलाव

SHARE:

अलाव ओमप्रकाश मेहरा अ लाव को घेरकर तीनों बाप-बेटे बैठे थे. उजेला पाख. चांद आसमान में ऊपर उठ आया था. दूर-दूर तक फैले हुए थे खेत, जिनमें...

अलाव

ओमप्रकाश मेहरा

लाव को घेरकर तीनों बाप-बेटे बैठे थे. उजेला पाख. चांद आसमान में ऊपर उठ आया था. दूर-दूर तक फैले हुए थे खेत, जिनमें कहीं सरसों फूल रही थी और कहीं गेहूं और चना लहलहा रहा था. फसल की रखवाली के लिए मचानों पर किसान रात गुजारने लगे थे. रात अभी अधिक नहीं गुजरी थी, लेकिन गांव जैसे सो गया था. कोई हलचल नहीं-कोई शोर नहीं. दूर-दूर खेतों में अलाव जल रहे थे, जिन्हें घेर कर खेतोें के रखवाले बैठे हुए थे. हवा के हल्के झोंकों में फसल सरसरा उठती थी. कभी-कभी किसी मचान से हो हो, हू हू का शोर उठकर सन्नाटे को तोड़ देता था.

चिलम में तम्बाकू भरते हुए हरखू बोला-‘‘गजब की ठंड पर रही है. ईसुर जाने का हुइहे?’’

यह बात जैसे उसने अपने आपसे कही हो. उसके दोनों बेटे चुपचाप बैठे रहे. अलाव की दहकती हुई आग के प्रकाश में तीनों के चेहरे तपे हुए तांबे की तरह दिखाई पड़ रहे थे. कभी एकाध लकड़ी चटखती तो क्षण भर के लिए आग तेज पड़ जाती. उस क्षण भर के उजेले में हरखू की चिंताकुल, गढ़ों में धंसी हुई आंखें, उसके चेहरे की परेशान सलवटें स्पष्ट हो आतीं. क्षण भर के लिए उसके बेटे मोहन और रामजस के चेहरों पर से भी धुंधलाहट दूर हो जाती. उनके चेहरों पर अजीब-सा बुझापन, अजीब-सी थकन थी. अभाव और विपन्नता के अंधेरे ने जैसे ग्रस लिया था उनके चेहरों की दीप्ति को.

‘‘हो !हो !हो! हो! लगै लगै.’’

दूर किसी खेत के मचान पर से शोर उभरा. सन्नाटा टूट गया. ठंडी हवा का एक झोंका आया और सरसों के पौधों में अजीब-सी कानाफूसी शुरू हो गई. अलाव के अंगारे दहक उठे.

‘‘बप्पा रे...!’’ छोटा लड़का रामजस एकाएक कांपती आवाज में कह उठा.

चिलम का एक खूब गहरा दम खींच लेने से हरखू की आंखों में पानी निकल आया था, क्षण भर वह जोर-जोर से खांसता रहा, फिर दम साधकर बोला-‘‘का है?’’

रामजस कुछ नहीं बोला, वह आग के और पास सिमट आया. हरखू ने एक बार आंखें भर कर उसे देखा. उसकी स्मृति में जमना के चेहरे की आकृति घूम गई. रामजस बिलकुल उसी पर गया है, उसने सोचा.

उसका मन पीछे लौट गया. पहली पत्नी मथुरा की मृत्यु के समय मोहन मुश्किल से छः बरस का था. गांव वालों ने उसे समझाया था कि वह दूसरा ब्याह कर ले, तो उसे भी तकलीफ नहीं होगी और मोहन किसी तरह पल जायेगा. पहले तो उसे यह लगता रहा कि यह ठीक नहीं होगा. इसी सोच-विचार में एक साल यों ही निकल गया. घर और खेत दो-दो जगहों की जिम्मेंदारी संभालना उस अकेली जान के लिए बड़ा तकलीफदेह था. न वक्त पर खाना हो पाता, न वक्त पर सोना. तब खेत में हाड़-जांगेर खपाने की ताकत कहां से आती? उस साल जब खेत का एक बड़ा टुकड़ा पड़ती रह गया, तो उसे निर्णय लेना ही पड़ा. वह दूसरा ब्याह कर लाया.

जमुना ने आकर हरखू की उजड़ती हुई जिंदगी संवार दिया. एक बार फिर हरखू के टूटे हुए हौसले जुड़ गये. उसके होठों पर मुस्कुराहटें वापिस आ गई. फिर जमुना के जीते जी उसे कोई तकलीफ नहीं होने पाई. अलबत्ता मोहन को लेकर घर की शांति कभी-कभार भंग हो जाती थी, लेकिन ऐसा किस घर में नहीं होता?

खेत की मेंड़ वाले आम के पेड़ पर कोई पक्षी चीखा.

उधर दक्षिण की तरफ से आवाज आई-‘‘टिट्टवी, टिट्टवी.’’ टिटहरी की करुण आवाज चुप्पी को तोड़ गई.

हरखू ने रामजस की ओर देखा, जिसे चार बरस का छोड़कर ही जमुना परलोकवासिनी हो गई थी. उसे वह प्लेग याद आई, वे यंत्रणायें याद आईं जो जमुना ने सही थीं. उसकी आंखों की कोर गीली हो आई.

रामजस अब आठ-नौ बरस का है. मां के प्यार से वंचित रह गया है, अभागा. करुणामयी दृष्टि से उसकी ओर देखने लगा, हरखू.

रामजस ने एक बार अपने पिता की ओर देखा और रुदन करती-सी आवाज में बोल उठा-‘‘सभ्यार जुड़ाय गओ, बप्पा.’’

हरखू ने कंधों पर पड़ी हुई धोती निकालकर उसे उढ़ा दी. उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे अपने पास खींच लिया.

बड़े लड़के मोहन ने एक बार सिर उठाकर ऊपर देखा. उसकी दृष्टि अपने बाप और उसकी गोद की उष्णता में सुरक्षित चादर ओढ़े हुए रामजस पर थी. उसकी आंखों की पुतलियां सिकुड़ी और वहां एक इस्पाती शीतल कठोरता आकर बैठ गई. शायद वह सोच रहा था-हां यही रामजस तो है उसका सबसे बड़ा दुश्मन. इसी के कारण नई मां ने उसे कभी नहीं चाहा और यही उसके पिता का प्यार भी उससे छीन बैठा है. मोहन अब छोटा नहीं रहा. पंद्रह बरस की उम्र हो चली है उसकी. शरीर के चारों तरफ एक फटा-सा कम्बल लपेटे बैठा था वह.

जब-जब अलाव की लपटें तेज होतीं उसका मिंचा हुआ चेहरा दिखाई पड़ जाता. उसके चेहरे पर भीतर उमड़ते हुए रोष की प्रतिछाया थी. एक विद्रोह-सा उसके मन में सिर उठा रहा था. वह विद्रोह था, ममता और प्यार के भूखे मन का. जब से उसकी मां मरी थी उसे प्यार नहीं मिला. उसकी मां की मृत्यु के साल भर बाद ही आ गई थी उसकी नई मां, जिसने शायद उसे कभी नहीं चाहा.

तब वह बहुत छोटा था. उसके मन की सतहें कोमल थीं. उन कोमल सतहों को मीठे और ममता वाले स्पर्श नहीं मिले, तो वे सतहें चोटें सह-सह कर टूटती गईं. उसके नन्हें मन ने छोटी सी उम्र में ही बहुत कुछ सीख लिया था. वह धीरे-धीरे सख्त होता गया. शायद वह इस तरह उपेक्षित हो कर भी जी लेता, लेकिन ज्यों-ज्यों दिन गुजरते गये, नई मां की कठोरता भी बढ़ती गई. रामजस का जन्म होने के बाद तो एक तरह से जैसे उसका अस्तित्व ही भुला दिया गया. उसे महसूस होता कि पिता की दृष्टि भी उसकी ओर से फिर गई है. नन्हीं उम्र में ही उसके ऊपर ढेर से काम लाद दिये गये. वह काम करता रहता और रामजस के ऊपर स्नेह की वर्षा होते देखता रहता. रामजस के प्रति यह पक्षपात देख-देख कर उसमें धीरे-धीरे ईर्ष्या की भावना घर करती गई. रामजस उसे दुश्मन जैसा लगता, जिसके कारण उसे कोई प्यार नहीं करता था-यहां तक कि पिता ने भी उसे उपेक्षित कर दिया था.

अलाव की लकड़ियां सुलग-सुलग कर टूटती गईं और घुटनों पर मुंह टिकाए बैठा मोहन अपनी जिंदगी की कहानी के पन्ने उलटता रहा. मां की धुंधली याद उसकी स्मृति में चिनगारी की तरह जलती-बुझती रही. उसे हल्की-सी याद है मां की गोद में बैठकर वह ढेर-सी कहानियां सुना करता और मां की थपकियां उसे नींद की राजकुमारी के देश में भेज देतीं. जब गांव का बाजार भरता अपने पिता की अंगुली थामे वह पूरे बाजार में यहां से वहां घूमता. कभी खिलौनों की दुकान पर ठिनकता और कभी मिठाई की दूकान पर बिलखता. लौटता तब उसके नन्हें-नन्हें हाथ ढेर सारी चीजों से लदे रहते. त्योहार आते तो उसके लिये नए कपड़े जरूर आते. मां के मरने के बाद उसकी ममता का संसार छिन गया. फिर सूने घर के ओसारे में वह अकेला चक्कर काटा करता और रोया करता.

साल बीतते न बीतते आ गई उसकी नई मां. मोहन ने उसकी ओर आश्चर्य से देखा. वह उसे अपनी मां जैसी नहीं लगी थी. उमर में भी कितनी छोटी थी वह. उसके पिता ने जब उससे कहा था कि वह उसकी मां थी तो न जाने क्यों उसकी आंखों में पानी भर आया था. उसी दिन नन्हें मोहन के मन में एक आवाज उभरी थी कि शायद उसके सुख के दिन अब खत्म हुए. और सचमुच हुआ भी यही. नई मां ने उसे कभी प्यार नहीं किया. उल्टे उसके सिर पर कामों का बोझ बढ़ता रहा. उसके सब नाजुक स्वप्न जैसे धूल में मिलते गए...उसकी बाल सुलभ चंचलता गायब होती गई और एक असामयिक प्रौढ़ता-सी उसका स्थान लेती गई. मुस्कुराहटें अब उसे बहुत कम आतीं. वह अक्सर उदास और गंभीर रहता. उसकी आंखोें में एक दबा हुआ-सा हाहाकार छाया रहता. वह सब सुन लेता...कहता कुछ नहीं, लेकिन एकांत मिलने पर रो लेता.

रामजस पर बरसता था नई मां का प्यार. उसमें उसका कोई हिस्सा नहीं था. मां-बाप की सारी ममता रामजस के लिए थी. सब खिलौने, कपड़े और मिठाइयां उसके लिए थीं. उसके भाग्य में सिर्फ उन्हें हसरत से देखना था. उसके हिस्से में तो गाय-भैसों की सानी करना, दूध दोहना, कुट्टी काटना और खेत पर जाना था. वह छोटी सी उम्र में ही एक जिम्मेदार आदमी बना दिया गया था. उसकी जिंदगी से सब मासूम चीजें छीन ली गई थीं. वह देखता रहता था रामजस को हंसते-खेलते.

‘‘मोहनवा’’

उसके विचारों की कड़ियां टूट गईं. चौक कर उसने पिता की ओर देखा. ठंड बढ़ गई थी. चादर में लिपटे होने के बावजूद रामजस अब तेजी से कांप रहा था.

‘‘का है बप्पा?’’

‘‘ओही कम्बल दे दे.’’

मोहन ने एक बार अपने शरीर पर लिपटे हुए कम्बल को देखा. उसका मन एक किस्म की घृणा जैसे भाव से भर उठा अपने पिता के प्रति. आखिर उसके मन में रामजस के प्रति इतना पक्षपात क्यों है? क्या वह स्वयं मिट्टी का बना हुआ है? क्या उसे ठंड नहीं लगती? क्या रामजस ही सब कुछ है और वह कुछ नहीं?

नहीं, नहीं देगा वह कम्बल.

उसने पिता के कथन की अवहेलना कर दी. एक कठोरता-सी उसके मुख पर फैल आई. आंखों में एक निश्चय-सा चमक उठा. रामजस याचना करती-सी दृष्टि से उसकी ओर देखता हुआ उसके पास सिमट आने की कोशिश करने लगा. कम्बल को और सावधानी से शरीर के चारों ओर लपेट कर रामजस की ओर तिरस्कारपूर्ण दृष्टि से देखते हुए उसने मुंह फेर लिया.

‘‘भैया, मोहूं का कम्बल उढ़ाय दे.’’ कांपती हुई आवाज में रामजस बोल उठा.

मोहन ने जैसे सुना ही नहीं. चुपचाप बैठा रहा. जैसे पत्थर हो. खीझ और कष्ट से रामजस की आंखों में आंसू भर आए. उसने घुटनों में सिर छिपा लिया. आग लपलप करके जलती रही. कुछ देर के लिए वातावरण निस्तब्ध हो उठा. चांद और ऊपर उठ आया था. हवा और अधिक ठंडी हो गई थी. चुप्पी को अगर कोई चीज तोड़ रही थी, तो हवा में खेतों की सरसराहट. घुटनों में मुंह छिपाए हुए ही रामजस सिसकने लगा.

‘‘का है रे?’’ चौंक कर हरखू ने पूछा.

‘‘ठंडी लगत है बप्पा.’’ उसकी सिसकियां बढ़ गईं. हरखू ने जलती सी दृष्टि से मोहन की ओर देखा.

‘‘मोहनवा, सुनत नाहीं? कम्बल उढ़ाय दे ओही.’’

मोहन ने कोई उत्तर नहीं दिया. हरखू के कथन की कोई प्रतिक्रिया उस पर नहीं हुई. पत्थर की मूरत की तरह बिना हिले-डुले बैठा रहा वह. हरखू को सहन नहीं हुई यह अवहेलना. चिलम की आग अलाव में उलटकर वह उठ खड़ा हुआ.

मोहन के सामने जाकर वह कह उठा-‘‘आज तोही सनीचर चढ़िस है का? मार-मार बिलटाय देहों. चुपचाप कम्बल उतार दे.’’

मोहन ने फिर अवज्ञा कर दी.

हरखू क्रोधित हो उठा. उसका क्रोध लात-घूसों के रूप में मोहन पर बरस उठा-‘‘ले, अउर ले. बित्ता भर जान, टेस दिखाउत है.’’ वह मारता गया और चीखता गया.

मोहन बैठा-बैठा ही जमीन पर लुढ़क गया, लेकिन कम्बल को वह कस कर पकड़े रहा. वह घुटने नहीं टेकेगा, कम्बल नहीं देगा...नहीं देगा. उस पर घूंसे बरसते रहे, लेकिन उसके मुंह से एक सिसकारी तक नहीं निकली. रामजस घबरा कर पिता की ओर देखने लगा था.

वह पुकार उठा...‘‘बप्पा.’’

हरखू हांफने लगा था. गठरी की तरह धूल में पड़े हुए मोहन को एक लात और जड़ कर वह भुनभुनाता हुआ रामजस की तरफ बढ़ आया. उसे डांटते हुए बोला-‘‘काहे रिरियात है रे? महतारी का खाय गइस अब का मोही खई हैं?’’

रामजस सहम गया. बड़बड़ाता हुआ हरखू मचान की तरफ चला गया.

मोहन काफी देर तक वैसे ही पड़ा रहा. फिर वह धीरे-

धीरे उठा और हाथ उसने आग पर फैला दिये. उसको चेहरा

धूल से भर गया था. कम्बल में मिट्टी सन गई थी. इतना पिट लेने के बाद भी उसकी आंखों में आंसू की एक बूंद भी नहीं थी. उसका चेहरा फौलाद की तरह सख्त था. आंखों में जरा भी कोमलता नहीं थी. ...अंगारों की तरह जैसे लाल हो उठी थीं उसकी आंखें. उसने रामजस की ओर देखा. वह थककर धरती पर ही लेट गया था, उसकी आंखें मुंदी थीं, मगर उनमें से ढल-ढल कर बहे हुए आंसुओं का गीलापन अब भी शेष था. रह-रह कर सिसकियां उसे आती थीं. क्षण भर मोहन के मन की प्रतिहिंसा को तृप्ति मिली. वह खुश हो उठा, जैसे रामजस की पीड़ा देखकर, लेकिन फिर उसे लगा जैसे वह देर तक रामजस की ओर नहीं देख सकेगा. हल्की-हल्की आंच की रोशनी में कांपता हुआ रामजस का मासूम चेहरा और पलकों से उलझे हुए आंसू.

एक बार फिर उसकी ओर देखकर उसने अपने मन की प्रतिहिंसा को तुष्ट करना चाहा, लेकिन उसके मन में कुछ और ही भाव उग आया. वह रामजस की तकलीफ देखकर खुश होना चाहता था, लेकिन उसे लग रहा था कि वह कभी खुश नहीं हो सकेगा. इसके विपरीत न जाने क्यों उसके मन में एक तीखा शूल सा चुभने लगा. उसे याद आया कि उसकी मां की मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद वह भी पिता के साथ खेत में आया करता था. अलाव के बगल में इसी तरह सोते-सोते उसे कई बार सपने में मां दिखाई पड़़ी थीं. वह चौंक उठता था और कई बार रोया भी था.

रामजस को भी मां याद आती होगी उसी तरह और उसे भी बुरा लगता होगा मां के बिना. यह एक बात बार-बार मोहन के दिमाग में घूमने लगी. उसे लगा कि शायद वह रामजस से नफरत नहीं कर सकता. यदि चाहे तो भी नहीं. रामजस छोटा है उसकी मां नहीं है. उसे प्यार की जरूरत है, क्योंकि मोहन जानता है कि बिना प्यार और ममता के आदमी क्या से क्या हो जाता है.

मोहन के चेहरे का सख्त खिंचाव अपने आप खुलता गया, उसकी शिकनें नर्म पड़ती गईं और उसकी आंखों में एक मासूम उजलाहट बिखरती गई.

एक झटके से वह उठ खड़ा हुआ. उसने कम्बल उतार कर आहिस्ता से रामजस को उढ़ा दिया. कुछ देर तक उसके चेहरे की ओर वह प्यार से देखता रहा. फिर आकर आग के पास बैठ गया और चुपचाप तापने लगा.

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: ई-बुक : प्राची, जुलाई 2015 : कहानी - अलाव
ई-बुक : प्राची, जुलाई 2015 : कहानी - अलाव
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEga0sCCIKlsxJroBeYhZCbF4VMI75L0qgQ1Da5JixNKeADCg1GBo12GE_qRY_0q5HoNxrmdbZl4GQovGL0wtT3xXDi2cApVlJxBxXF5wIY-5s9Ja2KvIDVI5S8P5Q3nCqhGEjH5/?imgmax=500
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEga0sCCIKlsxJroBeYhZCbF4VMI75L0qgQ1Da5JixNKeADCg1GBo12GE_qRY_0q5HoNxrmdbZl4GQovGL0wtT3xXDi2cApVlJxBxXF5wIY-5s9Ja2KvIDVI5S8P5Q3nCqhGEjH5/s72-c/?imgmax=500
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2015/07/2015_28.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2015/07/2015_28.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content