सुशील यादव आओ बच्चों तुम्हें दिखायें...... इस धर्मनिरपेक्ष देश के बूढ़े-अधबूढ़े बच्चों, टी वी के, घटिया न्यूज से सठियाये बुजुर्गों , सास-बहू...
सुशील यादव
आओ बच्चों तुम्हें दिखायें......
इस धर्मनिरपेक्ष देश के बूढ़े-अधबूढ़े बच्चों,
टी वी के, घटिया न्यूज से सठियाये बुजुर्गों ,
सास-बहू सीरियल से, घबराई माओं, बुआओं ,बहनों.....
कभी तफरी का जी करता होगा ....?
बेटे-बहू आपकी बुजुर्गियत पर पीठ-पीछे तंज कसते होंगे| आपको जानकार, जाने कैसा लगता हो ....।
आपके हलके-फुल्के टाइम-पास का, ‘पाप-कॉर्न’(पाप का कारण ) चलो ढूंढ़ते हैं।
सबसे पहले ‘बच्चों’ ,ये बताना मेरा नैतिक धर्म बनता है कि आप अपनी परसी हुई थाली को गौर से देखें। ज्यादा चिकनाई तो नहीं है ....?चिकनाई सेहत के लिए हानिकर होता है। आपकी रोटी में घी मख्खन चुपड़े होने का सीधा-सीधा मतलब, कहीं आपके पेंशन को दान में मांगे जाने की तय्यारी तो नहीं हो रही है।
बेटा या बहु का ड्रामा , आपके पोते-पोतियों के भविष्य’,या उनकी अच्छी शिक्षा का वास्ता देकर ,इस खजाने से आपको वंचित करने का, प्लान तो नहीं बना रहे हैं। या हो सकता है आपके फिक्स्ड डिपाजिट एकाउंट से कोई बड़ा अमाउंट हथियाने के चक्कर या फिराक में वे सेंध लगाने के चक्कर में हों।
यूँ, सुनने में बहुत अच्छा लगता है ,बाबूजी ,ये अपना मकान है न ,जर्जर ,खंडहर सा हो रहा है ,इस इलाके में अभी कीमत अच्छी मिल रही है। हो सकता है कल मेट्रो या सड़क चौडीकरण में अपना मकान फंस जाए , फिर तो इसके औने-पौने दाम ही मिलेंगे क्यूँ न इसे फटाफट निकालकर, सिविल लैंन की तरफ, फ्लेट ले लिया जाए ,यही आज के समय की अक्लमंदी हैं। वे आपको ,’कन्फयुज्ड’ करके रख देंगे। कहाँ आप बाड़े-नुमा, हवेली माफिक मकान के स्वामी, और कहाँ ‘थ्री बी एच के’ का दंदकता, कुंद सा मुर्गी खाना ....? वे अपने सुझाव के पक्ष में ,चार यार-दोस्तों का हवाला देते हैं कि कैसे सस्ते में सब लोग फ्लेट एप्रोच लगा-लगा के ‘कबाड़’ रहे हैं| अगर अभी चुक गए तो आने वाले दिनों में जिनके दाम निश्चित आसमां छूने वाले होगे। और आने वाली सात पीढियां पानी पी-पी के अपन को कोसेगी .....कहाँ दादा जी की ‘मति’ मारी गई थी। आपका ‘ब्रेनवाश’ बिना डिटर्जेंट के होने से, अब भगवान रोक्के तो रोके ....|वरना ,इस उम्र में सरेंडर करने का पहला पाठ यहीं से शुरू हो जाता है।
अगर आपके पास इस कान से सुनो और दूसरी से निकाल दो की ‘प्रेक्टिस’ तगड़ी है, जैसा अपनी पत्नी के साथ अमूमन करते रहे हैं ,तब तो आप उस मकान में बरसों टिके रह सकते हैं वरना लालच और दबाव के आगे आपको अपनी मर्जी के खिलाफ घुटने टेकना ही पड़ेगा।
आपने, अपने सरकारी ओहदे में कितने फरमान जारी किये होंगे ...कितनों का अनुपालन होते पाया होगा। जिसने फरमान के माफिक नहीं किया उसके ‘ऐ सी आर’ ,रंगे होगे ,वे तब के दिन थे। हो सकता है कई मातहत घुटने टेकने को भी बाध्य हुए हों ,मगर वो सब आपका सरकारी रुतबा ,दबदबा था ,अब इन सब की कहीं पूछ नहीं। इन सरकारी ‘ठाठ के दिनों को’ गमछे में लपेट के कहीं बाहर टांग दो,इसी में भलाई है। इससे कम सठियाये तो दिखोगे.....।
आप दो-तीन बच्चों वाले बुजुर्ग हैं, तो आपके के साथ ,’बागबान’ टाइप का खेल-खेला जा सकता है। फ़िल्म बागबान के ट्रेलर को याद कर लो, किस्से का खुलासा आप ही आप हो जाएगा कि कैसे बुजुर्ग-दंपत्ति का करवा-चौथ, दिल दहलाने वाला दृश्य उपस्थित करता है।
हम तो कहते हैं ‘दुनिया के बुजुर्गों एक हो’........
कहने को तो ये कह लिए, मगर तत्काल दिमाग में आता है कि, ये एक हो के... क्या भाड़ झोंक सकते हैं ?
‘भाड़ झोंकने’ का डिटेल आपको बताएं। ’भाड़’ एक मिटटी का बहुत बड़ा, ऊपर चौड़े मुंह का तपेला होता है। लकड़ी की जलती भट्टी या तेज आंच की आग में, रखा जाता है|इसमें रेत को तपा कर गर्म करके ,भीगे, पर सुखाए चनों को फूटने के लिए डाला जाता है। यूँ समझिये पुराने जमाने की तंदूर भट्टी ....|इसे आपरेट करने वालों को भड़भुन्जिये कहते हैं। हमें लगता है इतनी उम्र देखते ये काम इनके ‘बस’ का नहीं। वरना सबसे पुराना, कम लागत वाला बिना दिमाग खर्च किये चलाने वाला ,यही सीधा- सादा धंधा था।
चलो ,आपको और काम में लगाते हैं। थैला ले के बाजार जाने का सिस्टम, जिससे आपको चाय -सिगरेट के लिए , दो पैसों की आमदनी हो जाती थी, आजकल बड़े-बड़े शापिंग-माल ने छीन लिया है । बाकायदा बिल प्रिंट हो के हाथ में दे दिया जाता है, मसलन , घपले का कोई चांस नहीं।
एक टी वी है जो आपके बुढापे का सहारा है। इंटरनेट ,फेसबुक, मोबाइल को बहु के दिए सीमित सेन्क्शंड बजट में चलाना होता है।
तो बच्चों ,यही टी वी आपको, समय समय पर , ‘तिहाड़-दर्शन’ करवाता है ,जहाँ फर्जी-डिग्री वाले अन्दर जाते दिखते हैं। ये आपको सात-समुंदर दूर, ‘लमो’ के पास भी ले जाता है जो सात सौ करोड़ के घपले-घोटाले की वजह से अपने देश के ‘इ डी’ तांत्रिकों द्वारा ढूंढा जा रहा है| दुनिया उनसे मिल लेती है मगर ‘न्याय’ की देखरेख करने वालों की, नजर नहीं जाती। ये वही लोग होते हैं, जिसका साथ, आपके वोट पर चुने हुए, आपके जन प्रतिनिधि, देते नजर आते हैं|
अपने कानों पर कलयुग में विश्वास कर लेना भी संदेहास्पद है। एक राज्य है ,पत्रकार की मौत का मुआवजा दे रही है, उसके मंत्री पर ,मरते हुए पत्रकार का बयान उसे मौत का जिम्मेदार ठहरा रहां है ,मंत्री को ढूंढने में पुलिस महकमा अजीब सी सुस्ती में काम कर रहा है ,आम-जन का कानून अलग, मंत्री का कानून मानो अलग.....।
अब मंत्रियों को शपथ लेते हुए हूँ भी दिखाया जाना चाहिए ,मैं ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि अगर किसी काण्ड में मेरा लिप्त होना आरोपित हुआ तो ,अविलंब पदत्याग करुंगा। यदि ऐसा न कर सका तो भगोड़ा होने की दशा में मेरी सारी संपत्ति जो इलेक्शन लड़ते समय बताई गई है जब्त कर ली जावे। मैं शपथ पूर्वक कहता हूँ की मेरी डिग्री के दस्तावेज फर्जी नहीं है। मुझपर बलात्कार ,चोरी ,खून डकैती के कोई आरोप नहीं है और न ही किसी अदालत में मेरी पेशी, इन आरोपी के तौर पर चल रही है।
--
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
०९४०८८०७४२०
==
सुशील यादव के कुछ अन्य हास्य व्यंग्य यहाँ देखें
--
COMMENTS